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अल्लाह का कहना क्या है दुनिया वाले भी सुनें ||

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||दुनिया वालों अल्लाह का कहना क्या है देखें ||

صُمٌّ بُكْمٌ عُمْيٌ فَهُمْ لَا يَرْجِعُونَ [٢:١٨]
अर्थ :-कि अब उन्हें कुछ सुझाई नहीं देता ये लोग बहरे गूँगे अन्धे हैं कि फिर अपनी गुमराही से बाज़ नहीं आ सकते | सूरा बकर 2 /18 =

समीक्षा :- {आयत उतरने ने सन्दर्भ } अल्लाह ने यहाँ भी साफ कहा जो ईमान नहीं लायेंगे उन्हें कुछ पता नहीं वह गूंगे और बहरे हैं | अब खुदा जिसे बहरे और गूंगे बनादेंगे तो क्या खुदा पर दोष नहीं लग रहा है, किसी मानव कहलाने वाले की स्वाधीनता को छीनने का काम अल्लाह का है ?

आयात 17=18 आयात उतरने का कारण बताया जा रहा है मिसाल को अरबी में मसल भी कहते हैं, इसकी जमा {बहुवचन} इमसाल आती है जैसे कुरान में है
{वतिलकल अमसालो} यानि यह मिसालें हम लोगों के लिए बयाँन करते हैं, जिन्हें सिर्फ आलिम {विद्वान} ही समझते हैं | आयात का मतलब यह है के मुनाफिक जो गुमराही को हिदायत के बदले, और अंधेपन को बीनाईो { देखनेवाले } के बदले मोल लेते हैं | उनकी मिसाल इस शख्स जैसी है जो अन्धेरे में आग जलाये, उससे दायें बाएँ की चीजें उसे नज़र आने लगे उसी पर निशानी दौर हो, और फायदे की उम्मीद बन्धे | जब आग बुझ जाये फिर अँधेरा छा जाये, तब ना निगाहें काम करे, और ना रास्ता मालूम हो सके | और बा वजूद इसके वह शख्स खुद बहरा हो किसी की बात ना सुन सकता हो, गूंगा हो और किसी से दरयाफ्त {बोल भी नसके } न कर सकता हो | अन्धा हो जो रौशनी से काम ना चला सकता हो | अब भला वह कैसे रास्ता पा सकेगा ?

ठीक उसी तरह यह मुनाफिक भी है के हिदायत को छोड़ कर वह गुम राही कर बैठे और भलाई को छोड़ कर बुराई को चाहने लगे | इस मिसाल से पता चला है के इन लोगों ने ईमान कुबूल करके कुफर किया था | जैसे कुराने करीम में कई जगह मिसालें मुजुद है |{वल्लाहु अयल्म} अल्लाह बेहतर जानता है |
नोट :- आप ने देखा होगा की अल्लाह किसी भी मानव कहलाने वालों को इसलाम कुबूल करवाने की परिपाटी किस प्रकार कुरान की आयातों में बताया है, अल्लाह को और कोई धर्म पसंद नही है, न किसी अन्य मानव समाज को ? अल्लाह सिर्फ और सिर्फ पैगम्बरों के द्वारा इस्लाम फ़ैलाने की बात की है |
पर एक बात यह समझ में नहीं आ ई, की जो इस्लाम कुबूल नहीं करते अल्लाह उसके दिल में पर्दा डाल देते, किसी किसी में दिली रोग पैदा करदेते, और कहीं कहीं अन्धा गूंगा, बहरा भी बना देते हैं जो काम अल्लाह के ही जिम्मे में है |

अगर यह सत्य है और सठिक है तो अल्लाह मानव को पैदा करते समय उसे मुसलमान बनाकर धरती पर भेजते इसे न करपाना क्या यह अल्लाह की कमजोरी मानी जाय ? जो काम अल्लाह के हाथ में ही है, अब मानव को दुनिया में भेज कर फिर उसे अन्धा, गूंगा, बहरा, बना देना फिर दिलकी बीमारी पैदा करदेना, और अपने पैगम्बरों से इसलाम कुबूल करवाने के लिए लड़ने का हुक्म देना, क्या यह बातें विचारणीय नहीं है ?
क्या दुनिया के लोग अब भी इसी अंधेपन में जीना चाहेंगे पत्थर की लकीर मान कर इसे कलामुल्लाह कहेंगे इसमें जो विचार दिए गये हैं उसपर कब विचार करें गे ? क्या अभी तक यह समय नहीं आया है जिस युगमें मानव चाँद में भ्रमण कर रहे हों,अब भी इसे सत्य जान कर इसे ही ईश्वरीय ज्ञान बताएँगे, या मानने लगेंगे ? अकल से कब काम लेना चाहेंगे यह मानव कहलाने वाले ?

यह हैं अल्लाह का कहना, चिन्तन शील मानव इसपर विचार करें की यह बातें मानने लायेक हैं अथवा मानवता विरोधी है ?
महेन्द्रपाल आर्य =29 /11 /18 =

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