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|| देखें कैसा विचित्र बाइबिल की सृष्टि रचना ||

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|| देखें कैसा विचित्र बाइबिल की सृष्टि रचना ||

सृष्टि की रचना कब हुई और कैसी हुई इसे किसने रची, सही में इसे रचने वाला कोई है अथवा अपने आप सृष्टि बन गई, अगर है तो वह कौन है आदि बातों को लेकर मानव समाज में इसकी खोज चलरही हैं निरन्तर |  धरती पर जितने मत और पन्थ के मानने वाले हैं सब ने अपनी अपनी मान्यता अनुसार, ग्रंथों में लिखा है और सब अपने अनुसार ही मानव समाज में परोसा है, चाहे वह तर्क के कसौटी पर खरा ना भी उतरे उसे वह सत्य ही मानते हैं |

सृष्टि रचने वाले के बारे में भी सब की अलग अलग ही मान्यता है किसीने सृष्टि कर्ता को माना है और किसीने मानने से भी इंकार {अस्वीकार} किया है |

पहले हम सृष्टि रचना पर ही चर्चा करते हैं की आखिर सृष्टि की रचना कैसी हुई यह दुनिया कैसी बनी और किस तरीके से बनाया गया है | पहले मैं चर्चा करता हूँ बाईबिल से जिसे ईसाई लोग ईशग्रंथ मानते है अथवा ईश्वरीय ज्ञान मानते हैं | उस बाईबिल में लिखी गई सृस्ष्टि की रचना कैसी हुई उसे पहले देखें, फिर इसलाम की मान्यता को लिखूंगा हूँ |

|| तौरैत अथवा पंचग्रन्थ ||

उत्पत्ति ग्रन्थ, निर्गमन ग्रन्थ, लेवी ग्रन्थ गणना ग्रन्थ, विधि विबरण ग्रन्थ | यह है वह पाँच ग्रन्थ | इसे पंच नामा भी कहते है = इसका परिचय ||

प्राचीन विधान के प्रथम पाँच ग्रंथों को बाइबिल के इब्रानी संस्करणों में तौरैत कहा जाता है जिनका अर्थ है संहिता |इसका कारण यह है की इन पाँच ग्रन्थों में मुख्यत: यहूदियों के विधि निषेध दिए गये हैं |  यह विभिन्न अवसरों पर प्रदत्त उन विधि निषेधों का संकलन है, जिन्हें ईश वाणी, शिक्षा, आज्ञा, आदेश, उपदेश आदि विभिन्न अर्थों में ग्रहण किया जाता है |

ईसाई लोग इन पाँचों ग्रंथों को मूसा के पाँच ग्रन्थ कहते हैं और यह सम्मिलित रूप में पान्च्ग्रंथ के नाम से जाने जाते हैं | इन पाँचों का अलग अलग नामकरण इन में वर्णित विशिष्ट प्रकरणों के आधार पर किया गया है |  पहला उत्पत्ति ग्रन्थ कहलाता है क्यों की इस में सृष्टि रचना का वर्णन है | दूसरा निर्गमन ग्रन्थ कहलाता है क्यों की इस में यहूदियों के निर्गमन का वर्णन है | तीसरा लेवी ग्रन्थ कहा जाता है, क्यों की इस में लेवी वंश के याजकों और उप याजकों के लिए विहित विधि, निषेध दिए गये हैं | चौथे को नामकरण गणना ग्रन्थ किया गया है | क्यों की इस में यहूदियों की जनगणना का विवरण है | पाँचवां विधि विवरण ग्रन्थ कहलाता है | क्यों की इस में प्रायः विधि निषेध का पुनरुल्लेख है |

यह पाँच ग्रंथों का रचयिता संसार में इस्राइल की धार्मिक महत्ता पर वल देता है | वह यहीदी जाति की उत्पत्ति और ईश्वर द्वारा मानव मुक्ति की योजना में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए उस जाति के चुनाव का वर्णन करता है | ईश्वर ने इस विशेष जाति को चुना और इसके लिए एक विधान निर्धारित किया | साथ ही उसने यह वचन दिया की मुक्ति डाटा इसी जाति में जन्म लेंगे |

कुछ दिनों पहले तक सामान्यतः यह माना जाता था कि इन पाँचों ग्रंथों की रचना मूसा ने की है| वैसे पंचग्रन्थ में कहीं भी इस बात का उल्लेख नही है कि मूसा इन ग्रंथों के रचयिता हैं |   यत्र तत्र ऐसा उल्लेख मिलता है की मूसा ने यह लिखा है | लेकिन यह केवल उस अंश विशेष के लिए है न कि सम्पूर्ण ग्रन्थ के लिए | उन्नीसवीं शताव्दी के अंत में समालोचकों ने इन ग्रंथों की रचना के सम्बन्ध में विभिन्न मतों का प्रतिपादन किया है | उनका मत है की पचग्रन्थ का संकलन विभिन्न स्रोतों से किया गया है | कुछ चार प्रमुख स्रोतों का उल्लेख करते हैं और कुछ इस से अधिक स्रोतों का | कालान्तर में विभन्न अंशों को एक ग्रन्थ के रूप में संयोजित कर फिर सुविधा के लिए पाँच खण्डों में विभक्त कर दिया गया | इस मत को स्वीकार करने वाले विशेषज्ञों का विचार है की इस तरह वे पंचग्रन्थ की पुनरुक्तियों और असंगतियों के कारणों का स्पष्टीकरण दे सकते हैं | निश्चयपूर्वक यह बता सकना कठिन है कि कब और कैसे पंचग्रन्थ के पवित्र रचयिता या सन्कलनकर्ता ने इसका वर्तमान पाठ तैयार किया | संक्षेप में इन पाँचों ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है |

उत्पत्ति ग्रन्थ =

क० विश्व और मानव जाति की उत्पत्ति | सृष्टि और मनुष्य का पतन |

१ –प्रारंभ में ईश्वर ने स्वर्ग और पृथ्वी की सृष्टि की

२ –पृथ्वी उजाड़ और सुनसान थी | अथाह गर्त पर अंधकार छाया हुवा था, और ईश्वर का आत्मा सागर में विचरता था |

३ –ईश्वर ने कहा प्रकाश हो जाये और प्रकाश हो गया |

४ –ईश्वर को प्रकाश अच्चा लगा और उसने प्रकाश और अन्धकार को अलग कर दिया |

५ –ईश्वर ने प्रकाश का नाम दिन रखा और अंधकार का नाम रात संध्या हुई और फिर भोर हुआ– यह पहला दिन था |

६ – ईश्वर ने कहा पानी के बिच एक छत बन जाये, जो पानी से पानी को अलग कर दे, और ऐसा ही हुवा |

७ – ईश्वर ने एक छत बनायी और नीचे का पानी, और उपर का पानी अलग कर दिया

८ – ईश्वर ने छत का नाम आकाश रखा, संध्या हुई और फिर भोर हुवा, यह दूसरा दिन था |

९ – ईश्वर ने कहा आकाश के नीचे का पानी एक ही जगह इकठ्ठा हो जाये और थल दिखाई पड़े, और ऐसा ही हुआ |

१० – ईश्वर ने थल का नाम पृथ्वी रखा, और जल समूह का नाम समुद्र |और यह ईश्वर को अच्चा लगा |

११ – ईश्वर कहा पृथ्वी पर हरियाली लहलहाए बीज दार पौधे और फल दार पेड़ उत्पन्न होजये, जो अपनी अपनी जाति के अनुसार बीज दार फल लायें, और ऐसा ही हुआ

१२ – पृथ्वी पर हरियाली उगने लगी, अपनी अपनी जाति के अनुसार बीज पैदा करने वाले पौधे और बिजदार फल देने वाले पेड़, और यह ईश्वर को अच्छा लगा |

१३ – संध्या हुई और भोर हुआ यह तीसरा दिन था |

१४ – ईश्वर ने कहा दिन और रात को अलग कर देने के लिए, आकाश में नक्षत्र हो |उनके सहारे पर्व निर्धारित किये जाएँ और दिनों तथा वर्षों का गिनती हों |

१५ – वे पृथ्वी को प्रकाश देने के लिए आकाश में जगमगाते रहें,और ऐसा ही हुआ |

१६ – ईश्वर ने दो प्रधान नक्षत्र बनाये, दिन के लिए एक बड़ा और रात के लिए एक छोटा साथ साथ तारे भी |

१७ –ईश्वर ने उनको आकाश में रख दिया, जिससे, जिससे वह पृथ्वी को प्रकाश दे |

१८ –दिन और रात को नियंत्रण करें और प्रकाश तथा अन्ध कार को अलग कर दें और यह ईश्वर को अच्छा लगा |

१९ – संध्या हुई और फिर भोर हुआ यह चौथा दिन था |

२० – ईश्वर ने कहा पानी जीव जंतुओं से भर जाये और आकाश के नीचे पृथ्वी की पक्षी उड़ने लगे |

२१ –  ईश्वर ने मकर और नाना प्रकार के जीव जंतुओं की सृष्टि की, जो पानी में भरे हुए हैं और उसने नाना प्रकार के पक्षिओं की भी सृष्टि की और वह ईश्वर को अच्छा लगा |

२२ –ईश्वर ने उन्हें यह आशीर्वाद दिया, फलो फूलो | समुद्र के पानी में भर जाओं और पृथ्वी पर पक्षियों की संख्या बढती जाये |

२३ -संध्या हुई और भोर हुआ यह पांचवा दिन था |

१४ –ईश्वर ने कहा पृथ्वी नाना प्रकार के घरेलु जमीन पर रेंगने वाले और जंगली जीव जंतुओं को पैदा करें, और ऐसा ही हुआ |

२५ –  ईश्वर ने नाना प्रकार के जंगली घरेलु और जमीन पर रेंगने वाले जीव जंतुओं को बनाया और यह ईश्वर को अच्छा लगा |

२६ – ईश्वर ने कहा, हम मनुष्य को अपना प्रतिरूप बनाये, वह हमारे सदृश्य हों | वह समुद्र की मछलियों, आकाश के पक्षियों घरेलु और जंगली जानवरों, और जमीन पर रेंगने वाले सब जीव जन्तुओं पर शासन करो |

२७ -ईश्वर ने मनुष्य को अपना प्रतिरूप बनाया, उसने उसे ईश्वर का प्रति रूप बनाया, उसने   नर और नारी के रूप में उनकी सृष्टि की |

२८ – ईश्वर ने यह कहकर उन्हें आशीर्वाद दिया, फ्लो फूलो | पृथ्वी पर फैल जाओं और उसे अपने अधीन कर लो | समुद्र की मछलियाँ, आकाश के पक्षियों और पृथ्वी पर विचरने वाले सब जीव जन्तुयों पर शासन करो |

२९ – ईश्वर ने कहा, मैं तुमको पृथ्वी भर के बीज पैदा करने वाले सब पौधे और बीजदारफल देने वाले सब पेड़ देता हूँ |  वह तुम्हारा भोजन होगा, मैं सब जंगली जानवरों को,आकाश के सब पक्षिओं को |

३० – पृथ्वी पर विचरने वाले जीव जंतुओं को उनके भोजन के लिए पौधों की हरियाली देता हूँ और ऐसा ही हुआ |

३१ – ईश्वर ने अपने द्वारा बनाया हुआ सब कुछ देखा और यह उसको अच्छा लगा | संध्या हुई भोर हुआ यह छठा दिन था |

2  – इस प्रकार आकाश तथा पृथ्वी और जो कुछ उनमें है, सब की सृष्टि पूरी हुई, सातवें दिन ईश्वर का किया हुआ कार्य समाप्त हुआ | उसने अपना समस्त कार्य समाप्त कर सातवें दिन विश्राम किया | ईश्वर ने सातवें दिन को आशीर्वाद दिया और उसे पवित्र माना |      क्यों की उस दिन उसने सृष्टि का समस्त कार्य समाप्त कर विश्राम किया था यह है आकाश और पृथ्वी की उत्पत्ति का वृत्तान्त |

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