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| कुरान में गैर मुस्लिमों को जीने का हक़ नहीं ||

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| कुरान में गैर मुस्लिमों को जीने का हक़ नहीं ||
तबलीन सिंह नामी एक लेखिका ने टेलीग्राफ पत्रिका में लिखा था कुरआन में किसी को मारने या हत्या करने की बातें नहीं है | कुरान का गलत अर्थ बताकर लोगों को भड़काया जा रहा है | यह लेख मेरे एक मित्र पहाड़ गंज नई दिल्ली के इंजीनियर सुरेश सैनी जी ने मुझे दिखा कर पूछा की पंडित जी यहाँ जो लिखा है सही है ? बहन तबलीन सिंह जी को ज़वाब देने के लिए यह प्रमाण मैंने तैयार की थे |
मेरे इस लेख को पढ़कर हरियाणा जींद से डॉ0 विवेक मुझसे मिलने आये दिल्ली पहाड़गंज में सुरेश सैनी जी के पास बैठ कर, जिनके पास जो इमेल था सब को भेज दिया =105 लोगों को | इसी लेख को पढ़कर मुरादाबाद से श्री राजवीर जी मेरे पास आये दिल्ली, इस लेख का लिखने वाला कौन है ? यह राजवीर जी वही हैं जो बैंक के एक अधिकारी हैं,यह घटना है आज से कुछ साल पहले की | संन 2003 की बात है |
यह लेख कई लाख लोगों में प्रचारित हुवा अबतक सम्पूर्ण भारत में,इसे ज्यादा प्रचारित किया मेरे एक मित्र गाजियाबाद के हैं लाला जी सर्वोदय के नाम से प्रायः लोग उन्हें जानते हैं | दिल्ली प्रशांत विहार के मेरे परिचित एक डॉ0 हैं उनके दामाद हैं गाजियाबाद वाले | मेरे इस लेख को जन जन तक पहुंचाने में उनका बहुत बड़ा योगदान है |
धरती पर जब इस्लाम आया तो इस्लाम के प्रवर्तक ने समूचे धरती पर इसे फ़ैलाने के लिए जो योजना चलाई थी,वे दो दस या दो सौ,पाच सौ वर्ष के लिए नहीं,अपितु धरती पर.जबतक.इस्लाम को रहना है उस समय तक के लिए | अब अनायास ही लोग जानना चाहेंगे कि आखिर वे योजना क्या है ? इस्लाम का आधार कुरान है जिसे लोग होली कुरान या पवित्र कुरान कहते हैं,इस कुरान को लोग पढ़े बिना व बिना जाने समझे इसे धर्म ग्रन्थ कहते हैं और मानते है |
कुछ लोग तो यहाँ तक तर्क देते हैं की कुरान में दूसरों को मारो काटो की बातें होना सम्भव नहीं हैं,यह तो कुरान का गलत अनुवाद किया जा रहा है,कुरान को बद्नाम करने की साजिश है | यह बातें आजकल की बुद्धि जीवी तबलिन सिंह जैसी एक लेखिका पत्रिका के माध्यम से लिख कर दुनिया वालों को बता रही है | आश्चर्य की बात यह है की जिन्हें कुरान का {क} नहीं मालूम- अरबी का {अ} तक नहीं जानती वे दुनिया वालों को कुरान में क्या है बता रही हैं, है न आश्चर्य की बात ?
मेरी प्रार्थना बहन तब्लिन सिंह जी से है की कुरान में क्या है इसे जानने के लिए आप अगर मुझे समय दें तो मैं आप को बता सकता हूँ कुरान में क्या है ? कारण इस कुरान की पढ़ाई मैंने काफी वर्षों तक की है | एक एक अक्षर मैं आप को बता सकता हूँ की आखिर कुरान में अल्लाह ने क्या फरमाया है ? प्रमाण के लिए मैं कुछ आयत प्रस्तुत करता हूँ जिसे आप भी गौर से समझ कर पढ़ें शर्त हैं समझदारी से ही पढना पड़ेगा फिर जान सकती हैं कुरान में क्या लिखा है ?
{1} प्रमाण सूरा सूरा अल इमरान,आयात नो० 19 को देखें {निसन्देह अल्लाह का दीन एक है}
إِنَّ الدِّينَ عِندَ اللَّهِ الْإِسْلَامُ ۗ وَمَا اخْتَلَفَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ إِلَّا مِن بَعْدِ مَا جَاءَهُمُ الْعِلْمُ بَغْيًا بَيْنَهُمْ ۗ وَمَن يَكْفُرْ بِآيَاتِ اللَّهِ فَإِنَّ اللَّهَ سَرِيعُ الْحِسَابِ [٣:١٩]
और अहले किताब ने जो उस दीने हक़ से इख्तेलाफ़ किया तो महज़ आपस की शरारत और असली (अम्र) मालूम हो जाने के बाद (ही क्या है) और जिस शख्स ने ख़ुदा की निशानियों से इन्कार किया तो (वह समझ ले कि यक़ीनन ख़ुदा (उससे) बहुत जल्दी हिसाब लेने वाला है | وَمَن يَبْتَغِ غَيْرَ الْإِسْلَامِ دِينًا فَلَن يُقْبَلَ مِنْهُ وَهُوَ فِي الْآخِرَةِ مِنَ الْخَاسِرِينَ [٣:٨٥]
{2 } प्रमाण
और हम तो उसी (यकता ख़ुदा) के फ़रमाबरदार हैं और जो शख्स इस्लाम के सिवा किसी और दीन की ख्वाहिश करे तो उसका वह दीन हरगिज़ कुबूल ही न किया जाएगा और वह आख़िरत में सख्त घाटे में रहेगा | सूरा अलइमरान= आयात 85

{3} प्रमाण = अरबी में एक प्रवाद है =अल इसलामो हक्कुन वल कुफरो बातेलुन {इस्लाम हक़ है बाकि सब कुफर है सब को बातिल किया गया है}

{4} प्रमाण = अल्लाह ने इस्लाम के मानने वालों को सभी काफिरों को मानरे का हुक्म दिया है
सूरा अन्फाल = आयात 65 =
يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ حَرِّضِ الْمُؤْمِنِينَ عَلَى الْقِتَالِ ۚ إِن يَكُن مِّنكُمْ عِشْرُونَ صَابِرُونَ يَغْلِبُوا مِائَتَيْنِ ۚ وَإِن يَكُن مِّنكُم مِّائَةٌ يَغْلِبُوا أَلْفًا مِّنَ الَّذِينَ كَفَرُوا بِأَنَّهُمْ قَوْمٌ لَّا يَفْقَهُونَ [٨:٦٥]
ऐ रसूल तुम मोमिनीन को जिहाद के वास्ते आमादा करो (वह घबराए नहीं ख़ुदा उनसे वायदा करता है कि) अगर तुम लोगों में के साबित क़दम रहने वाले बीस भी होगें तो वह दो सौ (काफिरों) पर ग़ालिब आ जायेगे और अगर तुम लोगों में से साबित कदम रहने वालों सौ होगें तो हज़ार (काफिरों) पर ग़ालिब आ जाएँगें इस सबब से कि ये लोग ना समझ हैं |

{5} सूरा तौबा =आयात 5 =

فَإِذَا انسَلَخَ الْأَشْهُرُ الْحُرُمُ فَاقْتُلُوا الْمُشْرِكِينَ حَيْثُ وَجَدتُّمُوهُمْ وَخُذُوهُمْ وَاحْصُرُوهُمْ وَاقْعُدُوا لَهُمْ كُلَّ مَرْصَدٍ ۚ فَإِن تَابُوا وَأَقَامُوا الصَّلَاةَ وَآتَوُا الزَّكَاةَ فَخَلُّوا سَبِيلَهُمْ ۚ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ [٩:٥]
फिर जब हुरमत के चार महीने गुज़र जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ पाओ (बे ताम्मुल) कत्ल करो और उनको गिरफ्तार कर लो और उनको कैद करो और हर घात की जगह में उनकी ताक में बैठो फिर अगर वह लोग (अब भी शिर्क से) बाज़ आऎं और नमाज़ पढ़ने लगें और ज़कात दे तो उनकी राह छोड़ दो (उनसे ताअरूज़ न करो) बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है |

यही आयात है जिसपर ओसामा बिन लादेन ने इसपर अमल करते हुए अफगानिस्तान में रमजान के महीने में लड़ने से मना किया था | इसी आयतों पर अमल करते हुए ओसामा बिन लादेन, और सभी आतंक वादियों ने कहा था हम अल्लाह के फौज हैं | हुते अमेरिका में दो टावर को उड़ाया था

{6} सूरा तौबा =आयात 14 =

قَاتِلُوهُمْ يُعَذِّبْهُمُ اللَّهُ بِأَيْدِيكُمْ وَيُخْزِهِمْ وَيَنصُرْكُمْ عَلَيْهِمْ وَيَشْفِ صُدُورَ قَوْمٍ مُّؤْمِنِينَ [٩:١٤]
इनसे (बेख़ौफ (ख़तर) लड़ो ख़ुदा तुम्हारे हाथों उनकी सज़ा करेगा और उन्हें रूसवा करेगा और तुम्हें उन पर फतेह अता करेगा और ईमानदार लोगों के कलेजे ठन्डे करेगा |

बहन तबलिन सिंह जी अब आप बताएं की कुरान के इन आयातों के रहते किसी और कौम के लोग जीबित रह सकते हैं क्या ? क्या कुरान के मानने वाले लोग किसी औरों को जीवित रहने देंगे क्या ? इस में जो दिखाया गया यह अनुवाद इस्लाम जगत के विद्वान् मौलाना फारुख खान के किये गये अर्थ है | शायद आप को पता भी नहीं की सर सैयद अहमद खान साहब ने इस प्रकार की आयातों का अर्थ कुछ और अलंकारिक भाषा में करने का प्रयास किया था

उन्हों ने 30 सिपारा जो कुरान के यह चेप्टर हैं | जिन्हों ने इनमें से 18 चेप्टर का अर्थ अपने हिसाब से किया था | किन्तु अलिगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अधिकारिओं ने उस किताब को प्रिंटिंग प्रेस तक जाने ही नहीं दिया | आजतक वह किताब नहीं है बाज़ार में | आपके विचार से अगर यह अर्थ गलत है अथवा इसका अर्थ गलत किया गया है तो आप को यह जानकारी होनी चाहिए की जब से कुरान का अनुवाद लोगों ने करना चालू किया विभिन्न भाषा में तो हिन्दी अनुवादकों ने सबने यही अर्थ किया है | अगर आप समझती हैं की यह अर्थ गलत है तो आप को चाहियें अपने हिसाब से इस कुरान का अनुवाद आप ही कर डालतीं | आगे देखें =
{7} प्रमाण = सूरा तौबा आयात 20 =

الَّذِينَ آمَنُوا وَهَاجَرُوا وَجَاهَدُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ بِأَمْوَالِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ أَعْظَمُ دَرَجَةً عِندَ اللَّهِ ۚ وَأُولَٰئِكَ هُمُ الْفَائِزُونَ [٩:٢٠]
जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और (ख़ुदा के लिए) हिजरत एख्तियार की और अपने मालों से और अपनी जानों से ख़ुदा की राह में जिहाद किया वह लोग ख़ुदा के नज़दीक दर्जें में कही बढ़ कर हैं और यही लोग (आला दर्जे पर) फायज़ होने वाले हैं |
{8} प्रमाण सूरा तौबा आयात 29 =
قَاتِلُوا الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَلَا بِالْيَوْمِ الْآخِرِ وَلَا يُحَرِّمُونَ مَا حَرَّمَ اللَّهُ وَرَسُولُهُ وَلَا يَدِينُونَ دِينَ الْحَقِّ مِنَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ حَتَّىٰ يُعْطُوا الْجِزْيَةَ عَن يَدٍ وَهُمْ صَاغِرُونَ [٩:٢٩]
अहले किताब में से जो लोग न तो (दिल से) ख़ुदा ही पर ईमान रखते हैं और न रोज़े आख़िरत पर और न ख़ुदा और उसके रसूल की हराम की हुई चीज़ों को हराम समझते हैं और न सच्चे दीन ही को एख्तियार करते हैं उन लोगों से लड़े जाओ यहाँ तक कि वह लोग ज़लील होकर (अपने) हाथ से जज़िया दे |

अब देखें धरती पर जीने का हक़ किसको है ? कुरान की इस आयत में अल्लाह ने मुसलमानों को स्पष्ट रूप से कहा जो अल्लाह को अल्लाह के रसूल को, अल्लाह के दीनेहक को नहीं मानता अल्लाह की किताब को नहीं मानते और जो जजिया टेक्स नहीं देते वे सब वाजेबुल कतल है उसे कतल करदो |
मेरी प्यारी बहन तबलिन सिंह जी अब आप ही बताएं, की मुसलमान अल्लाह के हुक्म को मानें अथवा आपकी बताई बात ? अगर कोई मुस्लमान आप का ही आदेश का पालन करें तो आप उसे एकेलो तो उसे धन्यवाद देंगी ? किन्तु मेरी बहन यह बातें याद रखना की किसी भी मुसलमान को आप का आदेश पालन करना फर्ज़ या अनिवार्य नहीं है | किन्तु अल्लाह का हुक्म का पालन करना हर एक मुसलमान मर्द और औरत के लिए फ़र्ज़ है कर्तव्य | और अगर अल्लाह का आदेश का पालन करते हुए वे किसी गैर मुस्लिम का कतल करदे, सभी मुसलमान उसे शहीद हो गया कहेंगे | जैसा हर कोई मुसलमान जो गैर इस्लामियों के हाथों मरता है वह शहीद कहलाता हैं, उइस्लाम के खातिर मरता है वह शहीद ही कहलाता है अब यह कोई कोरोना वायरस से भी मरेगा व भी शहीद ही कहलायेगा |

और अल्लाह ने उन शहीदों के लिए जन्नतुल फिरदौस देने के वादा किया है इसी कुरआन में | और उसे जन्नत में हर प्रकार की सुख सुविधा देने और मिलने की बात अल्लाह ने कही है | यहाँ तक की जो कोई गैर मुस्लिमों से लड़ता मरे तो वह अल्लाह के नज़रों में मारा नहीं है, और अल्लाह ने भी अपने कुरान में उन्हें मारा कहने को मना किया है की उसे मुर्दा मत खो वह शहीद है | देखें कुरान =
وَلَا تَقُولُوا لِمَن يُقْتَلُ فِي سَبِيلِ اللَّهِ أَمْوَاتٌ ۚ بَلْ أَحْيَاءٌ وَلَٰكِن لَّا تَشْعُرُونَ [٢:١٥٤]
और जो लोग ख़ुदा की राह में मारे गए उन्हें कभी मुर्दा न कहना बल्कि वह लोग ज़िन्दा हैं मगर तुम उनकी ज़िन्दगी की हक़ीकत का कुछ भी शऊर नहीं रखते | सूरा बकर -154

मेरी बहन जी अब आप ही बताएं मुसलमान अल्लाह की मानें या आपकी बात को मानने लगें मुसलमानों को आप की बातों को मानने में फायदा है अथवा अल्लाह की बातों को मानने में फायदा है ? क्या आप उन्हें वह जन्नती हुरें दे सकतीं हैं ? या जन्नती वह पाक शराब, या जन्नत को कोई सुख सुविधा आप के पास हैं ? आप मेरी दी हुई प्रमाणों को कुरान से मिलकर देखें की यही बातें कुरान में लिखी है अथवा नहीं ? आप को जरूरत हो जब भी आप इस कुरान को सत्य और असत्य की तहकीकात के लिए जब आप उचित समझें मुझा बुला सकतीं है| मैं आप को बताने के लिए समय पूरा देना चाहता हूँ अगर आप इसे जानना और समझना चाहती हैं तो | आगे देखें =

{9} प्रमाण सूरा तौबा आयात 29 =
إِلَّا تَنفِرُوا يُعَذِّبْكُمْ عَذَابًا أَلِيمًا وَيَسْتَبْدِلْ قَوْمًا غَيْرَكُمْ وَلَا تَضُرُّوهُ شَيْئًا ۗ وَاللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ [٩:٣٩]
अगर (अब भी) तुम न निकलोगे तो ख़ुदा तुम पर दर्दनाक अज़ाब नाज़िल फरमाएगा और (ख़ुदा कुछ मजबरू तो है नहीं) तुम्हारे बदले किसी दूसरी क़ौम को ले आएगा और तुम उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते और ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है |
{10} प्रमाण तौबा आयात 73 =
يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ جَاهِدِ الْكُفَّارَ وَالْمُنَافِقِينَ وَاغْلُظْ عَلَيْهِمْ ۚ وَمَأْوَاهُمْ جَهَنَّمُ ۖ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ [٩:٧٣]
ऐ रसूल कुफ्फ़ार के साथ (तलवार से) और मुनाफिकों के साथ (ज़बान से) जिहाद करो और उन पर सख्ती करो और उनका ठिकाना तो जहन्नुम ही है और वह (क्या) बुरी जगह है |

{11} प्रमाण सूरा तौबा 84 =
وَلَا تُصَلِّ عَلَىٰ أَحَدٍ مِّنْهُم مَّاتَ أَبَدًا وَلَا تَقُمْ عَلَىٰ قَبْرِهِ ۖ إِنَّهُمْ كَفَرُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ وَمَاتُوا وَهُمْ فَاسِقُونَ [٩:٨٤]
और (ऐ रसूल) उन मुनाफिक़ीन में से जो मर जाए तो कभी ना किसी पर नमाजे ज़नाज़ा पढ़ना और न उसकी क़ब्र पर (जाकर) खडे होना इन लोगों ने यक़ीनन ख़ुदा और उसके रसूल के साथ कुफ़्र किया और बदकारी की हालत में मर (भी) गए |

{12} प्रमाण सूरा तौबा 85 =
وَلَا تُعْجِبْكَ أَمْوَالُهُمْ وَأَوْلَادُهُمْ ۚ إِنَّمَا يُرِيدُ اللَّهُ أَن يُعَذِّبَهُم بِهَا فِي الدُّنْيَا وَتَزْهَقَ أَنفُسُهُمْ وَهُمْ كَافِرُونَ [٩:٨٥]
और उनके माल और उनकी औलाद (की कसरत) तुम्हें ताज्जुब (हैरत) में न डाले (क्योकि) ख़ुदा तो बस ये चाहता है कि दुनिया में भी उनके माल और औलाद की बदौलत उनको अज़ाब में मुब्तिला करे और उनकी जान निकालने लगे तो उस वक्त भी ये काफ़िर (के काफ़िर ही) रहें |

{13} प्रमाण सूरा तौबा आयात 123 =
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا قَاتِلُوا الَّذِينَ يَلُونَكُم مِّنَ الْكُفَّارِ وَلْيَجِدُوا فِيكُمْ غِلْظَةً ۚ وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ مَعَ الْمُتَّقِينَ [٩:١٢٣]
ऐ ईमानदारों कुफ्फार में से जो लोग तुम्हारे आस पास के है उन से लड़ों और (इस तरह लड़ना) चाहिए कि वह लोग तुम में करारापन महसूस करें और जान रखो कि बेशुबहा ख़ुदा परहेज़गारों के साथ है |
{14} प्रमाण सूरा निसा आयात 84 =
فَقَاتِلْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ لَا تُكَلَّفُ إِلَّا نَفْسَكَ ۚ وَحَرِّضِ الْمُؤْمِنِينَ ۖ عَسَى اللَّهُ أَن يَكُفَّ بَأْسَ الَّذِينَ كَفَرُوا ۚ وَاللَّهُ أَشَدُّ بَأْسًا وَأَشَدُّ تَنكِيلًا [٤:٨٤]
पस (ऐ रसूल) तुम ख़ुदा की राह में जिहाद करो और तुम अपनी ज़ात के सिवा किसी और के ज़िम्मेदार नहीं हो और ईमानदारों को (जेहाद की) तरग़ीब दो और अनक़रीब ख़ुदा काफ़िरों की हैबत रोक देगा और ख़ुदा की हैबत सबसे ज्यादा है और उसकी सज़ा बहुत सख्त है

{15} प्रमाण सूरा बकर 191 =
وَاقْتُلُوهُمْ حَيْثُ ثَقِفْتُمُوهُمْ وَأَخْرِجُوهُم مِّنْ حَيْثُ أَخْرَجُوكُمْ ۚ وَالْفِتْنَةُ أَشَدُّ مِنَ الْقَتْلِ ۚ وَلَا تُقَاتِلُوهُمْ عِندَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ حَتَّىٰ يُقَاتِلُوكُمْ فِيهِ ۖ فَإِن قَاتَلُوكُمْ فَاقْتُلُوهُمْ ۗ كَذَٰلِكَ جَزَاءُ الْكَافِرِينَ [٢:١٩١]
और तुम उन (मुशरिकों) को जहाँ पाओ मार ही डालो और उन लोगों ने जहाँ (मक्का) से तुम्हें शहर बदर किया है तुम भी उन्हें निकाल बाहर करो और फितना परदाज़ी (शिर्क) खूँरेज़ी से भी बढ़ के है और जब तक वह लोग (कुफ्फ़ार) मस्ज़िद हराम (काबा) के पास तुम से न लडे तुम भी उन से उस जगह न लड़ों पस अगर वह तुम से लड़े तो बेखटके तुम भी उन को क़त्ल करो काफ़िरों की यही सज़ा है |

{16} सूरा बकर 193 =
وَقَاتِلُوهُمْ حَتَّىٰ لَا تَكُونَ فِتْنَةٌ وَيَكُونَ الدِّينُ لِلَّهِ ۖ فَإِنِ انتَهَوْا فَلَا عُدْوَانَ إِلَّا عَلَى الظَّالِمِينَ [٢:١٩٣]
और उन से लड़े जाओ यहाँ तक कि फ़साद बाक़ी न रहे और सिर्फ ख़ुदा ही का दीन रह जाए फिर अगर वह लोग बाज़ रहे तो उन पर ज्यादती न करो क्योंकि ज़ालिमों के सिवा किसी पर ज्यादती (अच्छी) नहीं |

{17} प्रमाण सूरा बकर आयात 98
مَن كَانَ عَدُوًّا لِّلَّهِ وَمَلَائِكَتِهِ وَرُسُلِهِ وَجِبْرِيلَ وَمِيكَالَ فَإِنَّ اللَّهَ عَدُوٌّ لِّلْكَافِرِينَ [٢:٩٨]
जो शख्स ख़ुदा और उसके फरिश्तों और उसके रसूलों और (ख़ासकर) जिबराईल व मीकाइल का दुशमन हो तो बेशक खुदा भी (ऐसे) काफ़िरों का दुश्मन है |

इस आयत में अल्लाह ने काफ़िर किसे कहा काफ़िर वह हैं जो खुदा को नहीं मानता, अल्लाह के फरिश्तों को नहीं मानता, और अल्लाह की किताब को नहीं मानता, जप अल्लाह के रसूल को नहीं मानता, जिबराइल, और मिकाइल नमी फ़रिश्ता को नहीं मानता और प्रलय के दिन को नह९इन मानता, वह सब अल्लाह के शत्रु हैं काफ़िर हैं |
{18} सूरा तहरीम आयात 9 =
يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ جَاهِدِ الْكُفَّارَ وَالْمُنَافِقِينَ وَاغْلُظْ عَلَيْهِمْ ۚ وَمَأْوَاهُمْ جَهَنَّمُ ۖ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ [٦٦:٩]
ऐ रसूल काफ़िरों और मुनाफ़िकों से जेहाद करो और उन पर सख्ती करो और उनका ठिकाना जहन्नुम है और वह क्या बुरा ठिकाना है |

{19} सूरा इमरान आयात 125 =
بَلَىٰ ۚ إِن تَصْبِرُوا وَتَتَّقُوا وَيَأْتُوكُم مِّن فَوْرِهِمْ هَٰذَا يُمْدِدْكُمْ رَبُّكُم بِخَمْسَةِ آلَافٍ مِّنَ الْمَلَائِكَةِ مُسَوِّمِينَ [٣:١٢٥]
बल्कि अगर तुम साबित क़दम रहो और (रसूल की मुख़ालेफ़त से) बचो और कुफ्फ़ार अपने (जोश में) तुमपर चढ़ भी आये तो तुम्हारा परवरदिगार ऐसे पॉच हज़ार फ़रिश्तों से तुम्हारी मदद करेगा जो निशाने जंग लगाए हुए डटे होंगे और ख़ुदा ने ये मदद सिर्फ तुम्हारी ख़ुशी के लिए की है |

{20} सूरा इमरान आयात 144 =

{20} وَمَا مُحَمَّدٌ إِلَّا رَسُولٌ قَدْ خَلَتْ مِن قَبْلِهِ الرُّسُلُ ۚ أَفَإِن مَّاتَ أَوْ قُتِلَ انقَلَبْتُمْ عَلَىٰ أَعْقَابِكُمْ ۚ وَمَن يَنقَلِبْ عَلَىٰ عَقِبَيْهِ فَلَن يَضُرَّ اللَّهَ شَيْئًا ۗ وَسَيَجْزِي اللَّهُ الشَّاكِرِينَ [٣:١٤٤]
(फिर लड़ाई से जी क्यों चुराते हो) और मोहम्मद तो सिर्फ रसूल हैं (ख़ुदा नहीं) इनसे पहले बहुतेरे पैग़म्बर गुज़र चुके हैं फिर क्या अगर मोहम्मद अपनी मौत से मर जॉए या मार डाले जाएं तो तुम उलटे पॉव (अपने कुफ़्र की तरफ़) पलट जाओगे और जो उलटे पॉव फिरेगा (भी) तो (समझ लो) हरगिज़ ख़ुदा का कुछ भी नहीं बिगड़ेगा और अनक़रीब ख़ुदा का शुक्र करने वालों को अच्छा बदला देगा |

{21} सूरा इमरान आयात 164 =

وَلِيَعْلَمَ الَّذِينَ نَافَقُوا ۚ وَقِيلَ لَهُمْ تَعَالَوْا قَاتِلُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ أَوِ ادْفَعُوا قَالُوا لَوْ نَعْلَمُ قِتَالًا لَّاتَّبَعْنَاكُمْ ۗ هُمْ لِلْكُفْرِ يَوْمَئِذٍ أَقْرَبُ مِنْهُمْ لِلْإِيمَانِ يَقُولُونَ بِأَفْوَاهِهِم مَّا لَيْسَ فِي قُلُوبِهِمْ ۗ وَاللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا يَكْتُمُونَ [٣:١٦٧]
और मुनाफ़िक़ों को देख ले (कि कौन है) और मुनाफ़िक़ों से कहा गया कि आओ ख़ुदा की राह में जेहाद करो या (ये न सही अपने दुशमन को) हटा दो तो कहने लगे (हाए क्या कहीं) अगर हम लड़ना जानते तो ज़रूर तुम्हारा साथ देते ये लोग उस दिन बनिस्बते ईमान के कुफ़्र के ज्यादा क़रीब थे अपने मुंह से वह बातें कह देते हैं जो उनके दिल में (ख़ाक) नहीं होतीं और जिसे वह छिपाते हैं ख़ुदा उसे ख़ूब जानता है |

सम्पूर्ण कुरान में 6,6,66 , आयतें हैं 114 सूरतें हैं 30 सिपारा हैं | इसमें आनेक आयतें हैं जहाँ अल्लाहं ने काफिरों को लुटो मारो पिटो उन्हें लूटकर ले आव उन्हें कतल करो और उस समय तक उन्हें कतल करो जब तक अल्लाह का दीन फ़ैल न जाय पूरी दुनिया में | यहाँ तक की आप लोगों ने यह भी देखा होगा की इस लड़ाई में अल्लाह ने अपने रसूल को जीत दिलाने के लिय्वे अपना फ़रिश्ते को फौज बनाकर भी भेजा कभी एक हज़ार – कभी दो हज़ार कभी तीन हजाए और फिर कभी पाँच हजार तक फौज भेजते रहे काफिरों को मरने के लिए और भी अनेक आयात हैं इसी कुरान में |

यह थोड़ी सी जानकारी मैंने आप को दिया है इसी प्रकार की आयतें कुरान में अनेक स्थानों पर हैं,पिछले 1984 में अखिल भारत हिन्दू महा सभा के उपाध्यक्ष मृत श्री इन्द्रसेन शर्मा जी ने दिल्ली में मेट्रो पोलिटोन मजिस्ट्रेट के पास कुरान की 24 आयातों पर एक रिट डाली थी |
उसके बाद 1985, में कोलकाता उच्चन्यालय में पद्मा खास्तगीर के इजलास में चाँदमल चोपरा और शीतल सिंह जी ने कुरान पर मामला किया था | दिल्ली के अंसारी रोड से एक पुस्तक प्रकाशित किया था सीताराम गोयल जी ने | कोलकता हाई कोर्ट कुरान पिटीशान के नाम से यह पुस्तक आज भी मिलती है |
यहाँ तो मैंने आप को कुरान के कुछ आयातों का प्रमाण या हवाला दिया है जरूरत पड़ने पर और भी प्रमाण प्रस्तुत किया जायेगा | आप जब भी कभी मेरी जरूरत महसूस करें मैं आप से मिलने का समय अवश्य निकालूँगा |
कुरान के अतिरिक्त बुखारी शरीफ की हदीस में भी अनेक प्रमाण मिल जायेंगे इस प्रकार जिहाद के, बुखारी शरीफ में एक चेप्टर है जिसका नाम है किताबुल जिहाद |
इसके बाब नो० 46 हदीस नो० 51 में वर्णन है – अब्दुल्ला इब्ने मस्युद एक सहाबी जिनका नाम अब्दुल्लाह इबने मस्युद था | जो हजरत जी के साथी ने हजरत मुहम्मद से पूछा हमारे लिए नेक अमल क्या है ? किस काम को मैं करूं जो अल्लाह के नज़रों में सही लगे ? उन्हों ने फरमाया पहला अच्चा काम है समय पर नमाज की अदायगी करना अर्थात ठीक समय पर नमाज पढलेना | उन्हों ने फिर पूछा कीऔर भी कोई अच्छा काम तो ज़वाब दिया माँ बाप की खिदमत करना माता पिता का सेवा करना | फिर तीसरी बार पूछा और अच्छा क्या काम है ? तो ज़वाब दिया की अल्लाह के रस्ते में जिहाद करने से बढ़कर अल्लाह के नजदीक और कोई भी अच्छा काम नहीं है |

नोट :- प्रमाण निचे लिखा गया मिलकर देखें | यह है इस्लाम और यह है कुरान और हदीस की बातें | यह अलग होना इस लिए भी संभव नहीं की कुरान तो अल्लाह का कलाम है जिसे अल्लाह ने फरमाया | और हदीस रसूल की कलाम है जिसे रसूल ने बोला है कुरान और हदिसका अलग होना सम्भव नहीं है कारन एक दुसरे के साथ संपर्क जुडा है |
यह प्रमाण के साथ उनदिनों में मैंने लिखकर दिया था यह कागज ख़राब हो रही थी, इसे मैंने फिरसे लिखा है उनदिनों मेरे पास लिखने का साधन नहीं था, यह सारा मैं अपने हाथ से लिखा था | कई लोगों इसकी मांग की जिसे ठीक करके प्रस्तुत किया =महेन्द्रपाल आर्य =16 /4/20

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