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अम्बेडकर की नकारात्मक सोचने हिन्दुओं को बांटा |

Mahender Pal Arya
अम्बेडकर की नकारात्मक सोचने हिन्दुओं को बांटा |
लेख विचारणीय और पठनीय हैं इसे गंभीरता से पढ़े बिना विचार किये बिना कोई कुछ भी न लिखें अगर इस विषय पर किसी को आपत्ति है तो मेरे साथ दिबेद में बैठ सकते हैं | धन्यवाद
हम भारतियों ने सत्य को जानने का प्रयास ही नही किया, सत्य को अपनाना तो बहुत दूर की बात है | हम थोडा विचार करें, कुछ बिन्दुओं पर विचार करने से ही सत्य को समझना, सत्य का पाया जाना संभव है, बिना विचारे सत्य के नज़दीक हम नही जा सकते | विचार करने के लिये चाहिए दिमाग,और विचारों के बगैर निर्णय करना निर्णय लेना सम्भव ही नहीं है |
आज बिगड़ी है डगर, उस बिगड़ी डगर को बदलो, गाँव को और नगर को बदलो |
टोपी को बदलने से न बदलती है निज़ाम,गर बदलना है इन्सान के सर को बदलो ||
इन्सान के सर को बदलने का तरीका मात्र विचार ही है, इन्ही विचारों से ही कोई राष्ट्र भक्त बनता है, और कोई राष्ट्र द्रोही बनजाता है | आये दिन हम सभी लोग यही सब देखते और सुनते रहते हैं | कोई ISI से जा मिल रहा है, कोई नक्शालियों से जा मिल रहा है | कोई, कोई वहां से निकलकर राष्ट्र के मुख्य धरा से भी जुड़ रहा है |
इन्हीं विचारों से कोई गाय को मातारी कहता है, और इन्हीं विचारों से उसे कोई तरकारी समझता है | अनेक प्रमाण है देने के लिये, इतिहास भरे पड़े हैं हम ने जाना नही जानने का प्रयास भी नही किया,सत्य को अपना ना तो दूर की बात है |
आज हमारे भारत में और अन्य देशों में लगभग 4 स्थानों में अम्बेडकर के नाम से लोग अनुष्ठान मनाते रहते हैं, उनके जीवन से जुड़े बहुत सी बातों को लोग सुन रहे हैं औरों को भी सुना रहे हैं | उनकी महानता बता रहे हैं, उनकी श्रेष्टता सुना रहे हैं आदी |
किन्तु अम्बेडकर ने सत्य को छोड़ असत्य को धारण किया धर्म को छोड़ एक मत व पंथ को अपना कर हिन्दुओं को हिन्दुओं से ही गाली दिलवा दिया | तिलक, तराजू, और तलवार इनके मारो जुते चार |
अम्बेडकर यदि बौद्धमत को ना अपना कर इस्लाम स्वीकार कर लेते तो भी हिन्दुओं को यह गाली देने वाला कोई नही था |
मुस्लमान पहले भी थे अब भी हैं, अगर अम्बेडकर मुस्लमान बन जाता तो उनके साथी एक्का दुक्का ही मुसलमान बनते | मुस्लमान हिन्दुओं को अपना दुश्मन मानते हैं, मुसलमानों को हिन्दुओं से दोस्ती तक रखने को अल्लाह ने मना किया है, इतना सब कुछ हो कर भी मुसलमानों को कत्ल किया जाता है सर तन से जुदा सिर्फ कहते नहीं है बलके करके दिखाते भी हैं | चाहे हकिकत राय का कत्ल किया हो | गुरु तेग बहादुर का कत्ल हो, गुरु गोबिन्द सिंह से लेकर उनके चार लड़कों का कत्ल किया गया हो | भाई मोती दास व सती दास का कत्ल हुवा हो एक लम्बी लिष्ट है जिन गुरुओं ने अपना सर मुसलमानों के हाथ कटवाकर हिन्दू और हिंदुत्व की रक्षा की है |
उसमें भी हिन्दुओं को कोई गाली नही दिया, पर आज हिन्दुओं की अ दूरदर्शिता के कारण, ब्राह्मण, क्षत्रीय वैश्य, को खुले आम गाली एक अम्बेडकर के कारण ही सुनाया जा रहा है |
हिन्दू सत्य को आज भी जानने का प्रयास नही किया और करना भी नहीं चाहता है | कहीं हाथी के नाम से राजनीति, यह भी अम्बेडकर से हुआ है | पिछले दिन लखनऊ में चुनाव आयोग को इन्हीं हाथी को ढकने का आदेश देना पड़ा था शायद आप लोगों को भी याद हो |
जब की हमारी वैदिक संस्कृति में मानव मात्र का एक ही जाती बताया गया प्रसव होने का तरीका जिनका एक है, वह सभी एक ही जाती के हैं | जिन मनु महाराज ने हमें आचार संहिता {कानून } व्यवस्था दी है उन्ही मनु को यह अम्बेडकरवादी गाली दे रहे हैं उसे पढ़े बिना, जाने बिना ही मनुवादी कह कर बदनाम किया जा रहा है यह सब अम्बेडकर की महरबानी है | अम्बेडकर के इस नादानी और अज्ञानता को लोगों ने जानने का प्रयास नही किया |
जिस आंबेडकर को आर्य समाज के अधिकारी कहलाने वालों नें तन, मन, धन,से सहयोग किया विदेश जा कर भी उन्हें आर्थिक सहायता की | अम्बेड कर ने उनलोगों के साथ भी विश्वास घाट किया जिस थाली में खाया उसी थाली को छेड़ किया | अगर वह हिन्दुओं का सुधर चाहते था तो उन दिनों आर्यसमाज का सुधारवादी आन्दोलन सम्पूर्ण भारत में ही नहीं पाकिस्तान में भी जोरों पर था |
मनुस्मृति का विरोध करने वालों को खुली चुनौती दे कर डॉ० सुरेन्द्र जी ने एक चिति सी पुस्तक लिखी मनु का विरोध क्यों इस नाम से | मनु का विरोध तो मात्र आंबेडकर और उनके अनुयायी ने ही नहीं किया मौलाना अग्निवेश ने भी किया था | राजस्थान हाई कोर्ट के सामने मनु महाराज कि मूर्ति लगाने का विरोध अग्निवेश ने किया, और अग्नि वेश ने मनुस्कृति जलाई |
डॉ० सुरेन्द्र कुमार जी ने 20 आंकड़े उसमें डाले थे एक का भी जवाब अग्निवेश से दिया नहीं गया, अग्निवेश के पक्षधर इसका ज़वाब दे सकते हैं तो सामने आनें अग्निवेश के जीते जी याह चुनौती में देता आया हूँ |
इधर ऋषि दयानन्द जी लिखते हैं वेद ईश्वरीय ज्ञान है इसके बाद अगर कोई वैदिक सिद्धांत कि कोई मानी पुस्तक है तो वह आचार सह्निता मनुस्मृति ही है | अग्निवेश के चेलों नें ऋषि दयानन्द जी को ही नहीं पढ़ा और आर्य समाजी भी कह रहे हैं अपने को आर्य विद्वान् भी कहलाते हैं यह लोग |
आज अगर जरूरत है तो हमें सत्य क्या है उसे जानने की जरूरत है लोगों के दिल और दिमाग में इस सत्य को भर ने की जरूरत है | जिसे लोगों ने जाना तक नही जाती के नाम से आरक्षण जो दूसरों के साथ सरासर अन्याय है |
महेन्द्रपाल आर्य =वैदिकप्रवक्ता =दिल्ली =6/12/16= को लिखा था |\