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अधकचरे को अधकारी बनाने से यही होगा |

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अधकचरे लोगों को अधिकारी बनाने से यही होगा ||

सृष्टिरचनाआर्यवर्त में हुई सबसे ऊँची स्थान जो तिब्बत कहलाती है,इस देशका नामआर्यावर्त सृष्टि केआरम्भसे हैअहमभूमिमअद्दामआर्यः यहभुमी मैंनेआर्योंको दी

परमात्मा का यह उपदेशआदि सृष्टि से है यह भूमि आर्यों को मिली है।

अब सवाल है की आर्य कौन है? तो जवाब मिला आर्य नाम ईश्वरपुत्रः । आर्य वही है जो ईश्वर के पुत्र हैं |

अर्थात पिता के गुणों को जो धारण करे वही पिता के पुत्र कहलाने के हक़दार बनते हैं । अब यहाँ पुत्रों के दो क़्वालिटी हो गए, एक लायक दूसरा नालायक। जिसका एक लायक, आर्य । और दूसरा नालायक, जो अनार्य, कहलाये ।

हमें अपने आप ही निर्णय लेना होगा की हमें अपने को पिता से नजदीकी बनाकर चलना है, अथवा पिता से दुरी बनाकर चलना है । अगर पिता के नजदीक रहे आर्य कहलाये । पिता से दुरी बना लिया अनार्य,और दश्यु कहलाये ।

प्रमाण मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने परमपिता से नजदीकी रखी आर्य कहलाये। रावण ने परमपिता से दुरी बना ली तो दश्यु कहलाये ।

हम मनुष्यों के साथ भी यही है, जिन पिता ने हमें धरती दी, उसके आदेश का पालन करेंगे आर्य कहलायेंगे । और उसके आदेश का उलँघन करेंगे तो,अनार्य व दश्यु कहलायेंगे।

अब कोई यह कहे आर्य लोग बाहर से आये वह अनजान हैं नादान हैऔर अनभिज्ञ भी हैं। जरा विचार करें ऊपर दिया गया प्रमाण वेद का है । जब परमात्मा का उपदेश है यह भूमि आर्यों को दी। जो लोग यह कहते हैं आर्य लोग बाहर से आये, उनसे मेरा सवाल है की आर्य लोग बाहर से आएं तो यह वेद कहाँ से आया?

जब वेद आदि सृष्टि से इसी देश में है,और उसमें बताया गया भूमि आर्यों को दी, फिरआर्य लोगों का बाहर से आने का प्रश्न ही कहाँ है ?

इसी देश में राम ने, श्री कृष्ण ने, जन्म लेकर आर्य कहलाये , कोई संस्कार के संकल्प में आर्यवार्तान्तर्गते कहना पड़ता है, फिर आर्यों का बाहर से आने का कहाँ प्रमाण मिला जो हवाला मैंने दिया है उसे कोई झुठलाए मेरी चुनोती है उन लोगों को इसका जवाब दे ।

सवाल यह है की जब राम को कृष्ण को आर्य पुत्र कहा गया तो यह हिन्दू कौन और कहाँ से आया ? जब की हमारी किसी भी ग्रन्थ में हिन्दू शब्द ही नही है । क्या संकल्प करते समय कोई आर्यवार्तान्तर्गते कहते हैं अथवा हिन्दू वार्तान्तर्गते बतलाते हैं ?

सत्य को धारण करना मानवों का काम है । आएं हम सत्य को धारण करें असत्य को त्याग दें ।

परेशानी तो यह है की यही आर्य कहलाने वालों में सन्यासी बनकर भी राष्ट्र विरोधी बोल बोलते रहे फिर भी आर्य समाजी उन्हें आर्य सन्यासी कहते रहे उनके मरते दम तक |

मात्र राष्ट्र विरोधी ही नहीं अपितु मानवता विरोधी बोली बोलते रहे, समलैंगिकता समर्थक क्या मानवता वादी हो सकता है ? केवल मानवता विरोधी ही नहीं बलके वेद विरोधी भी,कारण यह मान्यता विरुद्ध ही नहीं वेद विरुद्ध है |

कोई अपने को दयानन्द जी के संस्था का उत्तराधि कारी बताकर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं और कहीं कोई शोक सभा मना रहे हैं जिन्हों ने ऋषि दयानंद जी के वैदिक मंतव्यों का गला घोटता रहा मरते दम तक,आज उन्हें सार्वदेशिक सभा का प्रधान अपने को बता कर आर्यों की तरफ से उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं |

अपना व्यक्ति गत कोई श्रद्धांजलि दे बात अलग है आर्यों की ओर से का क्या मतलब ? ऐसे अधकचरे वैदिक मान्यता के अनजान लोगों को जब कहीं अधिकारी बनाया जायगा तो यही बात होगी | आर्य कहलाने वालों मेरे लेख को ध्यान से पढ़ें और इसपर विचार करें सही क्या है और गलत क्या है ?महेन्द्र पाल आर्य 14 /9 /20

 

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