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आर्य जनीं को कुछ विशेष जानकारी

Mahender Pal Arya
25 Jun 22
206
आर्य जनों को नमस्ते, कुछ विशेष जानकारी ||
आप सभी को पता है की ऋषि परम्परा को उजागर करने के लिए कोई ऋषि के कार्य को पूरा नहीं कर रहे कि यह काम आगे कैसे बढे |
हमारे न रहने पर यह काम जारी कैसे रहे यह चिंता आर्य जनों में नहीं देखा | आगे यह सिलसिला कायेम कैसी रहे लोग इसे नहीं सोच रहे, हमारे न रहने पर यह काम न रुके लोग इस काम को नहीं कर रहे हैं |
मुझे आर्य समाज में काम करते 39 साल साल हो रहा है इसी 30 नवम्बर 22 को 40 साल शुरू होना है | 1980 से 83 तक हम लग भाग 5 लोग आये थे, मद्रास से आए डॉ 0 शेख आमिर मुहम्मद से बने थे अमरेश आर्य | जो मार्किट से आउट हैं |
दुसरे बने बिहार चंपारण जिला के बेतिया से थे खुर्शीद आलम, जो कभी ईसाई भी बन गये था फिर आर्य समाज में आये जिनका नाम जय प्रकाश आर्य हुआ |
बिहार दिल्ली और हरियाणा करते रहे क्या क्या किया वह सब लिखूंगा तो आप लोग भी सुन नहीं पाएंगे | कारण आर्य समाज में मूलयांकन नहीं है | यह मरे तो इन्हें दफनाया गया, खाया आर्य समाज का लुटा भी आर्य समाजी और हिन्दुओं को मरने के बाद कबर में दफनाया गया कारण उन्हों ने अपने बच्चे को किसी को कोई संस्कार नहीं दिया था और न बेटों को आर्य बनाया था, बेटों ने मिलकर दफनाया |
तीसरा नाम बुलंद शहर का शेखू पूरा का है जिसे आर्य समाजियों ने नवाब छतारी बना कर प्रचार किया, जब की वेह छतरी के नहीं हैं |
इनका नाम अख़लाक़ अहमद से आनंद सुमन बने | कुछ वर्ष पहले नारायण दत्त तिवारी को लड़की सप्लाई करते सेकस स्केडल में फंसा था , जेल में भी गया जो देहरादून में रहते हैं | आर्य समाज में कोई प्रचार कार्य नहीं है |
चौथा नाम था नसरुददीन कमाल बताया जाता था मित्र जीवन जिनका नाम हुआ यह मूल रूप से हिन्दू थे फिर ईसाई बने फिर मुसलमान बने उसके बाद आर्य समाज में आया | इसने बड़े गुल खिलाये | गाजियाबाद नगर आर्य समाज में पकडे गये किस कार्य में उसे तो गाजियाबाद नगर समाज वालों से पूछे गाँधी नगर दिल्ली के जगदीश आर्य भी बता सकते हैं |
यह भी मुसलमान बन गया भोपाल जा कर एक संस्था बनाई थी इसने आर्य समाज को चुनौती दी जिसका उत्तर मैं ने दिया था 1985 में | वेह भी मरे मुसलमान बनकर | इन सब को सार्वदेशी सभा प्रधान लाला रामगोपाल शाल वाले अपने साथ जहाज में लेकर फिरते रहे | इसमें कुछ लोग मैदान छोड़ गये और कई मुसलमान बनकर मरे हैं |
पांचवा नम्बर मेरा था इमाम बरवाला बड़ी मस्जिद, जिला बागपत up से मौलाना मुफ़्ती महबूब अली जो महेंद्र पाल आर्य आज आप लोगों के सामने है | मैंने अपने सभी बेटा बेटी को गुरुकुल में पढ़ाया अरबी तो दूर उर्दू भी नहीं सिखा किसी ने मुझ से जो कुछ सीखता है यहीं तक सिमित हैं मेरे मरने के बाद मेरा यह मिशन चलती रहे इन्ही बात को मैं आगे तक ले गया | और अपने बच्चों से लेकर बाहर के बच्चों को भी तैयार किया है जो लोग बीच बीच में आप लोगों को सुनाते रहते हैं |
मेरे न रहने पर भी मेरा यह वेद प्रचार और इस्लाम वालों को जवाब देने का काम न रुके और यह निरंतर चलती रहे मैंने अपना फौज तैयार कर दिया, जो मेरे न रहने पर भी यह निरंतर चले ऋषि का काम |
कोई आर्य समाजी कहलाने वाले ने इस काम को नहीं किया और न करने के लिए प्रोत्साहित किया उन्हें केवल आर्य समाज की संपत्ति से मतलब है | ऋषि के छूटे काम को पूरा कैसे करें इसमें रूचि नहीं संपत्ति का झगडा मिटाने में लगे हैं लोग | मैं अपना काम जिम्मेदारी से किया और मरते दम तक करता रहूँगा |
महेन्द्र पाल आर्य = 25 जून 22