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एक गंभीर बात जो सोचने की है ||

Mahender Pal Arya
21 Dec 22
27
एक गंभीर बात जो सोचने की है ||
ऋषि दयानन्द जी ने वैदिक परम्परा को उजागर करते हुए आर्यों के लिए कर्मकांड को दर्शाया दो पुस्तकों में || एक का नाम रखा संस्कारविधि दूसरे का नाम पञ्च महायज्ञविधि |
संस्कारविधि में गर्भधान से लेकर अंत्येष्टि तक 16 संस्कार ऋषि ने करने को विधि दिया है | महायज्ञ में 5 महायज्ञ ब्रह्मयज्ञ से लेकर अतिथियज्ञ तक इन पांचों को करने का उपदेश दिया है, इसके अतिरिक्त कर्मकांड और कुछ भी नहीं है वैदिक रीती के अनुसार या ऋषि दयानन्द की नज़रों में |
ये जितने भी कर्मकांड हैं इन सब के मन्त्रों का भी चयन ऋषि ने किया है | कौन से यज्ञ में और कौन संस्कारों में कौन कौन सा मन्त्र बोलना है भली प्रकार ऋषि ने इन 2 पुस्तकों में लिखकर हम आर्य कहलाने वालों को दिया है | इधर आर्य कहलाने वालों की बुद्धि मारी गई कि ऋषि की बातों पे अमल कम करते हैं और अपनी मनमानी बातों को सामने रखते हुए यत्र तत्र अपने मन से मन्त्रों का उच्चार करते हैं और लोगों को प्रभावित करके ऋषि के मंतव्यों के विरुद्ध मन्त्र बोलकर जनता को प्रभावित करना चाहते हैं ,जो काम सर्वथा ऋषि दयानन्द के विचारों से भिन्न हैं और विपरीत भी |
उदाहरणार्थ ऋषि दयानन्द ने ईश्वरस्तुति प्रर्थानोपासना के 8 मन्त्र लिखे हैं, तथा साथ ही साथ ऋषि ने इन मन्त्रों का अर्थ भी लिखा है | किन्तु हमें देखने को मिलता है मन्त्रों के अर्थ जो ऋषि ने किये हैं उसे न बोलकर गीत में उसका अर्थ सुनाते हैं जबकि ऋषि ने जो अर्थ किया है इन गीतों में ऋषि के किये हुए अर्थो से मेल नहीं खाता | जैसा ऋषि ने जो 8 मन्त्र दर्शाए हैं आज तक किसी विद्वान ने इन मन्त्रों को बढ़ाकर 9 या 10 नहीं किया , अथवा इसमें से घटाकर 7 भी नहीं रखा उन 8 मन्त्रों को ही हर जगह, हर समाजों में, हर कर्मकांड में इसे ही बोलते हैं |
प्रश्न यह उठता है क्या ऋषि दयानन्द ने अग्नि में आहुति डालने के लिए कोई मन्त्र का चयन नहीं किया ? अगर किया तो उसके अतिरिक्त मन्त्र आर्य समाज के विद्वान् कहलाने वाले किसलिए बोलते हैं ? दयानन्द ने जो मन्त्र का चयन किया उसके अतिरिक्त हम अपने मन से मन्त्र बोलकर क्या दयानन्द को अनजान और अनभिज्ञ बताना चाहते हैं ? अगर नहीं तो ऋषि ने जो मंत्र लिखा है या बताया है उसे बोलने में हमें परेशानी क्या है ? क्या यह हैरानी की बात नहीं ?
एक बात और है आज आर्य समाज में अथवा आर्य लोगों द्वारा यत्र तत्र वेद पारायण या चतुर्वेद शतकम यज्ञ करते देखने को मिल रहा है | इन अक्ल के दुश्मनों ने यह नहीं सोचा कि ऋषि की दृष्टि में संस्कार 16 है और महायज्ञ 5 हैं इन सभी यज्ञो में आहुति डालने के लिए मन्त्रों के चयन ऋषि दयानन्द के ही किये हुए हैं | ऋषि की बातों को तिलांजलि देकर आर्यसमाज में तथा आर्य कहलाने वाले त्र्यम्बकं यजामहे व स्तुता मया वरदा और यजुर्वेद के अंत्येष्टि प्रकरण के मन्त्र बोलकर भी यजमानों से आहुति डलवा रहे हैं और चतुर्वेद पारायण या चारों वेदों के सौ सौ मन्त्रों से आहुति डलवा रहे हैं, जो मान्यता ऋषि दयानन्द की नहीं है उसे आर्य कहलाने वाले अथवा आर्य समाज के विद्वान् कहलाने वाले इस काम को किसलिये करते हैं मैं नहीं समझ पाया | जो विचार ऋषि के दिए नहीं हैं इस काम को करना आर्य समाज के लोग जरूरी समझते हैं क्या ? फिर ये लोग ऋषि दयानन्द का नाम क्यों लेते हैं क्या यह ऋषि दयानन्द का अपमान नहीं ?
साथ साथ एक बात और भी है, यज्ञ करने के लिए हमारा कुंड कैसा हो, कितना बड़ा हो, जिसकी लम्बाई चौड़ाई गहराई का नाप भी ऋषि के बताए हुए हैं | यज्ञकुंड के चारों दिशाओं में बैठने के लिए चार का चयन ऋषि के किये हुए हैं, जिन चारों का नाम ऋषि ने 1. होता 2. उद्गाता 3.अध्वर्यु 4. ब्रह्मा के नाम से इन चारों का नामकरण किया है | जैसा चारों का नाम अलग अलग बताया गया चारों के जिम्मे में ऋषि ने कार्य भी अलग अलग करने को लिखा है |
जैसा 1. पूर्वाभिमुख बैठने वाले का नाम होता या यजमान जिसको कहते हैं 2. दक्षिणदिशा का मुख उद्गाता का है जो यज्ञ करने में मन्त्रों का चयन है उन्हें बोलने वाले का नाम उद्गाता है 3. का नाम है अध्वर्यु जो यज्ञ की व्यवस्था को करे किसी भी प्रकार का कोई विघ्न न हो पाय | जैसा समय से घी सामग्री समिधा आदि की व्यवस्था को देखे उसका नाम अध्वर्यु है | 4. का नाम ब्रह्मा है जो कि उत्तराभिमुख होते हैं | ब्रह्मा का काम है मात्र निरिक्षण करना कोई गलती तो नहीं हो रही है | मन्त्र का उच्चारण ठीक ठीक हो रहा है या नही आदि को देखना , समिधा ठीक रखी जा रही है या नहीं, किसी प्रकार की कोई वस्तु की कमी न होने पाय कोई भी मन्त्र गलत या उल्टा सीधा न बोला जाय आदि ये देखना ब्रह्मा का काम है |
अब यज्ञकुंड के चारों दिशाओं में चारों का नाम आप लोगों को मालूम हो गया और चारों का काम भी बता दिया गया किन्तु आर्य समाज में होता है ठीक इसका उल्टा चारों दिशाओं में सब यजमान बिठा देते हैं जो ऋषि की विधि नहीं है, और ब्रह्मा एक ऊँचे आसन में बैठकर उद्गाता और अध्वर्यु का काम ब्रह्मा ही करने लगते हैं जो सरासर ऋषि दयानन्द के विचारों से भिन्न है | जब चारों का नाम अलग हुआ, चारों का काम अलग बताया, ब्रह्मा ही सबका काम करने लगे तो यह ठीक क्यों और कैसे ?
आर्य समाज में एक रिवाज़ और चला बहुकुंडीय यज्ञ का, अर्थात दो से लेकर हजार कुंडीययज्ञ तक करने की परिपाटी लोगों ने चलाई है | इसमें देखा गया ज्यादातर लोगों को पैसों के बल पर यजमान बनाया जाता है, विभिन्न कुंड में उन्हें बिठाया गया, इन हजारों कुंड के ब्रह्मा किन्तु एक ही है जो कि सबसे दक्षिणा के हकदार मानते हैं |
प्रश्न तो ये है कि हर एक कुंड में बैठने वालों का नाम वही है जो ऊपर दर्शाया गया, तो फिर इन हजारों कुंड के ब्रह्मा एक कैसे हो सकते हैं भला ? इसलिए ऋषि दयानन्द की मान्यता अनुसार बहुकुंडीय यज्ञ निषेध है, पर इन आर्य समाजी विद्वानों को कौन समझाय भला ये लोग केवल दक्षिणा के लिए सच्चाई को ताक पर उठा कर रखे हैं | न इन्हें कोई बोलने वाला न कोई रोकथाम करने वाला और न ये किसी की बात को मानकर राजी हैं |
इससे आपलोग यह अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ऋषि दयानन्द के किये गए परिश्रम तथा विषपान करना क्या सार्थक हुआ है ? यह बात तथाकथित आर्य समाजियों ने भुला दिया है, और केवल अपनी विद्वत्ता चमकाने में लगे हैं | यह वस्तुस्थिति मैंने आपलोगों के सामने रखना युक्तियुक्त समझा क्योंकि ऋषि सिद्धांत रक्षिणी का मैं व्रती हूँ अर्थात ऋषि सिद्धांत के खिलाफ जो कोई कार्य करे उसे सच्चाई बताना मेरा परम कर्तव्य है | ऋषि सिद्धांत रक्षिणी के नाम से एक सभा बनी थी जिसका मैं मंत्री था, उस समय से मेरी ये प्रतिज्ञा लि हुई थी कि ऋषि सिद्धांत के खिलाफ जो कोई लिखे या बोले अथवा कार्य करे उसे चुनौती देना मेरा मुख्य उद्देश्य रहा है जिसे आज 40 वर्षों से मैं अंजाम देता आया हूँ | आप लोगों से विनती है मेरी बातों को आपलोग भी जांचे परखें और सत्य हो तो इसे स्वीकार करें, और असत्य लोगों का विरोध आप लोगों को भी करना चाहिए |
धन्यवाद के साथ महेंद्र पाल आर्य वैदिक प्रवक्ता 21/12/22