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दिमाग से काम न लेने का नाम ईमान है |

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दिमाग से काम न लेने का नाम ही ईमान है ||

 

ईमान क्या है इसे जानना पड़ेगा पहले, ईमान शब्द है अरबी का, जिसका अर्थ है बिना छानबीन किये मानना अर्थात जानो मत, मानो, सिर्फ मानना ही है चाहे वह मानने काबिल न हो,उसे भी मानना पड़ेगा |

हर एक बात को जो कुछ भी कहा गया ईमान के दायरे में उसे सिर्फ स्वीकार करना ही है |

 

मानने काबिल जो बातें नहीं है उसे भी मानना जैसा अल्लाह जो चाहे करदे | इसपर कोई सवाल करना ही नहीं अगर कोई यह पूछे की अल्लाह का काम नियम अनुसार होता है, या अल्लाह का हर काम बिना नियम का होता है ?

जवाब है यह सवाल करना ही कुफ्र है जो कुछ भी बताया गया कुरान और हदीसों में या शरियत की किताबों में उसपर कोई भी सवाल नहीं करना उसे बिलकुल सत्य ही मानना इसका नाम ईमान है |

यह पूछा जाना सम्भव नहीं अगर कोई यह पूछे की जिब्रील ने हज़रत मुहम्मद [स} का सीना चाक किया अर्थात सीना चीरकर दिल को निकाला और आबे जमजम से धोकर उसे सीना में रख दिया | क्या यह बात सच है अथवा सच होना सम्भव है ?

कारण है की अगर दिल को धोना पड़े तो पहला सवाल तो यह होगा क्या दिल गन्दा था ? अगर नहीं तो साफ़ क्यों किया गया ? और वह भी बिना सर्जन बिना हॉस्पिटल बिना दवा बिना मलहमपट्टी और भी गजब की बात है की वह साथ ही साथ ठीक भी होगये यह क्यों और कैसे ?

इसका ज़वाब मिलेगा अल्लाह की तरफ से, क्या तुम्हें जन्नत नहीं चाहिए ? अगर जन्नत जाना है, और जन्नती हूरों को पाना चाहते हो जन्नत का खाना पाक शराब को पाना चाहते हो की नहीं ? अगर पाना चाहते हो तो  सवाल क्यों ?

तुम अपना दिमाग चलाना चाहते हो ? अगर अपने दिमाग से सोचते हो, तो जन्नत से हाथ धोना पड़ेगा इतना जरुर ध्यान रखना | अगर इसे बिन दिमाग लगाये जो बोला गया उसे सच मानते हो तो तुम्हारा मरने के बाद जन्नत पक्की |

जन्नत की सारी सुख सुविधा तुम्हें मोहैया कराई जायगी, और अगर तुमने सवाल खड़ा किया तो जान रखो जहन्नुम का रास्ता तुम्हारा खुल जाएगा, अब यह दिमाग तुम्हें यहाँ लगाना है और यह विचार भी करना है की रास्ता कौन सा चाहिए तुम्हें, जन्नत का या दोजख का ?

अगर दिमाग लगाना चाहते हो तो यहाँ लगाव अपना दिमाग, की मरने के बाद का भी ठेका मेरा लिया है और मैं अल्लाह बोल रहा हूँ | क्या तुम्हें मुझपर विश्वास नहीं है, क्या तुम्हें जन्नत की सुख सुविधा नहीं चाहिए जब मैंने कहदिया अपनी दिमाग से सोचना बंद करो | कब, क्या, क्यों, और कैसे, इससे बाहर निकलो |

किसी भी प्रकार कोई सवाल मत करो जो मैंने कहदिया कुरान में उसे ही मानना पड़ेगा अगर ईमानदार कहलाना चाहते हो तो |

यह छोटा सा विचार मैंने आप लोगों को दिया इसे ईमान कहा गया इस्लाम में, अब मानव कहलाने वालों को विचार करना होगा की क्या हमें आँख बंद करके हर एक बात को मानना चाहिए अथवा विचार पूर्वक ही किसी भी बात पर निर्णय लेना चाहिए ? मत्वा कर्मणि सिब्ब्ते – इस पर चलने वाले का नाम मानव है, अर्थात विचार पुर्वक काम को करना, अगर हमने विचार नही किया तो हम मानव कहलाने के अधिकारी नही है | क्या हमें बुद्धि में ताला डालकर इमानदार बनना है या बुद्धि से काम लेकर बेईमान बने रहना है ?                         महेन्द्र पाल आर्य = 8 /12 /20 =

 

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