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इसलाम जगत के आलिमों से कुछ सवाल |

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|| इसलाम के आलिमों से कुछ सवाल ||

रोजाना हम सब विभिन्न न्यूज़ चेनलों में देखते और सुनते है, इसलाम के कुछ आलिम कहलाने  वाले बैठ कर सुनाते हैं इस्लाम में दहशतगर्दी की इजाजत नहीं है | इस्लाम किसी को क़त्ल करना नहीं सिखाता है इसलाम की तयलीम है एक ने किसी का क़त्ल किया तो पूरी मानवता की क़त्ल की  जो कुरान के सूरा मायदा के आयात न० 32 में कहा गया क्या है देखें प्रमाण

>مِنْ أَجْلِ ذَٰلِكَ كَتَبْنَا عَلَىٰ بَنِي إِسْرَائِيلَ أَنَّهُ مَن قَتَلَ نَفْسًا بِغَيْرِ نَفْسٍ أَوْ فَسَادٍ فِي الْأَرْضِ فَكَأَنَّمَا قَتَلَ النَّاسَ جَمِيعًا وَمَنْ أَحْيَاهَا فَكَأَنَّمَا أَحْيَا النَّاسَ جَمِيعًا ۚ وَلَقَدْ جَاءَتْهُمْ رُسُلُنَا بِالْبَيِّنَاتِ ثُمَّ إِنَّ كَثِيرًا مِّنْهُم بَعْدَ ذَٰلِكَ فِي الْأَرْضِ لَمُسْرِفُونَ [٥:٣٢]

इसी सबब से तो हमने बनी इसराईल पर वाजिब कर दिया था कि जो शख्स किसी को न जान के बदले में और न मुल्क में फ़साद फैलाने की सज़ा में (बल्कि नाहक़) क़त्ल कर डालेगा तो गोया उसने सब लोगों को क़त्ल कर डाला और जिसने एक आदमी को जिला दिया तो गोया उसने सब लोगों को जिला लिया और उन (बनी इसराईल) के पास तो हमारे पैग़म्बर (कैसे कैसे) रौशन मौजिज़े लेकर आ चुके हैं (मगर) फिर उसके बाद भी यक़ीनन उसमें से बहुतेरे ज़मीन पर ज्यादतियॉ करते रहे |

 

लोग अक्सर इन्ही आयातों का हवाला देते हैं, और सीना ठोक कर इस्लाम की तारीफ़ करते हैं उन ISI और आतंक वादियों को कोसते हैं | कल सुमित अवस्थी जी का हमतो पूछेंगे वाली कार्यक्रम जो रात्रि 8 से 9 तक का था, जिसे मैं देखा जिसमें दो पाकिस्तान वाले भी थे | इसमें अहमद रजा नामी एक मौलाना भी थे और वह यह कह रहे थे की हजरत{स:}लोगों के आँसू बहाना को सहन नहीं करते थे | जिसमें एक BJP नेता मुसलमान भी इसमें शामिल थे जो खुलकर इसलाम और हजरत साहब पर बोल रहे थे |

मेरा सवाल आप इसलाम के जानकारों से है, की आप लोग जो कह रहे हैं, वह सही है ? अथवा कुरान हदीसों में जो पढ़ाया जाता है वह सत्य है ? कुरान में देखें क्या बताया गया है ?

यही बात थी तो हजरत साहब की दांत कैसी टूटी थी, उहुद में क्या हो रहा था जो अपनी दांत तुडवा डाले ? अबुजहल को मारा कौन, उन्हों ने अपनी जिन्दगी में कितनी लड़ाइयाँ लड़ी ? सिर्फ लोगों से इस्लाम कुबूल करवाने की लड़ाई थी या किसी और बात की लड़ाई थी,हजरत जी की और लोगों की ?

 

 

فَإِذَا انسَلَخَ الْأَشْهُرُ الْحُرُمُ فَاقْتُلُوا الْمُشْرِكِينَ حَيْثُ وَجَدتُّمُوهُمْ وَخُذُوهُمْ وَاحْصُرُوهُمْ وَاقْعُدُوا لَهُمْ كُلَّ مَرْصَدٍ ۚ فَإِن تَابُوا وَأَقَامُوا الصَّلَاةَ وَآتَوُا الزَّكَاةَ فَخَلُّوا سَبِيلَهُمْ ۚ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ [٩:٥]

फिर जब हुरमत के चार महीने गुज़र जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ पाओ (बे ताम्मुल) कत्ल करो और उनको गिरफ्तार कर लो और उनको कैद करो और हर घात की जगह में उनकी ताक में बैठो फिर अगर वह लोग (अब भी शिर्क से) बाज़ आऎं और नमाज़ पढ़ने लगें और ज़कात दे तो उनकी राह छोड़ दो (उनसे ताअरूज़ न करो) बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है |

قَاتِلُوهُمْ يُعَذِّبْهُمُ اللَّهُ بِأَيْدِيكُمْ وَيُخْزِهِمْ وَيَنصُرْكُمْ عَلَيْهِمْ وَيَشْفِ صُدُورَ قَوْمٍ مُّؤْمِنِينَ [٩:١٤]

इनसे (बेख़ौफ (ख़तर) लड़ो ख़ुदा तुम्हारे हाथों उनकी सज़ा करेगा और उन्हें रूसवा करेगा और तुम्हें उन पर फतेह अता करेगा और ईमानदार लोगों के कलेजे ठन्डे करेगा |

الَّذِينَ آمَنُوا وَهَاجَرُوا وَجَاهَدُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ بِأَمْوَالِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ أَعْظَمُ دَرَجَةً عِندَ اللَّهِ ۚ وَأُولَٰئِكَ هُمُ الْفَائِزُونَ [٩:٢٠]

जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और (ख़ुदा के लिए) हिजरत एख्तियार की और अपने मालों से और अपनी जानों से ख़ुदा की राह में जिहाद किया वह लोग ख़ुदा के नज़दीक दर्जें में कही बढ़ कर हैं और यही लोग (आला दर्जे पर) फायज़ होने वाले हैं |

قَاتِلُوا الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَلَا بِالْيَوْمِ الْآخِرِ وَلَا يُحَرِّمُونَ مَا حَرَّمَ اللَّهُ وَرَسُولُهُ وَلَا يَدِينُونَ دِينَ الْحَقِّ مِنَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ حَتَّىٰ يُعْطُوا الْجِزْيَةَ عَن يَدٍ وَهُمْ صَاغِرُونَ [٩:٢٩]

अहले किताब में से जो लोग न तो (दिल से) ख़ुदा ही पर ईमान रखते हैं और न रोज़े आख़िरत पर और न ख़ुदा और उसके रसूल की हराम की हुई चीज़ों को हराम समझते हैं और न सच्चे दीन ही को एख्तियार करते हैं उन लोगों से लड़े जाओ यहाँ तक कि वह लोग ज़लील होकर (अपने) हाथ से जज़िया दे |

يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ حَرِّضِ الْمُؤْمِنِينَ عَلَى الْقِتَالِ ۚ إِن يَكُن مِّنكُمْ عِشْرُونَ صَابِرُونَ يَغْلِبُوا مِائَتَيْنِ ۚ وَإِن يَكُن مِّنكُم مِّائَةٌ يَغْلِبُوا أَلْفًا مِّنَ الَّذِينَ كَفَرُوا بِأَنَّهُمْ قَوْمٌ لَّا يَفْقَهُونَ [٨:٦٥]

ऐ रसूल तुम मोमिनीन को जिहाद के वास्ते आमादा करो (वह घबराए नहीं ख़ुदा उनसे वायदा करता है कि) अगर तुम लोगों में के साबित क़दम रहने वाले बीस भी होगें तो वह दो सौ (काफिरों) पर ग़ालिब आ जायेगे और अगर तुम लोगों में से साबित कदम रहने वालों सौ होगें तो हज़ार (काफिरों) पर ग़ालिब आ जाएँगें इस सबब से कि ये लोग ना समझ हैं |

 

मैं आज दुनिया वालों के सामने रख रहा हूँ और इस्लाम के जानकारों से पुच रहा हूँ सही क्या है कहाँ सही है आप लोगों के पास अथवा कुरान में अल्लाह ने जो फ़रमाया ? जब की मैंने नमूना पेश किया हूँ बहुत सारा प्रमाण कुरान में मौजूद हैं इसी प्रकार हदीसों में भी मौजूद हैं |

जवाब के इन्तेजार में महेंद्रपाल आर्य =वैदिकप्रवक्ता = 18 =7 =17 = अल्लाह का कौनसा कहना सही है पहले जिस आयात को दिखाया गया या फिर नीचे जिन आयातों को दिखाया गया ?

 

 

 

 

 

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