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जब मुसलमानों की हाजरी कहीं और लगती तो भारत में इनका क्या है देखें प्रमाण || अब अर्थ देखें -|

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जब मुसलमानों की हाजरी कहीं और लगती तो भारत में इनका क्या है देखें प्रमाण ||
अब अर्थ देखें –
ऐ अल्लाह मैं हाजिर हूँ। मैं हाजिर हूँ। तेरा कोई शरीक नहीं, मैं हाजिर हूँ हम्द व सना तेरे ही लिये है, और नेयमत भी तेरे ही लिए है, बादशाहत भी तेरे ही है, तेरा कोई शरीक नहीं।ऐ अल्लाह मैं हाजिर हूँ, मैं हाजिर हूँ। इस हाजिर होने में स्अद्त व कामयाबी का तलबगार हूँ, खेर तेरे ही हाथ में है। मैं हाजिर हूँ और मेरी लब्बैक तेरे ही तरफ है और मेरा अय्माल तेरे ही लिए है। कंकड़ों और मिट्टी के जर्रों की तायदाद के बराबर। लब्बैक कहते हुए मैं हाजिर हूँ। मर्दों के लिए तल्बियाह का बुलंद आवाज से कहना मुस्तहब है ।
 
और बहुत कुछ है यह भी अच्छी बात है कि हाजरी अल्लाह के पास लगाई जा रही है, अल्लाह की तारीफ तो ठीक है वह करना ही चाहिए वह मानव का ही काम है | पर यहाँ प्रश्न है कि उस जगह ही किस लिए? क्या उसके बाहर अल्लाह नहीं रहते? यही मान्यता ही अन्ध परम्परा है ।
तो क्या अल्लाह को जानकर पुकारा जा रहा है या बिना जाने ही? दूसरी बात जो हम चर्चा कर रहे हैं कि यह इस्लाम का खम्भा है हज करना, या बुनियाद है हज करना, और यह जुड़ा है अरबसे। यही कारण है कि इस्लामी मान्यता अनुसार उसी हज करते वक्त ही उसी जगह जाकर मुस्लमान अपनी हाजरी लगाते हैं अल्लाह के सामने।
यही सब कारण है आप भारत में रहकर भी भारत को अपना नहीं मान सके और यही वह कारण है वंदेमातरम् का विरोध करना। जो पिछले दिन हमारे लोकसभा में देखने को मिला, क्या आप इसे झुठला सकते है? फिर हजरत मुहम्मद को पाए बिना अल्लाह को नहीं पाया जा सकता फिर लाशारिक कहाँ होंगे अल्लाह? जबकि अल्लाहने कहा –
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ أَطِيعُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِيعُوا۟ ٱلرَّسُولَ وَأُو۟لِى ٱلْأَمْرِ مِنكُمْ ۖ فَإِن تَنَـٰزَعْتُمْ فِى شَىْءٍۢ فَرُدُّوهُ إِلَى ٱللَّهِ وَٱلرَّسُولِ إِن كُنتُمْ تُؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْـَٔاخِرِ ۚ ذَٰلِكَ خَيْرٌۭ وَأَحْسَنُ تَأْوِيلًا ٥٩
مومنو! خدا اور اس کے رسول کی فرمانبرداری کرو اور جو تم میں سے صاحب حکومت ہیں ان کی بھی اور اگر کسی بات میں تم میں اختلاف واقع ہو تو اگر خدا اور روز آخرت پر ایمان رکھتے ہو تو اس میں خدا اور اس کے رسول (کے حکم) کی طرف رجوع کرو یہ بہت اچھی بات ہے اور اس کا مآل بھی اچھا ہے
हे ईमान वालो! अल्लाह की आज्ञा का अनुपालन करो और रसूल की आज्ञा का अनुपालन करो तथा अपने शासकों की आज्ञापालन करो। फिर यदि किसी बात में तुम आपस में विवाद (विभेद) कर लो, तो उसे अल्लाह और रसूल की ओर फेर दो, यदि तुम अल्लाह तथा अन्तिम दिन (प्रलय) पर ईमान रखते हो। ये तुम्हारे लिए अच्छा[ और इसका परिणाम अच्छा है। 4/59
قُلْ أَطِيعُوا۟ ٱللَّهَ وَٱلرَّسُولَ ۖ فَإِن تَوَلَّوْا۟ فَإِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ ٱلْكَـٰفِرِينَ ٣٢
کہہ دو کہ خدا اور اس کے رسول کا حکم مانو اگر نہ مانیں تو خدا بھی کافروں کو دوست نہیں رکھتا
(हे नबी!) कह दोः अल्लाह और रसूल की आज्ञा का अनुपालन करो। फिर भी यदि वे विमुख हों, तो निःसंदेह अल्लाह काफ़िरों से प्रेम नहीं करता। 3/32
(ऐ रसूल) कह दो कि खुदा और रसूल की फरमाबरदारी करो फिर अगर यह लोग उससे सरताबी करें तो (समझ लें कि) खुदा काफिरों को हरगिज़ दोस्त नहीं रखता। यानि अल्लाहको पाने के लिए एक मात्र वसीला है हुजुर।
 
एक प्रवाद बड़ा पुराना है आप सभी को याद है या नहीं, वह प्रवाद न मालूम किसने बनाया था और किसलिए,सौ चूहा खाके बिल्ली हज को चली। बिल्ली हज को गयी या नहीं यह तो मैं नहीं जानता,पर इतना हर कोई जानता है कि बिल्ली हज को जाये न जाये, इस्लाम के मानने वालों को जाना पड़ता है। कारण यह इस्लाम की बुनियाद है, जो पिलर न० 5 है। 1- कलमा पढ़ना,2- नमाज पढ़ना, 3- रोजा रखना, 4-जकात देना और 5-वां है हज करना।
 
यह है इस्लाम की बुनियाद, जरूर ध्यान देने वाली बात होगी कि बुनियाद अगर सही नहीं होती है, तो उस पर इमारतें बनना संभव है या नहीं? यह हर अकल रखने वाला इन्सान विचार कर सकता है। अब देखा जाये तो यह जो पांचवां नियम है, वह हर एक केलिए नहीं है, जो पैसे वाला होगा उसके लिए है। किन्तु भारतीय मुसलमानों को भारत सरकार अनुदान देती है, मुसलमानों को हज करने के लिए, अर्थात कुछ खर्चा सरकार देती है और कुछ इनको घर से लगाना पड़ता है ।
 
जो अपने घर से नहीं लगा सकते तो वह हज नहीं कर सकते। अब प्रश्न है कि जो हज नहीं कर सकते क्या उसकी बुनियाद ठीक या सही है या हो सकती है? यहाँ इस्लाम के जानने और मानने वालों का कहना है कि चलो बुनियाद में 4 ईटें तो हैं एक न हो कोई बात नहीं । किन्तु हमारे इसी भारत में अनेक मुस्लमान ऐसे भी हैं जो जकात भी नहीं दे सकते। तो उनके लिए भिंत में तीन ही ईटें लगी हैं। अब यह तीन ईंट वाली भिंत का मकान कब तक टिकेगा? यह किसी को नहीं मालूम कि वाकई में यह मकान टिकाव वाला है या नहीं यह भी कोई नहीं जानता।
 
अब चलें भिंत या पिलर नंबर पांच के पास, जो हज कहा जाता है कि वहां क्या-क्या करने का नाम हज है ? भारतीय मुसलमान भले ही अपने खर्च न सही भारत सरकार से अनुदान लेकर गये, वहां वह करते क्या हैं? उससे लाभ भारत सरकार को है या फिर जो गया उसी को है ? यह सब सोचने और समझने वाली बात है जो हो रही है। यह जब घर से चलते हैं हज केलिए तो अपने साथ कफन (शव=अच्छालन वस्त्र) अपने साथ लेकर ही चलना पड़ता है, उसका कारण,कि वहां कौन देगा वस्त्र इसलिए।
एक मान्यता और है कि जो अरब की धरती पर मरेंगे उन्हें जन्नत नसीब होगी आदि। यह उनकी मान्यता है,कहाँ तक सही है मुझे नहीं पता, पर यह लोग अल्लाह से फरियाद करते हैं कि हमें कुछ नहीं चाहिए, बस मदीने में दो गज जमीन चाहिए।
जब इन्हें जमींन मदीने में चाहिए तो भारत में इनका क्या अधिकार है ? जब यह खुद कह रहे हैं इस बात को तो उन्हें अपने आप ही मदीने में चले जाना चाहिए, कौन रोका है इन्हें ? प्रमाण के साथ लिखा हूँ |
महेन्द्र पाल आर्य 12 /8 /22

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