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जो रात बीती है उसे क्या कहते हैं इस्लाम में ?

Mahender Pal Arya
10 Apr 20
233
जो रात बीती है उसे क्या कहते हैं इस्लाम में ?
पाप से मुक्त होने वाला रात, पर पाप से मुक्ति कौन चाहेगा इसे नहीं जाना |
Shab-e-Barat आज है गुनाहों से तौबा की रात ‘शब-ए-बारात’, जानिए इस्लाम धर्म में क्या है इसका महत्व |
Shab-e-Barat: शब-ए-बारात मुसलमान समुदाय के लोगों के लिए इबादत और फजीलत की रात होती है. माना जाता है कि इस रात को अल्लाह की रहमतें बरसती हैं..इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, शब-ए-बारात शाबान महीने की 15 वीं तारीख को होती है. शब-ए-बारात की पाक रात को मुसलमान समुदाय के लोग इबादत करते हैं और अपने गुनाहों से तौबा करते हैं. शब-ए-बारात |
(Shab-e-Barat) दो शब्दों से मिलकर बनी है, जिसमें शब का मतलब रात और बारात का मतलब बरी होता है. इस्लाम में शब-ए-बारात की बेहद फजीलत बताई गई है. इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, इस रात को अगर सच्चे दिल से इबादत की जाए और गुनाहों से तौबा की जाए तो अल्लाह हर गुनाह से पाक कर देता है.शब-ए-बारात की रात यानी कि गुनाहों से तौबा की रात |
शब-ए-बारात की रात को इस्लाम की सबसे मुकद्दस और अहम रातों में इसलिए भी शुमार किया जाता है क्योंकि इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, इंसान की मौत और जिंदगी का फैसला इसी रात किया जाता है. इसलिए शब-ए-बारात की रात को इस्लाम में फैसले की रात भी कहा जाता है. मिसाल के तौर पर आने वाले एक साल में किस इंसान की मौत कब और कैसे होगी इसका फैसला इसी रात किया जाता है.|
आज है गुनाहों से तौबा की रात शब-ए-बारात …
इस्लाम में शब-ए-बारात की बेहद फजीलत बताई गई है. इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, इस रात को अगर सच्चे दिल से इबादत की जाए और गुनाहों से तौबा की जाए तो अल्लाह हर गुनाह से पाक कर देता है .|.
आप लोगों ने इसे पढ़ लिया होगा पर इसपर विचार और चिंतन नहीं किये होंगे, इसलाम को ईसायत को मानव कहलाने वाले क्यों अपनाते हैं ? इसका मूल कारण यही है की इन दोनों पंथ में पाप से मुक्ति का रास्ता और साधन बताया है | की कितना ही पाप तुम करो सब पापों से मुक्ति पा जावगे | इस रात को अर्थात शबे बारात वाली रात को अल्लाह से अपनी गुनाहों की माफ़ी मागो अल्लाह गुनाहों को माफ़ कर देंगे | बिना भोगे पाप से मुक्ति मिल जाय इससे आसान तरीका और क्या है ? यही तरीका ईसाई और इस्लाम दोनों ने ही माना है सिर्फ तरीका अलग अलग है दोनों के | इसाई कहता है बपतिस्मा लेलो पाप से मुक्त हो जावगे |
इस्लाम कहता है शबे बारात की रात्रि में इबादत करो अल्लाह सभी गुनाहों को बख्श देंगे, इधर हिन्दू कहता है गंगा सागर में स्नान करो पाप से मुक्ति पा जाव गे |
एक मात्र वेद कहता है नहीं नहीं पाप तुम करोगे तो जरुर भुगतना तुम्हें ही पड़ेगा | खाव गे तो उसे निकालना ही पड़ेगा | पाप तुम करो गे तो भोगेगा कौन ? अग्नि में हाथ डाल कर कहो की हाथ जलने से बच जाये यह सम्भव नहीं है |
ईश्वरीय व्यवस्था में आता है पाप और पुण्य का सजा और जजा – अर्थात फल और भोग, यह मानव अधीन नहीं है कोई मानव चाहे वह कितना ही अल्लाह्वाला और ईश्वर के भक्त हो, अपने आप कर्मों का फल नहीं ले सकता और न किसी को दे सकता है | मानव शारीर बनता ही है पाप और पुण्य के आधार पर इसे झुठलाया जाना संभव ही नहीं है | इसे ही पाखंड कहते हैं इस पाखंड से मानव समाज को मुक्त करना मानव का ही काम है | हम सब को प्रतिज्ञा करना चाहिए की मानव समाज को अन्धकार से प्रकाश में लायें धन्यवाद के साथ =
महेन्द्रपाल आर्य 10 /4 /20 ==