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ऋषि विचार का उलंघन ही आर्य समाज है ?
Mahender Pal Arya
21 Jul 20
[post-views]
ऋषि विचार का उलंघन ही आर्य समाज है ?
वैदिक मान्यताका उजागर,ऋषि ने विषपीकर किया
मैंने सत्य सनातन वैदिकधर्म को जानकर अपनाया, मुझपर किसी ने जबरन थोंपा नही और न किसी के दबाव में आकर वैदिक धर्मी बना |
मैं कोई नादान, न समझ बच्चा भी नही था की लोग मुझे बहका कर किसी प्रकार कोई अपनी बात मनवा किया हो |
वैदिक धर्मी बनने से पहले मैंने पूरी तहकीकातकी,आखिर सत्यार्थ प्रकाश में जो ऋषि दयानन्द ने लिखा है वह कहाँ तक सही है ?
और यह सभी निरक्षण मैंने, जिला बागपत बरवाला में बड़ी मस्जिद का इमाम रहते हुए भली प्रकार जानने और समझने के बाद ही सत्य सनातन वैदिक धर्म को स्वीकारा |
मैं उसदिन यह भी कहा था अपने वकतव्य में, की मैं धर्म नही किन्तु समाज बदल रहा हूँ | इस्लाम टिकी है अन्ध विश्वास पर, जिसमें जानने का आदेश नही सिर्फ मानने का नाम ही ईमान है |
जो इस्लाम की बुनियाद है, जिस पर मैंने अब तक बहुत कुछ लिखा पुस्तक लिखकर दुनिया को बता दिया धर्म, और मजहब के भेद को, इस्लाम धर्म नही है और न धर्म का होना संभव है |
यहाँ तक की मैंने कुरानानुसार ही दिखा दिया की यह कलामुल्ला होना संभव नही, जो किसी व्यक्ति विशेष को, उसकी मुल्क की भाषा में उपदेश अल्लाह का हो, वह अल्लाह पर भी पक्षपात का दोष लगता है यह सारा प्रमाण मैंने कुरान से ही दिया है अपनी पुस्तक में |
मैंने ऋषि दयानन्द को ज्यादा से ज्यादा पढ़ा, वैदिक सिद्धांत को जानने के लिए अनेक वैदिक विद्वानों को पढ़ा नाम लेने पर पूरा पेज भर जाय गा | मेरी रूचि सिर्फ वैदिक सिद्धांत क्या है उसे ही समझना था जानकारी लेनी थी |
मैंने वैदिक कर्मकांड को भी बहुत जानने और समझने का प्रयास किया, जिसमें दो कर्मकांडी सिद्धांत के मरमज्ञ स्वामी मुनिश्वरानंद जी जो उनदिनों सन्यास आश्रम गाजियाबाद में रहे,स्वामी प्रेमानंद जी अमर स्वामी जी,के पास स्वामी शक्तिवेश लेजाया करते थे, आचार्य उदय वीर जी भी उनदिनों सन्यास आश्रम गाजियाबाद में ही रहते थे |
दूसरा कर्मकांडी विद्वान श्री युधिष्टिर मीमांसक जी. के सानिध्य में कुछ समय लगाकर कर्म कांड को भी जानने का प्रयास किया जो मेरी पहली पुस्तक है मस्जिद से यज्ञ शाला की ओर में विस्तार से लिखा हूँ उसमें |
ऋषि दयानन्द के संस्कारविधी, और पञ्चमहायज्ञ विधी को भी इन विद्वानों के सानिध्य में रहकर पढ़ा और जाना है | इन्ही विचारों को ऋषि दयानन्द जी ने विष पान कर ही आर्य जनों को दिया है, अर्थात इन विचारों को उजागर करने के लिए ऋषि को लोगों ने विष दिया था |
जो कर्मकांड के नाम से लोगों को लुटते थे, ऋषि मन्तव्य को समझने को तैयार नही थे अपने रास्ते से हटाने के लिए ऋषि को विष देने में न घबराये और ना डरे वह लोग |
यानि कुल मिलाकर दयानन्द को विष पान करना किस लिए पड़ा सिर्फ विशुद्ध वैदिक सिद्धांत, वैदिक विचारों को जन,जन तक पहुँचाने के लिए, सत्य क्या है,असत्य क्या है उसे मानव समाज में बताने के लिए ऋषि दयानन्द को विष पान करना पड़ा था |
क्या आज आर्य समाजों में अथवा आर्यों के गुरुकुलों में ऋषि दयानन्द के बताये अनुसार कर्मकाण्ड हो रहा है ? क्या हमारा कर्मकांड कैसा हो ऋषि ने नही दर्शाया ?
अगर दर्शाया है तो उसपर चलना चाहिए उसी के अनुसार हमारा कर्मकांड होना चाहिए, अथवा हमें अपनी मनमानी करनी चाहिए ?
अगर ऋषि के अनुसार हमारा कर्मकांड होना चाहिए, तो ऋषि दयानन्द जी ने कहाँ लिखा या बताया हैं 251 कुण्डीय यज्ञ करो, अथवा वेद पारायण यज्ञ होना चाहिए आदि ?
जब यह मान्यता ऋषि की नही है तो इसको हमलोग किसलिए करते हैं, क्या हम दुनिया वालों को यही बताना चाहते है की ऋषि दयानन्द ने हमें कर्मकाण्ड बताया ही नही ?
अभी मैं देखा गुरुकुल गौतम नगर का एक हेन्डबिल,जिसमें चतुर्वेद ब्रहमपारायण महायज्ञ 16 नवम्बर से 6 दिसम्बर 2015 तक मनाया जा रहा है |
इसमें किन किन वेदों से आहुति डाले जायेंगे वह सभी तिथि अनुसार ही डाला गया है | इसमें यजुर्वेद पारायण 25,नवम्बर से 26 नवम्बर तक चलेंगे | मेरा प्रश्न है इन सभी आर्यजगत के सन्यासी और विद्वानों से, की यही यजुर्वेद के कुछ मन्त्र को ऋषि ने अन्तेष्ठी प्रकरण में लिखे हैं संस्कार विधी में, क्या उन मन्त्रों से भी आहुति डलवाए जायेंगे ?
अगर हां तो किसलिए क्या यह मान्यता दयानन्द की है, अथवा आप लोगों की अपनी बनाई हुई है ?
ठीक इसी प्रकार का एक हैण्डबिल और सामने आया, जो 2016 फरवरी के,5 ,6 .7 ,को अजमल खां पार्क में मनाने की सुचना दी गई है | जिसमें 251 कुण्डीय विराट यज्ञ किया जायगा लिखा है, इसमें और भी लिखा है हजारों की संख्या में पहुंचकर आर्य समाज की विराट् संगठन शक्ति का परिचय दें |
मेरा कहना इन आर्य कहलाने वालों से है की आप यज्ञ करने में अपनी संगठन शक्ति का परिचय दे रहे हैं | क्या आप लोगों को यह परिचय उस समय नही देना चाहिए था, जब सार्वदेशिकसभा में कब्ज़ा किया गया था ?
क्या यह परिचय उस समय नही देना चाहिए था जब दिल्ली के 30 हजारी कोर्ट में सत्यार्थ प्रकाश पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए रिट दाएर हुई थी ?
उस समय आप का यह संगठन कहाँ था उस वक्त आप जैसे आर्य समाजी कहलाने वाले कहाँ सो रहे थे ? मतलब साफ है की यह सारा तांडव आप लोगों का ही किया कराया हुवा है, दुनिया तो यही समझ रही है इस पर क्या जवाब है आप अर्याकह्लाने वालों के पास?
महेन्द्रपाल आर्य= 17=11=015=को लिखा था, अज पुन: याद दिला रहा हूँ | 21/7/20 को =