Vaidik Gyan...
Total:$776.99
Checkout

ऋषि दयानन्द के पादरी से शास्त्रार्थ ||

Share post:

|| ऋषि दयानन्द के पादरी से शास्त्रार्थ ||
आज तो सोशल मिडिया का दौर है सब लोग अपनी अपनी कपोल कल्पित बातों को ही सत्य मानकर समझ कर प्रचार कर रहे हैं | और वह यही समझकर प्रचार कर रहे हैं की यही सत्य है, सच्चाई दुनिया में अगर कहीं है तो वह हमारे पास ही है, किसी और के पास नहीं | सबसे हैरानी की बात यह है की वह यही समझकर बोल रहे हैं, की मैं जो बोल रहा हूँ यह अकाट्य सत्य है |
परन्तु दुनिया वालों को पता होना चाहिये ऋषि दयानंद का एक शास्त्रार्थ पादरी रेवरेण्ड जे,ग्रे के साथ 30 मई 1866, को हुआ,स्वामी जी पुष्कर से अजमेर आये | वहां स्वामी जी का पादरी लोगों से मित्रता पूर्ण शास्त्रार्थ हुआ | एक तो यही पादरी ग्रे साहब, दुसरे पादरी रोबिनसन शूल ब्रेड, मिश्नरी एक तीसरे पादरी और भी थे जो ब्यावर राजस्थान के थे, यह सभी मिशनरी के ही थे |
प्रथम तीन दिन ईश्वर, जीव, सृष्टि क्रम में चर्चा हुई, स्वामी जी ने उनके उत्तर उत्तम रीती से दिए | चौथे दिन ईसा के ईश्वर होने पर और मरकर जीवित होने और आकाश में चढ़ा लिए जाने पर, स्वामी जी ने कुछ प्रशन किये, दो तीन सौ लोग इस धर्म चर्चा में भाग लिया करते थे |
अंतिम दिन जब पादरी लोग इस विषय पर कोई बुद्धि पूर्ण उत्तर न दे सके तो स्कुल के लड़के ताली पीटने लगे परन्तु स्वामी जी ने रोक दिया | आपस में शास्त्रार्थ का ढंग यह था की प्रथम एक पक्ष प्रश्न करे, और दूसरा पक्ष उत्तर दे बीच में कोई और न बोले, उसके बाद दूसरा पक्ष भी इसी प्रकार करें |
प्रथम प्रश्न पादरी ने किया, जिसका उत्तर स्वामी जी ने दिया, इस शास्त्रार्थ में ईसाइयों ने एक वेद मन्त्र का प्रमाण भी दिया था जिसे स्वामी जी ने अस्वीकार किया और कहा की यह वेद मन्त्र नहीं है | उन्हों ने कहा की हम वेद ला कर दिखायेंगे, परन्तु वेद से न दिखला सके |
रोबिनसन साहब जो उनदिनों में बड़े पादरी थे, उनका एक प्रश्न यह था की ब्रह्मा जी ने जो व्यभिचार किया है उसका क्या उत्तर है ? स्वामी जी ने कहा क्या एक नाम के बहुत से मनुष्य नहीं हो सकते ? फिर यह कौन बात है की यह ब्रह्मा वही है ? प्रत्युत कोई और व्यक्ति होगा महर्षि ब्रह्मा ऐसे नहीं थे {यह प्रमाण पंडित लेख राम जी द्वारा ऋषि जीवनी} |
इस प्रकार वेदों के नाम से लोगों ने गलत प्रचार किया है, और यहाँ तक बता दिया कि ब्रह्मा जी ने अपनी लड़की सरस्वती से व्यभिचार किया | और व्याह रचाई है इस प्रकार के दुराचार करने वाले को ब्रह्मा नाम बता दिया | ऋषि दयानंद जी ने एक शब्द में उत्तर दिया कि यह नाम का कोई भी हो सकता है |
ऋषि दयानन्द जी को मालूम है कि ब्रह्मा सृष्टि बनाने वाले का नाम है जो निराकार है काया वाला नहीं है जब कोई इंसानी शकल में न है तो उनसे विवाह करना या व्यभिचार कर ने का कोई प्रशन ही कहाँ है ? परमात्मा एक हैं जो अनेक नामों से उन्हें पुकारा जाता है जब जब जिस कार्य को अंजाम देते हैं तब तब उस नामों से उन्हें पुकारा जाता है | जब सृष्टि रचाते हैं उस समय वह ब्रह्मा कहलाते हैं |
 
जब विचरण करते हैं उस समय उन्हें विष्णु कहा जाता है, जब मानव मात्र को किये कर्मों का दण्ड देते हैं उस समय वह रूद्र कहलाते हैं | इन सच्चाई को बिना जाने ही लोग परमात्मा पर आरोप लगा देते हैं जो निहायत अज्ञानता कि बातें हैं |
रही बात ब्रह्मा ऋषि का नाम है तो जो ऋषि होंगे उनसे यह काम नहीं हो सकता, फिर वह ऋषि नहीं कहला सकते | ऋषि कोई साधारण मानव नहीं होते ऋषि मुक्त आत्मा ही ऋषि होते हैं इसे भी जानना पड़ेगा |
हमें परमात्मा को जानना चाहिए परमात्मा को बिना जाने ही किसी को परमात्मा कह देना यह मानवता से परे कि बात है | हमें पहले परमात्मा को जानना पड़ेगा उसके बाद ही उसे मानना ही मानवता है | आयें हम परमात्मा को जानें और मानव कहलाने का अधिकारी बनें |
महेन्द्र पाल आर्य =5 /10 /22

Top