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धर्म और मत मजहब में क्या भेद है देखें |

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|| धर्म और मत मजहब में भेद क्या है देखें ||
सभी भारत वासियों को यह पता लगा है की भारतीय सुप्रीम कोर्टने अभी कई दिन पहले अपना एक बयाँन सुनाया है, हिन्दू किसी धर्म का नाम नहीं |
उसी दिन मैंने लेखनी के माध्यम से अप लोगों को बताया था, धर्मका नाम सत्य सनातन वैदिकधर्म है | आज मैं कुछ और प्रमाण दे रहा हूँ जरा ध्यान से इसे देखें और चिंतन करें सही और गलत का निर्णय लें |
पहली बात है धर्म मानव सृष्टि के आदि से है, कारण धर्म मानव मात्र के लिए होने हेतु मानव बनने के साथ ही उसका धर्म बना, अगर मानव बनाते, परमात्मा और मानव के लिए धर्म ना देते तो सारा अधर्म होता,जैसा पशु पक्षियों में जो आचरण है वही आचरण मानवों में होता, इस लिए सृजन कर्ताने दुनिया बनाया मानवों के भोगने के लिए उससे लाभ लेने के लिए सृष्टि के उपकरण को अपने काम में लेने के लिए | यही कारण बना मानव बनाने से पहले मानवों के खाने पीने के सामान को परमात्मा ने पहले बनादिया | जैसा हमारे दुनिया में आने से पहले हमारा खुराक दूध माँ के आँचल में दे दिया, ताकि हम धरती पर आकर भूखा ना रहें, हमारे आने से पहले हमारा खुराक आया |
ठीक इसी प्रकार धर्म भी मानव मात्र के लिए हैं, और धर्म भी मानव धरती पर आने के साथ साथ ही धर्म मानवों के लिए बना है कैसा देखें | दुनिया बनी है कैसी यह मान्यता हर मत मजहब वालों का अलग अलग है | एक दुसरे के साथ मतभेद भी रखते हैं यह सभी मत पंथों में देखने को मिलता है | कारण यह मत पंथ मनुष्यों के बनाये हुए हैं, बहुत सारा प्रमाण हमारे सामने मौजूद हैं यह अलग का अर्थ है एक दुसरे से मत भेद, किन्तु धर्म में मतभेद होना संभव नहीं |
प्रमाण बाईबिल की सृष्टि उत्पत्ति को देखें, और कुरान की सृष्टि उत्पात्ति को देखें एक दुसरे से मत भेद रखते हैं या मतभेद पाएंगे | हिन्दू कहलाने वालों के पुराणों में उससे अलग है, जैनी और बौधि को सिख को छोड़ता हूँ बड़ा हो जायगा |
इन तीनों को देखें बाईबिल, कुरान, और पुराण को, बाईबिल की मान्यता है, सृष्टि का प्रारंभ =आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की | पृथ्वी बेडोल और वीरान थी, और अथाह जल की सतह पर अँधियारा था, और परमेश्वर का आत्मा जल की सतह पर मंडराता था | परमेश्वर ने कहा उजियाला हो, और उजियाला हो गया | और परमेश्वर ने देखा की उजियाला अच्छा है, और परमेश्वर ने उजयाला को अँधेरे से अलग किया | और परमेश्वर ने उजियाला को दिन, और अंधियारे को रात कहा |
यहाँ बाइबिल की सृष्टि विषय पर हर एक बातों पर सवाल ही सवाल है, जिनलोगों ने पादरी से मेरा डिबेट देखे हैं तो ज्ररूर आप लोगों ने भी देखा होगा पादरी निरूत्तर है |
अब इस्लाम वालों की मान्यता को देखें =कायनात आलम की तखलीक { كا ينا ت عا لم كي تخليق { मजहबी रवायात की रू से यह मसला अमर है के सबसे पहले मौजुदात यालम में नुरे नबी {स}पैदा किया |जो हज़ार साल तक तस्बीह व तहलील में मशगुल रहा फिर यही नूर गौहर {मोती} बनगया एक तवील अरसा के बाद यही गौहर आबे रवां की सूरत में मुनतकिल हो गया और हज़ार वर्ष तक एक नहर पर बहता रहा फिर उसके एक हिस्सा से मलाएका {फ़रिश्ता} अर्श पैदा किये गये., कुर्सी व कलम जोहर में आये इस के बाद इसके मुखतलिफ़ हिस्सों से शजर, हजर,कोह मदर बाग़ व राग आफ़ताब व महताब और सितारा जहुर में आये | { यहाँ भी एक एक शब्द पर प्रश्न खड़ा है }
देवी भागवत पुराण वाले मानते हैं श्री देवी नाम की एक महिला थीं, जो मिटटी में हाथ रगड़ी, हाथ में फोला पडगया जिससे ब्रह्मा को पैदा किया | श्री देवी ने ब्रह्मा को कही मुझसे शादी कर, ब्रह्मा ने कहा तूने मुझे पैदा की तु मेरी माँ लगती है, माँ से शादी नहीं कर सकता | उसे भष्म करदिया देवी ने फिर हाथ घिसी, तो फ़ोला पड़गया जिससे विष्णु को पैदा किया, उसे बोली देवी ने मुझसे शादी कर उसने भी यही कहा तू मेंरी माँ लगती है उसे भी भष्म कर दिया | तीसरी बार हाथ घिसकर शिव को जन्म दिया | उसे देवी ने शादी करने को कही, शिव ने बोला तू मेरी माँ लगती है, तू दूसरी महिला का रूप धारण कर | उस देवी ने दूसरी महिला का रूप धारण किया शिव ने उससे शादी की | इसमें आगे और लम्बा झगडा है |
विचारणीय बात यह है की माँ से शादी तो नहीं किया पर जब उस देवी ने दूसरी महिला बनाई तो वह बहन बन गयी, माँ से शादी नहीं की किन्तु बहन से शादी करली |
माँ से शादी नहीं कर सकता बेटा तह नियम जब से सृष्टि बनी उसी समय से यह चलती आ रही है इसमें परिवर्तन किसी भी मानव कहलाने वालों ने अस्वीकार नहीं किया | हर एक ने इस सत्यता को कुबूल किया है | बाईबिल और कुरान ने माना है एक स्त्री और एक पुरुष से सृष्टि बनी है और उन पति पत्नी ने संतानों को जन्म दिया उसमें भी माँ के साथ शादी नहीं हुवा और ना किया है | किन्तु बहन से शादी माना है इस्लाम और ईसाइयत ने भी | आदम के एक बार उनकी पत्नी हव्वा ने एक बेटा एक बेटी हर बार जन्म दिया और आगे चलकर उन्ही भाई बहनों में शादी हुई | यहाँ भी वही पुराण वाली घटना है, फिर भी माँ से शादी नहीं है वह कब से है सृष्टि के प्रथम से |
यही धर्म है तो धर्म मानव बनने के साथ साथ है अथवा मानव बनने के बहुत वर्षों के बाद से है, इसे कहते हैं धर्म, तो यह धर्म सब के लिए बराबर है अथवा अलग अलग ? क्या आज तक कोई ईसाई या मुस्लमान अपनी माँ से शादी करता है कोई हिन्दू अपनी माँ से शादी करता है ? सब कहेंगे नहीं तो धर्म एक है अथवा अलग अलग ? धर्म सब के लिए एक हुवा या किसी किसी के लिए अथवा अलग अलग ? जो लोग ईश्वर को नहीं मानते हैं वह भी अपनी माँ से शादी नहीं करते किस लिए ?
यही तो मानवता है यहाँ मानव मात्र के लिए यह नियम बराबर हो रहा है अथवा अलग अलग ? फिर धर्म सब का अलग अलग क्यों और कैसा होना संभव और उचित हुवा ? यह सब मत और पंथ है इन मजहबी दुकानदारों ने मानव समाज को विभाजित किया और धर्म के नाम से मानवों को मानव से लड़ाया है इन मजहबी दुकान दारों को हमें पहचानना होगा और इन दुकानदारों की दुकानें बंद करवानी होगी तभी मानवता की रक्षा हो सकती है |
महेन्द्रपाल आर्य =8/10/17 =

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