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अमेरिका से सवाल था जिसका जवाब =

Mahender Pal Arya
|| यह सवाल जवाब पिछले 2015 का है अमेरिका से वार्ता ||
यह नास्तिकता पर, सिन्धु से हिन्दू बना यह सत्य है या झूठ इसी पर है यह विचार ||
मुझे अमेरिका से यह सवाल लिखा गया जिसका जवाब लिखा हूँ | श्री मधु सुधन झा -जी आप को यह पता ही नही, की जो अक्षर है उसका उपयोग न करना संभव नही, कारण उसका उपयोग नही तो वह अक्षर बनता ही नही ? उन अक्षरों के उपयोग करने के लिए बना है |
दूसरी बात है अगर उसका उच्चारण किसी से नही हो रहा है तो उसी का दोष है, अक्षर का नही ? ठीक इसी प्रकार कोई स का –ह उच्चारण करे, तो वह व्यक्ति का दोष है अक्षर का नही ? जैसा श =ष –स =इन तीनों अक्षरों का उच्चारण अच्छे अच्छे विद्वानों से भी नही हो पाता |
स –को श =पढ़ने में अर्थ का अनर्थ होता है यह बहुत से शिक्षाविदों को भी पता नही | इसका मतलब यह नही की स = को ह कहना बुद्धिमानी है, या सही है | जो कहते हैं फारसी में = स = नहीं है, वह मुर्ख है =अरबी उर्दू, फारसी में चार है =से =सिन =शीन =स्वाद = संस्कृत में तीन है =श =ष =स =
मात्र इतना ही नहीं किसी भी अक्षर को उच्चारण गलत निकालेंगे =उसका अर्थ बदला जायेगा अर्थ का अनर्थ हो जायेगा | ऋषि दयानन्द जी ने इसे उच्चारण लिखा है | वर्नोच्चार्ण शिक्षा पुस्तक में |
आचार्य उदायन जी ने भी इसपर एक पुस्तक लिखा है बहुत ही लाजवाब पुस्तक है | आचार्य आनन्द प्रकाश जी की भी एक पुस्तक इसी पर है लोग पढ़ते नहीं, अगर कोई जानकारी दे भी तो मुह फुला लेते हैं, और कहते हैं मेरा विरोध किया | यही जिहालत है मुर्खता है | उसे बल्कि धन्यवाद देना चाहिए की साहब मैं नहीं जानता था आप ने मुझा बतादिया, मैंने सीखी आपसे | यह कहने की हिम्मत आर्य समाजी विद्वान मानते हैं आपने को उन्ही की बात मैं कर रहा हूँ | यह बहुत बड़ी भूल है लोगों में | सिखने की वृत्ति लोगों में नहीं है और समाज को गलत जानकारी देते हैं |
ठीक इसी प्रकार नमस्ते = और नमश्कार में भी दोष है | आप कहें तो बुरा मानते हैं सत्य को जानना भी नहीं चाहते | विशेष कर आर्य और हिन्दू में यहाँ भी अंतर है आर्य लोग नमस्ते कहते हैं | यह एक पूर्ण शब्द है= हिन्दू इसे नहीं बोलेंगे वे नमश्कार कहेंगे जो शब्द पूर्ण नहीं है | इस सत्यता को आप सामने रखें तो वह बुरा मानते है अपनी गलती का सुधार नहीं चाहते सम्पूर्ण समाज में इसी प्रकार लोग गलती करते हैं और सीना जोरी भी दिखाते हैं |
अब अपनी गलती को किसी पर थोंपना यह अकलमन्दी नही, किन्तु मुर्खता है| उपयोग न करना ही अज्ञानता है ? दूसरी बात है की सिन्धु -से- हिन्दू -बनगया = तो सिन्ध प्रान्त को हिन्द प्रान्त किस लिए नही कहा गया ? सिन्धु नदी को -हिन्दू नदी क्यों नही बोला गया ? अगर स =का =ह = होगा =फिर मुसलमान का -मुहलमान होना था =फारसी का =फारही किस लिए नही हुवा ? शेख सादी का =हेक हादी =किसलिए नही ? इस लिए सिन्धु से हिन्दू बना यह सरासर गलत है और अज्ञानता भी |
google.com = {में जा कर} the about name of hindu लिखकर देखें हिन्दू का अर्थ क्या है किसने अर्थ किया है कब किया है ? किस पुस्तक में किया है ? वह पुस्तक कब छपी है कहाँ से छपी है आदि आदी, विस्तार से पा जायेंगे |
हिन्दू और आर्य में भेद भी देखें > श्री राम जी आर्य थे =भरत =आर्य थे =राज को ठोकर मार दिया, राम ने कहा मैं राज नही करता -भरत ने राम के पादुका को आदर्श मान कर राज व्यवस्था को संभाला | यह राज मेरा नही बड़े भाई का है =यह पादुका उनके हैं, उसे सामने रखा आदि =
यह आर्य है त्याग की भावना जहाँ हो इदंनमम की बात जहाँ हो, या इस पर जो अमल करे वह आर्य है | यही बात आज आर्य कहला ने वाले आर्य समाजी कहलाने वालों ने त्याग दिया है | जिसका परिणाम यह हुवा कहीं किसी का कब्जा, तो कहीं किसी का | इदन्नम्म स्माप कर दिया जो रोज यज्ञ करते हैं आहुति देते समय ही कहते हैं यहीं तक ही सिमित कर दिया जीवन में नहीं उतारा |
इसी का नतीजा है आज आर्यों की समाप्ति को किसी ने कब्ज़ा लिया, और कोई कब्ज़ा करने के लिए युवाओं को एकत्र कर रहे हैं | उद्देश्य क्या है इनके पास समाप्ति बहुत है इसे कब्ज़ा लो बस यही उद्देश्य रह गया |
अनार्य को देखें -औरंग जेब राज को पाने के लिए भाई को कतल किया -पिता को बन्दी बनाया | यह आर्य और अनार्य में भेद ठीक इसी प्रकार आर्य, और हिन्दू में भेद है | राणाप्रताप हिन्दू थे -उनके भाई हिन्दू ही थे =दोनों ने शिकार किया -राणाप्रताप -और छोटे भाई, राणा के =दोनों की तीर से सुवर का शिकार हुवा = दोनों भाई आपस में लड़े = और छोटे भाई -राणाप्रताप के विरोधी अकबर से जा मिला | यह है हिन्दू =
अगर वह आर्य होते ? तो शिकार ही नही करते-और ऐसा हो भी जाता =तो एक दुसरे से कहते इदन्नमम =यह मेरा नही है, तुम ही ले जाव | यह है आर्य और हिन्दू में फर्क | फिर आर्य नाम वेद का हैं | पर हिन्दू नाम कहाँ और किस ग्रन्थ में हैं ? यही सब भेद है हिन्दू होने में और आर्य होने में |
महेन्द्रपाल आर्य वैदिकप्रवक्ता =12 =3 =15 =आज इसे कुछ शब्द जोड़ कर पुन: लिखा हूँ | 12 =3 =19