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पाखण्ड करने वाले हर मजहब में मिलेंगे |
Mahender Pal Arya
|| पाखंड और पाखण्ड करने वाले हर मजहब में ||
अफ़सोस तो यह है की यह पाखंड करते हैं लोग धर्म के नाम से जब की धर्म में पाखण्ड का होना संभव नहीं है | धर्म तो मानव मात्र को सभो प्रकार के पाखण्ड से उपर उठाती है धर्म तो मानव को कुन्दन बनाता है जैसा एक स्वर्ण कार सोना परखने लिए एक पत्थर का प्रयोग करता है जिसे कसौटी कहते हैं की यह सोना असली है अथवा नहीं इसे परखने का काम करती है वह पत्थर | ठीक इसी प्रकार मानव को कुन्दन बनाने के लिए भी धर्म वही पत्थर है जो मानव को परखता है | जैसा पत्थर सोना को परखता है ठीक उसी प्रकार धर्म मनव को परखता है |
धर्म में बनावटीपण नहीं धर्म में दिखावा नहीं धर्म में किसी बाहरी पहचान की ज़रूरत नहीं की जटा जुट हो अथवा कंठीमाला हो या गले में दर्जन भर माला लटका हो तो लोग जानें बड़े धार्मिक व्यक्ति है | अर्थात इस प्रकार ना टोपी लगाने वाला या दाढ़ी रखने वाला ही धार्मिक है यह बाहरी पहचान की कोई जरूरत ही नहीं है | धर्म आचरण का विषय है धर्म आंत्मा का विषय है मन चित्य अहँकार आदि से निर्लेप होने का विषय है | और वह मानव मात्र के लिए है उससे मानव अलग हो ही नहीं सकता इसे जानना बहुत जरूरी है |
लेकिन आज सम्पूर्ण धरती पर सभी पाखण्ड धर्म के नाम से ही चलरहा है वह भी इसी मानव समाज में ही चल रहा है और धड़ल्ले से चल रहा है | जैसा कल रात को मैं देख रहा था दूरदर्शन के कई चेनलों में दिखाया और बताया जा रहा था, रथ यात्रा को ले कर | की उस रथ के रस्सी को जो हाथ लगाकर खेंचेगा उसके सभी पाप ख़त्म हो जायेंगे, उसका मोक्ष हो जायेगा उसे कभी जन्म लेना नहीं पड़े आदि आदि | क्या यह बातें सत्य का होना सम्भव है के पाप से लोग मुक्ति पा जायेंगे ? पहली बात तो यह है की पाप से मुक्ति कौन चाहेगा ? बिलकुल सीधासा जवाब हो गा पापी यानि जो पाप करेगा वही उस पाप से मुक्ति या छुटकारा चाहे गा | मतलब यही निकला की पापी लोग ही यही सब काम करेंगे अन्य को इसकी जरूरत ही नहीं है | पाप होता है पहले मनसे, उसके बाद होता है शारीर से,मन को साफ करने का जो सिस्टम है उसे लोगों ने जाना ही नहीं | शास्त्र का उपदेश है {मनः सत्येन शुद्धती} सत्य के ग्रहण से मन की शुद्धि होती है | और यहाँ सत्य को ही तिलांजली दिया है मानव कहलाने वाले, मन को तो सत्य के नजदीक जाने ही नहीं दिया | अब यह रथ है क्या,एक मरे हुए परिवार को उनकी मरी हुई मौसी के घर ले जाते हैं एक सप्ताह के लिए | इससे बड़ा पाखंड और क्या है क्या मरे व्यक्ति कहीं भी अपनी महमानदारी में जा सकते हैं ? वाह रे मानव कहलाने वालों |
पर आप लोग यह मत समझना की यह केवल हिंदुयों में है ? नहीं नहीं यह हर मत पंथों में है एक को देखा देखि नक़ल एक दुसरे का किया है | इस्लाम वाले भी अभी जा रहे हैं हज करने के लिए इनकी भी मान्यता है की हज करने से पाप धुल जायेंगे हज करने वाला जैसा नवजात शिशु अभी दुनिया में कोई पाप किया ही नहीं- हाजी ठीक ऐसा ही हो जाता है यही मान्यता हैं इस्लाम में, वहां जाकर एक पिलर को शैतान मान कर उसे कंकड़ मारते हैं | जब की वह शैतान नहीं है उसे माना जाता है, पाखंड क्या है वह देखें जो वस्तु जो नहीं है उसे वही मानने का नाम ही पाखण्ड है | जैसा मैं लिखरहा हूँ लेपटोप में, इसे मैं रेलगाडी मानने लगूं तो लोग क्या कहेंगे,पागल ? यहाँ भी ठीकयही बात है जो शैतान नहीं है, उसे आप शैतान मानने लगोगे तो, आप भी पागल कहे जावगे खुद विचार करना | पशु काटना पापहै उसे पुन्य मानना ही पाखण्ड हाजी लोग |
ईसाइयों में भी यही बातें है इनकी मान्यता तो यह हैं की सभी ईसाईयों के पाप ईसा ने अपने ऊपर लिया औरों को पाप लगागा ही नहीं | इससे बड़ा पाखण्ड और क्या हैं ? हम मानव कहलाने वाले इसपर विचार करें और सत्य को ग्रहण करें और असत्य को त्यागें यही मानवता है = महेन्द्र पाल आर्य – 5 /7 /19