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किसी को मानव बने रहने के लिए जरूरी है ||

Mahender Pal Arya
किसी को मानव बने रहने के लिए जरूरी है ||
अथवा मनुष्य बनने या कहलाने के लिए उसे अपने जीवन में धर्म को तो धारण करना ही पड़ेगा,वरना वह मनुष्य कहलाने के अधिकारी बनेंगे ही नहीं और जो मनुष्य नहीं बना उसे ही हमारे शास्त्र में पशु के समान बताया है । हम मनुष्य हैं इसका प्रमाण हमारे पास क्या है ? पर आप तो कुरान की आयात को शान ए नुजूल बता रहे थे,इन आयतों का शान ए नजूल क्या है जो कसम खा-खाकर बताया जा रहा है ?मानवों को समझाने के लिए अथवा विश्वास दिलाने के लिए अल्लाह कसम खान पड़े यह अल्लाह तो हो सकते हैं,परमात्मा नहीं | धर्म क्या है? पहले सीखें, जो इस्लाम नहीं जानता है धर्म को, न आप जानते हैं तभी तो बड़ा बड़ा धर्म लिखा है ।
तत्राहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमाः।।
शौचसंतोषतपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः।।
(योग दर्शन)
इस बात को समझने केलिए चाहिए दिमाग,जो इस्लाम वालों के पास नहीं है । यहाँ धर्म क्या है? ईश्वर को पाने के लिए पहला कदम ही है ‘अहिंसा’ यानि किसी भी प्राणी को अकारण मन-वचन व कर्म से कष्ट न देना, इसके विपरीत करने वाला धार्मिक नहीं है और न तो वह ईश्वर को पा सकता है । हिंसा करना परमात्मा का सान्निध्य पाने में बाधक है । आप मानते हैं कुरबानी करने से अल्लाह को पाया जा सकता है । आप तो चलनी कह रहे थे हमें, पर आपका तो पूरा पोल है । इस पार से उस पार दिखाई दे रहा है । दूसरा नंबर आया ‘सत्य‘, सत्य को जो न माने, न धारण करे अथवा सत्य पर जो आचरण न करे वह भी धार्मिक नहीं। अब सत्य धरती पर एक ही है जो सार्वभौम सत्य है वह एक और अद्वितीय है। उसी सत्य को अपना लेना ही मानवता या मनुष्य का काम है । सत्यको धारण करना और असत्य को छोड़ने में मानव मात्र को सर्वदा उद्यत रहना चाहिए। अगर सत्य को नहीं अपनाया वह भी धार्मिक नहीं है और धर्म को नहीं माना तो परमात्मा सान्निध्य पाना संभव नहीं है |
कुरान सत्य की कसौटी पर न खरा उतर साकता है और ना ही कुरान के मानने वाले सत्य पर खरा उतर सकते हैं और सत्य को जो नहीं मानता वह धार्मिक नहीं हो सकता, न धर्म हो सकता है। कारण धर्म के अनेकों प्रमाण पहले दे चुका हूँ। ‘ब्रह्मचर्य‘अपने इन्द्रियों को वश में या नियंत्रण में रखना, अकारण कभी भी पौष्टिक तत्व को असावधानी से बाहर होने न देना, यह परमात्मा के बताये रास्ते पर चलने में बाधक हैं । इन ऊँची बातों को इस्लाम क्या जाने भला, जो एक ही रात्रि में 6 पत्नियों से सम्भोग करे वह क्या जाने कि ब्रहमचर्य क्या होता है? जहाँ 52 साल वाले 6 वर्ष की अबोधबालिका से निकाह करे वह क्या जानेंगे धर्म क्या है, सत्य क्या है, ब्रहमचर्य क्या है, ईश्वर को पाने का रास्ता क्या है? जो अपने पालक पुत्र के तलाक शुदा पत्नी से निकाह करे और निकाह भी अल्लाह को कराना पड़े, तो उस अल्लाह को और उस अल्लाह के मानने वाले क्या जानेंगे धर्म को? “अपरिग्रह” यानि जरुरत से ज्यादा सामान एकत्रित न करना, अथवा किसी भी प्रकार अतिक्रमण न करना, अपनी सीमा में रहना, किसी भी प्रकार अपनी सीमा का उल्लंघन न करना, इसके विपरीत आचरण करना धर्म में बाधाएं है । इस काम को करने वाले कभी भी धार्मिक नहीं हो सकते। ‘शौच‘ अर्थात पवित्रता, पाक साफ रहना, बाहर से और अन्दर से शरीर की शुद्धि, तन की शुद्धि, वस्त्र की शुद्धि, स्थान की शुद्धि, मन की शुद्धि, विचार की शुद्धि, और बुद्धि की शुद्धि, यानि किसी भी प्रकार के विकार अथवा गंदगी आने न पाए। इसके विपरीत परमात्मा का पाया जाना संभव नहीं, परमात्मा को पाने केलिए या उससे अपना संपर्क साधने केलिए इसके विपरीत आचरण बाधक है । मन का काम है संकल्प और विकल्प अर्थात् क्या करूँ या न करूं, बुद्धि का काम है निर्णय लेना। अगर बुद्धि बलवान हो तो सही और गलत की पहचान कर सकता है। अगर मन साफ न हो तो किसी मुह बोले बेटे की तलाक पाई पत्नी को निकाह किये बिना घर रख लेंगे, देखें सूरा अहजाब आयत 37 को |
यह सब काम परमात्मा को पाने में बाधक हैं और कुरान के अल्लाह यही काम करवा रहे हैं। अल्लाह का काम अगर यही होगा,तो उसके बन्दों का काम क्या हो सकता है? वह तो दुनिया देख रही है ।
आगे बताया गया है‘संतोष‘ मन में हवस आने न देना, या हवस का शिकार न बनना, जो है जितना है उसी में संतुष्ट रहना, हाय हाय न करना और चाहत की भावना न हो । पास में जितना है उसी में ही परमात्मा को धन्यवाद देना, जिसको प्राप्त करना चाहता है वह प्राप्त न होने पर हताश न होना,विचलित न होना, अपने पुरुषार्थ में कमी न लाना। ‘तप‘,सर्दी ,गर्मी में विचलित न होना, सहन करलेना, अमीरी गरीबी में अपने को तैयार रखना, कि अमीरी में न उछलना, गरीबी में टूट न जाना। दोनों अवस्था को अपने मन मुताबिक बना लेना, इसीको तप कहते हैं। तप उसका नाम नहीं जो पानी के सामने, आग के सामने, कांटे के ऊपर सोना, खड़ा होना, रात भर नमाजे तहज्जुद पढ़ना, महीना भर उपवास रखना, इसमें एक भी तप नहीं और ना ही यह तप कहा जायेगा, तप की परिभाषा ऊपर बता चुका हूँ । ‘
स्वाध्याय‘आर्षग्रंथों को पढ़ना, सत्य शास्त्रों को जानना, पढ़कर उसपर चलना, अपने आपको पढ़ना, यानि हमने दिन भर कितना सच बोला, कितना झूठ, कितना काम परोपकार का किया, कौन सा काम स्वार्थ वाला किया, कौन सा काम निस्वार्थ वाला किया, यह है अपने आपको पढ़ना । किसी की मनघडंत बातों को सत्य न समझना, किसी की कपोल कल्पित बातों को सही जान कर न पढ़ना।
‘ईश्वरप्रणिधान‘ परमात्मा के अस्तित्व को स्वीकारते हुए, जो सम्पूर्ण मानवता के लिए उसका उपदेश है उस पर अमल करना, तदानुसार अपने जीवन को चलाना,उसकी आज्ञा का पालन करना, परमात्मा की आज्ञा मानवता विरोधी नहीं हो सकती । लोग उसी परमेश्वर के नाम से बली चढ़ाने में संकोच नहीं करते और ना ही डरते हैं ।
मौलाना साहब ! आप तो अल्लाह के नाम से कुर्बानी करते बिस्मिल्लाहे आल्लाहुअकबर कह कर, किसी की प्राण हत्या करके भी सवाब लेना चाहते हैं | और यह भी कहते है कि वह अल्लाह मेहरबान है । अल्लाह अगर जीव पर रहम करते और आप उस जीव पर जुल्म ढाएं, तो आपने खुदा के ऊपर खुदकारी नहीं की ? और यह अल्लाह को भी झूठा करार दे दिया कि अल्लाह जिसपर रहम करे उसपर जुल्म करना या उसकी कुरबानी देना इन्सान के लिए संभव न हो सकेगा,तो अल्लाह का मेहरबान होना हर जीवों पर झूठ साबित हो गया ।
तो स्पष्ट यह हुआ कि मानव समाज में पूजा पद्धतिया उपासना भले ही अलग हो किन्तु धर्म का अलग होना संभव नहीं और न तो मानवों का धर्म अलग हो सकता है, कारण परमात्मा पर दोष लगेगा हमारा शास्त्र में मना किया है |