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|| ईश्वर पर ऋषि का मन्तव्य कितना सठीक है ||

Mahender Pal Arya
01 Nov 22
45
|| ईश्वर पर ऋषि का मन्तव्य कितना सठीक है ||
दुनिया बनानेवाले कौन है, इस दुनिया में रहने वाले अपने को मानव कहला कर भी जानने का प्रयास नही किया, ईश्वर को | और अगर उसे माना भी तो जिस के मन में जैसा आया उसे ही सृजन कर्ता मानने लगे |
हैरानी की बात और है की, कुछ मानव तो ऐसे भी हैं, की उसे जानते तक नही और मानना भी नही चाहते | और यहाँ तक कहते हैं की दुनिया तो अपने आप ही बनी है,किसी को इसे बनाने की,जरूरत ही नही पड़ी | कुछ लोग यहाँ तक कह जाते हैं की परमात्मा और जीवात्मा यह दोनों एक ही हैं, अथवा यह जीवात्मा उसी परमात्मा का ही अंश है आदि |
किसी ने कहा परमात्मा तो अवतार लेता है जैसाश्री राम जी ने जन्म लिया और, श्री कृष्ण ने अवतार लिया | किसी ने कहा उसे अपना उपदेश भेजने के लिए उपदेष्ठा या पैगम्बर भेजता है आदि |
इन्हि विषयों पर ऋषिवर देव दयानन्द ने कितना सठीक पता बताया है उस ईश्वर का, वह मनन, और चिन्तन कर ही ग्रहण करने योग्य है | क्यों और कैसे, इस पर मैंने पहले 2 लेखों में बताया हूँ आज इसका तीसरा लेख है जो मै आप लोगों को देने जा रहा हूँ, इसे पढ़ें और विचार करें |
ऋषि ने कहा हम मानव मात्र को चाहिए उस परमात्मा को जान कर मानना, जो इस धरती का मालिक है जिसने दुनिया बनाई मानव ही नही किन्तु प्राणी मात्र का वह पालनहार है जिसमें लेश मात्र भी किसी के साथ भेद भाव नही किया |
सब को समान रूप से सृष्टि की सभी वस्तुवों को भोगने को दिया बिना रोक-टोक के | जैसा सूरज से प्राणी मात्र को लाभ उठाने को दिया है सम्पूर्ण जगत में प्राणी उससे लाभान्बित हो रहा हैं, यहाँ तक के मानव, दानव, कीट पतंग, लता, बृक्ष, पेड़, पौधे जितने भी जीव है उस दुनिया के बनाने वाले ने अपने बनाई चीजों से किसी को भी वंचित नही किया |
उसने ना हिन्दुओं को अलग कुछ दिया, और ना मुसलमानों को अलग कुछ दिया,उसने जो कुछ भी दिया सबको समान दिया, कारण उस के पास हिन्दू मुसलिम में भेद नही,और ना ईसाइयों में और सिखों में भेद है, और ना तो उसने इन सबके धर्म अलग बताया |
जब उसके निर्मित सामान अलग नही तो उसने मनुष्य मात्र का धर्म भी एक ही बनाया वरना उस पर पक्षपात का दोष लगेगा | यही कारण है की उसका निर्माण जग में प्राणी मात्र के लिये है | किन्तु धर्म सिर्फ और सिर्फ मनुष्यों के लिये है, किसी जीव जन्तु के लिए धर्म नहीं, यही कारण है की धर्म भी उसी परमात्मा के बनाये मानव मात्र का एक ही है, अलग नही |
ऋषि दयानन्द लिख रहे हैं वह दुनिया के लोगों यही है परमात्मा की दया, जो बिन मांगे हमें उसने बख्शा है | उसके पास कभी किसी ने दरखास्त नही दी थी, की हे पालनहार हमें देखने को सूरज चाहिए, किसी ने यह नही कहा की हे सृष्टि के रचने वाले हमें जीने के लिए अथवा साँस लेने के लिए हवा चाहिए या पानी, या फिर इस सृष्टि में जितने प्राणी है किसी ने भी यह नही कहा हमें चलने के लिये धरती दे | या फिर यह भी नहीं कहा किसी ने कि सृष्टिकर्ता हमें धरती पर खाने कि सामग्री चाहिए, आदि|
किन्तु वह कितना बड़ा दयालु है कि हमारे आने से पहले ही प्राणी मात्र का खाना, या ख़ुराक उस दयालु ने भेज दिया | यह भी नही की सिर्फ इनसान को दिया, बल्कि हर प्राणी को ख़ुराक पहले दिया, और यह भी नही की प्रत्येक प्राणी को एक ही ख़ुराक दिया ?
नही-नहीं, जिसका जो ख़ुराक है उसे उसी का ही ख़ुराक दिया, जैसा इस सृष्टि में अनेक या असंख जीव है सबका ख़ुराक अलग-अलग ही है, कुछ घांस खाले वाले हैं, कुछ मांस खाने वाले हैं, कुछ और कुछ खाने वाले हैं | इसमें भी उसकी खूबी यह है की सबकी बनावट भी अलग-अलग ही है, यह नही की सब एक प्रकार के ही हों ?
अगर एक ही प्रकार के होते फिर सबकी बनावट अलग-अलग ना होती, और बनावट अलग होने से ही उसका खाना भी अलग ही किया इ स दुनिया बनाने वाले ने | जैसा शेर को अगर आप फल खाने को, घांस खाने को देते हैं वह उसमें मुंह तक नही लगायेगा |
ठीक इसी प्रकार हाथी को आप वही शेर वाला ख़ुराक पकड़ा दें हाथी भी उसमें मुंह नही लगायेगा | इससे स्पष्ट हुवा की इन पशुवों का ख़ुराक भी अलग-अलग ही है, एक का ख़ुराक दूसरा जानवर नही खायेगा, जिसे लोग जानवर कह रहे हैं ? उसे जानवर भी इसलिए कहा गया की उसमें क्या खाना, क्या नही खाना यह ज्ञान तो परमात्मा ने उसे दिया है, किन्तु उसे यह ज्ञान नही दिया परमात्मा ने, की वह अपना क्या है ,दूसरे का क्या है, धर्म क्या है ,अधर्म क्या है,सत्य क्या है असत्य क्या है, माता पिता कौन है, भाई बहन कौन है वह नही जान सकता |
सृजन कर्ता ने यह ज्ञान सिर्फ और सिर्फ मनुष्यों को ही दिया है,की वह विचार कर सकता है सोच सकता है, चिन्तन और मनन कर सकता है | ऋषि दयानन्द लिख रहे हैं, हे मानव वह दुनिया के बनाने वाला कितना बड़ा दयालु है, की तुम्हें बिन मांगे ही मानो मोती दे दिया हो, की तुम्हारे मांगने से पहले ही उन जानवरों से अलग बनाया, जो उन जानवरों को नही मिला वह तुम्हें मिला है, जिस कारण तुम मनुष्य कहलाये प्राणीमात्र में सबसे श्रेष्ठ प्राणी तुम्हारा ही नाम पड़ा क्या तुमने कभी विचारा है ?
क्या यह उस पालनहार की दया नही तुमपर की वह पशु है और तुम इनसान हो ? वह पशु होने हेतु चार पैर से चलता है, और तुम्हें मनुष्य बनाकर उन पशुओं से अलग कर बताया तुम दो पैर से चल सकते हो,पशु नही |
पशु घांस खा सकता है तुम मनुष्य नही खा सकते, पशु मांस भी खाता है पर तुम नही ? कारण दुनिया बनाने वाले ने मनुष्य पर दया किया पशु ना बनाकर, और अगर मनुष्य बनकर उन्ही पशुओं का ख़ुराक खाने लगे तो उस बनाने वाले ने जो दया मनुष्यों पर किया,उससे लाभ हमने कहाँ लिया,या उठाया ?
फिर तो हम मानव कहला कर दुनिया बनाने वाले ने जो दया हम मनुष्यों पर किया उस दया के साथ ही बिश्वासघात कर बैठे | कारण पशु का और मनुष्यों का ख़ुराक अगर एक ही होता तो दोनों के बनावट में भेद, फर्क किस लिए होता ? यही तो उस परमात्मा ने मानव कहलाने वाले को उपदेश दिया, की मुझ बनाने वाले को ना देख, किन्तु हमारी बनाई सामानों को देख, {पश्यकाव्य } मुझे ना देख किन्तु मेरी रचना को देख |
अब कोई कहे हम मनुष्य होने के बाद भी हमारा दो दांत नुकीले है हम मांस खायेंगे, हम मांस को खा सकते है, यह सरासर उस सृष्टि के रचनाकार के साथ विश्वासघात है | कारण मनुष्य के और पशुओ के गठन का भेद बताया जा चूका है | इस भेद को देखकर, जानकर भी कोई मानव यह कहे हम मांस खा सकते है, उसका जवाब यह होगा जब मांसहारी पशु की बनावट अलग है जो मनुष्यों की नही |
जैसा मांसहारी पशु के पानी पीने का ढंग अलग है, हम होंठ से पानी पीते है और मांसहारी पशु जीभ से पानी उछालकर पीता है | हम शाकाहारी जीवों के पसीने आते है और मांसहारी पशुओ के जीभ से लार टपकता है | मात्र यहाँ तक ही नही अपितु जिन पशुओ में बुद्धि हीन कहा जाता है गधे को वह भी मांस वाले बर्तन का पानी नही पीता |
अर्थात वह बुद्धि हीन होने के बाद भी उसे मालूम है अपनी ख़ुराक के बारे में और हम मानव उत्कृष्ट प्राणी होकर भी यह नही जान पाए की हमारी ख़ुराक क्या है, क्या नही | तो उस दयालु परमात्मा ने जो दया हम मनुष्यों पर किया है, क्या हम मनुष्य कहलाकर भी उसकी दया के साथ विश्वासघात करें ?
यही मंतव्य को दर्शाते हुए ऋषि दयानन्द लिख रहे है, जिस सृष्टिकर्ता की दया का कोई पारावार नही है हम मनुष्यों, जितनी भी प्रशंसा करें, जितने भी उसके गुणगान गाये अथवा जन्म-जन्मान्तरों तक उसके गुणों का वर्णन करते रहे तो भी हम उसके गुणों का वर्णन समाप्त नही कर सकते |
इसमें भी खूबी की बात यह है की उस परमात्मा के गुणगान करने का भी सौभाग्य हम मनुष्य कहलाने वाले को ही प्राप्त हुआ है | मनुष्य से इतर कोई प्राणी नही, जो उस सृष्टिकर्ता का गुणगान करे | इसलिए हम मनुष्य मात्र को चाहिए सब मिलकर उसी की ही उपासना करें अन्यों की नही |
उस परमात्मा की दया यह भी है की सभी मनुष्य कहलाने वालों को अपनी सृष्टि के जितनी भी वस्तुएं है सबको भोगने के लिए दिया है | यानि सूरज हिन्दुओ को दिया, चन्द्रमा मुसलमानों को, दिन ईसाईयों को दिया ,तो रात जैनियों को ? अगर वह परमात्मा ऐसे ही करते तो उसपर पक्षपात का दोष लगता | इससे यह स्पष्ट हुआ दुनिया बनाने वाले के पास यह हिन्दू, मुसलिम,सिख,इसियों में अथवा मनुष्य-मात्र के धर्म में कोई भेद नही है | उसकी रचना जब मनुष्य-मात्र के लिए है तो धर्म भी उसी के बनाये हुए एक ही है | मनुष्य का धर्म अलग-अलग होने पर उस दुनिया के बनाने वाले पर दोष लगेगा, यही मन्तव्य ऋषि दयानन्द जी के है |
महेन्द्र पाल आर्य (वैदिक प्रवक्ता ) 7/2/16 को लिखा था ||