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ईश्वर और जीव में भेद क्या है ?

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ईश्वर और जीव में भेद क्या है ?

कल आप लोगों ने देखा और पढ़ा है,मानव जीवन की श्रेष्ठ कला है धर्म, आज धर्म किनका बनाया हुवा है, और किनके लिए बनाया गया है ? जो धर्म को बनाने वाला ईश्वर है, और धर्म बना है मनुष्य के लिए | अर्थात धर्म का बनाने वाला ईश्वर,और धर्म बना है जीव के लिए, तो ईश्वर और जीव में क्या भेद है उसपर विचार करते हैं |

प्रकृति, जीव, और ईश्वर, और उनके सह संवंधों को लेकर विभिन्न सम्प्रोदायों का जन्म हुवा, मुस्लिम,एवं ईसाई इन दोनों मतों में जीव को ईश्वर से भिन्न माना है, बौद्ध मत में सृष्टि की उत्पत्ति शून्य से मानी है | और सत्य सनातन वैदिक धर्म में ईश्वर, जीव, और प्रकृति, तीनों को अनादी माना है |

सांख्य दर्शन में प्रकृति को ही सृष्टि का कारण माना है, जैन मत में जीवात्मा को ही परमात्मा माना है | तथा प्रकृति को उसका उपादान कारण माना है, रामानुजाचार्य ने जीव को ईश्वर का स्वरूप स्वीकार करते हुए भी दोनों में भिन्नता बताई है | कुछएक का कहना है अज्ञान के कारण ईश्वर, और जीव दोनों में भिन्नता की प्रतीति होती है अन्यथा कोई भिन्नता नहीं है | अज्ञान का पर्दा हटने पर वह स्वयं ब्रह्म ही हो जाता है |

इस भ्रम को दूर करने का एक मात्र साधन है ज्ञान | अन्य कोई क्रिया एवं कर्मकांड इसमें सहायक नहीं हो सकते | वेदान्त की इस अद्वेत की मान्यता को सूफीवाद और थियोसाफी ने भी स्वीकार किया है |

|| सृष्टि का संचालन ||

इस समस्त जड़ चेतनात्मक सृष्टि का संचालन, ईश्वरीय व्यबस्था अथवा उसके, विशेष नियमानुसार ही हो रहा है | उसी ईश्वरीय व्यवस्था के अन्तर्गत जड़, प्रकृति, एवं चेतना के भिन्न भिन्न नियम हैं | जड़ प्रकृति के नियमों को जानने का कार्य विज्ञान ने किया है |

और चेतन प्रकृति के नियमों को जानने का कार्य आध्यात्म जगत के ऋषियों मुनियों द्वारा हुवा है | दोनों की भिन्न भिन्न विधियाँ है, इन तीनों, ईश्वर, प्रकृति, और जीव को जान लेना ही पूर्ण ज्ञान है, जिससे सृष्टि का स्वरुप समझ में आ सकता है |

इस दृश्य जगत के पीछे एक बहुत बड़ा अदृश्य जगत है, जो इस दृश्य जगत का आधार है | यह अदृश्य, जगत सूक्ष्म से भी सूक्ष्म होता गया | यह अदृश्य शक्तियां ही इस दृश्य जगत के संचालन में अपना योगदान दे रही है | सूक्ष्म के बिना स्थूल का निर्माण नहीं हो सकता | इस सम्पूर्ण सृष्टि की एक कार्य योजना है जिसके अनुसार ही इसका संचालन हो रहा है | यदि मनुष्य अविवेक से इसमें फेर बदल कर देता है तो प्रकृति पुन: उसका संतुलन स्थापित कर देती है | प्राकृतिक हो अथवा मानवीय दोनों प्रकार के वातावरण में संतुलन बनाये रखना प्रकृति का नियम है | चेतना अधिकार के कार्य प्रणाली का ज्ञान प्राप्त करना ही आध्यात्म का विषय है |

इस सम्पूर्ण जड़ चेतनमय सृष्टि के विषय में अध्यात्म विज्ञान के मूल नियम यह है |

सम्पूर्ण सृष्टि एक ही मूल तत्व की अभिव्यक्ति मात्र है इसलिए यह एक है | जिसे खण्ड खण्ड में विभाजित नहीं किया जा सकता |

जिस प्रकार शरीर के विभिन्न अंगों की अपनी अलग पहचान, उपयोगिता, विशिष्टता एबं कार्य प्रणाली होती हुए भी वे सभी एक शरीर से संयुक्त है, जिनको अलग नहीं किया जा  सकता, ठीक उसी प्रकार सृष्टि में पाए जाने वाले विभिन्न अंग उसी एक सृष्टि रूपी शरीर के ही अंग हैं जिन्हें अलग नहीं किया जा सकता |

शरीर का समस्त कार्य उसके विभिन्न अंगों की सहायता से ही होता है उसी प्रकार यह सृष्टि अपने विभिन्न अंगों की सहायता से कार्य करती है | सृष्टि के पदार्थों में भिन्नता देखना उसका विज्ञान पक्ष है तथा सम्पूर्ण सृष्टि में एकत्व देखना, अनेकता में एकत्व देखना इसे अखण्ड देखना इसे समग्र रूपसे देखना इसका अध्यात्म पक्ष है |

सृष्टि को समझना यह विज्ञान पक्ष है,तथा उसके मूल तत्व का ज्ञान इसका ज्ञान पक्ष है ज्ञान भी अध्यात्म से जुड़ा हुवा है सही पूछिए तो अध्यात्म केंद्र है विज्ञान उसकी परिधि है |

यह सम्पूर्ण सृष्टि ईश्वरीय नियमों से ही संचालित हो रही है जिसमे उसकी एकरूपता और सुव्यवस्था है | जिस प्रकार पिता ने सभी सन्तानों के भिन्न भिन्न गुणकर्म होने पर भी सभी सन्तानों को एक साथ समेत कर रखते है अथवा रखने का प्रयास करते हैं | ठीक इसी प्रकार परमात्मा ने सभी प्राणियों को एकत्व के आधार पर सब को पूरी वसुधा को अपना कुटुम्ब समझने का उपदेश दिया है |

महेन्द्रपाल आर्य =26 =6 =18 =

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