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आर्यों का देखा अजब तमाशा |

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|| आर्यों का देखा अजब तमाशा ||
मुझे सत्य सनातन वैदिक धर्म के बारे में जानकारी मिली ऋषिकृत अमरग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश के माध्यम से और उसमें अन्तिम समुल्लास को जब देखा. मेरा प्यारा विषय मिलगया, जिसपर मैं अपना पढाई बचपन से करता आया |
जो बिरासत में मुझे मिला था, किन्तु सत्यार्थप्रकाश को देखकर उसमें ऋषि के विचारों को पढ़कर मेरी आँखें खुली की खुली रह गई | हुवा यह, की हमें जो बचपन से बताया, सिखाया, और पढ़ाया गया | उस पर ऋषि दयानन्द जी ने सवाल खड़ा करदिया जो हमने कभी सोचा ही नही था और ना कभी दिमाग में यह बातें आई |
जैसा ऋषि ने सत्यार्थप्रकाश में लिखा है, कुरान का बिस्मिल्ला ही गलत है, शुरू करता हूँ मैं अल्लाह के नाम से जो रहम करने वाला महरबान है | क्या पशु आदि काटने में भी उसी अल्लाह का नाम ले कर काटा जायेगा ? अगर अल्लाह के नाम से शुरू किया तो यहाँ कोई अल्लाह किसी और अल्लाह के नाम से शुरू किया, कारण यह कलामुल्लाह है { अल्लाह की कही वाक्य है } जैसा >
ऋषिदयानन्द जी ने इसी कुरान से लिया जिसपर उन्हों ने सत्यार्थ प्रकाश में टिप्पणी की है | यह अनुवाद है शाह मौलाना रफीउद्दीन मोहद्देसिन देहलवी जी का= तफसीर {व्याख्या } शाह अब्दुल कादिर साहब मोहद्देसिन देहलवी जी का है |
ऋषि ने इसी को हिन्दी में अनुवाद करवाकर तब लिखा है | मैंने भी उसी कुरान से उठाया और आप लोगों के सामने रखा है |
यहाँ उर्दू में स्पष्ट लिखा है शुरू करता हूँ मैं साथ नाम अल्लाह् बख्शिश करने वाले महरबान के |
ऋषि ने इसी पर टिप्पणी की, और सत्यार्थ प्रकाश नामी ग्रन्थ को कालजयी बना दिया, जो आज विश्व में उस पुस्तक का कोई तोड़ ही नही बना पाया |
लोगों ने प्रयास तो खूब किया और मौलवी सना उल्लाह ने जवाब भी लिखा और नकल बनाकर अपनी पुस्तक का नाम हक़ प्रकाश रखा |
लिखने को तो हक़ प्रकाश लिखा मौलवी साहब ने किन्तु ऋषि दयानन्द के मुकाबिल जवाब नहीं बन पाया | मैं उसे भी आप लोगों के सामने प्रस्तुत करूँगा, और उसी हक़ प्रकाश का जवाब पण्डित चमुप्ती {MA} ने चौदहवीं का चाँद नामी पुस्तक लिख कर दिया है |
जब मैं उसी सत्यार्थप्रकाश के 14 समुल्लास को खत्म कर आगे चला तो, मुझे वहां ऋषि के मन्तव्य पढ़ने को मिला जहाँ ऋषि ने अपने मन्तव्य में ईश्वर विषय को बहुत अच्छी तरीके से लिखा, परमात्मा कौन है ?
परमात्मा को बिना जाने पाया जाना सम्भव नही है परमात्मा का परिचय कराया, मानव का परिभाषा लिखा मानव किसे कहा गया लिखा, धर्म, क्या है उसे भी दर्शाया अर्थात भली प्रकार से बड़े ही संक्षेप में मानव मात्र के दिल और दिमाग में यह भरा सत्य क्या है आर असत्य क्या है ? यह मन्तव्य ऋषि दयानन्द के हैं |
पर अभी मैं आर्य लोगों को देखा और पढ़ा तो ठीक ऋषिदयानन्द के विचारों से उल्टा ही मिला, इन आर्य कहलाने वालों का |
जैसा ऋषि ने सत्य का प्रतिपादन किया, इधर आर्य कहलाने वालों ने ऋषि के मंतव्यों पर पानी फेरते हुए झूठ का सहारा लिया |
और सब से बड़ी बात यह भी है, की अपनी झूठ को दयानन्द के नाम से चलाने का दुस्साहस किया | जैसा आज आर्य संस्थानों में सिर्फ कब्ज़ा ही कब्ज़ा चलरह है, कोई कहीं पर काबिज तो, कोई कहीं पर कब्जा जमाये बैठे हैं | मानों ऋषि दयानंद जी ने मात्र इन्हें यही काम करने को नियुक्त किया हो |
यहाँ तक की आर्य समाज के नाम से फर्जी वाडा ही चल रहा है सबसे ज्यादा लोगों ने अनेकों संस्था आर्य समाज के नाम से बनाकर मात्र शादी ही करवाने का काम चला रखा हैं |
भारत भर ऐसी अनेक संस्था बनाकर मात्र शादी का ही काम करवाते हैं, मोटी, मोटी, रकम लेकर अवैध तरीके से उन्हें सनद या प्रमाण पत्र देते हैं | कारण आर्यसमाज को वैदिक रीतिसे विवाह करवाने के लिए सरकार से एक विशेष मान्यता मिली हुई है, जिसे शारदा अक्ट के नाम से रजिस्ट्री है जो मान्यता मिली है |
ज्यादा तर इसका दुरूपयोग ही होता है, कारण यहाँ मात्र मुहमांगी पैसा देकर भगाई लड़कीओं की शादी होती है | जब की यह अधिकार मात्र किसी भी प्रान्तीय सभा के अधिकार में है, उनसे कोई मान्यता ले कर ही इस काम को करसकता है | अब किसी ने मान्यता ली, और किसीने नहीं ली सिर्फ फर्जीवाड़ा में मान्यता प्राप्त लिखा होता है |
और यह किसी भी प्रान्त में हो उस प्रांतीय सभा को भी पता नहीं है, और कहीं कहीं पैसा देकर सभा से अनुमति लिया भी है, हैं ना अजब तमाशा वाली बात ?
और यह लोग इतने अहंकारी हैं प्रमाण देने पर भी सत्य को स्वीकार नही करते | कहीं कहीं तो अपनी विद्वता दर्शाने के लिए वैदिक मान्यता को किनारे कर ही आंत्मा को साकार मानने की बात कर रहे हैं |
इससे यह अंदाजा लगा की यह लोग अनजान होकर भी अपनी झूठी बातों पर ही दम्भ भर रहे हैं, इनके दम्भी पन से ऋषि दयानन्द जी को भी झूठा बनाने या प्रमाणित करने में भी इन्हें लज्जा नही आ रही है, ना जाने यह अधिकार इन्हें किसने दी है ?और यह कहाँ से पाए इस अधिकार को ?
की जिस बात को ऋषि ने सत्यार्थप्रकाश में लिखा ही नही उसे अपना कर यह लोग आर्य बता रहे हैं अपने को, और ऋषि को बदनाम करने में जुटे हैं, जो जानकारों नहीं है उसे यह बता रहे हैं कितनी शर्म की बात है |
इस पर आर्य कहलाने वाले विचार करें और ऋषि के सत्यार्थप्रकाश को झूठा प्रमाणित करने में भी इन आर्य निर्माण करने वाले शायद अपना उद्देश्य मानते हैं | इससे इन्हें क्या मिल रहा है यह तो आर्य निर्माण वाले ही जानें ?
पर दुनिया के लोग यह जान गये की यह लोग वैदिक मान्यता को जानते ही नहीं सिर्फ दूसरों को चिढ़ाने वाली बातें लिख कर कहकर अपना अनाधिकार चेष्टा कर रहे हैं और अपनी अज्ञानता को ज्ञान में बदलना चाहते है, मुझे हैरानी इस बात से भी है की कुछ लोग जो इनके साथ जुडे हैं वह इस मिथ्याचार को सहन किस लिए कर रहे हैं ?
जिन्हें इस्लाम के बारेमें कुरान के बारे में कुछ भी जान कारी नहीं हैं वह भी अनाधिकार चेष्टा करते हुए हजरत आयशा जो मुहम्मद साहब की पत्नी न० तीन {3} थीं उन्हें अन्तिम पत्नी बता रहे हैं | जब की हज़रत मुहम्मद {स} की सब मिलकर 11 पत्निय थीं | और दो कनीज थीं | तो कमसे कम इसे सुधार लेना चाहिए, या जो जानकार लोग हैं उनसे पुछ लेना चाहिए क्या इससे सम्मान बिगडजाती है ?
सब अम्पत्ति बटोरने में लगे हैं और जहाँ संपत्ति होगी झगड़ा भी उसी जगह होगी और यही हो भी रहा है | सब जगह यही तो बात चल रही है आर्यसमाज के नाम जितनी भी संस्था बनी है सब जगह मात्र कब्ज़ा ही कब्ज़ा की बात है जब जिस को मौका मिलता है वह उससे ही कब्जा कर के बैठ जाते हैं |
यही सब कृया कलाप देख कर मैंने अपनी सदस्यता निरस्त करवा लिया है जब की 37 वर्षों से इस आर्य समाज का सदस्य रहा | मेरी निजी कोई संगठन नहीं है और न कोई NGO मुझे पता था की धन संग्रह की झगड़ा का कारण है |
मुझे वैदिक धर्म, और ऋषि दयानन्द के मनतव्यों के प्रचार प्रसार करना |
महेन्द्रपाल आर्य =7 /10 /20

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