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परमात्मा को जानने के साथ सृष्टि को भी जानना जरूरी है

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|| ईश्वर को जानने के लिए सृष्टि विज्ञान को जानना होगा ||
यह विचार ऋषि देव दयानन्द जी का है, मानव मात्र को चाहिए सृष्टि रचना को भली प्रकार जानना पड़ेगा परमात्मा को जानने के लिए, अर्थात अगर कोई अपने आप को जानना चाहे अथवा परमात्मा को जानना चाहे तो पहले सृष्टि रचना का जानना जरूरी है |
सृष्टि बनाने वाला कौन है, बनने का कारण क्या है, बनती किस प्रकार से है, किस चीज से बनती है यह सभी विषय को जानना मानव का ही काम है, मानव कहलाने के कारण इसका जानना जरूरी भी इस लिए हुवा, की मानव ही दुनिया का ऐसा प्राणी है जो जानना चाहता है जानने की क्षमता है, अपना ज्ञान को बढ़ाना चाहता है, कब, क्या, क्यों, और कैसे, इसे जानने की ताकत रखने वालों का ही नाम मानव हैं |
प्रवाहसे तीन चीज अनादी है जो कभी भी नाश नहीं होता हमेशा से है और हमेशा ही रहेगा | ईश्वर =प्रकृति =जिव = इसका बनाने वाला कोई नहीं इसे अनादी कहते हैं | परमात्मा कभी समाप्त नहीं होंगे =जीवात्मा भी ख़त्म नहीं होने वाला है = और प्रकृति भी समाप्त ना होकर रूप बदलता है | जैसा परमात्मा अनादी है ठीक उसी प्रकार, जीव, और प्रकृति भी अनादी है, अर्थात जिसका प्रारंभिक काल नहीं, यह हमेशा से है और हमेशा ही रहेगा |
द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिषस्वजाते |
तयोरन्यःपिप्पलं स्वाद्वत्त्यनश्न्न्यो अभि चाकशीति || ऋ० म० 1 सू 164 म० 20
अर्थात =यहन ईश्वर्, प्रकृति, और जीव, तीनों बराबर से है, एक दुसरे का सखा {मित्र} है प्रकृति रूपी वृक्ष में विराजमान है | ईश्वर को खाना पीना नहीं पड़ता है, वह सर्वज्ञ है,जीव अल्पज्ञ है, प्रकृति ज्ञान शून्य है | जीव खता पीता है, परमात्मा को खाना पीना नहीं पड़ता वह अनशन करते हुए भी सभी के स्वाद को जानते हैं |
इन तीनों के गुण कर्म स्वाभाव भी अनादी है, जीव इस संसार रूपी वृक्ष में पापपूण्यरूपी फलों को भोगता है | और परमात्मा न भोगता हुवा चारों ओर अन्दर, बाहर सर्वत्र प्रकाशमान हो रहा है | ईश्वर, जीव, और प्रकृति,तीनों अनादी है |
अर्थात अनादी सनातन जीवरूप प्रजा के लिए वेद द्वारा परमात्मा ने सब विद्याओं का बोध कराया है |
अजामेकां लोहितशुक्लकृष्णां, ब्रह्मिःप्रजाःसृजमानां स्वरुपः|
अजो ह्यको जुषमनो अनुशेते, जहा त्येना, भुक्त भोगामजोअन्य: ||
प्रकृति, जीव, और परमात्मा तीनों”अज अर्थात जिनका जन्म कभी नहीं होता, कभी यह जन्म नहीं लेते | अर्थात यह तीन सब जगत के कारण है इनका कारण कोई नहीं | इस अनदि प्रकृति का भोग अनदि जीव करता हुवा फंसता है | और परमात्मा ना तो उसे भोगता है और ना ही फास्ता है |
प्रकृति क्या है उसे समझें {सत्य} {रज:} {तम:} यह तीन मिलकर जो संघात है, उसका नाम प्रकृति है | उससे महत्तत्व बुद्धिः उससे अहंकार, अहंकार से पांच तन्मात्रा, सुक्ष्य्म भूतऔर दस इन्द्रियां तथा ग्यारहवां मन, पांच तन्मात्राओं से पृथिव्यादी पांच भूत,ये चौबीस और पचीसवा” परुष” अर्थात जीव और परमेश्वर हैं |इनमें से प्रकृति अविकरिणी,और महतत्व, अहंकार तथा पांच सूक्ष्म भूत प्रकृति का कार्य और इन्द्रियां मन तथा स्थूल भूतों का कारण है | और पुरुष न किसी की प्रकृति उपादानकारण और न किसी का कार्य है |
महेन्द्रपाल आर्य =10 /10 /17

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