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आखिर सत्य एक ही होता है, दो नहीं |

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आखिर सत्य क्या है?

मानव मात्र के लिए तीन दुःख है,यह हिन्दू ,व मुस्लिम के लिए नहीं मानव मात्र को उसी दुःखसे छुटनेका प्रयास करना है । यही ऋषियों का उपदेश है । किन्तु इस्लाम ने इसे दोजख में माना है दुनिया में नहीं।

 

तीन दुखों का नाम,अध्यात्मिक,आदिभौतिक,व अदिदैविक,कहा गया, यह सभी दुःख दुनिया में ही भुगतना पड़ेगा। दुनिया से बाहर नही,कारण दुनिया से बाहर भोगने का कोई स्थान नहीं है।

 

सभी कर्मों को भोगने का स्थान यही दुनिया अथवा धरती पर ही है, किन्तु मत मजहब वालों ने इसे मरने के बाद भुगतना माना है जिसे स्वर्ग और नर्क या जन्नत और जहन्नुम में भोगना बताया गया ।

 

अब प्रश्न खड़ा होता है, की अगर भुगतान जन्नत या जहन्नुम में भोगना है, तो माँ के पेट से अँधा, लंगड़ा, लूला, अपाहिज गूंगा बहरा जन्म क्यों और कैसे लिया ?

 

किसी मनुष्य को उसके किये गए कर्मों की ही तो सजा मिलना है, जीवजन्तु को सजा भुगतना नही है कारण वह सजा ही भोग रहा है जीव जंतु बनकर,कर्म वह कर नही सकता । मनुष्य ही कर्म करता है और भोगता है,अन्य जितने भी प्राणी हैं वह सिर्फ भोग रहा है । मनुष्यों में कर्म और भोग दोनों ही है, पशु बन कर वह भोग रहा है ।

उसी भोग को मिला अथवा पाया उसके कर्म के अनुसार उसी कर्म का भोग है, जो जन्म से अपाहिज पैदा होते हैं।

इस्लामवालों ने इसे अल्लाह पर डाल दिया और कहा यह तो अल्लाह की मर्जी है वह अँधा, लंगड़ा, लूला, गूँगा, बहरा कुछ भी पैदा अल्लाह ने ही किया है वह जो चाहे करदे । यह तो सरासर अल्लाह को ही दोषी करार देना होगा ।

विचारणीय बात है, की अल्लाह किसी को,बिना किये कर्मों का सजा दे,तो अल्लाह पर दोष लगेगा। तो उसे सजा अल्लाह ने किये कर्मों का दिया। अब सवाल आया की उसने कर्म किया कब ? जिसका एक मात्र समाधान है अगले जन्म में, कारण कर्म के बिना सजा मिलना ही नही है । इस सत्य को कोई मानें अथवा ना माने यह उसकी मर्जी है लेकिन सत्य यही है।

 

इससे पुनर्जन्म का हवाला मिल रहा है, यद्यपि बहुत वीडियो में बोला है, और लेख भी मैं लिख चूका हूँ इस पर फिर भी एक प्रमाण और दे रहा हुं, कुरान में अल्लाह ने फ़र्माया कुरान के सूरा निसा,आयात, 79 में। तुझे जो खुशहाली पेश आती है वह मेरी मेहरवानी है,और जो कोई बदहाली पेश आती है वह तेरे काम का ही सबब है ।

 

यहाँ बात स्पष्ट हो गई की किये कर्मों का फल इसे ही कहा गया । जो इसी दुनिया में ही वह भोग रहा है,अथवा भोगेगा, मेरी चुनोती है कुरान के जानने और मानने वालों को, की कर्म फल भोगने का जो स्थान है वह यही धरती पर ही है,अथवा दुनिया में ही है । इससे बाहर कहीं कोई दोजख नहीं जहाँ सिर्फ तकलीफ ही तकलीफ बताई गई।

यह वही दुःख है जो दुनिया में मानवों के किये कर्मों के अनुसार उसे फल भोगने का उपदेश ऋषि कपिल ने अपने सांख्य दर्शन के प्रथम सूत्र में ही मानव मात्र को उपदेश दिया है ।

 

मानव कहलाने वालों सत्य क्या है कहाँ है इसे जानने का काम भी मानव कहलाने वालों का ही है । सत्य को जानने के लिए हमें इन हिन्दू, और मुसलमानों तथा ईसाइयों जैसी दुकानदारों के चंगुल से निकल कर मानव समाज के मुख्य धारा से अपने को जोड़ना पड़ेगा और सिर्फ मानवता को सामने रखकर मानव मात्र के लिए,जो उपदेश वेद में दिए गए उसे जीवन में उतारना पड़ेगा तभी हम मानव कहला सकते हैं, हिन्दू, मुस्लमान,सिख, ईसाई तो कोइ बनजाये किन्तु मानव बनना कठिन है । मानव बन कर ही हम मानव का कल्याण कर सकते है । आये इसे अपने जीवन में उतारें और अन्यों को भी सुखी बनाएं । धन्यवाद के साथ महेन्द्रपाल आर्य , वैदिक प्रवक्ता, दिल्ली , 11 /12 / 2 0   यह जरुर ध्यान में रखना सत्य एक ही होता है दो नहीं |

 

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