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इस्लाम से मेरा नाता कैसा टुटा

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|| पूर्व इमाम के कलम से वेद और, कुरान की समीक्षा ||
लेखक =पण्डित = महेन्द्रपाल आर्य
पूर्व इमाम बड़ी मस्जिद=बरवाला=जिला=बागपत=निकट=बड़ौत=उ०प्र०
1= मैं कुरान से दूर कैसहुवा ? ============
2= परमात्मा के ज्ञान की कसौटी क्या है ? =====
3= क्या अल्लाह और ईश्वर में भेद है ? ======
4= अल्लाह के 99 नाम और उसके अर्थ को देखें ===
5= ईश्वर के 100 नाम और उसके अर्थ को भी देखें ======
6 = कुरान की मन घडन्त किससे को देखे =======
7= कुरान ही गवाह है वह किस्से की किताब है =======

|| मैं कुरान से दूर कैसे हुवा ||
मैं बचपन से सोचता था,कि कुरान के अतिरिक्त और कोई धर्म पुस्तक नही, और इस्लाम को छोड़ कर दूसरा कोई धर्म ही नही है | क्योंकि बचपन से यही शिक्षा मुझे बिरासत में मिली थी | परन्तु 32 वर्ष आयु के बाद,जब मैं एक पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश, को देखा, जिस में वैदिक मान्यता वैदिक सिद्धांत,और वैदिक ऋषि परम्परा को पढ़ कर देखा, तो मेरी ऑंखें खुली की खुली रह गई | कारण मैं अब तक यही जानता था,कि कुरान ही एक मात्र किताब है धरती पर जो आसमानी है,और अल्लाह का दिया हुवा मानव मात्र के लिए उपदेश है |अथवा यही ईश्वरीय एक मात्र ज्ञान है,जो आस मानी है, उपर से उतरा हुवा,कुरानपर सवाल करना,अथवा सन्देह संभव नही है | अब वैदिक मान्यता, ईश्वर और ईश्वरीय ज्ञान क्या है किसे ईश्वरीय ज्ञान कहा जाना चाहिए उसकी मान्यता क्या है कसौटी क्या है, इन सभी विषयों को जब भली भांति सत्यार्थ प्रकाश व ऋग्वेदादी भाष्यभूमिका ऋषि दयानन्द रचित पढने लगे, और उसके गहराई में जब डूबे तो मेरे मनमें एक के बाद एक जिज्ञासा, होती गई और उसका जवाब भी उन्ही वैदिक मान्यता से हमें मिलती ही चली गई आगे क्या है, और क्या है ,इस लालसा में डुबकी लगाते ही रहे |
आज 35 वर्षीं से अनेक कुरान वेत्ताओं से शैखुल हदीस {हदीसों के माहिर }और मुफ़स्सिरे कुरान {कुरान के भाष्यकार} इस्लाम जगत के अनेक आलिमों से मिले और बहुतों से पत्राचार किया, किन्तु आज तक मेरे जिज्ञासा मन को शांत नही कर सके और ना आज तक कोई सन्तोष प्रद उत्तर ही दे पाए |
पिछले दिनों 85 से 90 तक मैं कोलकाता में बंगाल आर्य प्रतिनिधि सभामें, सार्व देशिक सभा द्वारा नियुक्त था | अनेक समय से मैं बंगाल से बाहर दिल्ली में रहा, जब 85 में कोलकाता में रह कर वैदिक धर्म का प्रचार कार्य में लगे रहे, 42 शंकर घोष लेंन कोलकाता, 6= बंगाल सभा की बिल्डिंग में रहता था | प्रचार कार्य के लिए एक दिन मैं बड़ाबाजार आर्य समाज में जाने लगा, मुझे रास्तेमें एक पुराने सहपाठी मिले, उसने मुझे धोती पहने देख कर कोसने लगा|
कहा तू एक मौलवी का बेटा,और खुद भी अलिम हो कर यह काफिराना लिबास में तू घूम रहा है ? क्या तुझे यह मालूम नही कि {मन तश्ब्बाहा बेकौमिन} का फतवा लगेगा तेरे उपर? من تشبها بقوم } {अर्थात जो मुसलमान जिस कौम के लिबास {परिधान} में,दुनिया में रहेगा, अल्लाह तायला हश्र के दिन,उसी कौमके साथ उसे उठाएंगे |
मैंने कहा बिलकुल ठीक बात है, पर मैं तुझसे पूछता हूँ कि यह धोती काफिराना लिबास है |और यह पैन्ट,शर्ट,कोर्ट,टाई, आदि,यह लिबास किन लोगोंका है भाई? क्या आज तक तूने अपने किसी भाई को अथवा अपने कौम के लोगों को बताया है, की भाई यह ईसाइयत वाला लिबास आप लोग किसलिए पहनते है ?
भारत में रहकर भारतीय परिधान को क्यों नही पहनते,भारत में रहकर इंग्लॅण्ड, व.लंडन वाला लिबास पहना जा सकता है, अरबियन लिबास पहना जा सकता है, पाकिस्तानी शलवार शूट पह्नाजा जकता है | किन्तु भारत में रहकर भारतीय परिधान पहनना काफिराना लिबास कह कर क्या तू भारत का अपमान नही कर रहा है ?
उसने कहा,भारत में तो मना नही है, इन परिधान में,मैंने कहा मेरे भाई जरा ठन्डे दिमाग से सोच | कि अगर मक्का में मदीना,में कोई धोती पहन कर जाता है तो उसे, वहां रोका जायगा कि नही ? पहली बात तो कोई भी गैर मुसलिम को मक्का या मदीना में जाने ही नही दिया जायगा,वहां कपड़े की बात ही क्या है काफिरों को वहां जाने नहीं दिया जायगा | तू कपड़े की बात क्या कर रहा हैं | अब वहां एक काफिराना लिबास में कोर्ट, पैन्ट, टाई वाला जा सकता है,किन्तु एक धोती वाला इनसान को जाने नही दिया जायगा | उसने कहा यह बात तो है, मैंने कहा, भारत में तू अरबियन लिबास में रहता है अथवा इंगलैंड वाला लिबास में रहता है, आज तक तुझे किसीने कहा या पूछा कि यह लिबास कौन लोगों का है ?
मैंने कहा इससे अंदाजालगा की तुम इस्लाम वालों को भारतीय लिबास{परिधान} ही पसन्द नही तो भारतीय लोगों को पसन्द करना कैसे संभव होगा ? कितनी संकीर्णता है, तुम इस्लाम वालों में, और इन भारत जैसे काफ़िर मुल्कवालों को भी तुम सहन नही करते | भारत के लोग कितने उदार हैं, यहाँ के लोगों में नफरत ही नही है पर तुम इस्लाम वाले इसी देश में रह कर भी इस देश के परिधान को अपनाने को तैयार नही हो |
छोड़ उस अरब को यही भारत में ही बता की धोती पहनकर कोई मस्जिद में जाना चाहता है क्या तू उसे मस्जिद में घुसने देगा अथवा बाहर से उसका लाँग उतरवाएगा ? यानी कोई भी धोती वाला लाँग उतारे बिना मस्जिद में घुस नही सकता, चाहे कोई धोती वाला मुसलमान भी होगा उसे भी लांग खोल कर ही मस्जिद में घुसना होगा | बता यह कौनसी मानसिकता की बात है, की धोती से कितना नफरत है ? फिर तुमलोग भाईचारे की बात करते हो ? तुम लोगों को शर्म होना चाहिए, की इन भारतियों से किस प्रकार की नफरत तुम्हें सिखाया इस्लाम ने ? फिर भी तुम कहते हो इस्लाम का अर्थ शांति है, भाईचारा है ? अरे मानव को मानवों से नफरत करना तो इस्लाम ही सिखाया है मुसलमानों को मुसलमान छोड़ काफिरों से, यहूदी, नसरानियों से दोस्ती तक रखने को मना किया है अल्लाह ने, देखो अपना कुरान |
सूरा- इमरान -28= सूरा- निसा =144 = सूरा मायदा =51+57 =और भी है | मेरी लिखी पुस्तक वेद और कुरान की समीक्षा से, इसे सही ढंग से पढ़ें और विचार करें, दुनिया में नफरत कौन फैलाया है ? प्रमाण प्रस्तुत भी कर देता हूँ जिस से कि किसी को सन्देह ना रह जाये |
لَا يَتَّخِذِ الْمُؤْمِنُوْنَ الْكٰفِرِيْنَ اَوْلِيَاۗءَ مِنْ دُوْنِ الْمُؤْمِنِيْنَ ۚ وَمَنْ يَّفْعَلْ ذٰلِكَ فَلَيْسَ مِنَ اللّٰهِ فِيْ شَيْءٍ اِلَّآ اَنْ تَتَّقُوْا مِنْھُمْ تُقٰىةً ۭ وَيُحَذِّرُكُمُ اللّٰهُ نَفْسَهٗ ۭ وَاِلَى اللّٰهِ الْمَصِيْرُ 28 ؀
ईमानवालों को चाहिए कि वे ईमानवालों से हटकर इनकारवालों को अपना मित्र (राज़दार) न बनाएँ, और जो ऐसा करेगा, उसका अल्लाह से कोई सम्बन्ध नहीं, क्योंकि उससे सम्बद्ध यही बात है कि तुम उनसे बचो, जिस प्रकार वे तुमसे बचते है। और अल्लाह तुम्हें अपने आपसे डराता है, और अल्लाह ही की ओर लौटना है | सूरा-न० 3 =इमरान=आयत = 28 =
يٰٓاَيُّھَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لَا تَتَّخِذُوا الْكٰفِرِيْنَ اَوْلِيَاۗءَ مِنْ دُوْنِ الْمُؤْمِنِيْنَ ۭ اَتُرِيْدُوْنَ اَنْ تَجْعَلُوْا لِلّٰهِ عَلَيْكُمْ سُلْطٰنًا مُّبِيْنًا ١٤٤؁
ऐ ईमान लानेवालो! ईमानवालों से हटकर इनकार करनेवालों को अपना मित्र न बनाओ। क्या तुम चाहते हो कि अल्लाह का स्पष्टा तर्क अपने विरुद्ध जुटाओ ? सूरा=न०=4=निसा= आयत =144 =
يऐ ईमान लानेवालो! तुम यहूदियों और ईसाइयों को अपना मित्र (राज़दार) न बनाओ। वे (तुम्हारे विरुद्ध) परस्पर एक-दूसरे के मित्र है। तुममें से जो कोई उनको अपना मित्र बनाएगा, वह उन्हीं लोगों में से होगा। निस्संदेह अल्लाह अत्याचारियों को मार्ग नहीं दिखाता | सूरा न०=5=मायदा=आयत 51=
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَتَّخِذُوا الْيَهُودَ وَالنَّصَارَىٰ أَوْلِيَاءَ ۘ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَاءُ بَعْضٍ ۚ وَمَن يَتَوَلَّهُم مِّنكُمْ فَإِنَّهُ مِنْهُمْ ۗ إِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ [٥:٥١]
ऐ ईमान लानेवालो! तुमसे पहले जिनको किताब दी गई थी, जिन्होंने तुम्हारे धर्म को हँसी-खेल बना लिया है, उन्हें और इनकार करनेवालों को अपना मित्र न बनाओ। और अल्लाह का डर रखों यदि तुम ईमानवालेَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَتَّخِذُوا الَّذِينَ اتَّخَذُوا دِينَكُمْ هُزُوًا وَلَعِبًا مِّنَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ مِن قَبْلِكُمْ وَالْكُفَّارَ أَوْلِيَاءَ ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ [٥:٥٧]
ऐ ईमानदारों जिन लोगों (यहूद व नसारा) को तुम से पहले किताबे (ख़ुदा तौरेत, इन्जील) दी जा चुकी है उनमें से जिन लोगों ने तुम्हारे दीन को हॅसी खेल बना रखा है उनको और कुफ्फ़ार को अपना सरपरस्त न बनाओ और अगर तुम सच्चे ईमानदार हो तो ख़ुदा ही से डरते रहो |

भाई मैंने तुम्हें जो बताया झूठ है या सत्य तुम अपनी कुरान से पुछो अपने अल्लाह से पुछो यह आयत कुरान का है अथवा नही ? मैं तुम्हें एक घटना सुनाता हूँ, पिछले 1985 की बात है हरियाणा का एक व्यक्ति जो सौदिया में नौकरी करता था | वह आर्य समाजी था राम कुमार भरद्वाज नाम है उनका, जो एक दिन बाज़ार में खरीदारी के लिए निकला था उसके हाथ में सत्यार्थप्रकाश नामी किताब थी | जिस दुकान से वह कुछ सामान लेना चाहा, अपनी पुस्तक दुकान के किसी सामान पर रख कर अपना लेने वाला सामान ले रहा था | दुकानदार ने सत्यार्थप्रकाश के रखने पर उसे पकड़ लिया, और पुलिस को दे दिया | कई दिनबाद इस गलती के कारण सौदी सरकार ने उसे सजाये मौत सुनादिया | उनदिनों सार्वदेशिक सभाप्रधान श्रीलाला रामगोपाल जी शालवाले ने,भारत के प्रधान मन्त्री राजीवगाँधी से, सम्पर्क कर उस राम कुमार भरद्वाज को उसी रात में ही दिल्ली मंगवाया था | यह है तुम्हारा इस्लाम कितने संकीर्ण विचार है और कितना घटिया दिमाग है जरा सोचो तो |
मैं अपने साथी से बात करते करते, बड़ा बाज़ार आर्य समाज तक पहुंच गया, उस से पूछा तुम्हारे पास समय है आर्य समाज में मेरी तकरीर सुनोगे ?उसने कहा जरुर सुनेंगे तुम ने अबतक जो कुछ सुनाया वह विचारणीय है, और तुम्हारा तकरीर सुनेंगे तो और भी अच्छी बात होगी ना |

मैं अपने साथ उसे लेकर 1 न० मुन्शी सदरुद्दीन लेन, बड़ा बाज़ार आर्य समाज गया जहाँ मेरा प्रवचन था | मेरा प्रवचन मानवता पर था, की हम मानव क्यों और कैसे है ? क्या खाने पीने वाले का नाम मानव है, कपड़ा पहनने वाले का नाम मानव है ? मानव नाम हमें किस ने दिया आदि |
शास्त्र का कहना है मत्ववा कर्मणि सिब्ब्ते = अर्थात मानव वही है जो विचार पूर्वक काम करे विचारवाण, विचारशील का नाम मानव है | धरती पर हम मानव बन कर नहीं आये, हमें दुनिया मेंआकर ही मानव बनना पड़ता है | जैसा मेरे सामने यह माइक है यह लोहे का बना है अथवा लोहे से बना है, लोहा बनता है खदान में, खदान से जब लोहा निकाला गया उसका नाम,माइक नही था | उसको जब तक शोधित नही करेंगे, अथवा संस्कारित नही करेंगे, उसपर संस्कार जब तक नही डालेंगे उसका नाम माइक नही पड़ेगा |
हर वस्तु के साथ यही बात होगी, जैसा हम यह कपड़ा पहने हैं, इसका नाम कब पड़ा ? जब की यह बना है रुई से, अथवा कपास से | कपास नाम उसका था,जब उसे बोया गया,या खेत में रहा तो कपास ही था | काट कर घर ले आये सुखाया, उस फली में से जब उसको निकला नाम बदला रुई बन गया | उससे धागा बना उससे कपड़ा बना,अबभी उसका नाम कुर्ता नही बना | उस कपड़े को दर्जी को दिया उसने कपड़े को काट छांट कर बना दिया कुर्ता | ठीक इसी प्रकार हम धरती पर मानव बन के नही आये, जब तक हमारे उपर संस्कार नही पड़ेगा तो हमारा नाम मानव नही होगा | इसलिए परमात्मा का उपदेश है की मनुर्भव:{मनुष्यबनो } |
यह है वैदिक मर्यादा,धरती पर आने के बाद उसपर संस्कार डाला जाता है जब वह संस्कारित हो गया तभी उसका नाम मानव पड़ता है या मानव कहलाता है | यह परम्परा सिर्फ और सिर्फ वैदिक मान्यता अनुसार ही है | कुरान में संस्कार की कोई बात नही है,और.ना.संस्कार सिखाया अथवा बताया गया हो | कुरान का कहना है, अल्लाह ने इनसान बनाया, सूरा न० 55=आयत,3
خَلَقَ الْاِنْسَانَ |3-55 اس نے انسان کو پیدا کیا۔
He has created man. | उसी ने मनुष्य को पैदा किया; | सूरा –रहमान 55=आयत 3 =
अब यहाँ एक बात यह भी जरूरी हो गया, मैं इस्लाम वालों से सवाल करता हूँ,कि जब अल्लाह ने इनसान को बनाया, जो कुरान में देखा | फिर यह मुसलमान किसने बनादिया ? दूसरी बात मेरी यह भी होगी,कि अल्लाह ने जब हमें इनसान बनाकर भेजा,तो जाते समय भी हमें,इनसान ही बन कर जाना चाहिए |
दुर्भाग्य यह है की हम धरती पर आये कुरान अनुसार, इनसान ही, किन्तु अब जब हम धरती को छोड़ कर जारहे हैं तब मुसलमान बन कर जा रहे हैं, हिन्दू बनकर जा रहे हैं ईसाई बन कर जा रहे हैं, पर आये तो हम इनसान बनकर- किन्तु जाते समय हम, कोई हिन्दू, कोई मुसलमान,कोई ईसाई यही बन कर जा रहे हैं |
अब यहाँ सवाल खड़ा है जब अल्लाह ने हमें इनसान भेजा, फिर हमें मुसलमान किसने बनादिया ? इसका सीधा जवाब है, की दुनिया में अनेक ऐसे दुकान दार आये जिन्हों ने हमें मानव बनाने के बजाय किसी ने कुछ बनाया किसी ने कुछ बनाया |
वेद यही कहता है की धरती पर आने के बाद जब तुम्हें संस्कारित किया गया तुम इनसान बने, तो जाते समय भी तुम्हें इनसान ही बनकर जाना चाहिए |
पर तुम इनसान बनके नहीं जा सके जाते समय शव देख कर ही पता लगता है यह जनाजा किनका है ? कोई हिन्दू का है, मुसलमान, या फिर ईसाई का ?
यह दोष ह्म अपने उपर ही नही किन्तु दुनिया के बनाने वाले पर भी लगा दिया | उसने जो उपदेश हमें दिया था,की दुनिया में जाकर इनसान बनो और इंसानियत का काम पूरा करके लौटो | किन्तु जाते समान हम इनसान बन कर नही जा पाए और ना हमारा वह इंसानियत वाला काम ही पूरा हुवा |
इन्सानियत वही है जो दुनिया में जिए तो एक पेड़ ऐसा लगायें जिसके नीचे आते ही प्राणी मात्रको ठंडक पन का अहसास हो, उसे शीतल छाया मिले | उसे ठंडी ठंडी हवा लगे, सुख का अनुभव करे उसके कष्ट दूर हों, यही काम इनसान के है |
और अगर दुनिया में कांटे बोयेंगे तो वह हमें चुभेंगा औरों को भी परेशान करेंगा | फिर दुनिया से जब हम जाएँ तो कोई पेड़ ऐसा लगाकर जाएँ कि हमारे ना रहने पर भी वह पेड़ औरों को भी सुख दे,औरों का दु:ख हरण करें, इसी का नाम ही इन्सानियत हैं |
मात्र इतना ही नही अगर अल्लाह हमें मुसलमान बनाकर भेजते, तो कोई पहचान ज़रूर देते की यह मुसलमान है | जैसा पहचान यह दुनिया में आकर बनाते है,वह कपड़े,या लिबास की पहचान हो,अपनी शक्ल सूरत की पहचान हो |
इस प्रकार का कोई पहचान ले कर किसी भी परिवार में बच्चा नही आया कोई लम्बी दाढ़ी ले कर नही आया,ना आने वाले के गलेमें क्रास लटकाया, ना कोई जटाजुटों के साथ आया ना किसी के गले राम नामी पट्टा लगा, और ना ही कोई तस्वीर गले में लटकाकर आया |
सब एक ही तरीके से आया, जो भी आया दुनिया में सब का आने का तरीका एक ही है सब ने माँ के उदर से जन्म लिया |आज धरतीपर जितने लोग यह धर्म वह धर्म कह रहे हैं इनकी पहचान इसे दुनिया में आकर हुई है |
किन्तु दुनिया में भेजने वाले ने किसी को भी कोई पहचान दे कर नही भेजा |
इसी लिए हमारे शास्त्र कारों ने कहा { न लिंगम् धर्म कारणम् } अर्थात धर्म के लिए बाहरी किसी भी लिंग चिन्ह की कोई भी ज़रूरत नही होती | इसे दिखावा, आडंबर, बनावटी,पन, ही कहते हैं | बिना बनावट पन के बिना दिखावे के धारण करने योग्य चीजों का नाम धर्म है | धर्म आत्मा का विषय है और मजहब बाहरी दिखावा का विषय है |
आप धार्मिक हैं अथवा नही यह आप किसी को दिखा नही सकते वह आत्मा का विषय होने हेतु बाहर से दिखना सम्भव नही है | मजहब बाहरी विषय है दिखाने के विषय है, दुनिया में देखने से ही इसका पता लगता है | हमें यही नज़ारा देखने को मिलता है |
किसीने तिलक लगाया,और वह भी कई प्रकार के, कहीं आड़ा, कहीं खड़ा, कहीं पर बिंदी है | और मियाँ जी के, एक हाथ है लम्बी दाढ़ी, और कुर्ता टखनों तक है, सर में है अरबी रुमाल, फिर पहने शिल्वार हैं | पादरियों के कुर्ता जिसे कैसक कहते हैं, और गले में जो माला है उसका नाम रोजरी कहा जाता है |
इधर सरदारों का हैं पांच कगार, केश, कृपान, कंघा, कड़ा, कन्च {लंगोट} जैनियों में कोई श्वेताम्बर, कोई दिगम्बर है | किसीने पहना कपड़ा तो कोई नंग प्रचण्ड है | इस प्रकार बौधों में भी किसीने लिय शांतिबेल {घंटी } किसी ने लिया हाथी, फिर कहीं जय भीम है |
यह सभी बाहरी पहचान है धर्मसे इसका कोसों दूर तक कोई संपर्क और सम्वन्ध तक नही है,बल्कि धर्म ने इसी चिन्ह को मना किया है | की इससे धर्मिक नही बना जा सकता, बल्कि मजहबी बना जा सकता है | औरआज इसी मजहबी जूनून में लोग एक दुसरे को क़त्ल करने में संकोच नही करते |
इस प्रकार मेरा प्रवचन खत्म होने के बाद प्रसाद मुझे दिया और मेरे साथी को भी देना चाहा उसने मना कर दिया प्रसाद लेने से | मैंने उसे कुछ नही बोला मैं जानता था की प्रसाद लेना मना है इस्लाम में | बड़ा बाज़ार से निकलकर मैं अपने घर आर्य प्रतिनिधि सभा 42 शंकरघोष लेन के लिए निकला,मैंने उस से पूछा की आज मेरे पास रहना पसन्द करेगा या फिर अपना घर जाना चाहेगा ?
उसने कहा नही मैं आज तेरे पास रहकर बहुत अच्छी तरीके से समझना चाहूँगा की वैदिक सिद्धांत में और क्या क्या है ?
मैंने कहा चल मेरे साथ,फिर हम दोनो बात करते करते अपने घर पहुंचे,जलपान आदि करने के बाद, उसने कहा भाई सच में तेरे प्रवचन को मैंने बड़े ध्यान से सुना और मुझे बहुत बातें समझ में आई की, सही में हमें दुनिया में मानव बनना है | हमें जब अफजलुल, मखलुकात कहा गया तो यह हम इन्सानों के गुण के कारण हमारा नाम पड़ा, तो हमें अपने कामों से ही हमारी अपनी पहचान होनी चाहिए | हमारे कामों पर ही निर्भर है हमारी पहचान, यही हमारा नाम है, यही बतायेगा की सही में हम इनसान हैं या हैवान ? हमारे किये काम ही हमें बताएगा की हम कौन हैं ?
इनसान सिर्फ शक्ल सूरत से नही बनते, किन्तु अपने किये कामों से इनसान अपनी पहचान बनाया | मैंने बताया उसे कि जो लोग अपने को धार्मिक कहते या,बताते हैं उन्हें धर्म के बारे में उसे जानकारी ही नही है,धर्म आचरण का ,अमल करने का विषय हैं | आत्मा का विषय है शरीर का नही, मानले की शक्ल सूरत से लग रहा है, बड़ा ही अल्लाह वाला है यानि परहेजगार,आबिद मालूम पड़ता है | किन्तु वही व्यक्ति, किसी पशु के गले में छुरी चलाता है,और साधारण जो रोज मांस बेचता है चाहे वह गाय का मांस बेचे, अथवा बकरे का | उसे तुम्ही कसाई बोलते हो अथवा समाज के लोग उसे कसाई के नामसे पुकारता है | मेरे भाई तुम यह तो बताव जब ईदुज्जोहा {बकरीद } के दिन हो या किसी बच्चे की अकिका करना हो, उस समय किसी कसाई को बुलाकर नही काटते उस पशुको बल्कि किसी मौलवी को या किसी अलिम से उस पशुको काटते और कटवाते हो,तुम अपने दिल में हाथ रखकर बताव की उस कसाई में और इस मौलाना में क्या अन्तर है ? तुम बता नही सकते क्यों की तुम्हें रोका है इस्लाम ने, की जिस शक्ल सूरत वाले को तुम इतना धार्मिक बता रहे थे, अल्लाह वाला बता रहे थे जिसे तुमने हुजुर-हुजुर कह कर उससे दूयायें मगफिरत चाह रहे थे कि आप अल्लाह से दुवा मांगे हमारा यह काम पूरा हो जाय, और वह काम भी पूरा हो जाय, आप पहुंचे हुए आलिम हैं, इतने बड़े मौलाना हैं, आदि कह रहे थे, उन मौलाना,व् आलिम में और उस कसाई में क्या फर्क है ? एक व्यक्ति रोज पशु काट रहा है तुम उसे कसाई कहते हो और यही मौलाना भी यही पशु काट रहा हैं तुम ही उसे अल्लाह वाला कह रहे हो ? आश्चर्य की बात तो यह भी है भाई, कसाई यही बोल रहा है, बिस्मिल्लाहे अल्लाहुअकबर | और मौलाना साहब भी यही बोल रहे हैं =बिस्मिल्लाहे अल्लाहु अकबर = उस कसाई में और इस मौलवी में क्या फर्क हैं ?
بسم إ لله أ لله أكبر
तुम नहीं बतावगे मैं बताता हूँ सुनो इन दोनों में सिर्फ अन्तर है लिबास का परिधान का, शक्ल सूरत का | कसाई इतनी लम्बी कुर्ते में नही और नहीं अल्लाह का नूर इतनी लम्बी है उसके पास | बाकि, तो हाथ,पैर सब वही है दोनों के पास | जिसे तुम धार्मिक कह रहे हो, उसका धर्म क्या है ? और जो कसाई है उसका धर्म क्या है ? दोनों ही इस्लाम के मानने वाले हैं, फिर भी तुम्ही ने किसी को कसाई कहा,और किसी को अल्लाह वाला धार्मिक कहा |

यही हाल इन हिन्दुओं में भी हैं, पशु काटकर मांस बेचने वाला हिन्दू भी है लोग उसे भी कसाई कहते हैं | और यही पशु को जब,किसी मूर्ति के सामने मन्दिर में मन्दिर का पुजारी काटता है,तो उस पुजारी को लोग पण्डित कहते हैं | यहाँ भी किसी ने उस पण्डित को कसाई नही कहा,जब की दोनों ने एक ही काम किया दोनों ही पशु को काटा एक का नाम कसाई पड़ गया दूसरा भी वही काम करके धार्मिक बनगया |
फिर धर्म क्या है, किसे धर्म बताया जा रहा है, धार्मिक कौन हैं ? आज धरतीपर इसी धर्म के नाम से झगड़ा हो रहा एक दुसरे के खून के प्यासे बने हैं एक दुसरे को खत्म करने को आमादा है और कर भी रहा हैं |
मेरे मित्र ने कहा मैं तुझसे बहुत खुश हूँ विचारों से सहमत भी हूँ | पर तू एक काम कर जितने भी इस प्रकार के सवाल है, वह सभी सवाल तू मुझे पकड़ा और मैं उन्ही सवालों को मोलाना मौला बख्श साहब जो हम दोनों के ही उस्ताद हैं | वह भी इसी मदरसे में पढ़ाते है जहाँ हम दोनों के ही उस्ताद भी उस मदरसे के हेड हैं | मौलाना मौलाबख्श साहब सम्पूर्ण बंगाल के एक जाने माने उलमा में जिनकी गिनती थी | जिन्होंने मुम्ताजुल मुहद्देसिन के अतिरिक्त पुरे बंगाल में MA में प्रथम आये थे गोल्डमेड़ेलिस्ट थे | बंगाल के मदरसा बोर्ड के इन्सपेक्टर भी रहे | अगले दिन मेरे सहपाठी मेरे ही घरसे सीधा अपने मदरसे पहुंचे, मेरे प्रश्नावली को अपने उस्ताद को पकड़ाया |
मौलाना साहब ने मेरे सवालों को पढ़ कर कहा, महबूबअलि को मेरे पास भेज देना मैं उससे मिलना चाहता हूँ | और उसके सवालों को अच्छी तरह समझना भी चाहता हूँ | मैं एक दिन समय निकाल कर उनके पास गया, अपने साथ मेरे एक भांजे को भी ले गया उसका घर भी मौलाना साहब के घरके पास है, उसे भी साथ ले गया | मैं किसी को बीच में गवाह भी रखना चाहता था,खास कर, की आगे जा कर किसी के सामने बता तो सकता हूँ कि हम दोनों आदमी गये थे मौलाना साहब के पास|
मैं जाते ही उनको सलाम किया,मेरे कुछ जानकार उनके पास बैठे थे जो मदरसा आलिया के छात्र थे | मेरे सलाम का जवाब नही दिया उन्हों ने,मैंने पूछा हुजुर आप ने मुझे बुलाया है ? मेरे सलाम का आप ने जवाब ही नही दिया, {फिर कहा हदा कल्लाह} | هذا كلله अर्थ :- अल्लाह हिदायत दे } मैंने कहा हुजुर अल्लाह अगर हिदायत नही देते तो मैं आपके पास कैसे पहुंचता ? कहने लगे तुम्हारे सवालों को मैंने भली प्रकार पढ़ कर देखा | तुमने अल्लाह पर ही सवाल उठाया,तुम ने अपने सारे बच्चों को भी मूर्तिद बनादिया, और खुद भी बन गये |
मैंने कहा हुजुर मै बहक गया, अथवा भटक गया, तो कुरान गवाह हैं | अल्लाह ने फरमाया > माअसाबका मिन हसानतिन,फमिनल्लाह,वमा असाबका मिन साईंयेअतिन फमिन.नफसिक वअरस्ल्नाका लिन्नासे रसूलन व कफा बिल्लाहे शाहिदा | सूरा =निसा 4=आयत =79
مَآ اَصَابَكَ مِنْ حَسَنَةٍ فَمِنَ اللّٰهِ ۡ وَمَآ اَصَابَكَ مِنْ سَيِّئَةٍ فَمِنْ نَّفْسِكَ ۭوَاَرْسَلْنٰكَ لِلنَّاسِ رَسُوْلًا ۭ وَكَفٰى بِاللّٰهِ شَهِيْدًا 79؀
तुम्हें जो भी भलाई प्राप्त” होती है, वह अल्लाह की ओर से है और जो बुरी हालत तुम्हें पेश आ जाती है तो वह तुम्हारे अपने ही कारण पेश आती है। हमने तुम्हें लोगों के लिए रसूल बनाकर भेजा है और (इसपर) अल्लाह का गवाह होना काफ़ी है | सूरा निसा =79

मैंने कहा हुजुर आप यह बताएं कुरान में अल्लाह ने कहा ऐ इनसान तुझे जो कुछ भी खुश हाली भलाई पेश आती है वह अल्लाह की तरफ से है | और जो बदहाली पेश आती है वह तेरे काम के सबब से है गोया अल्लाह काफी हैं | मेरी खुशहाली महज अल्लाह की महर बानी दया दृष्टि ही है, जो अल्लाह का ही फरमान हैं यही सच है, अथवा आप जो कहरहे हैं कुरान के खिलाफ है वह सच है ?उन्होंने अब कुछ भी कहने से इनकार करदिया |
उन दिनों बंगाल हो या फिर दिल्ली, जितने भी बड़े बड़े इस्लाम जगत के आलिम थे, मेरे जानने वाले प्रायः से मिला और उन लोगों के सामने अपना सवाल रखा किन्तु जवाब दे कर आज तक मुझे कोई सन्तुष्ट नही कर सके |

बंगाल के एक और जानेमाने अलिम मौलाना याकूब अली घोलाई साहब हमारे बड़े ही परिचित जो उनदिनों में जमीयते उलमाए हिन्द के बंगाल प्रान्त के अधिकारी थे, उनसे भी एक दिन इसी विषय पर खूब चर्चा हुई | यह लोग वहीं निरुत्तर हो जाते हैं जहाँ अक्ल पर जोर डालना पड़ता है, इन लोगों की मान्यता है सिर्फ मानने की बात है, कुरान हदीसों में जो कुछ भी बताया गया उसी को मानना ही मकसद है | यहाँ हदीस में कहा गया {कुल्लो माजाया बिहिर्रसुलो मिन इन्दील्लाह } } { كل ما جاء بهر رسول من عندللله अब इसमें क्या लिखा है यह छानबीन की कोई भी बातें नही है | सही है अथवा गलत,सही हो सकता है या नहीं इस पर चिन्तन नहीं करना है जो लिखा है वह पत्थर की लकीर है मानना ही है बस, इसका अनेक प्रमाण मैं इसी पुस्तक में ही दूंगा |

मेरा प्रोग्राम था बिहार के पाकुड़ जिला में वहां एक सज्जन मिले मुहम्मद सुलेमान पियादा जिन्हों ने 18 पेज का एक प्रश्नावली, पकड़ाया सत्यार्थप्रकाश पर ही उन्होंने आक्षेप किया था | उनदिनों मैं बंगाल सभा में था, उसकी कापी सभा को दिया, दिल्ली में सार्वदेशिक सभा को भेज दिया | मेरी शुरुयात ही थी मैंने सोचा आर्य समाज के अधिकारीयों से जवाब लिया जाय, तो ठीक रहेगा | उस प्रश्नावली को सभी प्रतिनिधि सभाको भेजा दिया, और एक प्रति मैं डॉ0 श्रीराम आर्य कासगंज =एटा =उ० प्र० को भी भेज दिया | उनसे मेरा सम्पर्क बहुत ही अच्छा रहा जब मैं गुरुकुल इन्द्रप्रस्थ में रहता था, उनके कार्यक्रम में मैं दो बार जा चूका था | उन दिनों सम्पूर्ण आर्यजगत में वही एक को मैंने देखा किसी विरोधी का कोई भी लेख वेद के खिलाफ या वैदिक मान्यता के खिलाफ कहीं किसी ने कुछ भी लिखा हो उन सबका जवाब डॉ0 श्रीराम जी ही देते थे |

मेरे सामने की बात है मेरठ विश्वविद्यालय का एक प्रोफेसर जिनका टाइटिल गर्ग था उन्हों ने ऋषि दयानन्द को अपशब्द कहते हुए एक पत्र मेरे गुरु जी अमर स्वामी जी को भेजा | स्वामी जी ने उसी पत्र को डॉ0 श्रीराम जी को भेज दिया जवाब देने के लिए | उस पत्र का जवाब डॉ0 साहब ने एक पुस्तक लिख कर दिया जिस पुस्तक का नाम है जंगली कुत्ता गर्ग |
तो मैंने वह सवाल नामा जब उन्हें भेज दिया तो सप्ताह के अन्दर उसका जवाब मुझे मिलगया | वह जवाब मैं पाकुड़ जाकर भाई सुलैमान पियादा जी को पकड़ाया |

अब मैं अपना प्रचार कार्य में बिहार के गड़वा गया, पूर्व MLA लक्ष्मीप्रसाद जी के यहाँ उपदेश सुनने के लिए बड़ी भारी भीड़ होती थी | यहाँ एक मौलवी गुलाम मुहम्मद अन्सारी साहब रोज आते थे मुझे सुनने के लिए | उन्होंने एक सवाल लिखकर मंच पर भेजदिया | जिसमें लिखा,आर्य समाज के निमंत्रण पत्र में देखा आप कुरान मजिद को भी जानते हैं | उसके बावजूद आप आर्य मजहब के मुबल्लिग़ हैं, आप सभी मजहब वालों को,अपना उपदेश वेद पर देतेहैं | लिहाजा आप कुरान को जानते हैं,पर मानते नही है, तो कुरान में ही अल्लाह ने ऐसे लोगों के लिए एक चुनौती दी है, जो लोग कुरानको नही मानते उनके लिए जो कुरान के सूरा बकर=2=आयत=23 व 24 है आप जरा उसपर रौशनी डालें |
وَاِنْ كُنْتُمْ فِىْ رَيْبٍ مِّمَّا نَزَّلْنَا عَلٰي عَبْدِنَا فَاْتُوْا بِسُوْرَةٍ مِّنْ مِّثْلِهٖ ۠ وَادْعُوْا شُهَدَاۗءَكُمْ مِّنْ دُوْنِ اللّٰهِ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِيْنَ 23؀
और अगर उसके विषय में जो हमने अपने बन्दे पर उतारा हैं, तुम किसी सन्देह में न हो तो उस जैसी कोई सूरा ले आओ और अल्लाह से हटकर अपने सहायकों को बुलालो जिनकेमौजूद होने पर तुम्हें विश्वास हैं, यदि तुम सच्चे हो | सूरा बकर =23
فَاِنْ لَّمْ تَفْعَلُوْا وَلَنْ تَفْعَلُوْا فَاتَّقُوا النَّارَ الَّتِىْ وَقُوْدُھَا النَّاسُ وَالْحِجَارَةُ ښ اُعِدَّتْ لِلْكٰفِرِيْنَ 24؀
फिर अगर तुम ऐसा न कर सको और तुम कदापि नहीं कर सकते, तो डरो उस आग से जिसका ईधन इनसान और पत्थर हैं, जो इनकार करनेवालों के लिए तैयार की गई है | सूरा बकर =24

मैंने जवाब दिया, की कुरान में अल्लाह ने कहा की मेरी आयतों को ना झुठलाव अगर झूठलाते हो कुरान को,तो कुरान की आयतों का नकल वजन के बराबर कुरान जैसा लेआव | पर याद रखना की कुरान का नकल तुम नही बना सकते हो | इस लिए तुम्हारा ठिकाना होगा जहन्नुम की आग,जो तैयार है काफिरों के लिए | जिस आग का इंधन काफ़िर और पत्थर है |

मेरा जवाब था, मौलाना साहब मैं आप से पूछता हूँ, की कुरान का मानना या ना मानना यह तो मानवों का काम है, वह मानव बुद्धि परख होने के कारण अगर अक्ल से परखता है जो मानने लायक है, तो जरुर मानलेना चाहिए | तो मानव को अपना इख़्तियार है वह मान भी सकता है, और नही भी |अल्लाह किसी को जबरदस्ती मनवा रहे हैं यह कैसी बात हुई ? इधर ना मानने से वह काफ़िर, जिसका ठिकाना जहन्नुम की आग है | पर कुरानी अल्लाह उसी आग का इंधन{जलावन} बताया पत्थर को ? काफ़िर तो उस आग में गया कुरान को नही मानने पर | किन्तु उन बेचारे निर्जीव पत्थर को किस गलती के कारण उसे आग में डाला जायेगा ? और आदमी जहन्नुम के आग में गया तो जलेगा भी | किन्तु उन पत्थर का जलना कैसा संभव होगा ?
आप कहते हैं की अल्लाह ने कहा कुरान का नकल नही बना सकते, कुरान का बनाने वाला मैं हूँ और इसका हिफाज़त करने वाला भी मैं ही हूँ | जैसा कुरान में ही अल्लाह ने कहा, सूरा हीज्र –15 =9
اِنَّا نَحْنُ نَزَّلْنَا الذِّكْرَ وَاِنَّا لَهٗ لَحٰفِظُوْنَ = ہم نے ہی اس قرآن کو نازل فرمایا ہے اور ہم ہی اس کے محافظ ہیں
We, Ourselves, have sent down the Dhikr (the Qur‘an), and We are there to protect it. ||
यह अनुसरण निश्चय ही हमने अवतरित किया है और हम स्वयं इसके रक्षकहैं|

क्या कहा अल्लाह ने, कि इस आयात का उतारने वाला मैं, हूँ और इसकी हिफाज़त, करने वाला भी मैं हूँ |
अब सवाल उठता है की, कुरानानुसार अल्लाह की भेजी हुई किताब कुरान से पहले भी है | जो 1 तौरैत= 2 =जबूर = 3 = इन्जील के नाम से है उन किताबों को भी अल्लाह ने दुनिया में और पैगम्बरों पर उतारी =या भेजी थी |
जो अल्लाह की ही दी हुई किताब थी, तो उन किताबों की हिफाजत करना किन कि जिम्मेदारी थी ?उन किताबों की हिफ़ाजत करना अल्लाह की जिम्मदारी नहीं थी क्या ? तीन किताबों को मनसुख करने के बाद अल्लाह को ध्यान आया की अब इस कुरान की हिफाजत हमें ही करना होगा ?
यह बात इस लिए हुई की लोगों में कहावत है की कुरान से पहले जो तीन किताबें अल्लाह की भेजी हुई थीं, उसमें उस कौम के लोगों ने मिलावट करदी | जैसा पहली किताब हज़रत मूसा पर उतारी अल्लाह ने, और मूसा, कौम के जो लोग थे उन्हों नें अल्लाह की भेजी हुई किताब में मिलावट की | तो अल्लाह ने देखा इस में मिलावट हो गया, तो दूसरी किताब, जबुर नामी हज़रत दाउद पर अल्लाह ने भेजी | इसमें भी दाउद कौम वालों ने मिलावट करदिया | फिर उसके बाद अल्लाह को उसे हटा कर तीसरी पुस्तक या किताब इन्जील को हज़रत इसा पर उतार नी पड़ी |
इत्तेफाक से इन तीसरी किताब में भी हज़रत इसा वालों ने मिलावट कर डाली,तब अल्लाहने चौथी किताब को हज़रत मुहम्मद{स} पर उतारी जिसका नाम कुरान है | और फिर अल्लाह ने कह दिया कुरान में, की इस किताब का नाजिल करने वाला मैं हूँ और इसकी हिफाज़त भी मैं ही करूंगा | जो आयात उपर दर्शाया गया है | सूरा =15 =आयत 9 |
यहाँ इन कुरान वालों से और कुरानी अल्लाह से सवाल करना स्वभाविक नही है क्या ? मनुष्यों के द्वारा अल्लाह की भेजी हुई किताब में मिलावट हो सकती है इसे अल्लाह को पहले से जानकारी नही थी, तीन किताबों में मिलावट हो जाने के बाद अल्लाह को पता लग पाया ? फिर वह अल्लाह अदृश की बातों को कैसे जानते होंगे ? मनुष्य से ईश्वरीय वाणी को बदलना यह एक अजूबी बात है जब की आजतक चंद्रमा, सूर्य, आकाश, धरती और मिटटी की नकल तो छोड़दो एक घांस की भी नकल बनाने का सामर्थ मनुष्यों में नही है |
यहाँ अगर सूर्य चंद्रमा आकाश पाताल सब अल्लाह के बनाये हैं तो श्रष्टि के आदि से यह आज तक बनी हुई है इसे बदलना नही पड़ा और, और अल्लाह ने किताब के रूप में मनुष्य को ज्ञान दिया उसे बदलना पड़ गया इसका क्या कारण है ?
दूसरी बात यह भी है की जो ज्ञान अल्लाह की दी हुई है किताब के तौर पर जिसे तौरैत =जबूर =इन्जील =और कुरान के नाम से है | जिसे बारी,बारी से अल्लाह ने अपने रसूलों या पैगम्बरों पर उतारी तो लोगों ने उसमें कितने दिनों के बाद मिलावट की, फिर उसे कितने दिनों के बाद अल्लाह को पता लगा, और उसे हटा कर दूसरी किताब अल्लाह ने कितने दिनों के बाद उतारी ?
जब की यह चरों पुस्तकों के एक साथ उतारी नहीं गई | और एक के बाद एक उतारी गई तो इन किताबों को उतारने में कुछ काल का अंतर है अथवा नही ? अगर कालका अंतर है जैसा एक किताब को हटा कर दूसरी किताब अल्लाह ने दी | अर्थात तौरेत को हटा कर कितने दिनों के बाद दूसरी किताब उतारी गई, यह बीच में जो अन्तर उस काल में जो मानव थे उन लोगों ने किस किताब पर अमल किया ? अथवा उनलोगों को किसी किताब की जरूरत ही नहीं रही ? या उन लोगों को कोई किताब ना देना यह अल्लाह का पक्षपात नहीं, कीउन्हेंअपना ज्ञान से वंचित रखा ? जब अल्लाह ने कहा मैं जब चाहूँ एक आयातको मनसुख कर दूसरी आयात देता हूँ, तो यहाँ भी प्रश्न है की एक आयात को बदलना कब पड़ेगा जब उसमें कुछ कमी रह जायगी | सूरा बकर =106 को देखें |
مَا نَنسَخْ مِنْ آيَةٍ أَوْ نُنسِهَا نَأْتِ بِخَيْرٍ مِّنْهَا أَوْ مِثْلِهَا ۗ أَلَمْ تَعْلَمْ أَنَّ اللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ [٢:١٠٦]
(ऐ रसूल) हम जब कोई आयत मन्सूख़ करते हैं या तुम्हारे ज़ेहन से मिटा देते हैं तो उससे बेहतर या वैसी ही (और) नाज़िल भी कर देते हैं क्या तुम नहीं जानते कि बेशुबहा खुदा हर चीज़ पर क़ादिर है |
هُوَ الَّذِي أَنزَلَ عَلَيْكَ الْكِتَابَ مِنْهُ آيَاتٌ مُّحْكَمَاتٌ هُنَّ أُمُّ الْكِتَابِ وَأُخَرُ مُتَشَابِهَاتٌ ۖ فَأَمَّا الَّذِينَ فِي قُلُوبِهِمْ زَيْغٌ فَيَتَّبِعُونَ مَا تَشَابَهَ مِنْهُ ابْتِغَاءَ الْفِتْنَةِ وَابْتِغَاءَ تَأْوِيلِهِ ۗ وَمَا يَعْلَمُ تَأْوِيلَهُ إِلَّا اللَّهُ ۗ وَالرَّاسِخُونَ فِي الْعِلْمِ يَقُولُونَ آمَنَّا بِهِ كُلٌّ مِّنْ عِندِ رَبِّنَا ۗ وَمَا يَذَّكَّرُ إِلَّا أُولُو الْأَلْبَابِ
वही (हर चीज़ पर) ग़ालिब और दाना है (ए रसूल) वही (वह ख़ुदा) है जिसने तुमपर किताब नाज़िल की उसमें की बाज़ आयतें तो मोहकम (बहुत सरीह) हैं वही (अमल करने के लिए) असल (व बुनियाद) किताब है और कुछ (आयतें) मुतशाबेह (मिलती जुलती) (गोल गोल जिसके मायने में से पहलू निकल सकते हैं) पस जिन लोगों के दिलों में कज़ी है वह उन्हीं आयतों के पीछे पड़े रहते हैं जो मुतशाबेह हैं ताकि फ़साद बरपा करें और इस ख्याल से कि उन्हें मतलब पर ढाले लें हालाँकि ख़ुदा और उन लोगों के सिवा जो इल्म से बड़े पाए पर फ़ायज़ हैं उनका असली मतलब कोई नहीं जानता वह लोग (ये भी) कहते हैं कि हम उस पर ईमान लाए (यह) सब (मोहकम हो या मुतशाबेह) हमारे परवरदिगार की तरफ़ से है और अक्ल वाले ही समझते हैं | सूरा इमरान= 7 =
وَإِذَا بَدَّلْنَا آيَةً مَّكَانَ آيَةٍ ۙ وَاللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا يُنَزِّلُ قَالُوا إِنَّمَا أَنتَ مُفْتَرٍ ۚ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ [١٦:١٠١]
और (ऐ रसूल) हम जब एक आयत के बदले दूसरी आयत नाज़िल करते हैं तो हालॉकि ख़ुदा जो चीज़ नाज़िल करता है उस (की मसलहतों) से खूब वाक़िफ है मगर ये लोग (तुम को) कहने लगते हैं कि तुम बस बिल्कुल मुज़तरी (ग़लत बयान करने वाले) हो बल्कि खुद उनमें के बहुतेरे (मसालेह को) नहीं जानते | सूरा नहल =101
وَالَّذِينَ آتَيْنَاهُمُ الْكِتَابَ يَفْرَحُونَ بِمَا أُنزِلَ إِلَيْكَ ۖ وَمِنَ الْأَحْزَابِ مَن يُنكِرُ بَعْضَهُ ۚ قُلْ إِنَّمَا أُمِرْتُ أَنْ أَعْبُدَ اللَّهَ وَلَا أُشْرِكَ بِهِ ۚ إِلَيْهِ أَدْعُو وَإِلَيْهِ مَآبِ [١٣:٣٦]
और (ए रसूल) जिन लोगों को हमने किताब दी है वह तो जो (एहकाम) तुम्हारे पास नाज़िल किए गए हैं सब ही से खुश होते हैं और बाज़ फिरके उसकी बातों से इन्कार करते हैं तुम (उनसे) कह दो कि (तुम मानो या न मानो) मुझे तो ये हुक्म दिया गया है कि मै ख़ुदा ही की इबादत करु और किसी को उसका शरीक न बनाऊ मै (सब को) उसी की तरफ बुलाता हूँ और हर शख़्श को हिर फिर कर उसकी तरफ जाना है | सूरा राद =36

وَكَذَٰلِكَ أَنزَلْنَاهُ حُكْمًا عَرَبِيًّا ۚ وَلَئِنِ اتَّبَعْتَ أَهْوَاءَهُم بَعْدَمَا جَاءَكَ مِنَ الْعِلْمِ مَا لَكَ مِنَ اللَّهِ مِن وَلِيٍّ وَلَا وَاقٍ [١٣:٣٧]
और यूँ हमने उस क़ुरान को अरबी (ज़बान) का फरमान नाज़िल फरमाया और (ऐ रसूल) अगर कहीं तुमने इसके बाद को तुम्हारे पास इल्म (क़ुरान) आ चुका उन की नफसियानी ख्वाहिशों की पैरवी कर ली तो (याद रखो कि) फिर ख़ुदा की तरफ से न कोई तुम्हारा सरपरस्त होगा न कोई बचाने वाला |
अब यहाँ एक सवाल और खड़ा हो गया की अल्लाह ने कुरान को अरबी जुबान में दिया अरब वालों को समझने के लिए दिया अपने नबी हज़रत मुहम्मद {स} अरबी भाषी थे उहें समझने के लिए दिया | तो उससे पहले जो किताबें थीं वह किस भाषा में थी ? उस भाषा में क्या दोष था जो उस भाषा को बदला गया, औग भाषा बदली गई तो उन लोगों में भी परेशानी हुई जरुर और वही लोग अल्लाह को कोसते भी जरुर गोंगे की आप कैसे अल्लाह हैं की आप ने हमारी भाषा ही बदल डाली ? अल्लाह पर भुत बड़ा प्रश्न खड़ा होगा, इसे दुनिया वाले सही सही समझ नहीं रहे और न हक़ ही लोगों की बैटन को कलामुल्लाह कह कर मानव समाज में एक मत भेद पैदा किया है |
परमात्मा की ज्ञान की कसौटी में यह देखना और जानना जरूरी है की परमात्मा की ज्ञान की कसौटी क्या है ? ऊपर लिखी गई अथवा दर्शाई गई बातें परमात्मा के ज्ञान में सवालिया निशान लगा दिया | परमात्मा का ज्ञान किसी मुल्क वालों की भाषा में न हो पक्षपात का दोष लगेगा परमात्मा पर | परमात्मा का दिया ज्ञान मानव मात्र के लिए हो और मानव मात्र के भाषा में हो | सृष्टि के आदि से हो, जिसमें किसी भी व्यक्ति विशेष की नाम की चर्चा न हो | किसी का वंशावली न हो, किसी भी प्रकार की किस्सा कहानी जिसमें न हो | सृष्टि नियम और विज्ञानं विरुद्ध कोई बातें न हों | जैसा चाँद को किसी व्यक्ति के ऊँगली के इशारे से टूटना, हनुमान का सूरज निगलना | किसी बाँझ महिला से संतान का जन्म दिलादेना, किसी कुंवारी लड़की से सन्तान को जन्म दिल्वादेना आदि | इस प्रकार की जितने भी बातें है यह ईश्वरीय ग्रंथों में होना ईश्वरीय ज्ञान की कसौटी से देखना जरूरी है |
कुरान, पुराण, बाईबिल आदि ग्रंथों में यही सब पाए जाते हैं, जो वेद में इस के लिए कोई जगह नही है यह सभी बातें परमात्मा पर दोष लगाने वाली बातें हैं |
रही बात कुरान की नकल वाली जो अल्लाह ने कुरान के सूरा बकर आयत 23-24 में कही की इसका नकल बना कर ले आव, और मैं कह्देता हूँ की इसका नकल तुम नही बना सकते और कुरान को झुठलाने वाला जहन्नुम के आग में डाले जायेंगे | यहाँ देखें अल्लाह में बदले की भावना किस प्रकार लोगों को बहकाने की बातें की है | अगर कुरान का नकल कोई नहो करसकता तो पहले वाली किताब की नकल कैसी क गयी ? जो किताब वही अल्लाह की ही थी जब उसकी नकल हुई तो कुरान की नकल किस लिए नही हो सकती भला ?
देखें कैसी नकल बनती है, नकल बनाया जाना संभव हो रहा है अथवा नहीं इसे देखें |
कुरान की शुरुयात होती है, बिसमिल्ला हिररहमा निर्रहीम, शब्द से | जी निम्न प्रकार है
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ [١:١] बिसमिल्ला हिर रहमा निर रहीम |
यहाँ यह भी स्पस्ट करदेता हूँ की अल्लाह ने कुरान की प्रथम सूरा जो सूरा फातिहा के नाम से है जो मक्का में उतारी गयी | इसमें सात {7} आयतें हैं और पहली आयात में =1 “1 } लिखा है अर्थात सूरा 1 आयात भी 1 =है अर्थ :- शुरू करता हूँ मैं अल्लाह के नाम जो रहम वाला महरबान है |
صورة مثلا أ لقرآن هيوليت و حي عشر ة أية =
सुरातुन मिसला कुरआनुन हुलियातुन वहिया आशारातूं आयह | कुरान की आयातों के वजनमें दस आयात |
बिसमे औमिल हैयुल कैयुम = {1 } शुरू करता हूँ ओम के नाम से जो कायेमे बिज्जात हमेशा हमेशा का रहने वाला है | {2} काला रब्बिल मुसलमीन =कहा मुसलमानों के रब ने = {2 } वा खालेकिशशाया तीन =शैतान के पैदा करने वाले ने = {3 } फी किताबीहिल कुरान = अपने कुरान में = {4} फातू बे सुरातिम मिम मिस्लेही वदयु शुहदा अकुम मिन दुनिल्लाहे इन कुन्तुम सादेकिन = अगर तुम सत्य बोलने वाले हो तो ले आव इसकी नकल और बुलाव अपनी हिमायातिओं को = {5 } फज़ररिबू बिल ईमान = मै ईमंवाला हूँ ,ला तकुना मिनल काफरीन {6}= ना कहो मुझे काफ़िर मैं काफ़िर नही हूँ व ओम यशहदू अन्नी मिनास्सदेकिन {7} मेरा ओम गवाह {साक्षी } है मैं सत्य बोलने वालों में से हूँ | व इन कुंतुम फी श्क्किम मिम्मा आतेना बुरहानकुम अस्यलुकुम मिररब्बी कुम इन कुनतुम मुमेनिन {8} और इनमें शक ना करो की नक़ल नही बना सकते अगर अप मोमिन हैं तो बुलाएँ अपने रब को अपने हिमायतीयों को मुझे झुटला कर देखो मैं सच बोलने वालों में हूँ | {9}व ओमे यश्हदो अन्नी मिनास्स्देकिन {10}इन कुन्तुम फी श्क्किम मिम्मा अयतैना खालिफ्तेना फातु बुर्हान्कुम व् असयालोकुम मिर्ररब्बिकुम इन कुन्तुम मोमेनीन |
بسم أوم الحي قيوم ١ = قالا رب المسلمين ٢ = و خا لق أ لشيطين٣ = في كتبه أ لقرآن ٤ = لناس أ عليلمين ٥ = فا تو بصورة من مثله واد عو ا لشهدآ دآ ء كمم من دو ا للهان كنتم صدقين٦ = فجر بو ا با الايمان ٧ = لا تكو ن ا من ا لكفرين٨ = وا اوم يشهدو اني منصدقين ٩ = وانكنتم في شكم من ما ا تنا بر حا نكم اس الو كم انكنتم مو منين و اوم يشهد اني من ا لصد قين ان كنتم في شك مما اعطين خلفيتنا فاء تو بر هنكم واسءلكم من ربكم ان كنتم موءمنيين ١٠ |

यहाँ वह 10 आयात कुरान के वजन मिसल { बराबर } बना कर दिया हूँ, जो अल्लाह ने कुरान में कहा नकल नही बना सकते हैं यह कहना अल्लाह का सत्य है अथवा नही देखें |
इस प्रकार जब मैंने यह सारा करके दिया तो भाई गुलाम मोहम्मद अंसारी साहब सत्य को स्वीकार कर लिया यह है सत्य का प्रचार |
एक बार आर्य समाज आज़म गढ़ में मेरा कार्य क्रम चल रहा था वहन भी कई मौलाना लोग मुझे सुनने के लिए रोजाना आते रहे | एक दिन शाम को कार्यक्रम खत्म होने के बाद मेरे साथ मेरे कमरे में आये मौलाना मंज़ूर अहमद, उन्होंने मुझे से सवाल किया हमारे यहं एकेश्वरवाद है जो आप के पास नही है | मैंने कहा मुझे समझाएं एकेश्वरवाद किसे कहते हैं, अल्लाह एक है उसके सिवा और कोई नहीं उपासना के लायक | मैंने कहा अल्लाह एक है अल्लाह के के साथ और कोई नहीं अल्लाह के नाम के साथ किसी और का नाम जुदा नही है ? कहा नहीं है, मैंने पुछा, लाइलाहा इल्लल्लाह है की आगे भी है ? कहा मुहम्मदुर रसूल अल्लाह | मुहम्मद अल्लाह का रसूल है, यह वाक्य अगर ना जुड़े तो क्या कलमा पूरा है ? कहा नहीं यह तो अल्लाह के नाम के साथ जुदा हुवा है, तो अल्लाह एक कहाँ है ? उन्हें मैं एक पुस्तक दी चौधवीं का चाँद, लेखाक पण्डित चापुपति MA की |
उसे पढ़ कर उन्हों ने मुझे लिखा पण्डित जी आप ने हमारी आँखें खोल दी है, हमारे बाप, दादाओं ने हमें आसान से मश्किल की जानिब बहका दिया है | आप न हमें सत्य का आभास कराया मैंने सत्य को जानने और समझने का पर्त्स किया है, आप हमें और पुस्तक भी देने का प्रयास करना इस पुस्तक को पढ़ कर फ़िलहाल मैं अपना नाम ज्ञान प्रकाश रख लिया हूँ आप हक़के लिए दुवा कीजये |
इन्हों नें मात्र सत्य सनातन वैदिक धर्म को ही स्वीकार नहीं किया बलके वह वैदिक धर्मी बनने के बाद संस्क्रोत्से आचार्य भी किया है | मैं सार्वदेशिक सभा से नियुक्त रहा बंगाल सभा में, बंगाल में रहते भी बहुत जिला में परावर्तन का काम किया | जिसमें एक उल्लेखनीय कार्य बंगाल के वर्द्धमान जिला में हुवा यहाँ के एक गाँव में कई मुस्लिम परिवारके लोग कईवर्षों से दुर्गा पूजा मानते आ रहे हैं अपने घर पर | बंगाल के किसी भी आर्य समाजी को पता नही लग पाया, यह समाचार छपी दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक सार्वदेशिक पत्रिका में | मुझे और बंगाल प्रांतीय सभा प्रधान को भीसार्वदेशिक सभा प्रधान ने पत्र लिखकर जानकारी दी |
मुझे पत्र मिलने के बाद मैं विश्वहिन्दू परिषद के कई कार्यकर्ताओं को साथ लेकर वहां पहुचा जो जगह समुद्रगढ़ के नाम से है | यहाँ और पाँच परिवार और घरवापसी में शामिल हुए मेरा कहनाथा आपलोग जिस घर परिवार को छोड़आये उसी में वापस चलें, कारण हम मुसलमान बन कर नही आये, और न कोई दुनिया में मुस्लमान बनकर आता है और ना तो परमात्मा किसी को मुस्लमान बनाकर भेजता है | सब को दुनिया में आने के बाद ही कोई किसी को मुस्लमान बनता है, कोई किसी को ईसाई, या तो कोई किसी को जैनी बनता है और कोई किसी को बुद्धिष्ट यह सभी दुनिया में आने के बाद ही बनते बनाते हैं | किन्तु हम जब धरती पर आये सब एक प्रकार से आये तरीका किसी का अलग नही है, हमें इन्ही दुकान दरों के चंगुल से बाहर निकलना होगा | ठीक इसी प्रकार का एक औरऐतिहासिक कार्य बंगाल के उत्तर 24 परगना जिला बशीरहाट के,कटीया बाज़ार में भव्य घरवापसी का कार्य vhp के द्वारा मेरे नेत्रीत्व में हुवा | जिस के सामने एक विशाल मदरसा है ठीक मदरसे के सामने सभी कुरान का हवाला दे दे कर मैं प्रवचन देता रहा और घरवापसी क्या है उसे लोगों के दिल और दिमाग में भरने का प्रयास किया, जो सर और सिर्फ मानवता का प्रचार था | सम्पूर्ण बंगाल में परावर्तन या घर वापसी का खूब काम करता रहा मुख्य रूपसे मानवतावादी प्रचार के माध्यम से लोगों को समझा कर हिन्दू मुसलिम ईसाई रूपी दुकानदारों के चक्कर से मानव समाज के मुख्यधारा में लोगों कोजोड़ने का प्रयास चलता रहा |
खूबी की बात मेरे लिए यह भी रही की बंगाल के इसी कोलकाता शहर में मेरे पूर्वजों की जन्मस्थली है | 6 वर्ष निरन्तर सार्वदेशिक सभा की तरफ से मैं बंगाल सभा में नियुक्त रह कर वैदिकधर्म का प्रचार कार्य करता रहा | बंगला भाषा के लेखक और विश्वहिन्दू परिषद का प्रचारक स्व० शिवप्रसादराय जो मेरे बड़े ही घनिष्ट थे, हम दोनों नें लगातार पुरे बंगाल में यत्र तत्र प्रचार कार्य करते रहे |
शिवप्रसाद राय जी से मैंने एक रेपिड पुस्तक लिखवाई जिसमें राजाराममोहन राय से शुरू किया, इस पुस्तक में ऋषि दयानन्द को भो दर्शाया गया, उस दृश्य को दिखाया गया जो शिवरात्रि के अवसर पर घटना को देख कर ऋषि दयानंद जी ने कहा था यह असली शिव नही है, जो अपने उपर चढ़ते चूहा को नही भगा सकता उसका असली शिव का होना संभव नही है,यह पुस्तक को चाप था ज्ञानप्रकाशनी जो कलेज रो में है | यह हम दोनों के बड़े ही घनिष्ट मित्र थे प्रकाशनी के मालिक उन्हें ने छापी वह पुस्तक जिसमें इस प्रकार 9 महा पुरषों को दर्शाया गया, यह पुस्तक बंगला में लिखी गई 6 क्लास में उसे बंगाल के बहुत विद्यालयों में लगाने का प्रयास किया गया |
आर्य समाज द्वारा संचालित किसी भी विद्यालय में वह पुस्तक नही लगा पाया, और बंगाल की इतनी पुराणी आर्य समाज है जो 1885 में बनी है यह समाज, उनदिनों क्रांतिकारीओं का गढ़ था कोलकाता आर्य समाज | इन समाज के किसी भी अधकारी से वह काम नही हुवा जो उस पुस्तक के माध्यम से ऋषि दयानन्द को प्रचारित मेरे द्वारा किया गया | बंगाल आर्य प्रतिनिधि द्वारा संचालित किसी भी विद्यालय में वह पुस्तक नही लगी यह दुःख की बात है | इस प्रकार मैं बंगाल में 6 वर्ष रह कर सत्य सनातन धर्म का प्रचार करता रहा, मानवता वादी प्रचार वेड क्या है और कुरान क्या है कुरान में मावता की कोई बातें हैं अथवा नहीं, अगर है तो किसप्रकार है | कुरान में मात्र मुसलमानों को उपदेश दिया गया है जैसा | कुरान कहता है = याऐयोहल्लाजिना आमनु= ऐ ईमान लाने वालो |
يا ايهلذين امنو |
इस्लाम के नज़र में, एक इसलाम को छोड़ या इसलाम के मानने वालों को छोड़, वाकी मानव समाज में कोई भी ईमानदार नहीं है | इस से इस्लाम की संकीर्णता को गंभीरता से समझना चाहिए जो दुनिया के लोग इसे जानने और समझने का प्रतास नही कर रहे हैं | मात्र इतना ही नहीं अपितु अपने के छोड़ किसी ओरके लिए प्रार्थना भी नही करता | जैसा =कुरान में किस प्रकार मुस्लमान अल्लाह से दुवा मांगते है जो कुरान में ही मुजुद हैं उसे ध्यान से पढ़ें, और विचार करें किस प्रकार भेद भाव है |
فَقَالُوا عَلَى اللَّهِ تَوَكَّلْنَا رَبَّنَا لَا تَجْعَلْنَا فِتْنَةً لِّلْقَوْمِ الظَّالِمِينَ ﴿يونس: ٨٥﴾
फिर जब जादूगर लोग (मैदान में) आ मौजूद हुए तो मूसा ने उनसे कहा कि तुमको जो कुछ फेंकना हो फेंको | सूरा यूनुस =आयत 80

(2) رَبَّنَا لَا تَجْعَلْنَا فِتْنَةً لِّلَّذِينَ كَفَرُوا وَاغْفِرْ لَنَا رَبَّنَا إِنَّكَ أَنتَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ ﴿الممتحنة: ٥ ﴾ और तेरी तरफ हमें लौट कर जाना है ऐ हमारे पालने वाले तू हम लोगों को काफ़िरों की आज़माइश (का ज़रिया) न क़रार दे और परवरदिगार तू हमें बख्श दे बेशक तू ग़ालिब (और) हिकमत वाला है | सूरा मुम्तहिना =आयत 5 =
(3) وَالَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَا هَبْ لَنَا مِنْ أَزْوَاجِنَا وَذُرِّيَّاتِنَا قُرَّةَ أَعْيُنٍ وَاجْعَلْنَا لِلْمُتَّقِينَ إِمَامًا ﴿الفرقان: ٧٤﴾ और वह लोग जो (हमसे) अर्ज़ करते हैं कि परवरदिगार हमें हमारी बीबियों और औलादों की तरफ से ऑंखों की ठन्डक अता फरमा और हमको परहेज़गारों का पेशवा बना | फुरकान =74
(4) وَإِذَا صُرِفَتْ أَبْصَارُهُمْ تِلْقَاءَ أَصْحَابِ النَّارِ قَالُوا رَبَّنَا لَا تَجْعَلْنَا مَعَ الْقَوْمِ الظَّالِمِينَ ﴿الأعراف: ٤٧﴾ और जब उनकी निगाहें पलटकर जहन्नुमी लोगों की तरफ जा पड़ेगीं (तो उनकी ख़राब हालत देखकर ख़ुदा से अर्ज़ करेगें) ऐ हमारे परवरदिगार हमें ज़ालिम लोगों का साथी न बनाना सूरा आयराफ =आयत 47
(5) رَبَّنَا وَاجْعَلْنَا مُسْلِمَيْنِ لَكَ وَمِن ذُرِّيَّتِنَا أُمَّةً مُّسْلِمَةً لَّكَ وَأَرِنَا مَنَاسِكَنَا وَتُبْ عَلَيْنَا إِنَّكَ أَنتَ التَّوَّابُ الرَّحِيمُ ﴿البقرة: ١٢٨﴾
(और) ऐ हमारे पालने वाले तू हमें अपना फरमाबरदार बन्दा बना हमारी औलाद से एक गिरोह (पैदा कर) जो तेरा फरमाबरदार हो, और हमको हमारे हज की जगहों दिखा दे और हमारी तौबा क़ुबूल कर, बेशक तू ही बड़ा तौबा कुबूल करने वाला मेहरबान है बकर =128
(6) فَقَالُوا رَبَّنَا بَاعِدْ بَيْنَ أَسْفَارِنَا وَظَلَمُوا أَنفُسَهُمْ فَجَعَلْنَاهُمْ أَحَادِيثَ وَمَزَّقْنَاهُمْ كُلَّ مُمَزَّقٍ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِّكُلِّ صَبَّارٍ شَكُورٍ
तो वह लोग ख़ुद कहने लगे परवरदिगार (क़रीब के सफर में लुत्फ नहीं) तो हमारे सफ़रों में दूरी पैदा कर दे और उन लोगों ने खुद अपने ऊपर ज़ुल्म किया तो हमने भी उनको (तबाह करके उनके) अफसाने बना दिए – और उनकी धज्जियाँ उड़ा के उनको तितिर बितिर कर दिया बेशक उनमें हर सब्र व शुक्र करने वालोंके वास्ते बड़ी इबरते हैं | सूरा सबा =आयत 19

मैंने यहाँ पर प्रमाण प्रस्तुत किया है | सूरायुनुस=आयत =80 सूरा मुम्तहिना=आयत =5 सूरा फुरकान=आयत 74 = सूराआयराफ=आयत =47 =सूराबकर =आयत 128 = सूरा सबा= आयत =19 है | और देखें आगे और क्या बताया कुरान में अल्लाह ने =
لَا شَرِيكَ لَهُ ۖ وَبِذَٰلِكَ أُمِرْتُ وَأَنَا أَوَّلُ الْمُسْلِمِينَ [٦:١٦٣]
और उसका कोई शरीक़ नहीं और मुझे इसी का हुक्म दिया गया है और मैं सबसे पहले इस्लाम लाने वाला हूँ | सूरा अन्याम =आयत 163 |
इस प्रकार मेरा प्रचार कार्य में इस्लाम जगत के लोग मात खाते गये, लोगों में हलचल मच गई | अब मैं कोलकाता से कानपुर आगया 1991 में, यहाँ 4 वर्ष रह कर अनेक कार्य किया मेश्टनरोड आर्य समाज जो सबसे पुराणी और बड़ी आर्य समाज कानपुर की है यह मुस्लिमों के बीच मोहल्ले में है यहाँ एक मदरसा संचालित है, मेरे विचारों को अनेक तायदाद में सुनने आते थे मदरसा वाले|
यहाँ मैंने बहुत सारे युवायों को जोड़ा जो वैदिक मान्यता को नही जानते थे उन्हें जानकारी देकर अपने साथ लिए काम करते रहे | यहाँ लोक सभा प्रचार में, सुभाषिनी अली को हराने काश्रेयहमारी और | विनय कटियार,प्रेमलता कटियार को जीत दिलाने का श्रेय हमारी पूरी टीम को हैं |
उनदिनों कानपुर में दो जाने माने,आर्य समाजी कहे जाने वाले थे एक देवीदास आर्य जी जिन्होंने अपने जीवन में शुद्धी आन्दोलन अथवा परावर्तन कार्य को अपना जीवन का अंग बनाये थे | 2000 {दो हज़ार } से ज्यादा लड़कियों का पिता बनकर उनकी शादी करवाई, ज्यादा तर उन्ही लड़कियों की शादी करवाई, जो हिन्दू घराने के लड़कियों को कोई मुस्लमान लेगया उन लड़कियों को मुस्लिम परिवार से निकाल कर पुनः उन्ही लड़कियों की शादी हिन्दू परिवार में करना जिनके जीवन का लक्ष रहा और इस प्रकार जन जोखे में डाल कर कोर्ट अचहरी का सहयोग, प्रशासन का सहयोग भी लिया कारते थे | उनदिनों में इसी काम क लिए उन्हें जो प्रसिद्धि मिली,उसे राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह जी अनदेखी नहीं कर सके, और राष्ट्रपति सम्मान उन्हें प्रदान किया था |
मैं उनदिनों मै कानपूर उनके साथ रहकर इस परावर्तन या शुद्धी जो स्वामी श्रद्धानन्द जी का चलाया हुआ यह आन्दोलन था जो लोग अपना हिन्दू घर से निकलकर मुस्लमान या ईसाई बन जाते थे अथवा कुछ हिन्दुओं को मुस्लमान बनालिया जाताथा उन्हें अपना पूर्वजों में वापस लाने को ऋषि दयानंद ने शुद्धि आन्दोलन नाम दिया | याद रहे की यह काम भारत में देवल ऋषि ने किया था, श्री चैतन्यने भी किया था उसी परम्परा को ऋषि दयानन्द ने किया, जिसको स्वामी श्रद्धानन्द जी ने आगे बढाया | इस काम को देख कर उस्कल के दानवीर श्री युगल किशोर बिड़ला जी ने स्वामी श्रद्धानन्द जी को अनेक धन देकर प्रोत्साहित किया | और कई बिल्डिंगें भी आजतक मौजूद है,जिसमेंउल्लेखनीय गुरुकुल इन्द्रप्रस्थ है जिसका मैं स्नातक हूँ | दूसरी बिल्डिंग आर्यसमाज बिड़लालाइंस में भारतीय हिन्दू शुद्धि सभा के नाम से है |
श्री देवीदास जी ने उन्ही पूर्वजों के किये कामों को करते रहे, उनसे मैंने प्रेरणा ली, जो मेरा भी जीवन का अन्ग बनगया | मैंने शुद्धि सभा की कार्य को करता आया अबतक यह ज्यादातर काम मैंने श्री देवीदास आर्य जी से सिखा और करते आये | कानपुर में एक आर्यनाम धारी और थे जो कानपूर डेवलपमेन्ट के चीफ इंजीनियर श्री ओमप्रकश के नाम से | इनके साथ रहकर आर्य समाज के प्रचार कार्य करने का बहुत अवसर मिला | इसी कानपुर मैं चार {4} वर्ष रहा यहाँ बहुत सारे नौजवानों को जोड़ा आर्य समाज और वेदप्रचार के कार्य को सम्पूर्ण कानपुर लखनऊ यूपी भर में करता रहा परा वर्तन या शुद्धि अथवा घर वापसी का बहुत काम श्री देवीदास जी और श्री ओमप्रकाश जी के देखरेख में करते रहे | प्रथम से मेरा लक्ष्य वैदिक मान्यता का उजागर करना रहा,वैदिक मान्यता क्या है धर्म क्या है मतपंथ क्या है, उसे मानव समाज में बताते रहे किस कारण मैं इस्लाम से दूर होता गया, इस्लामिक मान्यता क्या है वैदिक सिद्धान्त पर बलना और लिखना मेरे जीवन का अंग बनगया |
मैं हिंदी जानता नहीं था गुरुकुल इंद्रप्रस्थ में आने के बाद मैंने हिंदी और संस्कृत को सिखा है

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