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बात राष्ट्र हित की है भाईयों

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नोट बदलने से बड़ा लाभ यह हुवा कश्मीर में नोटों के वल आतंक मचाया जा रहा था, नोट दे कर लोगों से ऊधम मचाया जा रहा था वह काम तो ढीला पड़गया ।
 
अब तो दुनिया वालों को यह बात समझ लेनी चाहिए की कश्मीर में जो पत्थर बाजी हो रही थी वह क्या था, और कौन लोग थे जो इस काम को कर रहे थे ? स्पष्ट समझ में आ रही है की वह सभी किराये के लोग थे उन्हें पैसा देकर यह काम कराया जा रहा था | अब पैसों की मार पढ़ी तो उनका काम भी ठप होने लगा |
 
माननीय प्रधान मन्त्री जी सब के पास अच्छे नहो हो सकते, लोग तो परमात्मा को भी अच्छे नही कहते मोदी तो सामान्य एक इन्सान है | जहाँ लोग परमात्मा को कोसते नही छोड़ते, और नहीं थकते तो मोदी का राष्ट्र हित किसी को पसंद किस लिये आये भला ? इस में भी कुछ लोग ऐसे है जो परमात्मा को भी नही मानते उनका कौन क्या बिगाड़ सकता है भला ? पर वह बेचारे अक्ल के अंधेऔर गांठ के पुरे हैं |
 
देखें कश्मीर में पत्थरों से हमारे सैनिकों को मौत के घाट कौन उतार रहे थे और वह किन के शय पर इस काम को कर रहे थे यह सभी बातें लोगों के सामने आने लगी है जो उन अलगाव वादियों के पालतू ही थे सब, जिन्हें अब पैसा देना भारी पड़ गया वह लोग भी अपना काम बंद कर दिया,सबसे बड़ा काम तो यह हुवा राष्ट्रहित में |
 
दूसरी बात उसी कश्मीर में न मालूम कितने स्कुल जलादिये गये, इसमें मेरा कहना यह होगा की सरकार उन स्कूलों में किन को पढ़ाना चाह रही है ? जवाब तो यही मिलेगा कश्मीरियों को | तो कश्मीर में कौन लोग रहते हैं जो स्कुल में पढ़ें, तो कश्मीर में इस्लाम के मानने वाले ही रहते हैं | सवाल यह पैदा होता है की जब इस्लाम के प्रवर्तक ही उम्मी { जो पढ़ना लिखना नही जानते } थे,तो उनके अनुयायी से भी लिखने पढ़ने का क्या मतलब हो सकता है भला ? अब जिन्हें पढ़ने लिखने से कोई वास्ता ही न हो तो उन्हें स्कुल से क्या काम लेना था ?
 
जो लोग इस नोट या रुपयों के बदलने से विरोध कर रहे हैं, लोग इसे समझ रहे हैं अच्छी प्रकार से, कारण विरोध वही कर रहे होंगे जिनका नुकसान हुवा ? वरना विरोध का तो कोई प्रश्न ही कहाँ है | जिनके पास यहाँ काला नोट रखा था वह इतने जल्दी में उसे सादा नही बना सके, तो उनका विरोध करना तो जायज और लाजमी भी है | इस में अब कोई राज नेता हो और कोई व्यापारी जिन्हों ने नोट दबाकर रखे थे बाज़ार में जो नोट नही आ रहा था बण्डल बंधी हुई थी उनका तो नुकसान ही हुवा ? फिर वह विरोध नही करेंगे तो विरोध कौन करने आयेंगे भला ?
 
इस में चाँदी वह लोग काट रहे हैं जो लोग अपनी संस्था बना कर G 80 = जिसे आयकर मुक्त प्रमाण पत्र, जिन लोगों के पास है वह लोग इस से फायदा उठा रहे हैं कहीं 3% कही 5% फिर कहीं 50% में अपना काम चला रहे हैं | यह खेल शुरू हुवा है | ना जाने सरकार उन संस्था पर किस प्रकार शिकंजा कस्ती है वह तो आगे पता लगेगा | कुल मिला कर इस फैसले से कुछ लोग सुखी भी हो रहे हों और कुछ लोग दुःख को भी झेंल रहे हैं | राष्ट्र हित में किसी भी फैसला लेने पर हर एक का सुखी होना संभव भी नही, और सभी दुःख को भी नही झेलेंगे | मिला जुला ही रहेगा बीच के कुछ लोग हैं जो 2 दिन से 3 दिन से लईने लगा कर भी खाली हाथ घर लौट रहे हैं उन्हें घरेलू सामानों के लिये भी पैसा नही है |
 
इधर कोई दुकानदार 500 के नोट लेने को तैयार नही, कुछ लोगों ने अपना कारोबार बन्द कर दिया 3 दिनों से 6 दिनियो से दुकान ही नही खोल रहे हैं | घर में सामान लेने के लिये कोई 500 का नोट नही ले रहा है | यहाँ तक की मेट्रोरेल में भी 500 के नोट लेने से मना कर रहे हैं | परेशानी साधारण लोगों को है, बात ठीक यही है की, लकड़ी का चूल्हा जलाते समय धुँवा तो लगता ही है भाईयों, जरा सहन करो ठीक हो जायगा | परमात्मा की दया मुझ पर है की मेरे पास नोट तो न छोटा है और न कोई बड़ा | मैं घर से बाहर हूँ मुझे इसकी जरूरत ही नही पड़ीअबतक हाँ हर बैंक में भीड़ देखता हूँ लोग परेशन नज़र आ रहे हैं | मेरे एक मित्र ने 3 दिन में अपने बैंक से मसला हल किया है | धन्यवाद के साथ कष्ट सहेंगे तो सुख मिलेगा भाई, यहाँ मामला व्यक्तिगत नही है राष्ट्रहित की बात है |
महेन्द्रपाल आर्य =वैदिकप्रवक्ता = दिल्ली =17/11/16=

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