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बाई बिल के सृष्टि नियम को देखें

Mahender Pal Arya
धर्म प्रेमी सज्जनों तथा विश्ववासियों को मैंने अपने फेसबुक के पेज के माध्यम से बाईबिल में दर्शाय गये, सृष्टि का आरम्भ बाईबिल रूपी परमेश्वर ने किस प्रकार बनाया है, उसे दर्शाया था, जिसमें मैंने एक दिन बनाने तक ही लिखा | आज मै बाईबिल से ही दूसरा दिन किस प्रकार से बनाया बाईबिल रूपी परमेश्वर ने उसे आप लोगों के बीच प्रस्तुत कर रहा हूँ, जो बाईबिल के उत्पत्ति विषय से लिया गया | कल मैंने आयात नंबर पांच तक ही दर्शाय था, आज आयात नंबर छः में परमेश्वर ने क्या-क्या बनाया और कहा वह सुनें |
दूसरा दिन: आकाश
(6)फिर परमेश्वर ने कहा,”जल के बीच एक अंतर हो, वह जल को जल से अलग करे |” (7) तब परमेश्वर ने अंतर स्थापित करके, अंतर अलग किया, और ऐसा ही हो गया | (8) और परमेश्वर ने उस अंतर को आकाश कहा | तब संध्या हुई, फिर सवेरा हुआ | इस प्रकार दूसरा दिन हो गया |
तीसरा दिन: पृथ्वी और वनस्पति
(9) फिर परमेश्वर ने कहा,”आकाश के निचे का जल एक स्थान पर इकट्ठा हो जाय और सुखी भूमि दिखाई दे,” और ऐसा ही हो गया | (10) परमेश्वर ने सुखी भूमि को पृथ्वी कहा, तथा जो जल इकट्ठा हुआ उसे समुद्र कहा | तब परमेश्वर ने देखा की अच्छा है | (11) फिर परमेश्वर ने कहा,” पृथ्वी वनस्पति उत्पन्न करे, अर्थात पृथ्वी पर बीजवाले पौधे और अपनी-अपनी जाती के अनुसार फल देने वाले वृक्ष उगे, जिनके बीज उन्ही में हों |” और ऐसा ही हो गया | (12) और पृथ्वी से बनस्पति उत्पन्न,अर्थात अपनी अपनी जाति के अनुसार बीजवाले पौधे और फलदायक बृक्ष उगे,जिसमें अपनी अपनी जाति के अनुसार बीज होते हैं | और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है | (13) तब संध्या हुई फिर सबेरा हुवा | इस प्रकार तीसरा दिन हो गया |
दुनिया के मानव कहलाने वालों जरा विचार तो करें, की यह है बाईबिल जिसे लोग होली {पवित्र} बाईबिल कहते हैं, इस में हमें आपत्ति नहीं की पवित्र है अथवा अपवित्र, किन्तु आपत्ति हमें इस पर है की यह ईशग्रन्थ क्यों और कैसे हो सकता है ? कारण ईश्वरीय ग्रन्थ में ज्ञान की बातें होनी चाहिए, जिस से मानव समाज को अपना जीवन चलाने कि शिक्षा हो मानव कल्याण की बातें हों आदि | पर जिस बाईबिल को लोग परमेश्वर का दिया ज्ञान बता रहे हैं, अब इस को जरा गौर से देखें और समझदारी से पढ़ कर बताएं इसमें कौन सी बातें हैं जो मानव समाज के कल्याण के लिए लिखी तथा बताई गई हो ? जिस परमेश्वर को सृष्टि बनाने का ही सलीका न हों जो उपदेश विज्ञान विरुद्ध दे रहे हों उसे दुनिया के लोग ईश ज्ञान क्यों और कैसे मानते होंगे ? एक बात जरुर हमारे पाठक बृंद गौर किये होंगे की सब जगह परमेश्वर ने कहा, यह लिखा है | मैं उन्ही बाईबिल के परमेश्वर से पूछता हूँ, और उसके अनुयायी से भी पूछता हूँ | की जब दुनिया बनी ही नही, दुनिया बनाने से पहले कुछ था भी नही तो, परमेश्वर ने किस को कहा, किससे कहा हो जा ? जल को कहा परमेश्वर ने कि इकठ्ठा हो जा, और जल इकठ्ठा हो गया जिसे परमेश्वर ने समुद्र कहा | चलो हम यह मान लेते हैं की जल एकत्रित हुवा उसे बाईबिल के परमेश्वर ने समुद्र कहा | जब की जल किसी के कहने पर कहीं चलकर जमा नही हो सकता, यह मुर्खता पूर्ण बातें है | अगर यह मान लिया जाय की उस जमा जल को समुद्र कहा, किन्तु बाईबिल के परमेश्वर को यह पता नही की नदी किसे कहा जाता है ? नदी बनाने की बातें बाईबिल की इस उत्पत्ति प्रकरण में नही बताया गया |
ठीक यही हाल कुरान का भी है, वहां भी इसी प्रकार अल्लाह ने कहा हो जा,और हो गया, सवाल यहाँ भी यही है की दुनिया बनाने से पहले कोई चीज या वस्तु, नही है,तो आदेश का पालन करने वाला कोई इन्सान हो या कोई और नही है फिर अल्लाह ने किस को कहा हो जा ? जो एक हुक्म(आदेश )है ? दूसरी बात है की क्या हो जा, जब तक नही कहा जायगा, तो होगा, या बनेगा क्या ? कौनसी चीज चाहिए उसे कहे बिना, उसका बनना क्यों और कैसे संभव होगा भला ? यही सब इन लोगों के धर्म ग्रन्थ ईश्वानी के नाम से कहे जाते हैं | मैंने अपनी पुस्तक वेद और कुरान की समीक्षा में इन्ही विषय पर चर्चा किया | कुरान का, और वेद का सारा प्रमाण दे कर ही लिखा हूँ जिससे की आप लोगों को कुरान से देखने में किसी प्रकार की कोई परेशानी न हो आदि |
महेन्द्र पाल आर्य =वैदिक प्रवक्ता