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एक अहम् वैदिक मान्यता की जानकारी

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|| एक अहम् वैदिक मान्यता की जानकारी||
कल मेरे व्हाट्स आप में आचार्य विष्णु मित्र जी का लेख किसीने भेजा था | जिस लेख में 4=5 स्थानों पर सिद्धान्त विरूद्ध बातें थी | मैंने उस लेख पर जवाब लिखकर भेज दिया जिन्होंने मुझे वह लेख भेजा था |

यह मात्र विष्णु मित्र जी ही नहीं अपितु सम्पूर्ण आर्य समाज में प्रचलित है की ऋषि दयानन्द जी ने मृत्यु के समय बोला परमात्मा तेरी इच्छा पूर्ण हो |

यह सम्पूर्ण आर्य समाज में प्रचलित है यही वाक्य = पर यह बात सत्य नहीं है, यह ऋषि के वाक्य ही नहीं है | कारण ऋषि दयानन्द दुनिया में एक ऐसे ऋषि हुए जिन्होने वैदिक मान्यता का प्रतिपादन किया | ऋषि के बताये वैदिक सिद्धांत को आर्य समाज के विद्वान जन ही नहीं समझ सके, तो आर्य समाज के अधिकारी तो इसका ABCD भी नहीं जानते |

मैंने कल लिखा भी की पिछले दिन सत्यार्थ प्रकाश केस दिल्ली हाईकोर्ट से जीतने के बाद, अजमेर परोपकारणी सभा ने मुझे सम्मानित किया था, एक प्रशस्ति पत्र दिया,आर्य आक्षेप उत्तर दाता | इसी फ्रेम में मढ़ा कागज को लेने के लिए मुझे कार्य क्रम छोड़कर अजमेर आना पड़ा था |

सत्यार्थ प्रकाश केस जीतने पर फ्रेम तो पकडाया किन्तु बोलने का समय नहीं दिया | सत्यार्थ प्रकाश सम्मेलन में ही बोलने का समय नहीं दिया | मुझे धन्य वाद करने का भी समय नहीं दिया | चलो कोई बात नहीं मैं वापस आना चाहता था मुझे रोका मेरठ वाले सत्येन्द्र जी ने, उन्हों ने कहा रात्रि का संचालक मैं हूँ आप रुकिए |
रात्रि को मुझे जब बोलने का समय मिला, मन्च की बाइये तरफ ऋषि दयानन्द जी के मृत्यु शैया का एक चित्र लगा था | निचे यही वाक्य लिखा था परमात्मा तेरी इच्छा पूर्ण है | मैंने मन्च पर सवाल किया आर्य जगत के विद्वानों से,की यह झूठ है यह वाक्य ऋषि के है ही नहीं | ऋषि ने परमात्मा के लिए लिखा है वह सदा सर्वदा एक रसमें रहने वाला जिस में कोई परिवर्तन नहीं है | वहआनन्द स्वरूप है,आनन्द से वन्चित नहीं होते |

अब प्रशन है की दयानन्द जी के निधन पर परमात्मा की इच्छा क्या, क्यों, और कैसे सम्भव है ? दयानन्द जी के मरने में परमात्मा की इच्छा कहांसे आ गई, दयानन्द जी के मरने से पहले परमात्मा की इच्छा नहीं थी ? जिस वैदिक सिद्धान्त का ऋषि प्रतिपादन कर रहे हैं, फिर उसी का विरोध ऋषि किसलिए कहेंगे ? मेरी चुनौती का कोई विद्वान जवाब नहीं दिया |

विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में भी लेख निकलता रहता है दिल्ली सभा ने तो एक पुस्तक निकाली उसमें भी यही शब्द लिखा है | और भी अनेक प्रमाण है मेरे पास कलसे आज तक बहुत आर्य जनों ने फोन करके मुझसे पूछा उनलोगों को मैंने यही जवाब दिया | आर्य जगत में विद्वानों की कमी नहीं पर वैदिक सिद्धांतों के जानकार विद्वानों की कमी है | यह वाक्य आर्य जगत के महान पण्डित श्री युधिष्टिर मीमांसक जी के हैं, उन्होंने मुझे आशीर्वाद देकर यही कहा था इसे मैं अपनी पुस्तक में भी लिखा हूँ |
हर आर्य कहलाने वाले इसे पढ़ें और वैदिक सिद्धान्त को जानें उसपर आचरण करें | यही विनती है महेन्द्रपाल आर्य का = 8 =11 =18 =शाम 7, 30 =

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