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ईश्वर को अल्लाह कहना मानव समाज की बहुत बड़ी भूल है ||

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ईश्वर को अल्लाह कहना मानव समाज की बहुत बड़ी भूल है ||
स नो बन्धुर्जनिता स विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा |
यत्र देवा अमृतमानशानास्तृतीये धामन्य ध्येरायंन्त ||
अर्थ :-हे मनुष्यों ! वह परमात्मा अपने लोगों का भ्राता के समान सुखदायक, सकल जगत का उत्पादक वह सब कामों का पूर्ण करनेहारा सम्पूर्ण लोक मात्र और नाम, स्थान जन्मों को जानता है और जिस सांसारिक, सुख दुःख से रहित नित्यानंद युक्त मोक्ष स्वरुप धारण करनेहांरे, परमात्मा में मोक्ष को प्राप्त होके विद्वान लोग स्वेच्छापूर्वक विचरते हैं वहीं परमात्मा अपना गुरु, आचार्य, राजा और न्यायाधीश हैं, अपने लोग मिलके सदा उसकी भक्ति किया करें |
 
अब यहाँ देखें ईश्वर के लिए बताया गया ऐ लोगों वह परमात्मा अपने लोगों के भ्राता के समान सुखदायक | किन्तु अल्लाह किसी के भी भ्राता के समान नहीं है, अल्लाह को भाई कहना काफ़िर का काम है | अल्लाह को कोई भाई नहीं कह सकता अल्लाह को कोई पिता भी नहीं कह सकता यह सब कहने वाला काफ़िर है इस्लाम के नजर में, फिर ईश्वर अल्लाह दो एक कैसे हो जायेंगे ? इस्लाम की मान्यता है अल्लाह किसी का बाप नहीं न उसका कोई बेटा | और न वह किसी का भाई और न उसका कोई भाई |
इस दशा में भी ईश्वर अल्लाह दो अलग है, यह बहुत बड़ी भूल है मानव समाज में जो इन दोनों को एक मानते है और यह कहते हैं ईश्वर अल्लाह तेरोनाम | इधर ईश्वर को माता पिता बंधू सखा के नाम से पुकारा गया है, दूसरी ओर अल्लाह इससे दूर हैं | अल्लाह माता पिता बंधू सखा किसी का नहीं है और न इस्लाम वाले इसे कहेंगे और न इसे मानेंगे | यही तो इस्लाम के नज़र में कुफ्र है इसे मानव कहलाने वालों ने जानने और समझने का प्रयास भी नहीं किया | और यह शब्द सिर्फ हिन्दुओं से ही कहलाया गया किसी भी मुसलमान ने आज तक मानने को तैयार नहीं हुआ | एक सड़क पर कागन चुनने वाला मुसलमान अल्लाह को माता पिता बंधू सखा नहीं कह सकता |
यह महज़ हिन्दुओं की बुद्धि मारी गई थोडा भुत कुछ भी था उसमें पानी फेरा हमारे राष्ट्र के पिता कहलाये मोहनदास करमचाँद गाँधी ने | जिनके साथ कुरान का कोई संपर्क भी नहीं था और न कुरान को वेह जानते थे, उन्हों ने सोचा जैसा हमारी मान्यता है शायद यही मान्यता कुरान की भी होगी | पर उन्हें क्या पता था की कुरान में क्या लिखा है ? इसका प्रमाण और मिला की वेह कुरान लिए हिन्दु मंदिरों में पढ़ते रहे हिन्दुओं को यही समझाते रहे की, गीता और कुरान एक है | परन्तु किसी भी मस्जिद में गीता का पाठ नहीं कर पाए, इसे देख कर भी हिन्दुओं के आँखें नहीं खुली | आज तह हिन्दू इस असत्य को सत्य मान कर जप रहे हैं, न जानें हिन्दू सत्य को कब तक अपनाएंगे ? या प्रलय तक हिन्दू सत्य को स्वीकार करेंगे या नहीं ? जो आज तक इसपर संदेह बनी हुई है की इतना प्रमाण मिलने के बाद भी हिन्दू सत्य के नजदीक क्यों नहीं आना चाहते ?
वेद ईश्वरीय ज्ञान है, इस वेद ज्ञान से कुरान का तथा किसी और मजहबी किताबों का कोई भेई मेल नहीं है | इसका मतलब भी आप लोग समझ गए होंगे की वेद का उपदेश मानव मात्र के लिए हैं ईश्वर में मानवों में भेद नहीं डाला और न भेद डालने का काम ईश्वर का है |

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