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उधम मचाने वाले नेता नही राष्ट्र विरोधी हैं |

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सर फटता जिसका चुना वही ढूंढता हैं,नोटों के लिए सर फटा जनता का चुना ढूंढ रहे नेतागण, लगता है नोट इनकी गई जनता तो बहाना है,नेता जो ठहरे।
 
यह कहावत पुराणी है पर देखने को मिल रहा अभी, यानि अब बात कहावत में नही सत्य में इसे चरितार्थ किया जा रहा है | हमारे राज नेता जनता के परेशानी से परेशान नही है, किन्तु अपना सारा नोट ख़राब हुवा वह कहने की बताने की स्थिति में नहीं है, उसी गुस्से को प्रधान मन्त्री जी पर उतार रहे हैं |
 
इन्हें देश की चिंता नही है इनको अपना राजनीती रोटी सकने से मतलब है, यह तो दुनिया के लोग जानते और कहते भी हैं, कुछ पाने के लिये कुछ खोना पड़ता है | तो क्या यह नेता कहलाने वालों को इतनी सी जानकारी भी नहीं है ? दुनिया कहती है एक लकीर को छोटा करने के लिये उसके समीप में दूसरी लकीर डाल दो तो पहला वाला अपने आप ही छोटा हो जायगा |
 
किन्तु हमारे नेतागणों को यह बात समझ में नही आ रही है की देश का हित किसमें है देश हितमें हमें क्या करना चाहिए आदि ? इतना बड़ा मामला जिसे काला धन के नाम से लोग परेशान थे और जो लोग अपने पास नोटों को बाज़ार में चलने चलाने के बजाय गड्डी बांध कर तिजोरी भर रखे थे किस प्रकार से लोग छट पटाने लगे जैसा मछली को पानी से अलग करने पर दशा होती है ठीक उसी दशा में हमारे देश के नेता परेशान हो उठे अपनी बात कह नही पा रहे हैं की कितना धन जमा था जो ख़राब हो गया ?
 
नक्शालियों पर भी खूब प्रभाव पड़ा इस का, उन्हों ने भी अपना काला धन बनाया लोगों को लुट कर वह भी बाहर नही कर सके | देश का हित देखा जायगा की नेताओं का हित देखे प्रधान मन्त्री ? इन आन्दोलन कारी नेताओं से देश के लोगों को यह तो पता लग ही गया की कितना देश प्रेम है इन लोगों में ?
 
जो सामाजिक सार्वहितकारी नियम है उसे पालनें में जहाँ प्रतंत्र रहना चाहिए, किन्तु हमारे देश के नेताओं ने हितकारी जिसमें इन्हें स्वतंत्र रहना चाहिए था, उसे त्याग कर. सार्वहितकारी नियम को ही हितकारी नियम मान बैठे हैं, जहाँ समाज की बात है देश और राष्ट्र की बात है उसे नजरअंदाज कर अपना जो नुकसान हुवा काला धन हटा नही पाए उसी का ही भड़ास निकालने के लिये विरोधी दल के नेतागण दिल्ली में जमा हो गये |
 
जो नेता ठेका लिया है अपने प्रान्तों को सँभालने का उनसे प्रान्त तो संभाला नही जा रहा है देश सँभालने की बात करने चले है | राष्ट्र हित में इतना बड़ा काम हुवा है दो चार दिन के लिये परिशानी जरुर हो रही है, हम इसे झेलने के लिये भी तैयार नही ? यहाँ मात्र देखना यह होगा की हमारे राष्ट्र को लाभ मिला अथवा नही, इस पर विचार करना है | मुसीबत यहाँ यह है की देश के लिये राष्ट्र के लिये चिंता नेताओं को कहाँ है यह तो अपना स्वार्थ के लिये राजनीती चमकाना चाहते हैं |
 
देश में नक्श्ली उपद्रोव से ले कर इस्लामी आतंक वाद की कमर टूटी उसे देखे समझे बिना ही इस नोट बदलने वाली फैसला का विरोध यह जनहित का काम नही है | यह राष्ट्र के साथ दुश्मनी है जो नेतागण इस फैसला का विरोध कर रहे हैं, और इस निर्णय को गलता बता रहे हैं, व देश के प्रधान मन्त्री जी को गाली दे रहे हैं उन नेताओं पर कार्यवाही होनी चाहिए | साथ साथ यह निर्णय भी लेना पड़ेगा प्रधान मन्त्री जी को | इन नेताओं पर कड़ा कदम उठाते हुए इनको वहीं भेज देना चाहिए, जहाँ के यह लायक हैं | दो चार को अगर पकड़ कर पहुंचा दिया जाये तो बाकि भी अपने आप ही ठीक होने लगेंगे, और उन नेताओं को यह भी एहसास करा दिया जाय की राष्ट्रीयता का विरोध का नतीजा क्या होता है ?
महेन्द्रपाल आर्य =वैदिकप्रवक्ता =दिल्ली =18 /11/16 =

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