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ऋषि दयानंद ने कितनी मेहनत से सत्यार्थ प्रकाश लिखी

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ऋषि दयानंद सरस्वती जी ने अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश को लिखने में ना मालूम, कितने और किन किन पुस्तकों का अवलोकन किया होगा | और.नाजाने कितनी रातें विताये होंगे चिन्तन, और मनन में, जभी यह पुस्तक ऋषि ने तैयार की होगी, शायद हम लोगों के लिए सोचना भी संभव नही |

कारण हम लोग ऋषि दयानंद के नाम को भुनाकर सिर्फ उदर पूर्ति ही तो कर रहे हैं | ऋषि कृत सत्यार्थ प्रकाश को पढ़ने के बजाय उसके साथ मनमानी.किया है लोगों ने | नतीजा यह है कि सत्यार्थ प्रकाश में लिखे गये ऋषि विचारों को बदल ने में, इन आर्य समाजी कहलाने वालों के कलेजा नही कांपा ? कि ऋषि के दिए विचारों को हम बदल रहे हैं |

सत्यार्थ प्रकाश के 14 वें समुल्लास को जब हम देखते हैं, तो मुझे हैरानी होती है | किसी में कुछ लिखा है और किसी में कुछ लिख दिया लोगों ने, यह समुल्लास मेरा चुनिन्दा विषय होने के कारण मैं ज्यादातर इसे ही मिला मिला कर देखता रहता हूँ | और यह सोचता हूँ कि यह लोग कैसे विचार के हैं, कि जिन्हों ने ऋषि के किये गये परिश्रम पर पानी फेरने में संकोच नही किया |

पिछले दिन एक पुस्तक देखा सत्यार्थ प्रकाश का भंडाफोड़ “लेखक पण्डित रति राम आर्य | फिर एक पुस्तक देखा श्री अशोक आर्य जी, उदयपुर नौलखा वालेका जिस पुस्तक का नाम है, कब तक मौन रहें | इन्हों ने उन लोगों का नाम भी खोला विशेष कर उन्हों ने तीन नाम दर्शाया है,कि यही लोग हैं जो.सत्यार्थप्रकाश के साथ छेड़ छाड़ किया है | जिसमें एक सन्यासी का नाम भी लिखा है |

आज से प्रायः 11 वर्ष पहले मैंने भी अपनी पुस्तक मस्जिद से यज्ञ शाला कि ओर में भी लिखा हूँ | स्वामी जगदीश्वरानन्द जी, और आचार्य प्रियदर्शन जी ने भी बंगला सत्यार्थप्रकाश में संशोधक,व संवर्धक लिखा है | उनदिनों मैं गुरुकुलइन्द्रप्रस्थ में था, सार्वदेशिक सभा में बंगला वाली सत्यार्थप्रकाश लाला रामगोपाल शालवाले ने मुझे दी | मैं बंगला भाषी होने हेतु उन्हों ने यह पुस्तक मुझे उपलब्ध कराई, उन्दिनो लाला जी सन्यास नही लिया था |

जो बंगला वाली सत्यार्थप्रकाश में आचार्य प्रियदर्शन जी ने संशोधक व संवर्धक लिखा, किस अधिकार से लिखा ? यह मैं नही जान पाया, और ना आज तक कोई आर्य समाज के अधिकारी,व विद्वानों, यह नही पुछा,कि इस ऋषि कृत ग्रन्थ का संशोधक व संवर्धक बिना निर्णय लिए कोई क्यों और कैसा लिख सकता है ?

इस सत्यार्थप्रकाश का अथवा ऋषि कृत सभी ग्रंथों का मुहाफ़िज़ {हिफाज़त}करने वाला या हिफाज़त करने का दायित्व जिन्हें ऋषि ने दी है क्या उनका कोई फ़र्ज़ बनता था या नही यह तो मैं नही जानता हूँ | पर मेरे सामने विरोध करते मैंने नही देखा और ना सुना, किन्तु मेरे आर्य समाज में आने से पहले क्या हुवा वह मुझे पता नही |

सत्यार्थ प्रकाश के 14 समुल्लास को किसी भी प्रकाशन का, आप बराबर नही पाएंगे | हरेक प्रकाशन का अलग अलग ही मिलेगा आप को, जिसपर विरोधियों ने भी प्रश्न खड़ा कर दिया, और इन आर्य समाज वालों के पास कोई जवाब ही नही है | आर्यसमाज के अधिकारियों को सत्यार्थप्रकाश में क्या लिखा है, बहुत ही कम लोगों को जानकारी है, अधिकांश को पता भी नही कि इसमें लिखा क्या है ? कुछ तो यह समझते हैं कि इसमें ईसाइयत, और इस्लाम के विरोध में या मूर्ति पूजा के विरोध में ही लिखा है आदि,हकीकत बहुत कम लोगों को पता है|

प्रमाण के तौर पर सत्यार्थप्रकाश के 14 समुल्लास को देखेंगे तो किसीने समीक्षा 159 लिखा है | किसीने 161 लिखा है, किसीने. 162 लिखा है, किसीने 171 भी लिख दिया |

अब आप खुद समझ सकते हैं कि आखिर यह किस लिए हुवा और क्यों हुवा ? मतलब साफ है, कि पहला दायित्व उनका बनता है जिनपर हिफाज़त कि जिम्मेदारी दी गयी थी | उन्हों ने इस पुस्तक कि हिफाज़त नही की | अगर वह इस कि हिफाज़त करते फिर मिलाया जाना संभव नही होता | दूसरी बात यह भी है कुछ लोग हैं जो ऋषिदयानंद जी से अपने को बड़े विद्वान मान लिया, और उसमें अपनी बातों को लिखा अपना विद्वता का प्रदर्शन किया |

हमारे विद्वानों ने इस विषय पर चेतावनी दी है, किन्तु लोगों ने उन्हें उन्सुनी करदी,और सत्य के बजाय असत्य का प्रचार हो गया | जभी तो भंडा फोड़ लिखा गया, आर्य जगत के महान कर्मकांडी, व्याकरण के मर्मज्ञ विद्या शिरो मनी, आचार्य श्री युधिष्टिर मीमांसक जी ने अपनी लेखनी के माध्यम से लोगों को जानकारी दी है | लोगों ने उसे जानने का प्रयास नही किया | वर्तमान समय में डॉ0 सुरेन्द्र कुमार जी, कुलपति गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्याल्य वाले के प्रयास सराहनीय है, उन्हों ने बहुत ही विस्तार पूर्वक, बिना भेद भाव के सत्यार्थप्रकाश को समीक्षा के साथ लिखा है, और खूबी कि बात यह भी है कि उन्हों ने कहाँ कहाँ, किस किस प्रकार लोगों ने सत्यार्थप्रकाश के साथ अपना मनमानी किया है, उसे पढ़ें परिश्रम के साथ ही लिखा है, अप लोग उस पुस्तक को जरुर पढ़ें | यह सत्यार्थप्रकाश आप लोग मरे साईट वैदिकज्ञान.in में दिए गये पते से भी मंगवा सकते हैं | उस में सभी लिंक दिया है कैसे आप इन सभी पुस्तकों को मंगवा सकते | धन्यवाद के साथ

महेन्द्रपाल आर्य वैदिकप्रवक्ता = 10/9/16 =

 

 

 

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