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गाय को भैंस कहने का नाम सेकुलरवाद नहीं |

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गाय को भैंस कहने के नाम सेकुलरवाद नहीं |

इस भाई चारा का क्या दाद दिया जाये ? एक tv चेनल में दिखाया गया पिछले दिनों में, जिसमे कई नेताओं को दिखाया जा रहा था और भाई चारा को दिखाया गया गोल इस्लामी टोपी पहन कर |

अब सवाल पैदा होता है की जो केजरीवाल गाँधी टोपी को अपनी पहचान बनाया जिसमे लिखा मै आम आदमी हूँ | उस टोपी को छोड़ केजरीवाल को गोल टोपी पहनना किसलिय पड़ गया ?

सवाल यह है की भाई चारा के लिए गोल टोपी से ही भाई चारा बनना संभव है ? क्या गोल टोपी ही भाई चारा का सन्देश दिया दुनियाको ? अगर यही बात है तो केजरीवाल को शुरुसे यही गोलटोपी को पहन कर प्रचार करना चाहिए था |

अब दिल्ली के मुख्य मंत्री बन्ने के बाद यह बात याद आयी, की गोलटोपी से ही भाई चारा लाना संभव है ? मै कपिल सिब्बल और कई लोग उनमें दिखाई दिए उन्हें छोड़ता हूँ कारण वह लोग पहले से ही इस देश को बदनाम करने और बर्बाद करने का काम किया है |

जिस गोलटोपी को पहनने वाले लोग हैं उनहोंने बन्दे मातरम् गाते समय लोकसभा से उठ कर जारहे थे, लोकसभा अध्यक्ष के विरोध करने पर भी नहीं माने, तो क्या यह बात उनको नहीं पता था की हमारी यही गोलटोपी ही भाई चारा का प्रतीक है मुझे ऐसा नहीं करना चाहिये, इससे भाई चारा में खलल आ सकती है ?

यह भाई चारा सिर्फ हिन्दुओं के गोल टोपी पहन ने से संभव है ? क्या मुसलमानों के गाँधी टोपी पहनने से संभव नहीं ? यह कौन सा भाई चारा है की गोल टोपी से ही होना उचित है गाँधी टोपी से नहीं ?

कारण अगर गाँधी टोपी से भाई चारा होती तो मुसलमान लोग भी उसे ज़रूर पहन ते | पर मै हैरान इस बात से हूँ की यह हिन्दुओं के लिए गोल टोपी पहनने पर भाई चारा बनती है या होती है ? तो मुसलमानों के लिए गाँधी टोपी पहनने से भाई चारा किस लिए नहीं बनती ? जब हिन्दू गोलटोपी, पहन सकते तो मुसलमानों को गाँधी टोपी पहन ने में क्या दोष है ?

जी हाँ इसलाम में मना है इस काफिराना टोपी को पहनना, किन्तु यह अकलके अंधे और गांठ के पुरे हिन्दुओं को क्या पता की इस्लाम की मान्यता क्या है ? अरे साहब ताली तो दोनों हाथ से ही बजती है, जब हिन्दू इस्लामी टोपी पहनता है तो मुसलमानों को भी चाहिए था रामनामी पट्टा न सही पर गाँधी टोपी को तो पहन लेते ? मेरा सवाल, की भाईचारा सिर्फ हिन्दुओं को ही चाहिए मुसलमानों को नहीं ?

सारे लोग अगर इसी राष्ट्र के हैं तो क्या हमें इस राष्ट्र के हित के लिए एक जुटता दिखाना नहीं चाहिए ? हम हिन्दू हैं तो अपने घरमे हों, अगर मुस्लिम हैं तो अपने घरमे, हम नमाज पढ़ रहे, या आरती उतार रहे तो सब अपनी, अपनी मान्यता को अपने घर में ही रखें |

जहाँ तक राष्ट्र और राष्ट्रीयता की बात है उसमे तो एक जुटता दिखानी चाहिए ? पर ध्यान रखना हिन्दू इस राष्ट्र को अपना राष्ट्र अपनी मात्री भूमि जननी जन्म भूमिश्च सर्गा दपी गरीयसी | यानि जन्म भूमि माता के समान स्वर्ग से भी प्यारा है | यह मान्यता हिन्दुओं के हैं, क्या इस्लाम भी इसको मानता है ? अथवा इस्लामिक मान्यता यही है ?

जी नहीं हरगिज नहीं अगर इस्लाम इसको मानता या मानने की अनुमति होती इस्लाम में तो अपनी पहचान सिर्फ गोल टोपी से न बनाते बल्कि यह इस गाँधी टोपी को भी पहनते | इस्लाम इसकी अनुमति नहीं देता, यह काफिराना लिबास है, काफिराना टोपी है | इसे पहनने पर अल्लाह क़यामत के दिन यानि हशर के दिन उसी कौम के साथ उसे उठाएंगे जिस का पहनावा उसने पहनी |

मन तशाब्बाहा बे कौमिन, यह फतवा उसपर जारी होगा | यही कारण है की इस्लाम के मानने वालों ने उसे जाना उसे अपनाया, पर हिन्दू क्या जाने यह तो गंगा गये गंगा दास, जमना गए जमना दास | यातो आप बिना पेंदी का लोटा जिसे कहते हैं यह वही हैं |

इनको न अपनी संस्कृति का पता न अपनी मर्यादा का पता न अपनी दोस्त और दुश्मनों का ज्ञान, यह जब सांप को दूध पिला ते है या पिला सकते हैं |

तो बताएं की जिन्हों ने विषधर सांप को भी दोस्त मान रहे हों तो इनको अकल कहाँ है ? इनको पता नहीं की उस सांप को मौका मिलते ही तुझे डँसेगे, इतनी दिमाग हिन्दू नहीं रखते और उसी विषधर को गले लगाने में हिन्दू बिश्वास रखता है | जिस कारण यह देश गोलाम बना, इस्लाम, और ईसाइयों का | और इस से आज तक हिन्दू ने कुछ भी नहीं सिखा, यह धोखा हिन्दुओं के साथ किसलिए ?

मै दिल्ली के मुख्यमंत्री से यही सवाल करना चाहता हूँ की आपने अपनी पहचान गाँधी टोपी की बनाई और आप के साथ कई मुसलमान भी हैं जब आप सभी लोग गाँधी टोपी में थे तब भी आपके साथ घुमने वाले इसी इस्लामी टोपी में थे, और हैं रहेंगे भी, आप उन्हें अपनी आम आदमी वाली टोपी नहीं पहना सके | और आज दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने के बाद आपने गोल टोपी को धारण कर लिया, अगर यह गोल टोपी भाई चारा का प्रतीक है तो आप अन्नाके के साथ जब घूमते रहे थे, उस गोल टोपी को भाई चारा का प्रतीक क्यों नहीं माना ? आज ही आपको याद आया की गोल टोपी पहनने से भाई चारा का होना संभव है ? उस वक़्त याद नहीं था ? यातो अन्नाजी से ही कहते की आपने यह गाँधी टोपी को किसलिए पहनी, जब की भाई चारा का प्रतीक तो गोल टोपी है ?

माननीय मुख्यमंत्री जी दिल्ली, याद रखना की यह गोलटोपी इस राष्ट्र के नहीं हुए तो आप के क्या होगे भला ? जो लोग इस राष्ट्र में रहते हैं यहाँ के अन्य जल का भरपूर आनन्द उठाते हैं, अपने बच्चों का पालन पोषण यही के वायुमंडल से करवाते हैं, वह बच्चा जन्म लेते ही जिसको बता दिया जाता है की यह देश तुम्हारा नहीं यह देश काफिरों का देश है |

इस देश में तुम्हे अपनी पहचान बनाकर ही रहना होगा, लिहाज़ा यह गोल टोपी ही तुम्हारी पहचान है | वन्देमातरम् कभी नहीं बोलना यह कुफ़्र है इस्लाम ही हमारी पहचान है, तुम जहाँ भी रहो सामाजिक, और राजनीतिक जीवन में तुम अपनी धार्मिक, जो इसलामिक पहचान है उसे दांवपर न लगाना, जिससे इसलाम को ही सर्वोपरि रखना और इन काफीरों को भी बतादेना की भले ही हम इस राष्ट्र में रहते होंगे किन्तु हमारी प्रधानता इस्लाम ही है |

माननीय मुख्यमंत्री जी दिल्ली, आप के पार्टी का नाम आम आदमी पार्टी है, पर आपको यह मालूम नहीं की आम आदमी तो हर कोई हो सकता है, किन्तु हर कोई मुसलमान नहीं हो सकता | अगर आपको बिश्वास न हो तो महेन्द्र पाल आर्य के इसबात को आजमा कर देखें, की आपके आम आदमी पार्टी में जो मुस्लिम सदस्य हैं उन्हें आपकी पहचान वाली टोपी गाँधी वाली उसे पहना कर दिखाना | यानि आप के साथ जितने भी इस्लाम के मानने वाले है उन्हें भी आप अपनी यही गाँधी टोपी पहना कर दिखाएँ |

दुनिया वालो याद रखना की ईसाई पहनावा भी इसलाम में जायेज नहीं फिरभी इस्लाम में वह क्षम्य है किन्तु गाँधी टोपी क्षम्य नहीं कारण, यह हिन्दुवानी टोपी है | आप सबने देखा होगा की इसलाम का प्रचारक, जिसे इसलाम के कुछ लोगों ने अपनी आका के समान मानते हैं डॉ जाकिर नाईक जो, पूरा ईसाई लिबास में है, पेंट कोर्ट टाई, किन्तु टोपी गोल ही है,असदुद्दीन ओवैसी जो एक बेरिष्टर है वह भी यही गोल टोपी में ही रहता है |

उस ईसाई परिधान में उसे कोई हरज नहीं किन्तु गाँधी टोपी,या गाँधी नुमा टोपी से उसे विरोध है कारण वह काफिराना है |

पर हिन्दू कहलाने वाले इसे देखकर भी समझने को राजी नहीं, कारण हिन्दू आज सेकुलर बन चूका है | पर सेकुलर तो हम भी है, इसका मतलब तो यह नहीं की गाय, को भैस कहने लगे ? क्या इसको सेकुलर बोला जाता है, की जो वस्तु जैसा है उसका उल्टा बोला या समझा जाये ? नहीं वह सेकुलर नहीं, उसका {से} कहीं है और {कूलर} कहीं |

इसलिए मानवता वही है जोवस्तु जैसा है उसे ठीक वैसाही जानना, कहना, और मानना ही मानवता है | तो क्या सेकुलर वादी विचार मानव का है या दानव का  ? जब वह मानव ही नहीं रहेगा तो विचार रखेगा कौण ? इस लिए मै उन सेकुलर वादिओं से कहूँगा की सेकुलर बनने से पहले हमें मानव बनना चाहिए |

असली भाई चारा तो तभी समझी जाएगी मुख्यमंत्री जी, आप गोलटोपी पहन कर ही भाई चारा कैसे करना चाहते, क्या यह मुसलमानों का दायित्व, या कर्तब्य नहीं बनता, की जिस प्रकार आप गोल टोपी पहने हैं उसी प्रकार उन्हें भी आमआदमी पहचान वाली जो टोपी है उसे पहने ?

यह बात जान कर भी अनजान बन कर आप अपने आप को ही धोखा दे रहे हैं | जैसा धोखा आपने वयोवृद्ध, अनुभवी ज्ञान वृद्ध श्री अन्ना हजारे को दिया, और यही गाँधी टोपी को भी दिया है | पर जान लेना की हर कोई भारत वासी आपकी इस चालबाजी में नहीं आनेवाले है | दुनिया के लोग बहुत समझदार है आपके इस दुगली नीति को लोग समझ गए हैं, आप के जितने भी mla है कितने पढ़े लिखे और कितने दूध के धुले हैं वह भी मिडिया वालों ने आप की अदालत में जनता ने देखलिया किस प्रकार आपकी बोलती बन्द करदी |

महेन्द्र पाल आर्य –16 /9 /20

 

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