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इस्लाम व्यक्ति पूजा का नाम है हज प्रक्रिया में देखें |

Mahender Pal Arya
24 Aug 22
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इस्लाम व्यक्ति पूजा का नाम है,हज प्रक्रिया में देखें ||
ज्वाल दोपहर के बाद, जहाँ मस्जिदे नम्रा बनी है। यहाँ जोहरऔर असर की नमाज जमात के साथ पढ़ना। वकुफ अरफात हज का अहम् तरीन रुक्न है। अगरचे यह रह जाये तो हज पूरा नहीं हो सकता। वकुफ अरफात का वक्त जवाल आफताब के बाद से अगले दिन 10 जिल्हज कि सुबह तक है। अरफात में इन्सान चाहे वकुफ कर सकता है अगर, यह ‘मुस्तहब है, कि जहां तक हो सके, जबल एलालाल (जिसे अब जबल रहमत कहा जाता है) इसमें जो मुख्य-मुख्य कार्य हैं उसी को लिखता हूँ।
अरफा के दिन दोपहर को रवाना होना, अरफात में सवारी पर वकुफ करना, अरफात में जमय बीन सलातीन अर्थात् जमा होकर नमाज करना, अरफात में मुख्तसर खुतबा पढ़ना, अरफात से वापसी पर किसतरह चला जाये, अरवाह अपने वालिद से रवायत करते हैं, कि हुज्जतुल वाद्य के मौके पर रसूले खुदा अरफात से वापसी के वक्त किस तरह चल रहे थे? जवाब दिया तेज-तेज जब खुला मैदान आ जाता तो कदम तेज करते।
फिर अरफात और मजदल्फा में उतरना अरफात से वापसी के वक्त हुजूर का सुकून से चलने का हुकुम देना। मजदल्फा में जमा, बिस्स्लातिन जमा होकर नमाज पढ़ना। जो शख्स इन दोनों नमाजों में, हर एक के लिए अलग-अलग अजान और इकामत कहे। इसमें भी भिन्न-भिन्न लोगों की कही हुई बातों को जो हदीस कहा जाता है, यानि कुल मिलाकर सब जगह यह दिखाया गया सब लोगों के राय से |
कि हजरत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने जो किया वही करना, या उसीको अमल में लाना आदि। हजरत उमर बिन मैमुना रजीअल्लाहु रवायत करते हैं कि मैं उमर के पास मौजूद था, उन्होंने मुज्दलफा में सुबह नमाज पढ़ी ठहर कर कहा मुशरेकीन तुलुय आफताब तक वापस नहीं होते हुजूर ने उनमुशरेकीन कि मुखालिफत की, और तुलुय आफताब से पहले ही वापस आगये। नहर (जबह करना) इसदिन सुबह की रमी जुमर के वक्त तल्बियाह और तकबीर कहना। अर्थ ऊपर लिख चूका हूँ।
इब्ने अब्बास से रवायत है कि मुज्दल्फासे मीना तक, अब्बास को अपने साथ बिठाया, जुमरह उक्बह की रमी करने तक लब्बैक (अल्ल मै हाजिर हूँ) कहते रहे। कुरान में अल्लाह ने जिक्र फरमाया..देखें
وَأَتِمُّوا۟ ٱلْحَجَّ وَٱلْعُمْرَةَ لِلَّهِ ۚ فَإِنْ أُحْصِرْتُمْ فَمَا ٱسْتَيْسَرَ مِنَ ٱلْهَدْىِ ۖ وَلَا تَحْلِقُوا۟ رُءُوسَكُمْ حَتَّىٰ يَبْلُغَ ٱلْهَدْىُ مَحِلَّهُۥ ۚ فَمَن كَانَ مِنكُم مَّرِيضًا أَوْ بِهِۦٓ أَذًۭى مِّن رَّأْسِهِۦ فَفِدْيَةٌۭ مِّن صِيَامٍ أَوْ صَدَقَةٍ أَوْ نُسُكٍۢ ۚ فَإِذَآ أَمِنتُمْ فَمَن تَمَتَّعَ بِٱلْعُمْرَةِ إِلَى ٱلْحَجِّ فَمَا ٱسْتَيْسَرَ مِنَ ٱلْهَدْىِ ۚ فَمَن لَّمْ يَجِدْ فَصِيَامُ ثَلَـٰثَةِ أَيَّامٍۢ فِى ٱلْحَجِّ وَسَبْعَةٍ إِذَا رَجَعْتُمْ ۗ تِلْكَ عَشَرَةٌۭ كَامِلَةٌۭ ۗ ذَٰلِكَ لِمَن لَّمْ يَكُنْ أَهْلُهُۥ حَاضِرِى ٱلْمَسْجِدِ ٱلْحَرَامِ ۚ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّ ٱللَّهَ شَدِيدُ ٱلْعِقَابِ ١٩٦
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तथा ह़ज और उमरह अल्लाह के लिए पूरा करो और यदि रोक दिये जाओ[, तो जो क़ुर्बानी सुलभ हो (कर दो) और अपने सिर न मुँडाओ, जब तक कि क़ुर्बानी अपने स्थान तक न पहुँच1 जाये, यदि तुममें से कोई व्यक्ति रोगी हो या उसके सिर में कोई पीड़ा हो (और सिर मुँडा ले), तो उसके बदले में रोज़ा रखना या दान2 देना या क़ुर्बानी देना है और जब तुम निर्भय (शान्त) रहो, तो जो उमरे से ह़ज तक लाभान्वित3 हो, वह जो क़ुर्बानी सुलभ हो, उसे करे और जिसे उपलब्ध न हो, वह तीन रोज़े ह़ज के दिनों में रखे और सात, जब रखे, जब तुम (घर) वापस आओ। ये पूरे दस हुए। ये उसके लिए है, जो मस्जिदे ह़राम का निवासी न हो और अल्लाह से डरो तथा जान लो कि अल्लाह की यातना बहुत कड़ी है। 2/196
और सिर्फ अल्लाह ही के वास्ते हज और उमराह को पूरा करो अगर तुम बीमारी वगैरह की वजह से मजबूर हो जाओ तो फिर जैसी कुरबानी मयस्सर आये (कर दो) और जब तक कुरबानी अपनी जगह पर न पहुँच जाये अपने सर न मुंडवाओ फिर जब तुममें से कोई बीमार हो या उसके सर में कोई तकलीफ हो तो (सर मुंडवाने का बदला) रोज़े या खैरात या कुरबानी है।
पस जब मुतमईन रहो तो जो शख़्स हज तमत्तो का उमरा करे तो उसको जो कुरबानी मयस्सर आये करनी होगी और जिसे कुरबानी ना मुमकिन हो तो तीन रोज़े ज़ामान ऐ हज में (रखने होंगे) और सात रोज़े जब तुम वापस आओ ये पूरा दहाई है ये हुक्म उस शख़्स के वास्ते है जिसके लड़के वाले मस्जिदुल हराम (मक्का) के बाशिन्दे न हो और अल्लाह से डरो और समझ लो कि अल्लाह बड़ा अज़ाब वाला है ।
काई दिन आप लोगों के बीच नहीं था आज आते ही आप लोगों से जुड़ गया |
महेन्द्र पाल आर्य 24 /8 /22