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इतिहास समाप्त हो कर उपहास बनगया |

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||इतिहास समाप्त होकर उपहास बनगया ||
खंडित कर भारत स्वतंत्र कर दिया भारत वासियों को अंग्रेजों ने सोंप दिया यह कहा जाता है सुनाया जाता है और पढाया भी जाता है | किन्तु सत्यता तो इससे कोसों दूर है | क्या उसे उजागर किया गया है या किया जा रहा है ? क्या हमारे भातर वासियों में हमारी युवा पढ़ी को यह बताया की हमारा राज्य 99 वर्ष के अवधि के लिए है ?

1857 से लेकर 1947 तक लड़ाई लड़ी गई अंग्रेजों के खिलाफ कौन थे उसके प्रेरणा स्रोत क्या हमारी पाठ्यपुस्तक में बच्चों को हम पढ़ा पाए आज तक ?

ऐतिहासिक सत्य तथा स्वातंत्र समर का सार क्या है कौन थे वह शख्सियत ? सत्य यही है महर्षि दयानन्द सरस्वती के सूत्रों और बताये हुए मार्ग से ही यह आज़ादी मिली है चाहे वह 99 वर्ष के लिए ही सही | पहले दयानंद ने शास्त्र की क्रांति की, उसी क्रांति का प्रारूप भारत को दिया |

विशेष कर भारत वासियों को ऋषि मुनियों की परम्पर से वेद से जोड़ा जिसे लोग भूल चुके थे या उन्हें भुला दिया गया था | मोगलों के अत्याचार से भारत के लोग अपनी संस्कृति को छोड़ दिया था और वेद को तिलांजली दे दिया था | इसका यही नतीजा हुवा भारत में इस्लाम और ईसयों का विस्तार | इसे जानने और समझने वालों में योगदान तो रजा राममोहन राय का रहा | किन्तु आज भारत के युवा पढ़ी जानती है क्या- की वह रजा राममोहन राय कौन थे ? उन्हों ने वेद प्रचार के लिए कुछ कार्य किया था या नहीं ? राजाराम मोहन राय तीन पादरियों को वैदिक धर्मी बनाये थे इतिहास बताता है |

उसके बाद इसी कार्य को अगर सम्पूर्ण भारत वासियों को जोड़ा तथा भारत वासियों को इस्लाम और ईसाइयत के बारे में किसी ने जानकारी दी तो उनका नाम महर्षि दयानद ही था | जिसप्रकार दयानन्द ने शास्त्र की क्रांति की या क्रांति का प्रारूप भारत को दिया | ठीक उसी प्रकार शस्त्र का पुर्नुद्धार के लिए उन्हों ने सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रन्थ को लिखकर वेद ज्ञान से मानव जाति को जोड़ दिया | विशेष कर आर्यों को जिसका परिणाम गुरुकुल काँगड़ी से लेकर आज तक किसी समाज और संगठन वलों के पास जिसका कोऊ मुकाबला ही नहीं है |

जिस गुरुकुल इन्द्रप्रस्थ में अंग्रेज अधिकारी निरक्षण करने को पहुंचे और स्वामी श्रद्धानन्द जी से कहा आप यहाँ पर बम बनाते हैं ? स्वामी जी ने कहा जी बिलकुल ठीक कहा है आप ने | स्वामी जी ने सभी विद्यार्थियों को बुलाया खड़ा करके कहा महोदय यही सब बम हैं | मैं भी उसी गुरुकुल से हूँ |

मैं पूछना चाहता हूँ इतिहास के पढ़ने वालों से क्या अप के इतिहास में इस प्रकार की एक भी घटना लिखा है ? स्वामी श्राद्धनन्द मात्र विद्यार्थियों को ही नहीं बनाया अपितु खुद अंग्रेज पलटनों के सामने सीना खोलकर कहा चलाव तुम्हारी बन्दुक में कितनी गोलियां है |
इतिहास साक्षी है दिल्ली के टाउन हाल के सामने उसकाल के लोगों ने उनकी मूर्ति लगवाई | जब की हमारी वैदिक संस्कृति में मूर्ति की कोई प्रधानता या मान्यता नहीं है, यही मात्र इतिहास है | क्या उनके या उनके गुरु दयान्द का कोई इतिहास में नाम बताया जाता है ?

मानव जाती महर्षि दयानद जी की चिर ऋणी है उसी ऋण से उऋण होने के लिए आर्य समाजियों ने भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया, और ना भारत के लोगों ने उन्हें जानना चाहा और न इतिहास में उनका योगदान ही बताया जाता है | और ना उनके द्वारा किये गये वेदभाष्य को आज तक लागु किया जा सका इतिहास जो बनाये जिनके बिगुल फुकने पर 90 वर्ष तक भारत के नरनारियां अंग्रेजों से लोहा लिया गर्दन कटवाए | जितने बार कोड़ा लगा उतने ही बार बन्दे मातरम कहा यह इतिहास एक मात्र आर्य समाज को छोड़ किसी के पास भी नहीं है |

क्या आज हमारे बच्चों को यह पढाया गया वह कौन थे ? इस स्वतंत्रता की लडाई में 90 वर्षों में दयानंद की फ़ौज के कितने लोग मरे या भारत माता के कितने सपूत मरे ? यह नहीं पढाया जा रहा है बल्कि यह बताया जा रहा है हमरे बच्चों को = सावर मति के सन्त तूने करदिया कमाल -= आज़ादी हमें देदी तूने बिना खडग बिना ढाल |

क्या यही सच्चाई है ? क्या यह उपहास नहीं है उन वीरों के साथ जिन्हों ने वलिदान दिया है ? इसी लिए आज इस राष्ट्र को वेदउपदेशों को अमल में लाना पड़ेगा सम्पूर्ण राष्ट्र को बनाने के लिए = राष्ट्र निर्माण पार्टी का सदस्य बनें सत्य के साथ जुड़ें | धन्यवाद के साथ प्रवक्ता राष्ट्र निर्माण पार्टी =
महेन्द्रपाल आर्य = 16 /7 /19

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