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ऋषि पर्व मनाने वालों, हो सके तो ऋषि के दिए विचारों का प्रचार करें |  

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|| ऋषि ने अपना मन्तव्य ईश्वर कौन है बताया ||

ऋषि पर्व मनाने वालों, हो सके तो ऋषि के दिए विचारों का प्रचार करें |

ऋषिवर देव दयानन्द ने मानव मात्र को अपने मन्तव्य में ईश्वर कौन है कैसा है, ईश्वर के गुण कैसे हैं किसे ईश्वर कहना चाहिए,आदि विषय को प्रथम बताया, समझाया, कारण उस काल में नही आज के इस  विज्ञानं युगमें भी, कि जिस युगमें लोग चाँद तक पहुंचे, इस युगमें भी धरती पर विचरण करने वाले अपने को मानव कहला कर भी ईश्वर को जानने का प्रयास नही किया, और ना कर रहे हैं | अपितु उसी ईश्वर के नाम से मानवों के खून से धरती को रंगने में आनन्द ले रहे है |  यहाँ तक के खून खराबा भी दुनिया बनाने वाले के नाम से कर रहे हैं | और लोगों को यह बता रहे हैं की यही रास्ता ईश्वर का है हमारे साथ आव, तो ईशर के दिए ऐश व आराम, जो दुनिया में, वह सुख तुमहें नही मिल सकते वही  सुख देने का ईश्वर ने हम से वादा किया है |

ऋषि ने कहा की वह ईश्वर के गुण ही नही हैं, तुम ने ईश्वर को जाना ही नही अपने मनमानी ईश्वर बनाया है | कारण ईश्वर का स्वभाविक गुण है प्राणी मात्र को सुख देना, फिर वही ईश्वर किसी को मार ने का आदेश दे, तुम किसी का खून करो, वह भी तुम्हारे अपने सुख के लिए, की तुम वहां सुख भोगो, खाने पीने से लेकर अपसराओं से अपनी ईच्छा की पूर्ति करो यह ईश्वर का आदेश हो ही नही सकता ?

तुम दुनिया वालों ने ईश्वर को जाना ही नही की ईश्वर, जो दुनिया का बनानेवाला, सृजनकरने वाला, उसे स्थिति में लाने वाला, फिर इसका प्रलय करने वाला, और मनुष्य मात्र को उसके किये कर्मों का फल देने वाला है |

वह मानव को कभी किसी को मारने का आदेश दे, वह ईश्वर का आदेश का होना संभव ही नही है | यह बहुत बड़ी भुल है जो मानव कहलाकर ईश्वर का हुक्म बताते हुए दूसरे का खून करें और उपर से इसे अपने को स्वर्ग वासी कहे, यह सरासर अन्याय है मानवता पर कुठारा घात भी है,यह आदेश ईश्वर का होना ना उचित है, और ना संभव ?

और अगर यही आदेश है उस ईश्वर का जिसे तुम ईश्वर कहते और बताते हो, यह भी बे मानी है, वह ईश्वरीय ज्ञान का होना संभव ही नही हो सकता | कारण वह ईश्वर के गुण ही नही है, जो ईश्वर एक गुण वाचक शब्द है, उसमें यह अबगुन वाला दोष लगेगा, और उसका नाम भी दूषित हो जायगा |

ऋषि का कहना है की यही तो काम है मानव कहलाने वालों का, की वह दुनिया के बनाने वाले उस ईश्वरको जानें, उसे बिना जाने ही किसी को ईश्वर कह देना यह मानवता की बातें नही है | कारण मानव तो वही है जो अन्यों के सुख दुःख लाभ, और हानी का समझने वाला है | अगर तुमने अपने सुख की प्राप्ति के लिए स्वर्ग वाली अपसराओं के आगोश में जाने के लिए, पवित्र शराब, और परिन्दों के मांस का कबाब पाने के लिए किसी मानव का कत्ल किया, और इस पर भी वह परमात्मा का आदेश कहते हो, तो तुमलोगों ने उस परमात्मा को जाना ही नही | यह परमात्मा का आदेश होना ना संभव है और ना उचित ही है | और दूसरों का मारना अपने सुख केलिए यह हुक्म परमात्मा का हो, वह ना तो परमात्मा है,और यह वाणी भी उसका होना संभव नही, कारण अगर तुमने दुसरे का क़त्ल किया, तो लोग तुम्हें कातिल कहेंगे,हत्यारे ही कहेंगे, और तुम्हारे ऐसे करने पर जो तुम्हें स्वर्ग वासी बनादे वह परमात्मा हो ही नही  सकता | पर हाँ उसे अल्लाह के नाम से पुकार तो सकते हो किन्तु ईश्वर के नाम से नहीं |

ईश्वर ने अपने सृजन में मानवों को सबसे उत्कृष्ट प्राणी कहा, और वही परमात्मा मानव को निकृष्टतम कार्य करने का आदेश दे यह ईश्वर का आदेश ही नही है | ईश्वरने मनुष्यों को ज्ञान दिया है कर्म करने के लिए,और मनुष्य उत्कृष्ट प्राणी होने के लिया मनुष्यों का काम भी उत्कृष्ट होना चाहिए. वरना मानव उत्कृष्ट प्राणी नही कहला सकेगा |

जैसा दुनिया में भी किसी का बच्चा कोई गलत काम करता है, तो लोग उसे माता, पिता का ही गलती मानते है, और कोसते भी हैं, कि माँ बाप ने इसे कुछ भी नही सिखाया संस्कार नहीं दिया आदि | यहाँ पर भी बात ठीक यही होगी, कारण हम उसी परमात्मा के ही सन्तान ठहरे, तो हमें भी अपने पिताके गुणों को धारण करना चाहिए, वरना हम उसके पुत्र कहलाने के अधिकारी नही बन सकते |

पर जो लोग औरों का क़त्ल करना ईश्वरीय आदेश मान रहे हैं, उन्हों ने ईश्वर को पिता माना ही नही, और अपने को उसका सन्तान भी नहीं मानते | उनकी मान्यता यह नही की ईश्वर किसी और के पिता हो सकते हैं, किन्तु हम लोगों के वह पिता नहीं | हमारी यह मान्यता ही नही है की वह हमारे पिता है, और ना ही उसके हम सन्तान | यह कहना है कुरान के मानने वालों का |

ऋषि कहते हैं यही तो समझने में हम गलती कर रहे हैं, की पिता का यह अर्थ नही कि वह मात्र जन्म दे | वही पलनेवाले हैं, पालायती त: पितः =पालने वाला भरण पोषण करने वाला आदि होने के कारण ही वह पिता हैं | अब कोई कहे की उसने पाला कैसे ?भरण पोषण कब किया आदि ?

तो मैंने कल अपने लेख में दर्शा दिया था कि हमारे मांगने से नही कितु उसके पहले से ही उसने हमारा ख़ुराक के रूपमें माँ के आंचल में दूध दे दिया | तो क्या वह पानले वाला भरतार {भरनेवाले}नही ?क्या वह हमारा पालक और पोषक नही हुवा ?

ऋषि ने हवाला दिया वेद का =त्वंहीन:पिता वसो त्वं माता=त्वमिव माता च पिता त्वमिव त्वमिव बन्धुश्च सखा त्वामिव | और =स नो बन्धुर्जनिता = वाला मन्त्र को दार्शते हुये बताया- हे मनुष्यों वह परमात्मा अपने लोगों के भ्राता के समान सुखदायक सकल जगत् का उत्पादक वह सब कामों को पूर्ण करने हारा सम्पूर्ण लोकमात्र और नाम, स्थान, जन्मों को जानता है और जिस सांसारिक सुख दुःख से रहित नित्यानान्द्युक्त मोक्षस्वरुप,धारण करनेवाले परमात्मा में मोक्ष को प्राप्त होके विद्वान लोग स्वेच्छा पूर्वक विचरते हैं, वही परमात्मा अपना गुरु,आचार्य, राजा,और न्यायाधीश है | हम सब लोग मिलके सदा उसकी भक्ति करें, और आनंद में रहें |

यह है ऋषि के मन्तव्य, दुनिया के लोगों परमात्मा को, ईश को जानों पहले, मानों बाद में, उसे जाने बिना उसका मानना संभव ही नही है, उसके नाम से खून बहा कर उसका नाम बदनाम ना करो यह मानवता विरोधी है |

पहले अपने को मानव होने का परिचय दो फिर उसके बाद ही तुम परमेश्वर के भक्त बन सकते हो, और अगर उसके भक्त ही नही बनपाए तो परमात्मा का सुख तुम्हें कभी भी नसीब होना नही | परमात्मा अगर कातिलों से स्वर्ग भरेंगे, फिर वह परमा पूण्य करने वालों को कहाँ स्थान देंगे भला ? इस लिए परमात्मा कौन है, क्या है, कैसा है, उसमें गुण क्या है, क्या उसमें कोइ अवगुण हो सकता हैं अथवा नही, यह सब जानने का विषय है, उसे बिना जाने उसका पाया जाना संभव ही नही है | आव अगर मानव कहलाना चाहते हो तो हम परमात्मा को पहले जानें और उस से सुख को प्राप्त करने का तरीका,या ढंग क्या है उसे भी जानें | धन्यवाद केसाथ महेन्द्रपाल आर्य =वैदिक प्रवक्ता = 12/2/23

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