Vaidik Gyan...
Total:$776.99
Checkout

ऋषि विचार कितना शुक्षम,और कितना सठीक हैं देखें

Share post:

धरती पर मानव को परमात्मा ने सभी प्राणियों में सबसे उत्कृष्ट, प्राणी बनाया, सबसे ज्यादा जिम्मेदारी भी परमात्मा ने मनुष्यों को दिया | साथ ही साथ यह भी बताया मानव मात्र को, कि तुम्हें जो अक्ल हमने दी है वह इस लिए कि तुम भले बुरे को पहचानो, धर्म अधर्म को जानों | सत्य असत्य पर विचार करो अपनी अकलमंदी पर, घमंड मत करो अदि यह जितने भी उपदेश परमात्मा के है, वह सभी मानव मात्र के लिए है परमात्मा ने उपदेश देने में किसी के साथ भेद भाव नही किया |

{यथेमांम वाचम् कल्याणि अवदानि }  यः कल्याणि वाणी मानव मात्र के कल्याण के लिए है|  यहाँ परमात्मा ने किसी के साथ कोई भेद भाव नही किया, ना किसी हिन्दू को उपदेश दिया और ना किसी मुस्लिम, या ईसाई को कहा |

कारण बड़ा ही स्पस्ट है कि परमात्मा ने, उपदेश मानव बनने को मनुर्भ: कहा मानव बनो बताया अब परेशानी कि बात यह हुई कि धरती पर आकर हम मानव बनने के बजाय,हिन्दू, मुस्लिम, सीख, और ईसाई जैनी, बौधि बन कर हम दुनिया में शांति के बजाय अशांति फ़ैलाने लगे |

हमारा कर्तव्य था प्राणी मात्र को सुख पहुंचना, सुख भी हम अपने आचरण से ही पहुंचा सकते हैं, दूसरा कोई उपाय किसी को सुख पहुँचाने का नही है | और इसी आचरण से ही हम अपना नाम बदल देते हैं, जैसा अच्छा आचरण वाले का नाम मानव,और बुरे आचरण वाले का नाम दानव |

अब यहाँ मानव दो हिस्सों में बट गये, एक मानव और दूसरा दानव, यह बटे भी कैसे सिर्फ अपने आचरण से व्यबहार से, और यही व्यबहार ही हमें आशीर्वाद दिलाती है, फिर गाली भी सुनाती है | यही परमात्मा का उपदेश है, कि हे मानव कहलाने वालों तुम हमारे संतान हो, जिसे तुम खुद भी कहते हो मुझे संबोधित करते हुए | त्वमिव माता च पिता त्वामिव.त्वामिव बंधुशच, सखा त्वामिव | त्वामिव विद्या द्रविणंत्वामिव, त्वामिव सर्वम मम् देव देव |

परमात्मा ने उपदेश दिया कि तुम संतान मेरे हो, तो मेरे गुण भी तुम्हारे अंदर होनी चाहिए मेरे संतान हो कर मेरे गुण को धारण नही किया फिर किस अधिकार से मुझे पिता कहते हो मेरे संतान होने का तुम्हें गर्व होना चाहिए | कि जिनके तुम संतान हो वही सब का पालन हार है, वही विश्व के रचयिता हैं, वही सब के रक्षक हैं, वही सब के कर्म फल दाता हैं |

तुम्हें ज्ञान इसी लिए दिया गया कि, तुम्हारी तरक्की, उन्नति, और अबोंन्ति दोनो ही तुमपर निर्भर है तुम्हें प्रयास करना होगा कि तुम क्या चाहते हो ? अगर तुम देवत्व को पाना चाहते हो,उसमें भी तुम्हारा प्रयास है | और तुम देवत्व वाला आचरण नही करते हो, फिर तो तुम   दानवता ही कहलाव गे |

इस लिए यह सारा उपदेश तुम मानव कहलाने वालों के लिए है,अपने अप को तुम मानव कहला सकोगे कब ? जब तुम्हारा आचरण व्यबहार प्राणी मात्र पर दया करने वाला होगा | तुम्हारा आचरण क्रूर ना हो तुम्हारा लक्ष प्राणी मात्र के भलाई का हो, कोई भी अहित तुमसे ना हो जाय, किसी प्रकार का दोष तुममें नही आ सके | यही सारा उपदेश हमारे ऋषियों ने दिया है, यही प्रेरणा परमात्मा से ऋषियों को मिला है, जिसमें किसी का भी अहित नही हो |

महेन्द्रपाल आर्य =वैदिक प्रवक्ता =11/9/16=

 

 

Top