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धर्म के साधना पक्ष को आगे और देखते हैं |

Mahender Pal Arya
02 Sep 20
267
|| धर्म के साधना पक्ष को आगे और देखें ||
सही पूछिये तो धर्म का साधना पक्ष ही मनुष्य को मानवता का पाठ पढाता है, अगर मानव जीवन में साधना नहीं है तो वह मानवता के दायरे में भी नहीं आ सकता |
धर्म के इसी साधना पक्ष पर भी मानव समाज में विवाद खड़ा किया गया है, आज धरती पर जितने भी मत पन्थ के मानने वाले हैं, जो सबके सब अपने को धार्मिक होने का भी दावा करते हैं किन्तु इसी आध्यात्मिक पक्ष पर एक दूसरे से मत भेद रखते हैं |
अब तलक जो आप लोगोने देखा और पढ़ा है धर्म मानव मात्र का एक ही है यह सिद्ध कर दिखाया हूँ | जिसमें कोई दो मत नहीं की मानवों के धर्म कहीं किसी के लिए अलग हो, कारण यह भी देखा होगा आप लोगों ने की धर्म के अलग अलग होने से दोष परमात्मा पर ही लगता है | और परमात्मा पर दोष लगने से परमात्मा का होना अथवा परमात्मा कहलाना यह भी संभव नहीं होगा | अब ध्यान से देखें की जिन मत पंथ वालों ने अपने को धर्म कहा या माना है, उनके धार्मिक साधनापक्ष को देखेंगे तो वह आपस में ही मेल नहीं रखते |
एक धर्म को छोड़ जितने भी हैं मानव समाज में ईसाई हो या मुसलमान, इन सबका साधनापक्ष एक नहीं है आपस में ही मतभेद रखते हैं | जैसा ईसाइयों में कैथलिक, और प्रोटेस्टेंनट में एक दुसरे से मतभेद रखते हैं | अब जहाँ मतभेद होगा वहां मनभेद भी अवश्य होगा | और एक दुसरे के साथ मनभेद हो तो साधना का होना संभव नहीं ? कारण मनभेद में ही हिंसा है | इधर वैदिक संस्कृति में सबसे पहला उपदेश है अहिंसा { हिंसा ना करना }
जहाँ हिंसा हो वहां साधना का होना संभव नहीं है, साधनापक्ष से ही तो आत्मा को वल्वान बनाना है | कारण यहाँ आत्मिक उन्नति की ही प्रधानता है, आत्मिक उन्नति ही धर्म का साधना पक्ष है | इस प्रकार हर मत और पन्थ में यही मत भेद देखने को मिलता है. इस्लाम में देखें | इनकी बुनियाद {पीलर } में दूसरा नियम है नमाज पढ़ना, और कुरान में अल्लाह ने फरमाया किया, नमाज एक ऐसी चीज है जो नमाज पढ़ने वालों की सभी बुराइयों को खा जाती है | यह नमाज इस्लाम का साधना पक्ष है, इसपर विचार करें तो यह मानव मात्र के लिए नही है किसी वर्ग विशेष के लिए है |
और इसमें भी अपने इसलाम वालों में ही मतभेद है, इनके चार इमाम आपस में ही मत भेद रखते हैं | जिन ईमामों के नाम, ईमाम अबुहनीफा, ईमामशाफी, ईमाम मलिक, ईमामहम्बल| फिर शिया, और सुन्नी, में मतभेद यहाँ तक की एक दुसरे के मस्जिद में नमाज़ भी पढने नहीं देते | जो साधना या आत्मा का विषय था, वह झगडा का विषय बनगया | मतभेद का अर्थ ही है झगडा | इनमें मतभेद इतना है की एक दुसरे के कब्रस्तान में दफना भी नहीं सकते,यहाँ क्या साधना और कहाँ साधना है ? जो नमाज हर बुराई को खा जाती है बताया यह नमाज पढने में ही मत विरोध हो गया ? इस प्रकार जहाँ साधना का विषय जो आत्मा से जुड़ाव का विषय है, यहाँ हरएक जगह एक दुसरे से मत भेद ही हो गया तो साधना कहाँ है किसे साधना कहते हैं ? मात्र इतना ही नहीं जो साधना का विषय है आत्मा को परिष्कृत का विषय है, उसी में कहीं बली प्रथा है, और कहीं है कुर्वानी |
मानव कहने वालों जरा दिमाग से विचारें तो सही, किसी पशु की बली देकर अथवा कुर्वानी देकर कोई परमात्मा का सानिध्य लाभ क्यों और कैसे कर सकता है ? और यह हुक्म अल्लाह का है कुर्वानी के जानवर कैसे हों, कौन सी पशु कुर्वानी के काबिल है, यह फरमाने ईलाही ही देखें कुरान |
حُرِّمَتْ عَلَيْكُمُ الْمَيْتَةُ وَالدَّمُ وَلَحْمُ الْخِنزِيرِ وَمَا أُهِلَّ لِغَيْرِ اللَّهِ بِهِ وَالْمُنْخَنِقَةُ وَالْمَوْقُوذَةُ وَالْمُتَرَدِّيَةُ وَالنَّطِيحَةُ وَمَا أَكَلَ السَّبُعُ إِلَّا مَا ذَكَّيْتُمْ وَمَا ذُبِحَ عَلَى النُّصُبِ وَأَن تَسْتَقْسِمُوا بِالْأَزْلَامِ ۚ ذَٰلِكُمْ فِسْقٌ ۗ الْيَوْمَ يَئِسَ الَّذِينَ كَفَرُوا مِن دِينِكُمْ فَلَا تَخْشَوْهُمْ وَاخْشَوْنِ ۚ الْيَوْمَ أَكْمَلْتُ لَكُمْ دِينَكُمْ وَأَتْمَمْتُ عَلَيْكُمْ نِعْمَتِي وَرَضِيتُ لَكُمُ الْإِسْلَامَ دِينًا ۚ فَمَنِ اضْطُرَّ فِي مَخْمَصَةٍ غَيْرَ مُتَجَانِفٍ لِّإِثْمٍ ۙ فَإِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ [٥:٣]
(लोगों) मरा हुआ जानवर और ख़ून और सुअर का गोश्त और जिस (जानवर) पर (ज़िबाह) के वक्त ख़ुदा के सिवा किसी दूसरे का नाम लिया जाए और गर्दन मरोड़ा हुआ और चोट खाकर मरा हुआ और जो कुएं (वगैरह) में गिरकर मर जाए और जो सींग से मार डाला गया हो और जिसको दरिन्दे ने फाड़ खाया हो मगर जिसे तुमने मरने के क़ब्ल ज़िबाह कर लो और (जो जानवर) बुतों (के थान) पर चढ़ा कर ज़िबाह किया जाए और जिसे तुम (पाँसे) के तीरों से बाहम हिस्सा बॉटो (ग़रज़ यह सब चीज़ें) तुम पर हराम की गयी हैं ये गुनाह की बात है (मुसलमानों) अब तो कुफ्फ़ार तुम्हारे दीन से (फिर जाने से) मायूस हो गए तो तुम उनसे तो डरो ही नहीं बल्कि सिर्फ मुझी से डरो आज मैंने तुम्हारे दीन को कामिल कर दिया और तुमपर अपनी नेअमत पूरी कर दी और तुम्हारे (इस) दीने इस्लाम को पसन्द किया पस जो शख्स भूख़ में मजबूर हो जाए और गुनाह की तरफ़ माएल भी न हो (और कोई चीज़ खा ले) तो ख़ुदा बेशक बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है |
नोट:- यहाँ शब्द पर गौर करेंगे की किन किन चीजों को खाना हराम है, यह बताया गया, पहला शब्द है मरा, अब विचारशील मानव विचारें की मरा किसे कहा गया ? जिसमें प्रण न हो वह मरा है फिर हलाल क्या है ? दूसरी बात यहाँ बताया गया की कौन कौन सी पशु को कटा जाना जाएज है और कौन कौन सी नहीं काटनी चाहिए ? अर्थात यहाँ पशु काटने का हुक्म भी अल्लाह का ही है | जिस अल्लाह को दयालु कहा है
الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ | रहमान और रहीम है।
जो हमारा धर्म का विषय था साधना जो मनसे होती है ना दिखावटी ना बनावटी, यहाँ बनावटपन की कोई जगह ही नही है, जहाँ दिखावा नहीं है यह सभी कार्य किसी को दिखाने के लिए नहीं मात्र और मात्र अपनी आत्मिक उन्नति और जगत नियन्ता से अटूट सम्पर्क और सम्वन्ध से है | अब वह कौन कितनों का कीमती पशु को कुर्वानी कर सकता है उसका प्रदर्शनी, जो महज दिखावा का विषय बन गया, क्या इसे साधना कहा जा सकता है ?
जहाँ हमारा धर्म का साधना का विषय था पूरा आत्मिक विषय का मजाक उड़ाया गया |
धर्म का यह साधना पक्ष पूर्णतया व्यक्तिगत है तथा व्यक्ति में विकास का ही प्रमुख साधन है उसका सामाजिक स्तर पर उपयोग नहीं किया जा सकता | अब आप बली कहिये, अथवा कुर्वानी यह व्यक्तिगत ना होकर सामाजिक स्तर पर आ गया | लोग कहेंगे,अरे अगर बाप दादा के नाम से क़ुरबानी नहीं दिया तो लोग क्या कहेगे ? की इतना पैसा वाला होकर भी अपने पूर्वजों के नाम से कुर्वानी भी नहीं दे सका ? किसीने यह कहा इतना पैसा वाला होकर भी एक बकरे का बली नहीं चढ़ा पाया किस काम का है तेरा यह धन ?
अब देखें हम चले थे कहाँ से और अब बात पहुंची कहाँ पर, यह सारा काम ही धर्म विरुद्ध कर भी लोग श्रेय लेना चाहते धर्म का, और अपने पैसे के वैभव से एक ऊँट की कुर्वानी दे कर मानव समाज में अपने को धार्मिक बताया या फिर उसे धर्म का अंग मान कर उसकी इज्ज़त की जा रही है अथवा उन्हें इज्ज़त दी जा रही है | विचार करें अगर यही धर्म है, तो अधर्म किसे कहेंगे ? क्या यही साधना पक्ष है की जितना बड़ा पशु कुर्वानी दे, समाज में उसकी इज्ज़त हो ? या उनको इज्ज़त की निगाह से लोग देखें की कितना धार्मिक व्यक्ति है इतने पैसों की कुर्वानी दी या फिर इतनी बड़ी बली चढ़ा दी ?
धर्म के नाम से मानव समाज में एक भयावह स्थिति पैदा हो गया जो कभी धर्म ही नहीं था और न ऐसी मानसिकता वालों ने कभी धर्म को जानने का प्रयास भी नही किया | साधना पक्ष, और व्यावहारिक पक्ष ही उनका क्या हो सकता है ? फिर कल = महेन्द्रपाल आर्य, 2 /9 /20 =