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गैर मुस्लिमों के दिए अफ्तार से रोजा खोलना हराम है |

Mahender Pal Arya
|| गैरमुस्लिमों के अफ्तार से रोजा नष्ट हो जाता है ||
रोज़ा रखना इस्लाम की पांच स्तम्भों में एक स्तम्भ का नाम है, सूर्य उदय से लेकर सूर्यास्त तक थूक भी गले के नीच तक जाने न देने का नाम है रोज़ा |
सवाल :- रोजा किसे कहते हैं ?
ज़वाब :- {सुबेह सादिक, से गुरूब आफताब तक } नियत के साथ खाने पीने से लेकर नफसानी खवाहिश {मनोइछा } को त्याग देने का नाम रोज़ा है, इसमेंथूक तक हलक ने निचे ना जाने देने को,रोज़ा या,कुरानी भाषा में इसे सौम कहा कहा गया |
इसी रोज़े को सौम या सयाम काहा गया कुरानी भाषा में, और इसी रोज़ा या उपवास को खोलने का नाम अफतार है |
ध्यान रहे यह रोज़ा आठ किस्म {प्रकार } का है {1} फ़र्जे मुयईयंन {2} फ़र्जे गैर मुइययंन {3} वाजिब मुइययन{4} वाजिब गैर मुइययन {5} सुन्नत {6} नफल {7} मकरूह {8} हराम |
फ़र्जे मुइययन, साल भर में एक महिना पूरा रोज़ा रखने का नाम है |
फ़र्जे गैर मुइययन उसे कहते हैं | जैसा कोई कारण वश रोज़ा छुट गया रमजान का, तो कभी भी उसे कज़ा रोज़ा रखने को कहते हैं |
वाजिब मुइययन उसे कहते हैं. किसी ख़ास दिन अथवा किसी ख़ास तारीख को रोज़ा रखने का मिन्नत करने का नाम है |
वाजिब गैर मुइययन= इसे कफ्फारा का रोज़ा भी कहा गया,जैसा किसीने मिन्नत मानी की मेरा यह काम होगा तो मैं अल्लाह के वास्ते तीन रोज़ा रखूँगा |
रोज़ा सुन्नत :- उसे कहते हैं, मूल रूप से, हज़रत मुहम्मद {स} ने जिसदिन रोज़ा रखे थे या जिसदिन के लिए उन्हों ने रोज़ा रखने को कहा, जैसा मुहर्रम का दो {2} रोज़ा,ज़िलहज, क़ुरबानी वाला महिने की 9 वीं तारीख का रोज़ा. अथवा किसी भी महीने के 11,12,13 तारीख में रोज़ा रखना को कहा गया |
नफल रोज़ा को मुस्तहब भी कहते हैं, जैसा फ़र्ज़, सुन्नत, और वाजिब, के बाद, जितना रोज़ा रखने को कहा जाता है | इसमें 6 रोज़ा शववाल,अर्थात इदुल फ़ित्र के बाद, शबेबरात का रोज़ा | जुमे के दिनका, जुमेरात {गुरूवार} या सोमवार के दिन को रोज़ा रखने को कहा |
मकरूह :- रोज़ा उसे कहते हैं :- सिर्फ शनिवार का रोज़ा, सिर्फ मुहर्रम का रोज़ा और पत्नी पति से अनुमति लिए बिना रोज़ा रखने को मकरूह कहा गया |
पाँच दिन रोज़ा रखना हाराम है :- ईदुल फ़ित्र, ईदुज्जुहा, { ईद, बकरीद } यह दो {2} और इदुज्जोहा के तारीख, 11, 12,13 यह तीन {3} दिन =सब मिला कर यह पाँच दिन रोज़ा रखना हराम है |
अब प्रश्न है यह किनके लिए है यह रोजा ? जवाब है प्रत्येक बालिग{जवान} मुस्लिम मर्द और औरतों के लिए | अगर कोई गैर मुस्लिम करे इस काम को, यानि गैर मुस्लिम रोज़ा रखे तो ? जवाब इस्लाम में उसके लिए कोई मान्यता नहीं है | जैसा कोई भी आदमी भूखा प्यासा रहा हो, इस काम से उसका शारीरिक लाभ हो सकता है, किन्तु इस से उसे कोई नेकी { पुन्य } मिलने वाला नहीं है | अर्थात= रोज़ा रखने के लिए मुस्लमान का होना जरूरी है, उसी के लिए फ़र्ज़ है, उसके बदले में अल्लाह के पास किसी और को नेकी { पुन्य } नहीं मिलेगा |
यह इसलाम का तीसरा स्तम्भ है. यानि तीसरा अरकान है जो सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों के लिए ही फ़र्ज़ है { अनिवार्य } अल्लाह का हुक्म है | कोई भी मुसलमान इसे ना करने पर वह गुनाहगार है { दण्ड } के भागी है अल्लाह उसे सजा देंगे |
रोजा रखने के लिए नियत {उद्देश्य } करनी पड़ती है | अगर किसीने रोज़ा रखने का नियत नहीं की और शाम हो गया तो रोज़ा नहीं होगा, दोपहर तक नियत करलेना चाहिए |
नियत वह है दिलसे इरादा करने को कहते हैं, जुबान से कह्लेना भी बेहतर है | इसे यह कहते हैं { बेसौमे गदिन, नवैतोवई तो {अर्थ =मैं नियत करता हूँ रमजान महीने में रोज़े का |
ठीक इसी प्रकार रोज़ा खोलने का नाम इफ्तार है,| जिसे खोलने का नियत है= अल्लाहुम्मा लका सुमतोबिका तावाक्काल्तो अला रिजकेका आफ्टरतो | अर्थ :- शुकर है खुदा का हमें रोज़ा खोलने को जो रिजक दिया है |
अब सवाल यह है की, जब इन शब्दों के उच्चारण कर कुछ अल्पाहार करने का ही नाम इफ्तार है | तो क्या काफ़िर अथवा गैर मुस्लिम अफ्तार करते और करवाते हैं वह लोग ना रोज़ा खोलने की नियत करते है | तो उसे अफ्तार नाम बताना इस्लाम में जाएज है अथवा हराम है ?
आज तक किसी भी इसलाम के जानने और मानने वालों ने इस बात को छुपाया किस लिए ? यह इस्लाम के साथ भी मजाक है और इस्लाम का उपहास भी है | मैंने बहुत बार कहा है की इस्लाम के मानने वाले मुसलमान भारत में रहते हैं सिर्फ और सिर्फ अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए ही, यह लोग इस्लाम की असलियत को नहीं बताते की इस्लाम, किस संकीर्ण विचार धारा का नाम है जो अपने को छोड़ किसी और को फूटी आँखों से देखना नहीं चाहती |
और यह काफ़िर ना तो इस्लाम को जानते हैं, यह भाई चारा बताकर सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों को खुशामद करने का ही यह तरीका अपनाये हुए हैं | अगर कोई काफ़िर अफ्तार पार्टी देता है, तो आज तक किसी भी मुसलमानों ने दुर्गा नवरात्रि के वर्त खोलवाने की पार्टी क्यों नहीं दी ? मात्र हिन्दुओं को मुर्ख बनाने का ही प्रयास है और यह हिन्दू कहलाने वाले आज तक इसकी बुद्धि काम नहीं की |
महेन्द्रपाल आर्य =वैदिकप्रवक्ता = 14 /6 /18 =