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आज बहुत सहज भाव से धंधा करते लोग ||

Mahender Pal Arya
19 Sep 22
99
आज बहुत सहज भाव से धंधा करते लोग ||
जिन्हें न परमात्मा के विषय कुछ जानकारी है और न परमात्मा के विषय में जानना चाहते हैं | जब बिना परमात्मा को जाने धंधा चल सकता है तो कौन उलझे सत्य को जानने के लिए ? जब झूठ से ही काम चल सकता है तो सत्य से क्या वास्ता ?
आज इसी धंधा को लोगों ने अपना लिया है, और अक्ल के अंधे तथा गांठ के पुरे लोगों की ही भरमार है | जो सत्य को जानना भी नहीं चाहते और झूठ को ही बढ़ावा दे रहे हैं इस प्रकार का बहुत गड़बड़ झाला मानव समाज में हो रहा है |
कैसा कैसा कमाई का रास्ता बनाया है लोगों ने देखें मानव कहलाने वालों का नाता केवल परमात्मा से होना चाहिए, आज परमात्मा को बिना जाने ही यह अपने को मानव कहला रहे हैं | दो दिन पहले आप लोगों ने सुदर्शन न्यूज़ चेनल में देखा होगा दो मुसलमानों द्वारा महादेव का जलाभिषेक दिखाया जा रहा था |
मेरा सवाल यह है की क्या उन महादेव को पता है की मुसलमानों द्वारा अथवा हिन्दू द्वारा जलाभिषेक मेरा हो रहा हैं ? तो ऐसे जलाभिषेक से लाभ क्या और किस को लाभ हुआ या हो रहा है ?
यह बड़ा सहज उपाय है परमात्मा को भुलाने की, कौन है वह परमात्मा उसे जानों ही मत | जो परमात्मा नहीं है उसे परमात्मा मान लेने पर उसका परमात्मा हो जाना या बन जाना सम्भव है क्या ?
इससे बड़ा पाखंड दुनिया में और क्या है की हम तो खुद नहीं जाने परमात्मा को और दुनिया वालों को भी उसे जानने से रोक रहे हैं यह मानवता विरोधी कार्य है |
कुछ लोग यज्ञ के नाम से भी पाखंड चला रहे हैं जिसे ऋषि दयानंद जी ने पाखंड कहा और मानव समाज को उस पाखंड से बहार निकलने के लिए पाखंड खंडनी पताका हरिद्वार में फहराया था | आज उन्हीं ऋषि दयानन्द के नाम से रोगनिवारक यज्ञ करने में नहीं डरे, जो समाज में पाखंड इसे कहते हैं जिस का विरोध ऋषि दयानन्द जी ने किया था |
दूसरा धंधा पैसा वसुलने के लिए यह कह रहे हैं मैं तो ex मुस्लिम हूँ हमें सहायता चाहिए | ex मुस्लिम बनकर उन्होंने अपनाया क्या, उसे नहीं जानते अगर एक को छोड़ा उसे असत्य जानकार छोड़ा तो सत्य को पकड़ना चाहिए ? अगर सत्य को नहीं अपनाया तो असत्य किसी को कैसा जाना या समझा ?
कारण सत्य की कसौटी पर ही किसी को असत्य सिद्ध किया जा सकता है जब आपने सत्य को ही नहीं जाना तो किसी को असत्य कैसे कह सकते हैं ?
यह एक बहुत बड़ा धोखा चल रहा है , सहज भावसे विचार करें की हमने अगर सत्य को नहीं जाना तो असत्य को कैसे पहचानेंगे ? असत्य की पहचान सत्य ही है तो सत्य को नहीं जाना फिर असत्य को कैसे जानेंगे ?
एक और काम चल रहा है समाज में कहीं गुरुकुल चला रहे हैं कहीं गौशाला चला रहे हैं कहें, मात्र आप को एक बिल छपवा लेनी है | धरती पर गुरुकुल है या नहीं गौशाला है या नहीं कोई देखने के लिए नहीं जाता है बस चंदा इकठ्ठा कर रहे हैं |
यह सब बिना पूंजी का कारोबार है यह बिल छपने में जो पूंजी लगे उसी से ही काम चलेगा | आज के मानव समाज में यह सब धंधा बहुत तेजी के साथ चल रहा है | कहीं स्कुल के नाम चंदा कर अपना मकान बनाने में लोग लगे हैं यह सब आँखों देखा हाल मैं लिख रहा हूँ |
यथार्थ लिख रहा हूँ आज 39 वर्षों से सम्पूर्ण देश विदेश में यही पाया है यथार्थ चीजों से लोग कम वास्ता रखते हैं और आडंबर में ज्यादा विश्वास रखते हैं इससे पाखंड को ही बढ़ावा दिया जा रहा है | हम मानव कहलाने के कारण इन सत्य और अधर्म से दूर होना एक मात्र रास्ता हैं वरना मानव नहीं कहला सकते | महेन्द्र पाल आर्य = 19/9/22