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आखिर यह गुरु कौन है और क्या है ?
Mahender Pal Arya
आखिर यह गुरु क्या है ?
गुरु शब्द कोई गलत नही है, गुरु का अर्थ है रास्ता दिखाने वाला, यानि भटके को रास्ता बताने वाला गुरु कहलाता है | अथवा अंधकार से प्रकाश की ओर लेजाने वाला, गुरु कहलाता है | किन्तु सही पूछें तो हमारे यहाँ ठीक इसका उल्टा ही है, की रास्ता दिखाने के बजाय रास्ता भटकाने वाले को ही गुरु कहा जाता है |
यह मत समझना की यह अभी से ही चालू हुवा, नही हमारे देश में बहुत पहले से ही,यह परम्परा चल रही है, हम लोगों ने इस पर चिन्तन और विचार ही नही किया, और कौआ कान ले गया, सुनकर उस कौवे के पीछे भागे, अपने कान में हाथ लगाकर ही नही देखा की कान अपने पास है अथवा नही ?
हमारे लोगों में सही को गलत, और गलत को सही कहने की परम्परा आज से नहीं किन्तु बहुत पहले से ही है | हमारे लोगों ने सही को सही कहने की हिम्मत नहीं जुटा सके और गलत को ही सही कहने लगे, यातो गलत को गलत कह नही पाए और उसी गलत को ही सही कहदिया |
मै कुछ प्रमाण दे रहा हूँ धैर्य पूर्वक इस पर विचार करें, की सही क्या है और गलत क्या है ? जैसा अर्जुन ने अपनी जिन्दगी में कभी झूठ नहीं बोला, अपने बड़ों को पाशा अथवा, जुवा खेलने से रोका भी | हमने उन्हें कौनसी उपाधि दी, वीर, इसके सिवा उन्हें और कुछ भी नही बोला | और जिन्हों ने जुवा खेला, अपनी संपत्ति हारे, फिर भी मन नही भरा अपनी पत्नी को भी दावं पर लगाया,इसपर दुनियाके लोग उन्हें धर्मराज कह रहे है |
जब की वेद में परमात्मा का उपदेश है खेती कर जुवामत खेल | योगेश्वर श्री कृष्ण जी ने भी मना किया कई बार समझाया, फिर भी नहीमाने | माता द्रौपदी ने सब को निरुत्तर किया, की महाराज ने अपने को दावंपर पहले लगाया या परिवार को ? जवाब मिला अपने को, तो माता द्रौपदी ने कही, जब महाराज खुद हार गये तो परिवार पर उनका अधिकार कैसे रह गया ?
भीष्म पितामः भी मूक दर्शक बने रहे गलत का विरोध नही कर सके | अथवा जान बुझ कर नही किया, सत्य कहने की हिम्मत ही नही थी, कारण सत्य कहना इतना आसान काम नही है, सत्य कहने की हिम्मत होनी चाहिए, सत्य कहने के लिए, परमात्मा से अटूट सम्पर्क, और जानकारी भी होनी चाहिए, फिर कोई सत्य कह सकता है, वरना सत्य कहने में भीष्म जैसों ने भी नही कह पाए |
फिर अन्य कोई भी कैसे कह्देते सत्य को ? हर कोई ऋषि दयानन्द नही बन सकते की सत्य कहने के लिए लोगों के दिए विष के हलाहल पी गये | यातो हम पीछे चलें तो आदि गुरु शंकराचार्य जी को भी देखते हैं सत्य की प्रतिष्ठा में जिन्होंने दुनिया वालों के सामने वेद को आगे किया, और कहा वेद में मूर्ति पूजा नही है | इस सत्य को किसी ने प्रस्तुत किया तो उनका नाम शंकराचार्य ही था | जब की आज के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द जी 24 अवतार की बात कर रहे हैं | मै पूछना चाहूँगा स्वामी स्वरूपानंद जी से, की क्या यह मान्यता आदि.गुरुशंकराचार्य जी की थी ? अथवा वेद में अवतारवाद की कोई चर्चा है ? फिर आज यह 24 अवतार कहाँसे आगये जिन आदि गुरु को वेद उद्धारक कहा गया उन्ही के गद्दी पर बैठ कर वेद विरुद्ध कैसे बोलने लगे ?
जिस शंकरने उस पाषाण काल में डंके की चोट कहा वेद में मूर्ति पूजा नही है, जैनियों के सामने ढाल बनकर खड़े होगये राजा महाराजाओं को अपने बिश्वास में लेकर, न मालूम सम्पूर्ण भारत में मूर्तियों को तोड़ने का अभियान चलाया | और आखिर यही जैनियों के शिकार बने, दो जैनी शिष्य बनने के बहाना में उन्हें विष देकर मारा |
यह हिन्दू अपने पूर्वजों के इतिहास को पढ़कर नही देखा, की हमारे पथप्रदर्शकों ने मात्र सत्य के प्रचार के लिए लोगों के दिए विष को स्वीकार किया, किन्तु सत्य को नहीं छुपाया | यह है हमारा इतिहास, उस कालसे अगर यही सत्य को हम धारण करते, तो आज यह चाँद मियां को भगवान कहना नही पड़ता ?
यह हिन्दू कहलाने वाले सही क्या है और गलत क्या है, खांड, और खल में भेद क्या है नही जाना | और न हक़ ही आस्था आस्था चिल्लाकर, धर्म में मिलावट कर दिया –और कहने लगे मानो तो देव न मानो तो पत्थर | यह अकल के दुश्मन यह नही जानते की धर्म में –आस्था –बिश्वास- मानलेना –यह सभी बातें मानना संभव नही | किन्तु जो वस्तु जैसा है उसे ठीक वैसा जानना- मानना- और कहना ही धर्म है |
कारण अगर आप कहें मानो तो देव न मानो तो पत्थर = तो आप एक मुठ्ठी रेत हाथ में लेकर उसे चीनी मान लें, अथवा उसी रेत को चीनी बनाकर दिखादें ? क्या यह संभव है कदापि नही मतलब यह निकला धर्म वही है यथार्थ बोलना ही धर्म है |
साईं को आप के भगवान कहने पर भगवान होना, अथवा उनसे मनोकामना पूर्ण करवाना, यही अधर्म है | पहले हमे जानना होगा सत्य क्या है, जो वस्तु जैसा है,तीनो काल में उसे ठीक वैसा ही जानना ,मानना,और कहना ही धर्म कहलाता है |
इस सत्य से मानव समाज जितना दूर होते गये, उतना ही अधर्म बढ़ता गया | तो हमारे बड़े बड़ों ने ही सत्य को भूले तो छोटों से सत्य पर चलना और, चलवाना कैसे संभव हो पाता ? पर हम लोग यह किस लिए भूल जाते हैं की हमारे कुछ महापुरषों ने सत्य कि प्रतिष्ठा के लिए विषपान कर भी सत्य को अमर किया, या सत्य को जीवित रखा है |
हम यह किसलिए याद नहीं रखते की सत्य को कभी पराजित करना संभव नही है, सत्य प्रतिष्ठा में भले ही देर लगे किन्तु सत्य का नाश नही होता | जैसा धर्म का जय अधर्म का नाश है ठीक उसी प्रकार सत्य के साथ भी यही बात है | कारण परमात्मा, सत्य है, वेद सत्य है, और परमात्मा को पाने के लिए भी अहिंसा के बाद सत्य ही है, कारण सत्य को पाए बिना परमात्मा का पाना संभव नही |
इस लिए यह बात भी याद रखनी चाहिए की भले ही कोई साईं को पा जायें, किन्तु परमात्मा को नही पा सकते | कारण परमात्मा को पाने के लिए सत्य को पाना जरूरी है | जो लोग यह कहते हैं की साईं ने हमें यह दिया वह दिया, अथवा साईं दरबार में आने से हमे यह मिला, वह मिला आदि |
यह कैसा झूठ हैं मै प्रमाण दे रहाहूँ, और सम्पूर्ण साईं भक्तों को चुनौती दे रहा हूँ | की यह साईं भक्त साईं के दरबार में जाकर खुद को प्रधान मन्त्री बनजाने की तमन्ना साईं से रखदे और साईं उन्हें प्रधान मन्त्री बनादे, तब तो माना जायेगा की हां सत्य है साईं, की इनसे जो मांगे वही मिलता है ?
अगर वह प्रधान मन्त्री नही बना या बन पाया तो बात अपने आप में झूठ सिद्ध हो गया किसी को झूठ सिद्ध करने की ज़रूरत ही नही | देखता हूँ कौन माई का लाल साईं का चेला आता हैं मैदान में यह मेरी चुनौती है कौन सामना करता है आजाये मैदान में |
दुधका दूध और पानी का पानी अलग हो जायेगा, इस लिए साईं भक्तों परमात्मा के साथ खिलवाड़ न करो, जानो पहले परमात्मा कौन है ?
परमात्मा को बिना जाने परमात्मा का पाया जाना संभव नही, हमारे सभी ऋषि मुनियों ने कहा योग साधन के बिना परमात्मा को पाया जाना संभव ही नही | इस लिए मै सत्य सनातन वैदिक धर्म के मानने वालों से यही प्रार्थना करूंगा की छोड़ो यह साईं का चक्कर, न वह महात्मा थे और न ही संत –कारण मांसाहारी कभी भी परमात्मा को नही पा सकते | यही ऋषि पतंजली का फरमान है पढ़ो योग दर्शन | महेन्द्रपाल आर्य –22 /9 /20