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बंगाल में हिन्दुओं के साथ यह भेद भाव किसलिए ?

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बंगाल में हिन्दूओं के साथ भेद भाव किस लिए ?

24 /8 /17=को शाम 7 बजे TV चेनल में देख रहा हूँ अमिश देवगण के साथ आर पार में डिबेट मुहर्रम को ले कर दुर्गा पूजा विसर्जन पर रोक 1 अक्तूबर के बजाय 2 और 3 अक्तूबर को विसर्जन करें |

सवाल पैदा होता है, की इससे पहले कभी मुहर्रम और दुर्गापूजा, एक साथ हुवा अथवा नहीं ? 1947 से लेकर अब तक सरकार कांग्रेस की रही, कम्युनिष्टों की सरकार रही आज 71 वर्ष 15 अगस्त को आज़ादी का मनाया गया, तो अब तक पश्चिमबंगाल में यह अबसर आया या नहीं,मुहर्रम और हिन्दूओं की दुर्गा पूजा ?

क्या सरकार सिर्फ ममता बनर्जी ही चला रही हैं, अथवा पहले भी इस बंगाल में कोई मुख्य मंत्री रहे, या ममता के अतिरिक्त इन 71 वर्षों में कभी दुर्गापूजा पर रोक लगी ? बंगाल में हिन्दू मुस्लिम का राइट 1964 में ही हुवा था, इसके बाद हिन्दू मुस्लिम विवाद कभी हुवा ही नहीं |

बंगाल के हिन्दू और मुसलिम जो मूल बंगाली हैं वह कभी झगड़ा करते ही नहीं और ना झगड़ने का समय इनके पास | बंगाल में इन नेताओं के कारण आज यह बात आ रही है, और बंगाल में जो गैर बंगला भाषी लोग हैं विशेष कर जो हिंदी भाषी लोग हैं वही लोग ही झगड़ते हैं |

इसी बंगाल में हर तबके के लोग हैं,और हमेशा सभी तबके के लोग हर पर्व को मनाते आये हैं इससे पहले कभी किसी भी प्रकार का कोई भी विवाद सामने नहीं आया |            जब स्वर्गीयज्योति वसु जी बंगाल के मुख्यमंत्री रहे, जो कोम्युनिष्ट पार्टी के थे जिनकी मान्यता किसी भी धर्म को नहीं मानने का था, यानि जो किसी भी धर्म को नहीं मानते, ना दुर्गा पूजा और ना मुहर्रम जिनके काल में यह परेशानी किस लिए नहीं थी ?

इसके बाद भी यह बंगाल क्मोयुनिष्टों का राज्य रहा, उनदिनों में भी कभी दुर्गापूजा और मुहर्रम साथ नहीं आया क्या, सिर्फ ममता बनर्जी के समय ही मुहर्रम और दुर्गा पूजा साथ आया ? जिस फैसले के विरोध में बंगाल हाईकोर्ट को भी पिछले वर्ष TMC सरकार को फटकार लगाना पड़ा यह कैसी राजनीती है ?

सही पूछिए तो यह मुहर्रम सिर्फ शिया मुसलमान ही मनाते है मातम,सुन्नी मुसलमान सिर्फ शोक पालन करते है इस दिन रोजा रखते हैं आदि | और पश्चिमबंगाल में शिया ना केबराबर हैं बंगाल में ज्यादातर लोग सुन्नी ही हैं | और इस में बड़ी बात है की मुल बंगाली मुस्लमान इस मुहर्रम को मनाते ही नहीं | मैं खुद इसी बंगाल में एक मुस्लिम परिवार में जन्म लिया और 32 वर्ष तक इसी बंगाली मुसलिम परिवार में रहे और हमारी पढाई भी इसी इसलामिक रही है |

जन्मसे ले कर अब मैं 60 वर्षों से ज्यादा हो गया कभी बंगाल में किसी हिन्दू को किसी मुस्लिमों के तेहवार का विरोध करते नहीं देखा और नहीं सुना | आज अचानक यह क्या हो गया बंगाल में की जिस बंगाल को दुर्गा पूजा, और काली पूजा यह दोनों को सबसे बड़ा तेहवार के नाम से मनाया जाता है इसमें प्रतिमा देखने के लिए पुरे बंगाल से लोग कोलकाता शहर में आते हैं १० वीं को रात भर सम्पूर्ण कोलकाता सजा हुवा रहता है एक अनुखी दृश्य होता है इसमें मुस्लमान भी प्रतिमा देखने को आते हैं,यहाँ कभी भी किसी भी दिन झगडा नहीं हुवा |

दरअसल बात यह है की मुहर्रम अभी कोलकाता में सुन्नी हिंदी भाषी मुस्लमान भी इस लिए मनाते हैं की इस मुहर्रम के दिन सरे आम मुस्लमान अस्त्र शस्त्र का प्रदर्शन करते हैं खुलकर यह सी.पी.एम. सरकार के काल में भी देखा पर प्रतिवंध विसर्जन पर नहीं लगा ना मालूम अब सरकार को क्या परेशानी है की बंगाली हिन्दू लोगों का एक ऐतिहासिक पर्व है यह दुर्गा पूजा जिसपर अब बंगाल सरकार इस्लामी पक्ष ले कर हिन्दुओं को रोकना उचित समझ रही है और बंगाल का माहौल बिगाड़ना चाहती है मुसलमानों का हिम्मत आफजाई करना चाहती है इससे बंगाल का माहौल बिगड़ने की अंदेशा है और यही कारण है की जो हिन्दू बंगाल के कभी मुस्लिम विरोधी नहीं थे उन्हें मुस्लिम विरोधी बनाया जा रहा है जो गलत होरहा है | अब बंगाल के हिन्दुओं को समझकर वोट देना चाहिए किसे जिताना है ? हिन्दू वादी को जिताना है अथवा मुस्लिम पक्षधरों को जिताना है |

महेन्द्रपाल आर्य =24 /8/17

 

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