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आज 27/11/16 को रात 8 बजे IBN 7 में जो देखा

Mahender Pal Arya
27 Oct 16
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आज 27/11/16 रात 8 बजे IBN 7 में जो देखा |
सभी मित्र मण्डली को नमस्ते,मैं आप लोगों के साथ कई दिनों से जुड़ नही पाया कार्य व्यस्तता के कारण अपने वेद प्रचार कार्य में व्यस्त रहा,जिसमें उ०प्र० +हरियाणा और दिल्ली तथा गाजियाबाद में व्यस्त रहा |
आज अभी शाम IBN 7 न्यूज़ चेनल में तीन तलाक विषय पर आर/पार के कार्यक्रम को बड़े ध्यान से देखा और सुना है,अमिष देवगन जी के साथ | बहस में भाग लेने वालों में थे कांग्रेस के शोभा ओझा जी-मुस्लिम महिला साइश्ता अम्बर -लुबना चौधुरी -राकेश सिन्हा जी RSS के अधिकारी जुड़े बाद में -और रहे बीजेपी केअनिल बलूनी जी | बिषय था तीन तलाक को लेकर सुप्रीमकोर्ट ने इस पर प्रतिबन्ध लगाने का आदेश दिया है |
अब सुनते हैं इन सब के राय कौन क्या कहा और कुरान के दृष्टि में क्या है ? अथवा इन सब की बातें कुरान अनुसार थी अथवा नही ? इस्लाम की मान्यता क्या है इस पर हमें उनके विचारों को भी जानना होगा |
लुबना चौधुरी का कहना था की तीन तलाक कुरान में नही है | मैं समझ रहा हूँ हमें कुरान को देखना चाहिए की इस पर अल्लाह ने अपनी कलाम कुरान में हुक्म क्या दिया है मुसलमानों को |
فَإِن طَلَّقَهَا فَلَا تَحِلُّ لَهُ مِن بَعْدُ حَتَّىٰ تَنكِحَ زَوْجًا غَيْرَهُ ۗ فَإِن طَلَّقَهَا فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِمَا أَن يَتَرَاجَعَا إِن ظَنَّا أَن يُقِيمَا حُدُودَ اللَّهِ ۗ وَتِلْكَ حُدُودُ اللَّهِ يُبَيِّنُهَا لِقَوْمٍ يَعْلَمُونَ [٢:٢٣٠]
फिर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) दे तो उसके बाद जब तक दूसरे मर्द से निकाह न कर ले उस के लिए हलाल नही हाँ अगर दूसरा शौहर निकाह के बाद उसको तलाक़ दे दे तब अलबत्ता उन मिया बीबी पर बाहम मेल कर लेने में कुछ गुनाह नहीं है अगर उन दोनों को यह ग़ुमान हो कि ख़ुदा हदों को क़ायम रख सकेंगें और ये ख़ुदा की (मुक़र्रर की हुई) हदें हैं जो समझदार लोगों के वास्ते साफ साफ बयान करता है |
दुनिया वालों जरा ध्यान से पढ़ें इस आयात के अर्थ को जो सूरा बकर के= आयत न० 230 में अल्लाह ने साफ फ़रमाया | फिर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) दे तो उसके बाद जब तक दूसरे मर्द से निकाह न कर ले उस के लिए हलाल नही, हाँ अगर दूसरा शौहर निकाह के बाद उसको तलाक़ दे दे तब अलबत्ता उन मिया बीबी पर बाहम मेल कर लेने में कुछ गुनाह नहीं है |
यह है हुक्में इलाही {खुदाई} हुक्म जो मुसलमानों के लिये मानना अनिवार्य है इसे टाला नही जा सकता | इसके बाद भी कोई यह कहे की कुरान में तीन तलाक की विधि नही है, उन्हें इस्लाम के बारे में कुछ भी जानकारी नही है | इन्ही तीन तलाकऔर दुसरे मर्द से शादी, जिसे इस्लाम ने हलाला कहा, जो अनिल बलूनी जी कहरहे थे | की यह मानवता है क्या है यह मुस्लिम महिलाओं पर एक प्रकार का अत्याचार है | दूसरी महिला शाइस्ता अम्बर जी का कहना था इन मौलानाओं के आदेश या फरमान अथवा हुक्म को नही मानेंगे |
अब प्रश्न है क्या कोई मौलाना अपना मनमानी फैसला सुनासकता है ? अथवा कोई मुफ़्ती अपना गलत फैसला देता है ? उन्हें भी तो इसी कुरान और शरीयत की किताब से ही फैसला देना पड़ता है, उन बेचारे मुफ़्ती और मौलानाओं की क्या गलती है ?
एक बार डिबेटिंग इण्डिया वालों ने एक कार्यक्रम में मुझे भी बुलाया था, विषय यही मुस्लिम महिलाओं के तलाक को लेकर था,जिसमें मोहम्मद आरिफ साहब भी थे एक मुफ़्ती साहब भी थे | मेरे विचार सुनकर मुफ़्ती तिलमिला उठे थे इन लोगों को सत्य सुनना पसंद नही है |
यही हल इन कोंग्रेसी महिला शोभा ओझा जी के भी है, यह नाम के शोभा हैं इनके विचार शोभायमान नही है | टीवी वालों को चाहिए उसी विषय के जो जान कार हैं उन्हें बुलाया जाय जो सही क्या है और गलत क्या है दुनिया के लोग भी जान सकें |
किन्तु सारे अनभिज्ञ लोगों को बुलाकर मात्र समय ख़राब करते हैं शोर मचाते हैं एक दुसरे को सुनना नही चाहते | उन्हें यह पता नही लगता की दुनिया के लोग देख रहे हैं आप लोगों के यह छीना झपटी को |
इन बातों की गंभीरता को जरा दिमाग में रखना होगा की सुप्रीमकोर्ट का यह आदेश अगर मुस्लिम पर्सोनल लाँ बोर्ड नही मानता है, तो सुप्रीमकोर्ट का आदेश का उलंघन करने पर भारतीय दण्ड संहिता उन पर लागु होना जरूरी होगा | यह बात मुस्लिमों को समझना चाहिए की बंगला देश हो पाकितान, या अन्य किसी भी मुस्लिम देश में हिन्दू कानून को लागु करना करवाना, या फिर हिन्दू कानून की बात करना संभव है क्या ?
फिर इस देश में रहने वालों को इस देश के कानून व्यवस्था को मानना चाहिए, इस से पहले भी मैं कई बार इस पर लिख चूका हूँ | सुप्रीमकोर्ट को आदेश किस लिये देना पड़ा उसे भी ध्यान में रखना जरूरी है | जो मुस्लमान यह कह रहे हैं की हमें अपने इस्लामी कानून पर अम्ल करना है, उन्हें यह बात भी तो ध्यान में रखना होगा की इस्लामी कानून को अमल करें किसी को कोई आपत्ति नही | अगर वह इस्लामी कानून को अम्ल करते हैं फिर वह और उनका मसला भारतीय कोर्ट में किस लिये ? अगर भारत के कोर्ट में जायेंगे तो कोर्ट का फैसला सबके लिये बराबर ही तो होगा ? कोर्ट का फैसला हिन्दू को अलग मुस्लिम को अलग तो नही हो सकता |
इस्लाम वाले अपने सगी बहन को छोड़ किसी प्रकार के बहनों से शादी करते हैं, उसे तो कोर्टने नही रोका ? यहाँ तक के ससुर अपने बेटे की पत्नी से शादी करता है कोर्ट ने कभी मना नही किया ? करो शौक से करो बहु से शादी, पर कानून के लिये भारतीय कोर्ट में किसलिए जाते ? अगर जावगे तो कोर्ट का फैसला तो कोर्ट जैसा ही होगा फिर यह चिलपों किस लिये करते हो और उपर से कभी सरकार पर कभी ज़जों पर बरसते किस लिये ? अगर भारत में रहना है भारत की कानून ही तो लागु होगा ? आप कोर्ट में जाते किस लिये अपने घर में निमटा लो कोई कानून नही सुनाएगा | जैसे बहनों से शादी बहु से शादी करने पर किसी ने नही रोका उसी तरह कोई भी मुस्लमान को भारत के कोर्ट में नही जाना चाहिए |
महेन्द्र पल आर्य =वैदिक प्रवक्ता = दिल्ली =27/10/16 =