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धर्म वह है जो मनुष्य मात्र के लिये एक ही है |

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धर्मपर आचरण करने वालों का नाम मानव है कोई पशु धर्म नही जानता और ना पशु के लिए धर्म है,मानव ही धर्मपर आचरण करता है ,माँ को माँ कहना ही धर्म है,
धर्म ही मनुष्य को मनुष्य बनाता है , धर्म ही अंत तक मनुष्यका साथी है, बंधू बांधव माता पिता भाई बहन अपना सब कोई साथ छोड़ देता है किन्तु यही धर्म ही है जो मनुष्यों को अन्त तक साथ देता है |
यही कारण है की शास्त्रकारों ने कहा =
 
युवैव धर्म शिलाः स्वाद नित्यम खोलू जीविताम |
कोही जनाति कस्याद मृत्यु कालो भविष्यति |
युवा अवस्था से ही धर्म का पालन करना चाहिए, क्यों की कोई नही जानता है किस की मृत्यु किस घड़ी उपस्थित हो जाय ? दादा के सामने पोता चला जाता है, पिता के सामने पूत्र चला जाता है |
यह कुटुम्ब आदि तो सब के सब साथ छोड़ देंगे पर, जो धर्म पर आचरण किया गया वह धर्म सबके अंत तक ही साथ देता है |
गीता में भी इसी प्रसंग को योगेश्वर कृष्ण जी ने बहुत अच्छे तरीके से समझाया है | ऐ लोगो जिन वान्धावों पर तुम घमंड करते हो हम इतने भाई है देख लेंगे | हमारे पास यह शक्ति हैं मैं प्रधान मन्त्री हूँ – प्रान्त में मुख्य मन्त्री है सब को देख लेंगे जिसे मन चाहेगा करोड़ो दे देंगे | वहां अन्त समय यह सारा घमण्ड धरा रह जायेगा |
 
प्रधान मन्त्री हो या मुख्य मन्त्री, मात्र अपना स्मृति ही छोड़ जायेंगे मन्त्री जी के साथ देने वाले मात्र शमशान तक ही साथ देंगे | उसके आगे नही जा सकते और चाहने पर भी नही जा पाएंगे | अगर दोनों को साथ जला दिया जाय फिर भी एक साथ नही हो सकते, कारण दोनों का कर्म अलग अलग है तो दोनों के स्थान भी अलग अलग ही बनेंगे |
 
जिस शारीर पर नाज किया क्या क्या साधन जुटाए इस शारीर को मजबूत बनाने के लिये | कभी सोना चाँदी वाला च्यवनप्राश लिया, कभी राम देव वाला तो कभी डावर वाला | किन्तु यह शारीर भी आपके साथ नही जायेंगे, अगर गया भी तो मात्र चिता तक ही साथ हो सकेगा | जिस पत्नी पर आप ने नाज किया उस बेचारी को तो घर के चौखट पर ही रोक लिया जायगा |
 
फिर कौन जा रहा है आप के साथ ? तो यही एक ही सहारा सहयोगी है धर्म जो आप ने कमाया है वही साथ जायेगा आप के मना करने पर भी वह न रुकेगा और न आप उसे रोक सकेंगे |
 
अब दुर्भाग्य से हमारे देश के राजनेता गण उसी धर्म को ही नकार दिया, की राजनीती में धर्म नही है | या तो राजनीती को धर्म से अलग रखो | बंधुओं जरा विचार करें, क्या राजनीती से धर्म कोअलग करना या होना संभव है ?
तो शास्त्र कहता है नही कर सकते | कारण तो जवाब मिला रिश्वत लेना धर्म है अथवा अधर्म ? रिश्वत भी तो आप राजनीती में जा कर ही ले रहे हैं ?
 
अब कोई चीनी घोटाला करे, तारकोल घोटाला करे, बोफोर्स घोटाला करे, चारा घोटाला करे, ताबूत घोटाला करे, 2 G इस्पेकट्राम घोटाला करे | यह सारा घोटाला यही राजनेता से ही हुवा है जो अधर्म है | जब रिश्वत लेना हीअधर्म है तो आप लोगों ने धर्म को त्याग कैसे पाए ? मानव है तो धर्म है, और खूबी की बात यह भी है की यही धर्म मानव मात्र के लिये हैं | इस से मानव अलग हो ही नही सकता |
आज यहीं तक रहने देते हैं =महेन्द्रपाल आर्य =वैदिक प्रवक्ता= दिल्ली =8/11/16

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