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धर्म के नाम झगडा कैसे मिटे ?

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धर्म के नाम झगडा कैसे मिटे ?
आज मानव समाज में सब से बड़ी परेशानी और मुसीबत खड़ी है धर्म के नाम मानव समाज में झगडा |
 
धर्म शब्द सुनते ही मस्तिष्क में आदर सम्मान व श्रद्धा का भाव उत्पन्न होता है, फिर उसी धर्म के नाम मानव आपस में ही झगडा करने लगते हैं | जो मानव समाज में यह दुखदायी स्थिति बनी हुई है,आखिर यह किस लिए हुवा ऐसा ?
 
यह सवाल करना या सवाल उठाना बिलकुल स्वाभाविक है, कारण मानव नाम ही उसी का है जो विचारवाण मननशील अकल से काम लेने वालों का नाम ही मानव हुवा, जो दूसरों के सुख दुःख हानी लाभ का जानने और समझने वाला है | जो सत्य असत्य का बोध रखता हो, साथ ही साथ जो धर्म और अधर्म को भी जानता हो |
 
धर्म क्या है जिसे जानना चाहिए,बहुत ही सहज उत्तर है, धर्म वह है जिसके आचरण से इन्ही मानव समाज में किसी भी प्रकार कोई भी दोष न लगा सके आरोप न लगा सके बिलकुलआत्मा जिनकी साफ़ हो ईश्वर,जो सृष्टि की बनाने वाला है उसे जाने उसके आदेशों का पालन करे |
 
कभी भी असत्य का समर्थन न करें, झूट फरेव से अलग रहे आदि आदि जितने भी बातें है उनपर आचरण करने वाले को धार्मिक धर्म पर आचरण करने वाले को धार्मिक कहा जाता है |
 
इस लिए शास्त्र में कहा गया धर्म से हीन मनुष्य पशु के समान है, जैसा मनुष्य ही जानता है माता पिता भाई बहन अपना पराया यही बोध करना बोध होना यह काम मानव का है |
 
यह सारा काम मानव मात्र के लिए है जो मानव इस पर आचरण करना छोड़ दे वह मानव कहलाने के अधिकारी नहीं है यही सारा काम धार्मिक कहलाने का साधन है |
यह सभी आदेश ईश्वर प्रदत्व है, कैसा देखें, चोरी करना, अधर्म है, डाका डालना अधर्म है, व्यभिचार करना अधर्म है, झूठ बोलना अधर्म है, कतल करना अधर्म है, इस प्रकार जितने भी बातें है वह सब मनुष्यों के लिए हैं सभी समाज में है, सभी वर्गों में भी है |
 
अब सवाल उठता है की यह नियम का बनाने वाला कौन है ? जो मानव समाज में समानता है बराबरी है, इससे किसी का भी मतभेद नहीं है सभी लोग इसे स्वीकार करते हैं |
चाहे कोई हिन्दू हो, मुसलमान, सिख हो जैनी, बौधि, या इसाई | जितने भी है सब इसे मानते हैं स्वीकार करते हैं अमल भी करने का प्रयास करते हैं आदि |
 
अब बताएं यही नियम अगर किसी मानव द्वारा बनाया होता तो सब मानव मात्र के लिए नहीं होता | इससे यह स्पष्ट हो गया की इसका बनाने वाला कोई एक है अनेक नहीं | अगर इसका बनाने वाला कोई अनेक होता तो सब अपने अपने हिसाब दिमाग या अटकल लगाते, अपना तोड़ जोड़ लगाते अपनी सुविधा देखते आदि |
 
अब सवाल यह उठता है की इन सभी बातों में किसी का कोई भी मत भेद नहीं है तो धर्म अलग अलग क्यों और कैसे ?
 
जब की सब ने यह मान लिया स्वीकार भी किया की चोरी करना अधर्म है, यह नियम किस धर्म के मानने वाले ने बनाई ? यही नियम सृष्टि के रचना करने वाले की बनाई हुई है | धर्म का अलग अलग होने का मतलब यही हुवा की यह सभी मानवों के बनाये हुए हैं जिसे यह धर्म कहते हैं, जो कि मत है |
 
एक व्यक्ति विशेष के विचार को धर्म कहना मानवता से भी परे की बात है | और आज इन्हीं बातों से ही झगडा है या हो रहा है |
 
आज धरती पर एक ही सत्य सनातन वैदिक धर्म इसे छोड़ कोई भी धर्म नहीं है यह सृष्टि के आदि से है और अन्त तक इसे रहना है जैसा चोरी न करना | यह नियम ईश्वर के होने से इसमें बदलाव नहीं है |
 
इस्लाम व्यक्ति द्वारा बनाया गया है, इसमें बनाने वाले को ही अपना नियम बदलना पड़ा अनेक बार,प्रथम से देखें भाई बहनों में शादीथी,अब नहीं है |
दो बहनों को एक पुरुष की शादी होती थी अब नहीं है | इसी प्रकार अनेकों प्रमाण है कुरान में ही मिलना सम्भव है |
 
ठीक इसी प्रकार ईसाई और बौधि जैनी सिख जितने भी हैं यह सब धर्म न होने का प्रमाण यह किसी न किसी व्यक्ति विशेष द्वारा बनाया हुवा है ईश्वर द्वारा नहीं | कारण ईश्वर के नियम बदलते नहीं है | महेन्द्रपाल आर्य = 6 /8 /20
 

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