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क्या हमने सत्य को कभी जाना है ?

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क्या हम ने सत्य को कभी जाना है ?
हम भारत वासियों ने सत्य को स्वीकार ही कहाँ किया ? हमें जो पाठ गलत पढाया गया आज तक उसी को हम रटे जा रहे हैं, उसे सुधारने का प्रयास कभी भी नही किया और ना करना चाहते |
प्रमाण के तौर पर अल्लामा इक़बाल जो एक कट्टर इस्लामी था मजहबी जूनून जिसमें भरी हुई थी, और इस्लाम के पैरोकार था | उसने कह दिया मजहब नही सिखाता आपस में बैर रखना, आजतक किसी भी मुसलमानों ने इसे नहीं बोला नहीं गाया पर हिन्दू या भारत के बहु संखाक इसे जपते रहते हैं | जैसा रघुपति राघव राजाराम को रटते हैं किसी ने जानने का भी प्रयास नही किया कि सच क्या है ?
पाकिस्थान जाते ही अल्लामा इकबाल ने अपना तराना को बदल दिया, भारत में रहते कहा था हिंदी है हम वतन है हिन्दुस्थान हमारा को | पाकिस्थान जाते ही कहा मुस्लिम हैं हम वतन है सारा जहाँ हमारा | इसके बाद भी भारत के कर्णधारों ने यही मान लिया मजहब नही सिखाता आपस में बैर रखना |
जब कि सत्यता यही है कि इन मजहब परस्त वालों ने मानव को मानव से लड़ाया, मानवता कि हत्या की | इस्लामी कट्टर वादिता की शिक्षा कुरान भरा पड़ा है, जहाँ सिर्फ मुसलमानों की ही बात की गयी है | मुस्लेमीन, मुस्लेमात, मोमेनीन, मोमेनात, कहा गया है, इक़बाल पहले से भली भांति कुरान की इन बातों को जानता था उसके बाद भी कहा मजहब नही सिखाता आपस में बैर रखना |
 
सम्पूर्ण कुरान सिर्फ उपदेश मुसलमानों को ही देता हैं, इस्लाम स्वीकारने को कहता है | यहाँ तक कि जो इस्लाम वाले नही हैं उनके लिए कुरानी अल्लाह का हुक्म है, कि ऐ मुसलमानों उन गैर मुस्लिमों से उस समय तक लड़ो जब तक वह नमाज ना पढ़े रोजा ना रखे जकात ना दे | अगर वह गैरमुस्लिम नमाज पढ़े, रोजा रखे, जकात दे तो उन्हें छोड़ दो |
 
यह है फरमाने इलाही, मैं आज विशेष कर भारत वासियों से और जो लोग अपने को सेकुलर वादी कहते हैं, उन लोगों से पूछता हूँ कि नमाज, रोजा, हज, जकात, यह मात्र इस्लामी मजहब वालों के लिए है, अथवा सभी भारत वासी नमाज, रोजा, हज, जकात देते या करते हैं ?
यह नियम सिर्फ और सिर्फ एक मजहब वालों के लिए ही है, मानव मात्र के लिए नही, इसके बाद भी कोई कहे मजहब नही सिखाता आपस में बैर रखना, तो मैं कहूँगा ऐसे लोगों को बाहर घुमने ना दिया जाय, उन्हें पागल खाने में ही रखा जाय, हमारे आने वाली संतानें जब देख कर हमसे पूछेंगे कि यह कौन लोग हैं? तो जवाब में हम उन्हें यह कह सकें कि यह वह लोग हैं जिन्हों ने धर्म और मजहब को नही जाना है |
मेरे पास आनेकों प्रमाण है, सत्य क्या है और असत्य क्या है जानने के लिए पर भारत के संख्या गरिष्ट लोगों के गले से आज भी उन गुलामी के बेड़ी की निशान को नही मिटा सके | आज भी यहाँ के महात्मा, सन्यासी हो कर उन मजहब वालों को भारत का उद्धारक माने बैठे हैं | यहाँ तक कि भारत के सभी हिन्दू नामधारी राज नेता गण इन्हीं मजहब को धर्म मान रहे हैं |
 
इतना प्रमाण मिलजाने पर भी सत्य को नही जाना स्वीकारना तो दुर की बात है | आज भी यह लोग जानना नही चाहते, कि मजहब ने दोस्ती सिखाई या बैर सिखाया?
 
इतिहास के पन्नों से हमें जानकारी मिलती है कि भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाने की परिकल्पना इस सूफीवाद वालों की रही | जिस खाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के मजार में यह हिन्दू कहलाने वाले चाहे प्रधानमंत्री हो या कोई और, चादर चढ़ाते चादर भेज ते है उनकी जीवनी एक बार इन सभी लोगों को पढ़ लेना चाहिए | कि जिन्होंने इस भारत वर्ष को इस्लामी देश बनाने के लिए हिन्दुओं को मौत के घाट उतारा था |
इसके बाद भी यह हिन्दू उन्हें अपना मानकर उन मरे को चादर उड़ाते हैं जैसे इन्हीं के कोई रिश्तेदार हैं | तो मात्र खाजा नही अपितु जितने भी सूफीवाद के प्रचारक रहे सबके जीवनी पढ़कर देखना चाहिए हमारे इन मजारों के भक्तों को, कि जिन्हों ने इस्लाम को भारत में किस प्रकार फैलाया था ?
 
जिसका परिणाम आज कश्मीर में भारत विरोधी नारा लगारहे हमारे सैनिकों को मार रहे हैं आदि |
हमने या हमारे पूर्वजों ने उन्हें पढ़ाने के लिए ज्ञान देने के लिए विद्यालय खोला, कि पढ़ लिख कर जीवन में तरक्की करें | दुर्भाग्य यह है कि हमारे अन्नखाकर भारत विरोधी नारा लगा रहे हैं और कहरहे हैं, भारत कि बर्बादी तक | इसके बाद भी हमरे नेता गण उसी के हमदर्द बनकर कोई उसे लालसिलाम कह रहे हैं, और कोई कह रहे हैं तुम आगे बढ़ो हम तुम्हारे साथ हैं |
 
यह सभी गलतियाँ मात्र हमारे नेता गणों से नहीं, अपितु इनके जो गुरु थे, जिन्हें यह नेता अपना मार्ग दर्शक मानते हैं, उन्हें भी सत्य और असत्य का ज्ञान नहीं था | जिनको लोग स्वामी विवेकानंद के नाम से पुकारते हैं | जिन्हें पिछले 11 /9/ 17 को हमारे देश के प्रधानमंत्री कार्यक्रम करने और भारतियों को याद दिलाने के लिए अपना समय रखा था |
इन महाशय स्वमी विवेकानन्द जी को ही पता नहीं था धर्म क्या हैं और मजहब किसे कहते हैं ? उन्हों ने सब को धर्म कह दिया | नतीजा यह हुवा की आज उन्ही विवेकानंद के चेले माननीय प्रधानमंत्री बहादुर शाहजाफ़र के मजार में नत मस्तक हो रहे हैं, गुलाबजल छिड़क रहे हैं, अजमेर के खाजा मजार में चादर भेज रहे हैं आदि |
 
हम देख कर भी आचरण में नहीं लाते, विशेष कर इन्ही के राजनीती पार्टी में जितने मुस्लिम नेता हैं उन्हों ने कब गंगा स्नान को पुन्य माना ? अथवा दिल्ली में रहते हुए भी झंडेवालान मंदिर में चुन्नी चढाई, या इस कार्य को करना पुन्य माना है ? क्या यह सभी बातें हमें देख कर भी सीखना नहीं चाहिए ? इस लिए यह सत्यता को स्वीकार नहीं करते की इनके गुरु स्वामी विवेकानंद जी ने कहा सभी धर्म बरा बर है, जिन्हें सत्य और असत्य का ही ज्ञान नहीं है जिन्हों ने खुद ही धर्म को नहो जाना आज लोग उन्हें ही गुरु माने बैठे हैं, यही कारण बना की जो सत्य मानव जीवन का एक मात्र लक्ष्य है उसे ही तिलांजली दे बैठे |
मानव जीवन का उद्देश्य ही आत्मा का सर्वांगींण विकास अहिंसा सत्य यह दो प्रधान आचरण का विषय है | स्वामी विवेकानंद इन दोनों को जानते तक नहीं थे, फिर आचरण की बात कहाँ हो सकती थी भला ?
ऋषि पातंजली ने परमात्मा को पाने का साधन, सबसे पहला अहिंसा बताया है, की हिंसा करने वाला कभी परमात्मा का सानिध्य नहीं पा सकता | इस्लाम की मान्यता पशु काटने की है, इन्हें भी स्वामी विवेकानंद ने धर्म माना है इसी एक बात से अंदाजा लगाया जा सकता है की स्वामी विवेकानंद जी को धर्म की जानकारी थी या नहीं ?
 
इस प्रकार हम हिन्दू कहलाने वालों ने सत्य का त्याग किया है और असत्य के पक्षधर बने | नतीजा आज सामने हैं जो कुछ भी इनके चेले गण कर रहे हैं सब के सब धर्म विरुद्ध कार्य हो रहा है |
 
हिंसा करने वाला कभी परमात्मा को जान भी नहीं सकता, और सत्य को आचरण में लाये बिना परमात्मा का सानिध्य नहीं कर सकता | स्वामी विवेकानंद जी के जीवन से यह दोनों बातें नहीं मिलती, और वेद विरुद्ध कार्य कर गए, वेदांत हमारा एक दर्शन शास्त्र है उससे हट कर अपना मन मानी नवींण वेदांत का जन्म दिया |
जहाँ वह कह रहे हैं प्रत्येक आंत्मा अव्यक्त ब्रहम है, यह वाक्य ही वेदविरुद्ध है फिर भी यह हिन्दू कहलाने वाले उन्हें गुरु मान रहे हैं विश्व के सर्वपरी सन्यासी मान रहे हैं | जो लोग वेद को सब सत्य विद्याओं की पुस्तक है कहते हैं, और वेद का पढना पढ़ाना अपना परम धर्म मानते हैं, वह भी मात्र लिखने तक ही अपने को सिमित रखा है |
 
इस प्रकार सब ने मिलकर सत्य को नाकारा है जिसका नतीजा आज सबके सामने है, जिन्हें यह गुरु मानते हैं प्रान्त के मुख्यमंत्री, और शिक्षामंत्री तक जहाँ नाक रगड़ते रहे उन्हें सरकारी धन दे कर मालामाल करते रहे आज वह जेल में है | जो खुद इन्सान की उपाधी लोगों को देता रहा आज वही इनके गुरु हैवानियत के दोषी पाए गये यह सब आँखों देखा हाल देख सुन कर भी यह हिन्दू कहलाने वाले वेद ही जिनलोगों का धर्म ग्रन्थ है | उसी वेद की तरफ लोटने का उपदेश सारे ऋषि मुनियों ने दिया है, और यह लोग उसी वेद को ही तिलांजली दे कर वेद विपरीत प्रचारकों को अपना गुरु माना है |
सत्य को धारण करने की जगह असत्य को आचरण में उतारा है, नतीजा भोगना पड़ेगा राम रहीम हो आशा राम हो और यह जितने बाबाओं को आखाडा वालोंने निष्काषित किया है वह भी स्वर्ग बनाकर बैठे थे अपने आश्रम में उन्हें भी नहीं पता था जेल जाना पड़ेगा ? ठीक इसी प्रकार सत्य को छोड़ असत्य को धारण करने का नतीजा भोगना ही पड़ेगा | अभी भी समय है संभल जाव वरना बच नहीं पावगे | महेन्द्रपाल आर्य वैदिक प्रवक्ता = दिल्ली = 7 /11 /20

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