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अल्लाह मरियम पर सती होने का मोहर क्यों लगा रहे ?

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अल्लाह मरियम पर सती होने का मोहर क्यों लगा रहे ?
यह प्रमाण है इबने कसीर पेज 99,100, पारा 6B सूरा 5 मायदा आयत 74,75, का सन्दर्भ यह आयत अल्लह को क्यों उतारना पड़ गया,?
सन्दर्भ बताया है फिर अल्लाह कर्म व उजुद को बखशिश और इन्याम और आनंद और अपनी रहमत का बयान फरमारहा हैं और बावजूद इनके इस कुदरत सख्त जुर्म {अपराध} इतनी बेहयाई कजब व इफ्तिरा के उन्हें अपनी रहमत की दावत देता हैं
और फरमाता है के अब भी मेरी तरफ झुक जाव अभी सब मायाफ फरमा दूंगा और दामन रहमत तले ले लूंगा –
हजरत मसीह अल्लाह के बन्दे और रसूल ही थे उन जैसे रसूल उनसे पहले भी हुए हैं – जैसा फ़रमाया अल्लाह ने > इनहुवा इल्ला अब्दुन < वह हमारे एक गुलाम ही थे – हाँ हमने उनपर रहमत नाजिल फरमाई थी और बनी इसराईल के लिए कुदरत की एक निशानी बनाई –
वालदा ईसा की माँ एक मुमिना और सच कहने वाली औरत थी- इस लिए मालूम हुवा के वह नबियों में नहीं थीं क्यों की यह मुकाम {स्थान} अलग है – वह बेहतरीन मर्यादा जो आपका था –
वह बयान कर दिया अगर नबूवत वाली होतीं तो इस मौके पर इसका बयान निहायत जरूरी था –इबने जरम आदि का बयान है के इसहाक और उम्मे मूसा {मूसाकीमाँ} और उम्मे ईसा {इसकीमाँ}नबियों में से थीं –
और दलील यह देते हैं के फरिश्तों ने हजरत सारा और हज़रात मरियम से खिताब और कलाम किया और वालदा मूसा की निस्बत {बाबत} फरमान है > व आवहैना इला उम्मे मूसा < हमने मूसा की माँ की तरफ वही की के तू उन्हें दूध पिला ले कि अधिकांश आलिमों का मत इसके खिलाफ हैं –
वह कहते हैं की नबूवत मर्दों में ही रही –जैसे कुरान में फ़रमाया > वमा अरसलना मिन कब्लिका इल्ला रिजालन < तुझ से पहले हमने बस्ती वालों में से मर्दों की तरफ रिसालत इनयाम फरमाई है – शैख अबुल हसन अश्यरी ने तो इसपर इजमा नकल किया है –
फिर फरमाता है के माँ बेटा तो दोनों खाने पीने के मुहताज थे और जाहिर है के जो अंदर जायेगा वह बाहर भी आएगा – पस साबित हुवा के वह भी औरों की तरह बन्दे थे –
अल्लाह की सिफत {गुण} उनमें ना थीं – देख तो हम किसतरह खोल खोल कर इनके सामने अपनी जहमतें पेश कर रहे हैं ? फिर यह भी देखने के बावजूद इसके के यह किस तरह इधर उधर भटकते और भागते फिरते हैं ?
कैसे गुमराह मजहब कुबूल किया है ? और कैसे रद्दी और बेदलिल बातों के ग्रोह में बन्धे हुए हैं ? यह है इस आयत का सन्दर्भ यहाँ क्या क्या कहा गया कौन सी बात मानव समाज के लिए उपयोगी है अथवा नहीं, तथा मानव कल्याण की कोई बात है अथवा नहीं हम सभी बातों को सामने रखते हैं |
नोट :- इस आयात में तो अल्लाह ने बताया – क्यों यह लोग अल्लाह की तरफ नहीं झुकते,और यह लोग पश्चाताप क्यों नहीं करते ? आज भी तो धरती पर मानव कहलाने वाले बहुत हैं जो दुनिया बनानेवाले वाले को भी झुठलाते हैं, और बिलकुल उसे मानने से भी इनकार करते हैं |
तो क्या अल्लाह उन्हें मनाने के लिए अपना कोई एजेन्ट भेजेंगे ? और उनसे यही कहेंगे जो इस कुरान में कही गई ?
फिर इस में ईसा मसीह के बारेमें बताया की वह एक पैगम्बर हैं और कुछ नहीं, पैगम्बर क्या है ? सन्देश वाहक, सन्देश किसका, अल्लाह का, अगर समय समय पर अल्लाह सन्देश वाहक भेजते थे या भेजे थे, तो यह बन्द क्यों हो गया ? अगर उस समय अल्लाह सन्देश वाहक भेज कर अल्लाह अपने दीन के बारे में सन्देश दिया तो क्या आज उसकी जरूरत ख़तम क्यों हुई ?
आज अल्लाह को नहीं चाहिए की सम्पूर्ण धरती पे एक अल्लाह का ही दीन हो जो अल्लाह चाहते हैं, और इसी कुरान में अल्लाह ने कहा भी है इस बात को | तो आज इसकी जरूरत ख़त्म किसलिए कर दिया अल्लाहने ?
की अब और कोई नबी नहीं आएगा अगर उनदिनों में अल्लाह अपने सन्देश वाहक भेजकर मानव समाज को सुचना दी थी तो क्या आज इसकी ज़रूरत नहीं ?
दूसरी बात है की अगर आज इसकी जरूरत नहीं है, तो पहले इसकी जरूरत क्यों पड़ी ? अगर आज उन पैगम्बर के बगैर दुनिया चल सकती है, तो पहले क्यों नहीं चलना संभव हुवा ?
मतलब तो बिलकुल साफ है जैसे आज दुनिया चल रही है तो पहले भी चली होगी, यह तो अल्लाह का नाम ले कर मानव समाज को एक घटिया सोच दे दिया गया है, जिससे आज धरती पर इसी ग्रन्थ के नाम, और धर्म के नाम मानव मानवता को भी खोदिया है, जिसके पीछे यही मजहबी किताब है जिसमें अल्लाह या गॉड के नाम से मानव को एक दुसरे से लड़ाया है |
और मानवों को एक को दुसरे के साथ प्यार की बातें ना बता कर, केवल नफरत की बातें सिखाया है | और इसी कुरान को लेकर आज मानव समाज में एक दुसरे सेनफरत ही नहीं अपितु खून के प्यासे बना दिए गये हैं | मानव समाज में विष घोलने का काम यही अल्लाह और अल्लाह की किताब को लेकर होते देख रहे हैं |
इस आयात में अल्लाहताला अपनी कर्म व वजूद {अस्तित्व} बख्शने और इन्ताम और अपनी रहमत का बयान किया है | जरा विचार करें की अगर अल्लाह की रहमत उन दिनों में थी तो आज भी है अगर उन लोगों के साथ थी, और आज नहीं हैं, फिर अल्लाह पर पक्षपात का दोष लगा |
यही कारण है की ईश्वरीय ज्ञान आदि सृष्टि में सृष्टि नियंता ने अपना ज्ञान मानव मात्र को दे दिया उसे और बदलने की जरूरत नहीं है | जो बातें पहले थीं वह अब भी हैं, यही उपदेश है वेद का >सूर्यचंद्रमा सौधाता यथा पुरमा क्ल्प्यात < यह पहले भी था अब भी है और आगे भी रहेगा |
अर्थात तीनों कालों की जानकारी जहाँ हो जिसे हो,वर्तमान,भुत, भविष्य | की जानकारी जहाँ हो वही ईश्वरीय ज्ञान है |
और यही खूबी जिनमें हो वही परमात्मा है | यही एक मात्र कसौटी है परमात्मा का, और परमात्मा के दिया ज्ञान का |
अब यहाँ अल्लाह अपनी रहमत का दावत देता हैं और फरमाता है, के अब भी झुक जाव, अभी सब मयाफ कर दूंगा | क्या यह बात भी जरूरी नहीं होगी की जो एक बार माफ़ करेगा तो वह बार बार भी माफ़ करेगा ?
अगर कोई बार बार माफ़ करे गा, तो माफ़ी करवाने वाले को बार बार गलती करने का अवसर मिलेगा | तो इस माफ़ वाली परिपाटी ने जबसे बार बार गलती कराएगा, उसके मनमें यही बात होगी चलो क्षमा याचना करलेंगे, पश्चाताप करलेंगे अल्लाह तो बख्शने वाला है वह माफ़ करने वाला भी है उससे माफ़ी माँग लेंगे,
अल्लाह महरबान है उसकी महरबानी से हम बरी हो जायेंगे आदि | यहाँ पर भी अल्लाह पर पक्षपात का दोष लगा | अब बताया हमने उनपर रहमत नाजिल फरमाई थी, किन पर तो पता लगा हज़रत ईसा की बात अल्लाह ने कही चर्चा उन्ही की चल रही है |
गोर करने योग्य बात यह है की अगर ईसा पर अल्लाह ने अपनी रहमत फरमाई, और बनी इसराईल के लिए कुद्तर की एक निशानी बनाई – तो जो इनके विरोधी लोग थे उनपर अल्लाह की रहमत का ना होना उनके लिए कोई निशानी ना बनना क्या यह पक्षपात नहीं ?
फिर कहा इस की माँ एक मोमिना {मोमिन} औरत थीं | यह और विचार करें की किसी एक महिला के लिए अल्लाह का मुहर लगना यह किस लिए उचित हो सकता है ? क्या इसपर अल्लाह की किये रहम पर सवाल खड़ा नहीं करता ?
अल्लाह पूरी दुनिया का है अथवा किसी एक वर्ग विशेष का ? अगर पूरी कायनात का है, तो फिर किसी एक वर्ग पर अपनी रहमत लुटाना यह तो पक्षपात वाली बात हुई ? और सम्पूर्ण कुरान में यही बातें भरी पड़ी है सवाल तो यही हैं की जो अल्लाह है सम्पूर्ण धरती का मालिक है उसके पास यह पक्षपात की बातें किस लिए ? महेंद्र पाल आर्य = 9/9/20=

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