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अल्लाह की निजी भाषा में है कुरान |

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|| अल्लाह की निजी भाषा में है कुरान ||
||आप लोगों ने आयात 4 देखा है- उससे पहले की 3 को देखें ||
यह प्रमाण इबने कसीर पेज 629 पारा 12 सूरा 12 युसूफ, आयात 1,2,3, का सन्दर्भ = तयारुफ़ कुरान अल्लाह की बजुबान अल्लाहुर रहमान =

परिचय कुरान अल्लाह की जुबान में | सूरा बकर की तफसीर के शुरू में हर्फे मुक्तियात की बहस गुजर चुकी है – इस किताब यानि कुरान शरीफ की यह आयतें बहुत वाजेह –महत्त्व खुली हुई और खूब साफ़ है –
बहुत चीजों की हकीकत खोल देती है यहाँ पर तलक मानी खुदा के हैं- क्यों की अरबी जुबान निहायत कामिल और मकसद को पूरी तरह वाजेह बयांन कर देने वाली है –और वसयत व कसरत वाली है –

इस लिए यह पाकिजा तर किताब इस बेहतरीन जुबान में अफज़लतर रसूल पर फरिश्तों के सरदार फरिश्ते के सफारत में, तमाम रुए जमीन के बेहतर मुकाम में वक्तों में बेहतरीन वकत में नाजिल होकर हर एक तरह के कमाल को पहुंची ताके तुम हर तरह सोच समझ सको और उसे जान लो –

हम बेहतरीन किस्सा फरमाते हैं – सहबा ने अरज किया के या रसूल अल्लाह अगर कोई वाकिया बयान फरमाते ? जिस पर यह आयत उतरी – और रवायत में है के एक जमाने तक कुरान करीम नाजिल होता गया और आप हुजुर, सहाबा के सामने तिलावत फरमाते रहे फिर उन्हों ने कहा हुजुर कोई वाकिया भी बयांन हो जाता तो ? उसपर यह आयत उतरी, फिर कुछ वक्त के बाद कहा के काश आप कुछ बात बयान फरमाते,उस पर यह आयत उतरी |

> अल्लाहु नज्जाला अह्सनल हदीस <उतरी और बात बयाँन हुई – रौशन कलाम का एक ही अंदाज देख कर सहाबा ने कहा या रसूल अल्लाह बात से ऊपर की और कुरआन की निचे की कोई चीज होती यानि वाकिया इसपर यह आयतें उतरी फिर उन्हों ने हदीस की खावाहिश की इसपर आयात >अल्लाहु नज्जाला < उतरी |

पस किस्से की इरादे पर बेहतरीन किस्सा और बात के इरादे पर बेहतरीन बात नाजिल हुई – इस जगह जहां की कुरान करीम की तारीफ हो रही है – और यह बयान है के कुरान और सब किताबों से बेनियाज कर देनेवाला है –

मुआसिब यह है की हम मसनद अहमद की इस हदीस को भी बयान कर दें –जिसमें है के हजरत यूमर बिन खित्ताब की किसी अहले किताब से एक किताब हाथ लग गई थी उसे लेकर आप हाजिरे हुजुर हुये – और आप के सामने उसे सुनाने लगे – आप हुजुर बहुत गुस्सा हो गये और फरमाने लगे, ऐ खित्ताब के लड़के क्या तुम इसमें मशगुल हो कर बहक जाना चाहते हो ?

उस कि कसम जिसके हाथ में मेरी जान है के मैं उसको निहायत रौशन और वाजिह तौर पर लेकर आया हूँ – तुम इन अहले किताब से कोई बात न पूछो – मुमकिन है की वह सही ज़वाब दें, अगर तुम उसे झुठला दो और हो सकता है के वह गलत जवाब दें – और तुम उसे सच्चा समझ लो – सुनों उस अल्लाह की कसम जिसके हाथ में मेरी जान है –के आज खुद हजरत मूसा अलैहिस्सलाम भी जिन्दा होते तो उन्हें भी सिवाए मेरी ताबेदारी के कोई चारा न था –
एक और रिवायत में है के हजरत यूमर बिन खित्ताब ने आपसे कहा के बनू कुरैजा कबिलेके मेरे एक दोस्त ने तौरात में से चन्द जामेय बातें मुझे लिख कर दी है तो क्या मैं उन्हें आप को सुनाऊ ? आप का चेहरा मुरझा गया |

नोट :- यह है कुरान जिसे अल्लाह की कलाम बताया गया है की अल्लाह ने इस आसमानी किताब को अपनी अरबी जुबान में दिया – जो अरबी भाषा के लोग हैं उनके लिए दिया और यह किस्सा बयान किया है इसमें | अब सवाल यह उठता है की अगर यह कुरान अल्लाह की कलाम है तो अल्लाह सम्पूर्ण विश्व का है अथवा किसी एक कौम वर्ग और स्थान विशेष के लिए हैं ?

अगर अल्लाह सम्पूर्ण विश्वका न होकर किसी एक स्थान या देश या मुल्क वालों का हो, तो क्या अल्लाह पर पक्षपात का दोष नहीं लगरहा है ?

जब अल्लाह को दुनिया का बनाने वाला कहा जाता है, और वही अल्लाह अरबी भाषा में अपनी जूबान में उपदेश दे, तो पहला शब्द यही आएगा की अल्लाह की जुबान क्यों और कैसी ? क्या अल्लाह और देशों की भाषा भी जानता है ?
अगर नहीं जानता फिर अल्लाह होने का कोई अधिकार उनका नहीं रह जाता, अगर अल्लाह हो सकता होगा किन्तु परमात्मा नहीं |

कारण परमात्मा की निजी कोई भाषा नहीं है, कारण परमात्मा के पास बोलने और सुनने देखने और सूंघने व स्पर्श की कोई जरूरत नहीं है, तथा इन ज्ञानइन्द्रीय से परमात्मा अलग है, जिसे अल्लाह जानता भी नहीं है |

और जिन चिजों से यह सभी बातें जानिजाती है जिसे ज्ञान इन्द्रिय कहा जाता है, उस से परमात्मा अलग है फिर उसकी भाषा होना यह क्यों सम्भव और उचित होगा ?

इसलिए परमात्मा की निजी कोई भाषा होगी, तो उसपर पक्षपात का दोष लगेगा | इस लिए उसका निजी कोई भाषा नहीं होती | भाषा होने के लिए बोलने वाला होना पड़ेगा,जब परमात्मा को बोलना नहीं पड़ता उसके जीभ ही नहीं है जिनके, तो उनकी भाषा कैसी ?

लेकिन कुरान इसी सूरा युसूफ में बताया है की अल्लाह की जुबान अरबी है जिस जुबान में अल्लाह ने यह कुरान नाजिल किया है, अल्लाह ने जिसे खुद बताया, क्या यह बातें दोषपूर्ण नहीं है ?

जिस परमात्मा का हाथ नहीं- पैर नहीं, शारीर नहीं, कान नहीं, नाक नहीं, आँखें भी नहीं, और जीभ भी न हो तो वह बोलेंगे कैसे ? पर कुरान में अल्लाह ने खुद कहा मैंने अपनी जुबान में अरबी भाषा में यह कुरान दी है | |

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