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ऋषि दयानन्द जी की दृष्टि में मानव जन्म क्यों ?
Mahender Pal Arya
ऋषि दयानन्द जी की दृष्टि में मानव जन्म क्यों ?
ऋषि चाहते थे की सब ही मनुष्य एक सत्य वेदमत को स्वीकार करें, जिससे मानव जाति का पूर्ण हित हो सके | एक मत हुए बिना मानव जाति की उन्नति नहीं हो सकती – अर्थात मानव जीवन का जो मुख्य उद्देश्य है उसकी प्राप्ति नहीं हो सकती |
जैसे – मनुष्य जन्म का होना सत्यासत्य के निर्णय करने कराने के लिए है | न की वाद, विवाद, विरोध करने कराने के लिए | इसी मतमतान्तर के विवाद से जगत् में जो जो अनिष्ट फल हुए , होते है और होंगे उनको पक्षपातरहित विद्वतजन जान सकते हैं |
जब तक इस मनुष्य जाति में परस्पर मिथ्या मतमतान्तर का विरुद्धवाद न छूटेगा, तबतक अन्यान को आनंद न होगा यदि हम सब मनुष्य और विशेष विद्वतजन इर्ष्या द्वेष छोड़ सत्य का ग्रहण और असत्य का त्याग करना चाहे तो हमारे लिए यह बात असाध्य नही |
यह निश्चय है की इन विद्वानों के विरोध ही ने सब विरोध जाल में फँसा रखा है, यदि यह लोग अपने प्रोयोजन में न फँसकर सबके प्रयोजन को सिद्ध करना चाहे तो सभी एक मत हो जाये | इसके होने की युक्ति सर्वशक्तिमान एक मत परमात्मा में होने का उत्साह सब मनुष्यों को आत्माओं में प्रकाशित करें (सत्यार्थ प्रकाश के एकादश समुल्लास की भूमिका में लिखा है )
एक मत होने की आवश्यकता सम्भावना और विधि क्या है इस सम्बन्ध में ऋषि के लेख बहुत स्थानों पर मिलते है | तदानुसार अपने जीवनकाल में अकेले महर्षि ने साहित्य, शंकासमाधान, शास्त्रार्थ, उपदेश द्वारा पूर्ण प्रयत्न किया | उससे मानव के विचारों में महान क्रांति उत्पन्न हुई | सत्य के प्रतिपादन और असत्य के खंडन में जो युक्ति और प्रमाण आज से सौ वर्ष पूर्व ऋषि ने दिए थे उनका विपक्षी आज तक प्रतिवाद नही कर सके हैं,आज भी हम उनसे पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकते है |
महर्षि सत्य सिधान्तों का प्रतिपादन और असत्य का खंडन बहुत दृढ़तापूर्वक करते थे | लोगों के हृदयों में उनके शब्द घुसकर विचारों में हलचल उत्पन्न कर देते थे, अतः वे स्वयं लोगों के शंकाओं का समाधान करते थे | और अपना समर्थ वेदादि शास्त्रों में दृढ़तापूर्वक विश्वास रखते हुए लोगों को समाधान देते थे | लोगों को यहाँ तक कहते थे कि अगर आप लोगों को दयानन्द के कथन में भरोसा न हो तो आप सबका स्वागत है मुझसे शास्त्रार्थ करें |
अनेक पण्डित तो ऋषि के तर्क, प्रमाण और युक्तियाँ सुनकर सामने नहीं आते थे | बहुत से विद्वान् तो बहाना बनाकर अपने को दूर ही रखते थे | यहाँ तक कहते थे कि दयानन्द का मु:ह देखना पाप है, यह सुनकर ऋषि ने कमरे के बीच पर्दा लगवाकर उनसे शास्त्रार्थ किया |
यह ऐतिहासिक घटना है, इसी शास्त्रार्थ में श्यामजी कृष्ण वर्मा भी उपस्थित थे दयानन्द के साथ परिचय हुवा था, जो ऋषि दयानन्द जी से प्रेरणा लेकर लन्दन गये थे |
उन दिनों में ऐसा भी हुवा की जब वह निरुत्तर होते थे तो शोर शराबा कर उधममचाने लगते थे, लोगों ने महर्षि की विद्वत्तापूर्ण शैली और पांडित्व को देख कर ही भाग खड़े होते थे |
मेरा भी यही प्रयास है की अगर ऋषि के इन विचारों को हम आगे बढ़ाना चाहते हैं तो मानव समाज का कल्याण हो सकता है | और सभी मानव कहलाने वाले मत पंथ के चंगुल से छुटकारा पा सकते हैं | इसका एक ही उपाय है सामने बैठ कर शास्त्रार्थ करना दूसरा और कोई रास्ता नहीं है | यही कारण है की मैं ऋषि दयानन्द जी के इन्ही विचारों को उजागर करते हुए अब तक अनेक मत पंथ वालों से शास्त्रार्थ किया है |
और आज भी लोगों को बुला रहा हूँ की हम मानव तभी कहला सकते हैं जब सत्य को अपने जीवन में उतारें सत्य को धारण करें असत्य को त्याग दें | यही विचार ऋषि दयानन्द जी ने दिया है |
आप आर्य जनों के लिए भी यह परम कर्तव्य बनता है की इस काम को गति देने में आप लोग भी आगे आयें और मानव मात्र को बताएं सत्य क्या है और असत्य क्या है ?
इसे हम सामने बैठ कर ही समाधान निकाल सकते हैं, इसी में मानव समाज का कल्याण हो सका है,और सत्य को अपने जीवन में उतार कर ही मानव कहलाने के अधिकारी बन सकते हैं | इस विचार को जन जन तक पहुँचा कर हम मानव होने का दायित्व निभाएं |
धन्यवाद के साथ =महेन्द्रपाल आर्य = 29 /6 /20 =