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क्या इसे कलामुल्लाह कहते हैं ?
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Mahender Pal Arya
क्या इसे कलामुल्लाह कहते हैं ?
आज सम्पूर्ण जगत में मानव समाज दिशाहीन, है जगत नियन्ता के बारे में, जिसके मन में जो आया उसे ही अपना ईष्टदेव मान लिया और उसका दिया हुवा ज्ञान मानने लगे |
अब वह तर्क के कसौटी पर खरा उतरे न भी उतरे उसकी कोई जरूरत ही नहीं है उसे पत्थर की लकीर मान कर उसके लिए मर मिटने को तैयार हैं | आज सम्पूर्ण जगत में यही हो रहा है मानव कहलाने वाले एक दुसरे से लड़ रहे हैं उसी ईश्वर के नाम से, अथवा ईश्वरीय ज्ञान कह कर पुकार रहे हैं, कुरान, पूरण, बाईबिल और त्रिपिटक के नाम से | जो अभी अभी देखने को मिला म्याह्मार में त्रिपिटक वालों ने कुरान वालों को मार मार भगाया है |
इससे पहले यही कुरान वाले उन त्रिपिटक वालों को मार रहे थे, अब पाशा पलटी तो त्रिपिटक वाले म्याह्मार से रोहान्गिया मुसलमानों से देश प्रायःखाली करवा लिया |
चीन में भी यही हो रहा है इसलाम से चीन परेशान हो कर इसे देश में रहने नहीं दे रहे हैं | चीन ने समझा इस सत्यता को, की इसलाम वालों से परहेज नहीं है, किन्तु इस्लाम वाले जिस इस्लामी शिक्षा पे अमल करते हैं वही दोषी है | इसलिए इस्लामी शिक्षा पर चीन ने प्रतिवंध लगाया | इस्लामी रीती रिवाज़ पर प्रतिवंध लगाया इस्लामी नाम पर प्रतिवंध लगाया इसलाम पर अमल करने पर प्रतिवंध लगाया |
इसलाम के मानने वाले किस किताब को ईशवाणी कहते हैं {कलामुल्लाह } कहते हैं उसके कुछ आयात सूरा निसा {4} का आयत 65 से 69 तक आप लोगों के सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ उसे आप लोग भी पढ़कर देखें की, यह कलाम कनिं अल्लाह के हैं अथवा किसी और के ?
فَلَا وَرَبِّكَ لَا يُؤْمِنُونَ حَتَّىٰ يُحَكِّمُوكَ فِيمَا شَجَرَ بَيْنَهُمْ ثُمَّ لَا يَجِدُوا فِي أَنفُسِهِمْ حَرَجًا مِّمَّا قَضَيْتَ وَيُسَلِّمُوا تَسْلِيمًا [٤:٦٥]
पस (ऐ रसूल) तुम्हारे परवरदिगार की क़सम ये लोग सच्चे मोमिन न होंगे तावक्ते क़ि अपने बाहमी झगड़ों में तुमको अपना हाकिम (न) बनाएं फिर (यही नहीं बल्कि) जो कुछ तुम फैसला करो उससे किसी तरह दिलतंग भी न हों बल्कि ख़ुशी ख़ुशी उसको मान लें | सूरा 4 =आयत 65
وَلَوْ أَنَّا كَتَبْنَا عَلَيْهِمْ أَنِ اقْتُلُوا أَنفُسَكُمْ أَوِ اخْرُجُوا مِن دِيَارِكُم مَّا فَعَلُوهُ إِلَّا قَلِيلٌ مِّنْهُمْ ۖ وَلَوْ أَنَّهُمْ فَعَلُوا مَا يُوعَظُونَ بِهِ لَكَانَ خَيْرًا لَّهُمْ وَأَشَدَّ تَثْبِيتًا [٤:٦٦]
(इस्लामी शरीयत में तो उनका ये हाल है) और अगर हम बनी इसराइल की तरह उनपर ये हुक्म जारी कर देते कि तुम अपने आपको क़त्ल कर डालो या शहर बदर हो जाओ तो उनमें से चन्द आदमियों के सिवा ये लोग तो उसको न करते और अगर ये लोग इस बात पर अमल करते जिसकी उन्हें नसीहत की जाती है तो उनके हक़ में बहुत बेहतर होता –आयत 66
وَإِذًا لَّآتَيْنَاهُم مِّن لَّدُنَّا أَجْرًا عَظِيمًا [٤:٦٧]
और (दीन में भी) बहुत साबित क़दमी से जमे रहते और इस सूरत में हम भी अपनी तरफ़ से ज़रूर बड़ा अच्छा बदला देते | 67
وَلَهَدَيْنَاهُمْ صِرَاطًا مُّسْتَقِيمًا [٤:٦٨]
और उनको राहे रास्त की भी ज़रूर हिदायत करते | 68
وَمَن يُطِعِ اللَّهَ وَالرَّسُولَ فَأُولَٰئِكَ مَعَ الَّذِينَ أَنْعَمَ اللَّهُ عَلَيْهِم مِّنَ النَّبِيِّينَ وَالصِّدِّيقِينَ وَالشُّهَدَاءِ وَالصَّالِحِينَ ۚ وَحَسُنَ أُولَٰئِكَ رَفِيقًا [٤:٦٩]
और जिस शख्स ने ख़ुदा और रसूल की इताअत की तो ऐसे लोग उन (मक़बूल) बन्दों के साथ होंगे जिन्हें ख़ुदा ने अपनी नेअमतें दी हैं यानि अम्बिया और सिद्दीक़ीन और शोहदा और सालेहीन और ये लोग क्या ही अच्छे रफ़ीक़ हैं | सूरा 4 आयत 69 |
मैंने सूरा निसा का 5 आयात यहाँ लिया हूँ देखें इसपर विचार करें की यह कुरानी आयत ईश्वरीय ज्ञान होना या मानना किस लिए उचित हो रहा है ? ईश्वरीय ज्ञान की कसौटी क्या है ईश्वरीय रसूल से क्यों कहने जाएँ की ए रसूल तुम्हारे परवर दीगर की कसम ?यह वाक्य अल्लाह का कैसे हो सकते हैं ? मानव कहलाने वालों परमात्मा ने अक्ल दिया है जरा उसी अक्लसे विचार करके देखें क्या इसे कलामुल्ला कहना और मानना क्यों और कैसे उचित हो रहा है विचार करें |
महेन्द्रपाल आर्य =22 =2 =18