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क्या गंगा नहाने से पाप धुलजाते हैं ?
admin
क्या गंगा नहाने से, पाप धुलजाते हैं,क्या पाप पहले शारीर से करते हैं या मन से,मन को तो धोया नहीं तो शारीर धोने से शारीर के मैल धुले पाप नहीं।
मानव कहलानें वाले हर काम बुद्धि से करते हैं,किन्तु कुछ काम अक्ल पर ताला डाल कर भी करते हैं। कुछ तो उसे धर्म बताकर करते हैं या धर्म का आदेश मान कर करते हैं । भले ही वह अक्ल के विरुद्ध ही क्यों ना हो ।
जब की धर्म वही है जो तर्क के कसौटी पर ठीक ठीक हो अथवा तर्क के कसौटी पर खरा उतरे, सब के लिए धारण करने योग्य हो उसे धर्म कहते हैं ।
अब दुनिया दारों ने गंगा स्नान कर पाप से मुक्ति पाया जा सकता है इसे धर्म के साथ जोड़ दिया, जरा इस बिंदु पर हम विचार करते हैं और तर्क के तराजू पर इसे तौल करऊ भी देखते हैं सत्य हैं अथवा नहीं।
यहाँ मकसद है पाप धोना, तो हमें यह जानना होगा पाप हमने किया कैसे और कहाँ से यानि मनसे किया अथवा शारीर से किया । कोई पाप को अंजाम देने से पहले विचार तो मनमें ही आएंगे। तो पाप कार्य को करने से पहले मनमें विचार आया की इसे करना है। ध्यान रहे उसी समय हमें और आप को सबको रोका पिता ने, की बेटा यह काम मत करो, भय, लज्जा, और , शंका, तीन तरीके से रोका । डर लग रहा है करें ना करें कोई देखेगा तो, पकड़े जायेंगे तो क्या होगा।
यह तीनों बातें मनमें उत्पन्न कराने वाले का नाम ही परम पिता है । वह पिता उपदेश दे रहे हैं मत कर तू तो मेरा ही पुत्र है फिर यह अवगुण किस लिए । हमने उसे नजरअंदाज किया और मन में ठान लिया करही डालो जो होगा देखेंगे । सवाल यह है की पाप तो हम सब मन से करते हैं तो मन को कहाँ और किस चीज से धोया ? कारण नहाने से शारीर तो धूल जायेंगे किन्तु मन को कहाँ धोया गया ? जब की शारीर से पाप को अंजाम दिया बाद में ।
यही कारण है कि मनू का उपदेश है मन की शुद्धि होगी सत्य से, अर्थात सत्य के धारण करने से मन की शुद्धि होगी जिस सत्य को त्यागे बैठे । शरीर को धोकर पाप से मुक्ति पाने का आसान तरीका निकाल लिया लोगों ने ।
यहाँ एकबात और भी है की जो पाप हम मानव कहलाने वाले करते हैं, उस पाप का सजा या दण्ड देंने वाला कौन है ? जवाब तो होगा परमात्म, तो फिर हम लोगों ने पानी को ही मान लिया, कारण यह नहाना सर्दी के मौसम में होता है। और खुली जगहों पे हवा में नहाने की जो तकलीफ है ठण्ड में उसे ही लोगों नें दण्ड समझ लिया जो सरासर गलत है । तर्क विरुद्ध है और ईसी लिए धर्म विरुद्ध भी हो गया । धर्म विरुद्ध आचरण कर भी मानव उसे धर्म मान रहा है, जो मानवता पर भी कुठाराघात है।
यह मत समझना की यह बातें सिर्फ हिंदुओं में ही है, जी नहीं यही बातें सभी, मत मजहब वालों के पास भी है सिर्फ तरीका अपना अपना, अलग अलग, बना रखा है एक दूसरे को मात देने के लिए अलग अलग सिस्टम बनाया और बताया है ।
सब से आसान तरीका ईसाईयों का है यहोबा को मुक्ति दाता मानने पर ही उन्हें मुक्ति मिल जायेगी इतने में ही बात बन सकती है मुक्ति का साधन।
इस्लाम वालों का,तरीका ईमान लाना होगा,अर्थात विश्वास करना,मानलेने का नाम ही ईमान है । इसमें ना तर्क है, ना जानने की जरूरत । समर्पण करदेने का नाम ईमान है । कुल्लो माजाया बिहिररसूलो मिन इंदिल्लाह। अर्थात रसूल ने जो कुछ भी बताया अल्लाह की तरफ से उसे बगैर चूं चिरा, मान लेने का नाम ही ईमान है ।
भले ही वह तर्क के कसौटी पर खरा ना उतरे, उसे मान ना ही है जिसे ईमान कहते हैं । अब देखें तर्क के तराजू पर हम तौल लेते हैं । कुरान में अलाह ने फ़रमाया मूसा नाम के एक पैगम्बर थे उनकी लाठी सांप बनगई, देखें सूरा, आयराफ, 106,107को ।
अल्लाह ने फरमाया हर एक कौम के जुबान में हम ने रसूल भेजी। जब की रसूल उन्हें कहा गया जिन पर अल्लाह ने किताब नाजिल किया जो 4 हैं, जिनके नाम मूसा,दाऊद, ईसा, और मुहम्मद। तो इन चारोँ में संस्कृत जुबान में कौन से रसूल आये ? या इन चारोँ में हिन्दी जुबान किनकी थी ? देखें सूरा इब्राहिम,आयत 4 को ।
मैं सिर्फ नमूना दे रहा हूँ सवालों के घेरे में हैं यह ईमान आगे देखें । सूरा, इनशेकाक, आयत, 1, 2, 3, 4, को आसमान फट जाये गा, अपने रब का आदेश पालन करेगा । और जब जमीन फैला दी जायेगी, और जो कुछ उसके अंदर है सब बाहर फेंक दिए जायेंगे। सूरा, हांक्का
आयात, 16 आसमान फटेगी और उसका खाल खीच ली जायेगी ।
यह नमूना है कुरान भरा पड़ा है इन सभी अवैज्ञानिक बातों को बिना छान वीन किये मान लेने का नाम ईमान है और जो ईमान लाएगा वह पाप से मुक्त हो कर जन्नत में दाखिल होंगे । यह है ईमान और अल्लाह और रसूल और मुसलमान। यह दुनिया वालों को पाप से मुक्ति दिलाने के एजेंट । अब दुनिया वालों के लिए यह समझना ज़रूरी है की सही में ऊपर लिखे प्रमाणों से पाप की सजा भुगत कर मुक्ति मिलती है, अथवा इन सभी एजेंटों से आप लोग मुक्ति पाना चाहते हैं यह निर्णय आप लोगों को ही लेना होगा। धन्यवाद के साथ । महेंद्रपाल आर्य, वैदिकप्रवक्ता, दिल्ली,13 जनवरी 17