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बंगाल सरकार की सिरदर्दी बनी मुहर्रम

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प्रश्न है, की मुहर्रम सिर्फ बंगाल में मनाये जाते हैं,अथवा सम्पूर्ण देशमें,तो बंगाल में ही यह परेशानी किस लिये ?

पहले हम जानते हैं मुहर्रम को, क्या है यह मुहर्रम ? यह तेहवार मात्र शिया कहलाने वाले मुसलमानों का है | सुन्नी मुस्लिम का यह तेहवार नहीं किन्तु शोक दिवस है, आज कई वर्षों से बंगाल में सुन्नी मुस्लिम भी मनाने लगे है, इस दिवस को | बात यह है की भारतीय कानून व्यवस्था अनुसार कोई व्यक्ति 6 इंच चक्कू अपने पास नही रख सकता, किन्तु सिखों को तलवार रखने की छुट है | और मुसलमानों को सिर्फ मुहर्रम के दिन हथियार जैसा.तलवार आदि निकाल कर प्रदर्शन करने की छुट है  यह किसी और प्रान्त में हो न हो पर बंगाल में बहुत पहले से है |

मुहर्रम की घटना इस प्रकार है,हज़रत मुहम्मद साहब का कोई पूत्र नही था, जन्म तो लिया कई, किन्तु जीबित नही रहे | और यह बातें शयद अल्लाह को भी मंज़ूर नही की हज़रत मुहम्मद साहब के वंश परम्परा कायम रहे या चले |  इनकी पहली पत्नी हजरत खदीजा से एक बेटी थी जिनका नाम फातिमा था, बेटी की शादी हजरत मुहम्मद साहब ने अपने चचेरे भाई हजरत अली से की | इनके दो बेटे थे हजरत, हसन व हजरत हुसैन नाम था जो हजरत मुहम्मद साहब के नवासे थे |

इधर हजरत मुहम्मद साहब के एक सहाबी थे जिनका नाम माबिया था इनके लड़के का नाम यजीद | इस यजिद ने हजरत हसन को जहर दे कर मारा था, फिर फरात नदी के पानी को लेकर झगड़ा हुवा हुसैन से और उसी लड़ाई में मारा गया हुसैन, कुल मिला कर घटना यह है | शियाओं का तेहवार मनाने  की बात यह है की शिया वही लोग हैं जो हजरत मुहम्मद साहब के इन्तेकाल के बाद हजरत अली को खलीफा बनाना चाहते थे | कारण हजरत मुहम्मद साहब के संतान नही थे पर बेटी और दामाद थे, हजरत अली यह शिया लोग हजरत अली को खलीफा बनाना चाहते थे |

इधर सुन्नी कहलाने वालों का कहना था की हजरत साहब के  सब से कमसिन पत्नी हजरत आयश जो 17 साल की विधवा थी वह किनके सहारे जियेगी ? कारण नबी पत्नी सब उम्मुल मुमेनीन {मुसलमानों की माँ } है कोई भी उनकी विधवा से शादी नही कर सकते |

सुन्नियों ने कहा आयशा के पिता हजरत अबुबकर को खलीफा बना दो, इसी बात को ले कर ही मूल रूपसे मत भेद है शिया और सुन्नी में | यहाँ शियाओं ने हसन और हुसैन के मारे जाने का गम मनाने का नाम मुहर्रम है | जब की मुहर्रम अरबी महीनों में एक महिना का नाम है मुहर्रम |

बंगाल प्रान्त में सुन्नी लोग मुहर्रम मनाते हैं विशेष कर 10 दिन तक यह लोग बड़े बड़े झंडा बनाकर सम्पूर्ण शहर के अपने अपने इलाके में जुलुस निकालते हैं, या हुसैन जिंदाबाद कह कर नारा लगाते है, कुछ लोग हथियार चलाकर अपने आप लहूलुहान होते हैं आदि |

सुन्नी मुसलमान 10 तक रोजा रख कर अपनी गमी का इज़हार करते हैं, कुछ लोग हैं जी सिर्फ एक दिन मुहर्रम के चाँद के 10 तारीख जो मुहर्रम का दिन है उसी दिन रोजा रखते हैं आदि |

बंगाल सरकार डरती इस लिये की यह मुहर्रम मनाने वाले खुले आम हथियारों से लैस हो कर पुरे कोलकाता शहर में मातम मनाते हैं, कहीं कोई हादसा न हो जायें | इस लिये हिन्दुओं को ही दुर्गा विसर्जन पर रोक लगाना चाही,कारण बंगाल सरकार भी हिन्दुओं के हिमायती नही है  बंगाल सरकार मुसलमानों का पक्ष लेती रही है | यही कारण है की कोलकाता हाईकोर्ट ने शख्त रुख अपनाते हुए बंगाल सरकार को फटकार लगाई जो बहुत बड़ा कदम है ऐतिहासिक कदम है |

सरकार की लाचारी है मुसलमानों को अवैध तरीके से हथियार लेकर घुमने की छुट देती है, जो की सरासर गलत है जिस पर प्रतिवंध लगना चाहिए, बंगाल की ममता सरकार उदासीन है और बंगाल के हिन्दू कहलाने वालों दुर्गा प्रतिमा पूजने वालों ने भी कभी नही सोचा की यह सरकार उसके साथ क्या वर्ताव कर रही है ? न मालूम यह हिन्दू कहलाने वाले कब सोचेंगेऔर जानेंगे अपना हितैषी कौन है ?

महेन्द्रपाल आर्य =वैदिक प्रवक्ता = 12 /10 /16 =

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