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आर्य भद्र जनों को नमस्ते के साथ यह बिचार दिया |

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आर्य भद्र जनो को सप्रेम नमस्ते ||
आप लोगों ने देखा और सुना भी है की राजस्थान आर्य प्रतिनिधि सभा और दौसा आर्य समाज के तत्वधान में वैशिक धर्म ग्रंथों में ईश्वर तत्व का कार्य क्रम |
 
जिन संस्था का नाम लिया गया वह संस्था ऋषि दयानंद सरस्वती जी ने 1875 में मुम्बई में बनाई थी |
 
इस संस्था को दयानन्द जी ने किस लिए कायम किया था ? उनदिनों से लेकर अभी तक ईश्वर और ईश्वरीय ग्रन्थ,तथा धर्म के नाम से मानव कहलाने वालों ने, अपनी अज्ञानता के कारण सत्य को छोड़ असत्य को ही सत्य समझने को देख कर ऋषि ने 18 घंटे की समाधि को छोड़ कर मानव समाज में इसी लिए कूदे, की ईश्वर के नाम धर्म के नाम और मानव कृत ग्रंथों को लोग ईश्वर कृत समझने लगे हैं |
 
ऋषि दयानंद जी आर्य समाज नाम रखकर, इसी संस्था के माध्यम से सत्य और असत्य को अलग अलग करके दुनिया के मानव कहलाने वालों के सामने रखने के उद्देश्य से आर्य समाज नाम की इसी संस्था को कायम किया |
 
मानव कहलाने वालों को यही बोध कराने के लिए , की ऐ लोगों तुम लोग जिन्हें ईश्वर मान रहे हो वह ईश्वर नहीं है | कौन है ईश्वर उसे जानों, और उसे जानने के लिए एक मात्र रास्ता है वेद | कारण वेद ही ईश्वरीय ज्ञान है, इसके अतिरिक्त किसी भी ग्रन्थ को ईश्वरीय ग्रन्थ नहीं मानना |
 
और परमात्मा द्वारा बनाया गया धर्म मानव मात्र के लिए एक ही है, कारण ईश्वर भी एक ही है | ईश्वर को बिना जाने किसी को भी ईश्वर कहना या बतलाना मानवता विरुद्ध है | मानवता वही है जो वस्तु जैसा है उसे ठीक ठीक वैसा ही जानना, मानना, और कहने का नाम मानव है |
 
अब तो जरुर आप लोग समझ गये होंगे की ऋषि ने इस आर्य समाज की स्थापना किस लिए की ? अब इसी संस्था का नाम लेकर ऋषि मान्यता के विपरीत प्रचार करने का क्या मकसद है ?
 
वह सभी लोग तो अपने अपने प्रचार कर ही रहे थे और करते आ रहे हैं, उन्हें आर्य समाज के नाम से बुलाकर जब वैदिक विचारों से उन्हें अवगत नहीं करा सके, यावैदिक विचार उन्हें दे कर बताकर यदि उन्हें सत्य से नहीं जोड़ सके तो यह आर्य समाज ऋषि दयानंद जी की बनाई हुई समाज का क्या दायित्व रह गया ?
ऋषि की बनाई आर्य समाज में आकर वह लोग वेद विरुद्ध विचार सुनाएँ ? और वह भी आर्यसमाज नामी संगठन में आकर ? यह कौन सी अक्लमंदी की बात है भाई ? वहां क्या क्या बोला गया एक एक कर मैं सब उन्हें उत्तर देते हुए विडिओ दूंगा आप लोगों को |
 
जिससे आप लोग खुद निर्णय लेंगे की आज आर्यसमाज के नाम से ऋषि विचारों का प्रतिपादन हो रहा है अथवा ऋषि मन्तावों का गला घोंटा जा रहा है, मेरा कुछ भी नहीं बिगड़ा और न किसे ने मेरा भैंस खोला | मेरे पास तो भाई न भैंस हैं और न बकरी ?
 
मेरे पास अगर है तो मात्र यही ऋषि के बताये वैदिक मान्यता वैदिक सिद्धांत ही है | जिस के कारण मैं सब को छोड़ा रिश्ता कुनबा को भी परिबार के किसी जन्म और मृत्यु में भी न जाना और न आना है |
 
खूबी की बात यह भी है की जन्मस्थली और कार्यस्थली, मेरा काम सम्पूर्ण धरती पर है | मात्र सत्य वादिता के कारण ही लोगों ने मुझे जाना है | इसी सत्य से हटाने का प्रयास अनेक लोगों का हैं |
 
यहाँ तक की वर्षों तक प्रयास करते रहे लोग, की मैं किस तरह बैठ जाऊं, दुनिया से भी दफा हो जाऊं यह सारा प्रयास लोगों का रहा है आज भी |
 
ईसाई और बुद्धिष्टों ने तो मेरी कीमत लगा है की पचास हज़ार करोड़ इस समय आप की कीमत है | आप अपने बच्चों के जीवन का ख्याल कीजिये, यह सब बातें youtube पेज में ही लगा है दुनिया वालों ने भी देखा है सुना भी है |
 
मेरा एक ही उत्तर रहा है की सत्य के लिए सब कुछ छोड़ा जा सकता है, किन्तु सब कुछ के लिए सत्य को नहीं छोड़ा जा सकता | यही ऋषि दयानंद जी के विचार हैं उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश के अंतिम में लिखा है |
 
मुझे हैरानी इन तथा कथित आर्य समाजियों से है जो लोग ऋषि विचारों को तिलांजली दे कर संपत्ति को ही सब कुछ मान लिया है | जो सरासर गलत है ऋषि का कहना है सत्य का धारण और असत्य का त्याग मानवता है |
 
बहुत छोटा करके लिखा है आप लोगों से विनती है इस विचार को जरुर पढ़ें धन्यवाद के साथ = महेन्द्र पाल आर्य = 9 /7 /20 =

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